-: Mysterious stone :-
आज हम बात करने वाले हैं दुनिया के पांच सबसे रहस्यमई पत्थरों के बारे में। दुनिया में ऐसे पत्थर हैं, जिनकी मौजूदगी का रहस्य जानने के लिए वैज्ञानिकों ने अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा दिए। लेकिन वैज्ञानिक इस रहस्य से हमेशा पीछे ही रह गए। इनमें से कुछ पत्थरों का रहस्य इतना चौंका देने वाला है जिसकी कल्पना खुद वैज्ञानिकों ने भी नहीं की थी। इनमें से कुछ एलनासला रॉक।
माना जाता है कि इस पत्थर को बीच से काटने वाला कोई एलियन ही था। और दूसरा स्प्लिट एप्पल रॉक। इस पत्थर को बीच से दो टुकड़ों में बांटने का कारण दो भगवानों की लड़ाई को माना जाता है। और तीसरा कृष्णास बटर बॉल। सात हाथियों से खींचने की कोशिश की गई। लेकिन यह पत्थर 1 इंच भी नहीं हिला।
एलनसला रॉक, सऊदी अरब
क्या आपने कभी किसी चट्टान को बीच से ऐसे कटा हुआ देखा है जैसे किसी लेजर से एक झटके में काट दिया गया हो? सऊदी अरब के रेगिस्तान में मौजूद है एक रहस्यमई पत्थर अल नसला रॉक। यह कोई आम पत्थर नहीं बल्कि दो टुकड़ों में बंटा हुआ एक विशाल चट्टान है जो आज भी अपने पतले पैरों पर खड़ा है। और सबसे चौंकाने वाली बात यह है दोनों टुकड़े एकदम सटीक सीधी रेखा में एक दूसरे से अलग हैं। मानो किसी ने कंप्यूटर से डिजाइन किया हो। यह चट्टान ताइमा ओसिस के पास स्थित है और यह इलाके की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक का घर रहा है।
पर इस पत्थर का कटाव वो सीधा धारदार चीरा आज तक वैज्ञानिकों और पुरातत्व विदों के लिए एक पहेली बना हुआ है। करीब 6 मीटर ऊंचा और दो हिस्सों में बंटा। यह पत्थर अपने आप में एक अजूबा है। वैज्ञानिक कहते हैं कि यह प्राकृतिक दरार हो सकती है। कुछ लोग मानते हैं कि यह टेक्टोनिक प्लेट मूवमेंट का असर है। तो कोई इसे वेदरिंग और इरोजन का करिश्मा मानता है। मगर यह सब थ्योरीज तब कमजोर पड़ जाती हैं जब आप इस चीरे को नजदीक से देखो। इतनी सीधी इतनी एक समान रेखा जैसे किसी ने हाई प्रसीजन मशीन से काटा हो।
अब सुनिए वो बात जो इस पत्थर को और भी रहस्यमई बना देती है। इस पर पाए गए हैं हजारों साल पुराने पेट्रोग्लिव्स यानी गुफा चित्र जिनमें ऊंट और सवारों की आकृतियां बनी हुई हैं। इसका मतलब यह पत्थर हजारों सालों से यहां मौजूद है और तब से इसी रहस्यमई शक्ल में खड़ा है। कुछ लोगों का मानना है कि यह कोई प्राकृतिक निर्माण नहीं बल्कि प्राचीन एलियन टेक्नोलॉजी का नमूना है। शायद किसी और दुनिया से आए प्राणियों ने इसे काटा हो। लेकिन आज तक यह पत्थर किस तकनीक से और कैसे इतनी सटीकता से कटा? यह दुनिया के लिए एक गहरा रहस्य बना हुआ है।
नंस्प्लिट एप्पल रॉक, न्यूजीलैंड
समुंदर के बीचोंबीच एक विशाल गोल पत्थर जो किसी जादू की तरह ठीक बीच से दो बराबर हिस्सों में बंटा हुआ है। जैसे किसी दैवी शक्ति ने इसे चीर दिया हो। न्यूजीलैंड के समुंदर किनारे एबल टस्मान नेशनल पार्क के पास स्थित है एक रहस्यमई चट्टान स्प्लिट एप्पल रॉक। इसे देखकर ऐसा लगता है मानो एक विशाल सेब को बीच से चाकू की धार से काट दिया गया हो। एकदम परफेक्ट बराबर और सधा हुआ चीरा। लेकिन सवाल उठता है आखिर ऐसा कटाव आया कैसे?
यह ग्रेनाइट की चट्टान है जो लाखों सालों से पानी में पड़ी थी। इसका आकार देखकर वैज्ञानिकों का मानना है कि यह फ्रीज थॉ वेदरिंग नाम की प्रक्रिया से टूटी होगी जब पानी दरारों में जाकर जमता है और चट्टान को फाड़ देता है। पर इतनी एक जैसी दरार इतना परफेक्ट कट। यह सोचकर भी दिमाग चकरा जाता है। इसका आकार और बनावट इसे एक फोटोस्पॉट तो बना ही देती है। मगर इससे जुड़ी मौरी सभ्यता की एक पुरानी कहानी इसे और रहस्यमई बना देती है।
कहते हैं दो देवताओं में इस चट्टान को लेकर झगड़ा हो गया और जब किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे तो उन्होंने इसे बीच से दो टुकड़ों में तोड़ दिया। लेकिन आज भी इस चट्टान को देखकर लोग यही सोचते हैं। क्या यह सच में प्रकृति की कला है या फिर कोई रहस्यमई शक्ति इसमें शामिल थी? कुछ लोगों का मानना है कि शायद यह किसी प्राचीन सभ्यता या उच्च तकनीक की निशानी हो सकती है। पर सच यह है आज तक यह रहस्य बना हुआ है कि यह चट्टान कैसे इतनी सफाई से दो बराबर हिस्सों में टूटी। यह दुनिया के लिए एक अबूझ पहेली है।
डेविल्स मार्बल्स, ऑस्ट्रेलिया
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ऑस्ट्रेलिया के नॉर्दर्न टेरिटरी में फैली एक रहस्यमई घाटी है। डेविल्स मार्बल्स। यहां चारों ओर बिखरे पड़े हैं विशाल गोल पत्थर जो आकार में इतने बड़े हैं कि किसी दानव के खेलने के पत्थर जैसे लगते हैं। कुछ पत्थर तो दो-दो टुकड़ों में इस तरह बंटे हैं जैसे किसी ने कुल्हाड़ी से फोड़ दिया हो। लेकिन इन पत्थरों की खास बात सिर्फ उनका आकार नहीं बल्कि यह हैं कैसे कटे, कैसे टिके और कैसे हजारों सालों से बिना गिरे अपने असंभव संतुलन में खड़े हैं।
यही इनका असली रहस्य है। इन गोल-गोल चट्टानों का निर्माण ग्रेनाइट से हुआ है। और वैज्ञानिकों के मुताबिक लाखों साल पहले जब यह जमीन के नीचे थे तो ऊपर की चट्टानों के हटने और मौसम के प्रभाव से धीरे-धीरे इनका यह आकार बना। यह प्रक्रिया वेदरिंग और इरोजन से जुड़ी हुई बताई जाती है। मगर सोचने वाली बात यह है इतनी सटीक दरारें, इतने साफ सुथरे टुकड़े और इतने भारी पत्थर बिना किसी सपोर्ट के कैसे एक दूसरे पर टिके हैं।
क्या वाकई सिर्फ प्रकृति ने यह सब किया? आश्चर्य की बात तो यह है कि यहां कुछ पत्थर ऐसे हैं जो एक के ऊपर एक इस कदर सटीक तरीके से रखे हुए हैं कि अभी ही गिर जाए। यह जगह आदिवासी अब ओरिजिनल्स के लिए बेहद पवित्र मानी जाती है। उनकी मान्यता है कि यह पत्थर उनके पूर्वज देवताओं के अंडे हैं जिन्हें एक पौराणिक शक्ति ने यहां छोड़ा था। उनके लिए यह सिर्फ पत्थर नहीं बल्कि जीवित इतिहास हैं। लेकिन आज तक यह रहस्य बना हुआ है कि इतने भारी गोल पत्थर आखिर बने कैसे? फटे कैसे? और बिना गिरे इस तरह टिके कैसे हुए हैं। यह आज भी दुनिया के लिए एक अनसुलझा रहस्य है।
फेरी चिमनीज़, कैपडोशिया टर्की
क्या आपने कभी किसी जादुई दुनिया के बारे में सुना है जहां पत्थर आसमान की ओर उभरते हो जैसे कोई परी अपनी छड़ी से धरती पर चमत्कारी संरचनाएं बना गई हो। तुर्की के कापाडोकिया क्षेत्र में आपको ऐसी ही अद्भुत संरचनाएं देखने को मिलेंगी जिन्हें कहा जाता है फेरी चिमनीज़। यह पत्थर की बनी चिमनियां जो गहरे रेगिस्तान और पहाड़ों में खड़ी हैं। अपने आकार और दृश्य से किसी रहस्य की तरह नजर आती हैं।
इन चिमनियों का आकार इतना अलग और अजीब है कि आप पहली बार देखेंगे तो यह सोचेंगे कि जैसे किसी ने इन्हें सटीकता से तैयार किया हो। कहीं यह चिमनियां ऊपर की ओर बढ़ती हुई तो कहीं उनके ऊपर भारी पत्थर रखे हुए हैं। जैसे किसी ने इन्हें ठोस हाथों से जमा दिया हो। फेरी चिमनीज का निर्माण हजारों सालों की प्रकृति की कड़ी मेहनत से हुआ है। दरअसल लाखों साल पहले यहां ज्वालामुखी सक्रिय थे और उनके फटने से लावा और राख के ढेर ने इस क्षेत्र की चट्टानों को ढक लिया। फिर समय के साथ हवा और बारिश ने इन नरम चट्टानों को इतनी खास तरह से आकार दिया कि यह चिमनिया बन गई।
जैसे किसी विशालकाय जादू का परिणाम हो। इन चिमनियों की सबसे ऊंची छोटी 40 मीटर तक ऊंची हो सकती है जो एक बड़े इमारत के बराबर है। आपको यकीन नहीं होगा कि इन विशाल पत्थरों के ऊपर रखे गए छोटे-बड़े पत्थर इतने संतुलित हैं कि आज तक वे नहीं गिरे फिर चाहे मौसम कितना भी खराब क्यों ना हो।
आश्चर्य की बात तो यह है कि यहां कुछ चिमनियाओं एक दूसरे के पास इतनी सटीकता से रखी गई हैं कि एक हल्की सी भी हलचल इनको गिरा सकती है। लेकिन फिर भी यह चिमनियां सालों से बिना हिले खड़ी हैं। आज तक यह रहस्य बना हुआ है कि इन चिमनियों का आकार इतनी सटीकता से कैसे हुआ और यह इतने सालों से बिना गिरे कैसे खड़ी हैं। क्या यह सिर्फ प्रकृति का चमत्कार है या फिर कुछ और।
कृष्णास बटर बॉल, इंडिया
हमारे भारत में भी रहस्यमई जगहों की कोई कमी नहीं है। और ऐसी ही एक चौंकाने वाली जगह है तमिलनाडु के महाबलीपुरम में जहां एक पत्थर सदियों से गुरुत्वाकर्षण को चुनौती देता आ रहा है। इसे कहते हैं कृष्ण की बटर बॉल। जी हां, यह नाम सुनकर ही मन में कौतूहल जागता है।
यह विशाल गोल चट्टान एक छोटे से ढलान पर इस तरह टिकी हुई है जैसे वह अभी फिसल कर नीचे आ गिरेगी। लेकिन नहीं यह पिछले करीब 1200 सालों से वैसे की वैसे टिकी हुई है। इसका आकार और स्थिति इतनी अजीब है कि यकीन करना मुश्किल हो जाता है। यह पत्थर लगभग 6 मीटर ऊंचा और 5 मीटर चौड़ा है और इसका वजन करीब 250 टन बताया जाता है।
फिर भी यह एक छोटे से आधार पर खड़ा है। ना कोई सहारा ना कोई सपोर्ट। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह एक प्राकृतिक ग्रेनाइट रॉक फॉर्मेशन है जिसे हजारों सालों के मौसम हवा और वर्षा ने इस खास आकार में ढाला है। पर सवाल यह है इतने भारी पत्थर का इतने छोटे बिंदु पर इतनी मजबूती से टिके रहना क्या सच में सिर्फ प्रकृति की देन हो सकता है? इतिहास में बताया जाता है कि 1908 में मद्रास के गवर्नर ने इसे हटवाने की कोशिश की थी क्योंकि उन्हें डर था कि यह गिरकर किसी को नुकसान पहुंचा सकता है। सात हाथियों को लगाकर इसे हटाने की कोशिश की गई लेकिन पत्थर अपनी जगह से जरा भी नहीं हिला।
आश्चर्य की बात तो यह है कि यह चट्टान आज भी एक ढलान पर बिल्कुल नाजुक सी लगती है। जैसे अभी भी लुरक जाएगी। लेकिन नहीं। यह टस से मस नहीं होती। स्थानीय मान्यता कहती है कि भगवान कृष्ण ने अपने बचपन में मक्खन चुराया था और यह उसी मक्खन का एक टुकड़ा है जो आसमान से गिरा और यहीं जम गया। तभी से इसका नाम कृष्ण की बटर बॉल पड़ा। लेकिन आज तक यह रहस्य बना हुआ है कि यह चट्टान इस स्थिति में इतने वर्षों से कैसे टिकी है। यह आज भी भारत की सबसे रहस्यमई रचनाओं में से एक है।
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