जलवायु परिवर्तन से खेती पर असर और समाधान

-: Impact of Climate Change on Agriculture :-

  1. फसल उत्पादन में कमी: तापमान में वृद्धि और वर्षा के अनिश्चित पैटर्न के कारण गेहूं, धान, मक्का जैसी प्रमुख फसलों की पैदावार प्रभावित हो रही है।

  2. सूखा और बाढ़: कुछ क्षेत्रों में लगातार सूखा तो कहीं अत्यधिक वर्षा और बाढ़ हो रही है, जिससे खेतों में पानी का असंतुलन पैदा हो गया है।

  3. कीट और रोग: गर्मी और नमी बढ़ने से कीटों और फसल रोगों की संख्या बढ़ रही है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है।

  4. मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट: अत्यधिक तापमान और अनियमित वर्षा मिट्टी की नमी और जैविक गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा रही है।

  5. पशुपालन पर असर: तापमान बढ़ने से पशुओं की उत्पादकता (दूध आदि) घट रही है और चारे की उपलब्धता भी कम हो रही है।

समाधान:

  1. जल-संरक्षण तकनीक: टपक सिंचाई (Drip Irrigation), स्प्रिंकलर जैसे जलप्रबंधन उपाय अपनाकर पानी की बर्बादी कम की जा सकती है।

  2. जलवायु-रहित फसलें: ऐसी फसलें उगाना जो सूखा, गर्मी या अधिक पानी सहने में सक्षम हों, जैसे मोटे अनाज (ज्वार, बाजरा)।

  3. फसल विविधीकरण: एक ही फसल के बजाय कई तरह की फसलें बोकर जोखिम को कम किया जा सकता है।

  4. कृषि बीमा: प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान की भरपाई के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए।

  5. जैविक खेती और मिट्टी सुधार: रासायनिक उर्वरकों की जगह जैविक खाद का उपयोग कर मिट्टी की सेहत सुधारी जा सकती है।

  6. तकनीकी सहायता: मौसम पूर्वानुमान, मिट्टी परीक्षण और कृषि सलाह जैसी सेवाओं से किसान बेहतर निर्णय ले सकते हैं।

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नीति आधारित समाधान:

  1. सरकारी योजनाओं का विस्तार:

    • छोटे किसानों के लिए अनुदान और सब्सिडी।

    • हरित क्रांति जैसे कार्यक्रमों का आधुनिक रूप में विस्तार।

  2. शोध और नवाचार:

    • जलवायु-सहिष्णु बीजों का विकास।

    • मौसम आधारित फसल सलाह प्रणाली का विस्तार।

  3. कृषि जलवायु केंद्र:

    • प्रत्येक जिले में ‘जलवायु स्मार्ट कृषि केंद्र’ स्थापित किए जाएं, जहाँ किसान जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जानकारी और समाधान प्राप्त कर सकें।

  4. पर्यावरणीय कानूनों का पालन:

    • जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने वाले उद्योगों और प्रदूषण के स्रोतों पर नियंत्रण।

सामुदायिक और व्यक्तिगत प्रयास:

  1. स्थानीय जल स्रोतों का संरक्षण:

    • तालाब, कुंओं और झीलों को पुनर्जीवित करना।

    • रेन वॉटर हार्वेस्टिंग (वर्षा जल संग्रहण) अपनाना।

  2. सामूहिक खेती और साझा संसाधन:

    • किसान समूह बनाकर मशीनरी, पानी और संसाधनों को साझा करना।

    • सहकारी समितियों के माध्यम से विपणन और बीज-उर्वरक वितरण।

  3. कृषि शिक्षा:

    • किसानों को नई तकनीकों, जलवायु जानकारी और टिकाऊ खेती के प्रशिक्षण देना।

    • स्कूलों और कॉलेजों में कृषि जलवायु शिक्षा को बढ़ावा देना।

  4. कार्बन उत्सर्जन कम करना:

    • खेती में डीज़ल और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को घटाकर प्राकृतिक तरीकों को अपनाना।

    • पेड़ लगाना और जंगलों की कटाई को रोकना।

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