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-: World Most Mysterious Books :-
भारत के इतिहास की ऐसी सात किताबें जिसने मॉडर्न वैज्ञानिकों के भी होश उड़ा दिए। नंबर एक पर मौजूद किताब को अगर आपने पढ़ लिया तो आप वो सब कर पाओगे जो एक साधारण इंसान कभी सोच भी नहीं सकता। आजकल की पीढ़ी प्राचीन भारत के इतिहास और उसके धर्म ग्रंथों का अक्सर मजाक उड़ाकर उन्हें बेबुनियाद बताकर खुद को मॉडर्न कहलाना पसंद करते हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में जो ज्ञान और जानकारी भरी हुई है उसकी तो किसी को कदर ही नहीं है।
वहीं दूसरी ओर दुनिया भर के लोगों ने भारत में आकर हमारे ग्रंथों का अध्ययन किया और उस ज्ञान को चुराकर अपने नाम से कई आविष्कार किए। हमारे ऋषियों के द्वारा लिखे गए ज्ञान का तोड़ आज भी इस दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा। कहते हैं हमारे कई पुस्तकों को दूसरी और 12वीं शताब्दी के बीच अरब, यूनान, रोम और चीन ले जाया गया।
उसमें थोड़े बहुत बदलाव किए गए और फिर उसे दुनिया के सामने एक नए सिरे से प्रेजेंट कर दिया गया। उनमें से एक पहला विमान उड़ाने वाले राइट ब्रदर्स हो जिन्होंने विमान शास्त्र पढ़ा या फिर ग्रेविटी की खोज करने वाले न्यूटन जिन्होंने रुत्वा शक्ति का ज्ञान भारत से प्राप्त किया। अब अगर आपको इस बात पर यकीन नहीं है कि विदेशियों ने हमारे ग्रंथों और किताबों से ज्ञान चुराया तो आज हम आपको उन सात किताबों के बारे में बताएंगे जो आपके होश उड़ा देंगी।
नंबर सात पर है विमान शास्त्र
यह आज भी वन ऑफ द मोस्ट मिस्टीरियस बुक्स में से एक है। जिसके रचनाकार ऋषि भारद्वाज थे। जिन्होंने अपनी किताब में एरोप्लेन बनाने की जिस तकनीक का उल्लेख किया, उसका इस्तेमाल आज मॉडर्न एरा के एरोप्लेन बनाने के लिए हो रहा है। वैदिक ऋषियों में से एक भारद्वाज ऋषि देवताओं के गुरु बृहस्पति के पुत्र थे। इनका जन्म त्रेता युग की शुरुआत में हुआ। वहीं रामायण में भी इनका उल्लेख मिलता है।
माना जाता है कि रावण का पुष्पक विमान बनाने वाले विश्वकर्मा जी ने इन्हीं के सिद्धांतों का उपयोग कर पुष्पक विमान के साथ-साथ देवताओं के लिए कई सारे विमानों का निर्माण किया था। विमान शास्त्र में ऋषि भारद्वाज के 765 मंत्र हैं। जिसमें एोडायनेमिक्स को विस्तार से समझाया गया है। और तो और भारद्वाज स्मृति और भारद्वाज संहिता के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही माने जाते हैं। ऋषि भारद्वाज ने यंत्र सर्वस्व नाम की ग्रंथ की रचना की थी।
इस ग्रंथ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्म मुनि ने विमान शास्त्र के नाम से प्रकाशित कराया। इस ग्रंथ में हेलीकॉप्टर हो या जेट प्लेन या फिर रॉकेट साइंस सबके बारे में विस्तार से बताया गया है कि किस धातु से इसे बनाया जा सकता है जो एोडायनेमिक्स के मेन प्रिंसिपल्स को फॉलो करता है और एक एरोप्लेन बनाता है। यह किताब एिएशन की फील्ड में मौजूद हर इंसान को अपनी लाइफ में एक बार जरूर पढ़नी चाहिए।
नंबर छह पर है विज्ञान भैरव तंत्र
तंत्रशास्त्र पर आपको भारत में हजारों प्राचीन किताबें मिल जाएंगी। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा जिस किताब की होती है वो है विज्ञान भैरव तंत्र। कहते हैं इसे किसने लिखा यह आज तक किसी को नहीं पता। लेकिन इसमें भगवान शिव और माता पार्वती के बीच हुआ एक संवाद है। ठीक उसी तरह का जिस तरह अष्टावक्र और जनक के बीच हुआ था। और जिस तरह श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ था। विज्ञान भैरव तंत्र देवी पार्वती के प्रश्नों से शुरू होता है और उन प्रश्नों का उत्तर भगवान शंकर देते हैं।
यह बुक उन रहस्यमई और गुप्त विद्याओं से रिलेटेड आंसर्स देती है जिनको पढ़कर हर कोई वॉइसलेस हो जाता है। यह किताब सचमुच रहस्यमय ज्ञान से भरी हुई है। और तो और अपने आप को धर्मुगुरु कहने वाले ओशो ने भी इस पवित्र किताब में अपने बहुत से अद्भुत प्रवचन दिए हैं। जिसे सुनकर हर कोई इसकी तरफ अट्रैक्ट होता जाता है। ओशो ने इसकी सहायता से कई विदेशी लोगों को अपने प्रवचनों से मोहित कर दिया था।
नंबर पांच पर है अष्टध्याई और योगसूत्र
ऋषि पाणिनि द्वारा रचित यह दुनिया की पहली भाषा का पहला ग्रामर ग्रंथ है जिसे 500 ईसा पूर्व में रचा गया और इसमें आठ अध्याय हैं। इसीलिए इसे अष्ट अध्याय कहा गया है। इस ग्रंथ का दुनिया की हर भाषा पर बहुत गहरा इंपैक्ट पड़ा है। अष्टाध्यायी में कुल सूत्रों की संख्या 3996 है और इन सभी सूत्रों को समझने के बाद आपको जिस ज्ञान की प्राप्ति होगी वो दुनिया की अन्य किसी ग्रामर बुक में नहीं मिलेगा। यह एकदम शुद्ध ज्ञान है। इस तरह ऋषि पतंजलि ने भी इस ग्रंथ पर विषद विवरणात्मक ग्रंथ महाभाष्य लिखा है।
पतंजलि का योगसूत्र एक पढ़ने लायक ग्रंथ है जिसमें योग के बारे में विस्तार से लिखा गया है। आप यह मान सकते हैं कि इस संपूर्ण ग्रंथ में योग के रहस्य को बारीकी से उजागर किया गया है। योग सूत्र में ही अष्टांग योग की चर्चा की गई है। यह अष्टांग योग दुनिया के सभी धर्मों के ग्रंथों और उनका सार होने के साथ-साथ संपूर्ण धार्मिक नियम ज्ञान का स्टेप बाय स्टेप मोक्ष तक पहुंचने का मार्ग है।
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मात्र इन दो ग्रंथों को पढ़ने से और इन्हें समझने के बाद आपके दिमाग की दशा पहले जैसी नहीं रहेगी। आपकी सोच कुछ इस तरह बदल जाएगी कि आपको खुद यकीन नहीं होगा। आप अपने आप को एक महातपस्वी की तरह महसूस करेंगे जिसके शरीर में ऊर्जा का ऐसा भंडार बस जाएगा जो आपको एक सुपर ह्यूमन बनाने के लिए काफी है।
नंबर चार पर है उपनिषद
उपनिषदों को वेदों की समरी या निचोड़ कहा गया है। इसमें कई ऐसी रोचक और नॉलेज से भरी कहानियों के अलावा कई ऐसी रहस्यमई बातें भी हैं जिन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे। इनको पढ़ने और समझने के बाद आपका संसार को देखने का नजरिया ही बदल जाएगा। उपनिषद लगभग 108 से भी अधिक हैं। वैसे हमारे उपनिषदों की कथा को प्रेजेंट में कई सारे राइटर्स ने अपने अनुसार लिखा है। उन्हें सर्च कर आप उन राइटर्स की बुक खरीद सकते हैं।
नंबर तीन पर है सामुद्रिक शास्त्र
अब इस मिस्टीरियस बुक यानी कि सामुद्रिक शास्त्र के मुख मंडल और आपकी होल बॉडी की नॉलेज का ज्ञान। इसके अंदर भरा है। भारत में यह वैदिक काल से ही फेमस है। गरुड़ पुराण में सामुद्रिक शास्त्र का वर्णन मिलता है। यह एक ऐसी रहस्यमय शास्त्र है जो किसी भी इंसान के कैरेक्टर को और उसके फ्यूचर को खोल कर रख देता है। यानी इसकी मदद से आप एस्ट्रोलॉजी को आसानी से समझ सकते हैं। हस्तरेखा विज्ञान यानी हाथ पड़ना।
यह सब सामुद्रिक शास्त्र की ही एक छोटी सी ब्रांच है। वैसे भी इस विज्ञान का उल्लेख हमारे ज्योतिष शास्त्र में भी मिलता है। ज्योतिष शास्त्र की तरह सामुद्रिक शास्त्र का जन्म 5000 साल पहले भारत में हुआ था। इस शास्त्र का उल्लेख हमारे वेदों और स्कंद पुराण, वाल्मीकि रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों के साथ-साथ जैन और बौद्ध धर्म के ग्रंथों में भी मिलता है। कहते हैं इसका प्रचार प्रसार सबसे पहले ऋषि समुद्र ने किया था।
इसीलिए उन्हीं के नाम पर इसका नाम सामुद्रिक शास्त्र रखा गया। भारत में यह ज्ञान चीन, यूनान, रोम और इजराइल तक पहुंचा और आगे चलकर यह पूरे यूरोप में फैल गया। कहते हैं 423 ईसा पूर्व में ग्रीक स्कॉलर एनेक्सागोरस यह शास्त्र अपने स्टूडेंट्स को पढ़ाया करते थे। आपने कभी सोचा है कि बिना प्लेनेट्स को देखे हम होने वाले सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण को कैसे समझ लेते हैं? तो इसका जवाब है इसी सामुद्रिक शास्त्र से। सोचिए हमारे ऋषि मुनियों द्वारा लिखा गया ज्ञान कितना ज्यादा एडवांस था जो आज भी सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में इस्तेमाल किया जाता है।
नंबर दो पर है रस रत्नाकर और रसेंद्र मंगल
प्राचीन भारत में नागार्जुन नाम के महान रसायन शास्त्री यानी केमिकल इंजीनियर थे। जिनकी रसायन शास्त्र में दो पुस्तकें रस रत्नाकर और रसेंद्र मंगल बहुत फेमस हैं। रस रत्नाकार में इन्होंने रसायन यानी केमिकल्स के बारे में बहुत ही डीप नॉलेज को प्रेजेंट किया है। इसमें उन्होंने मरकरी यानी कि पारे को कैसे कीना बार से एक्सट्रैक्ट करते हैं इस बारे में संपूर्ण जानकारी दी है। इसके अलावा रस रत्नाकार में मरकरी को बनाने के प्रयोग दिए गए हैं।
इस बुक में चांदी, सोना, टिन और तांबे की कच्ची धातु निकालने और उसे शुद्ध करने के तरीके को भी विस्तार से बताया गया है। सबसे रहस्यमई बात तो यह है कि इसमें सोना बनाने की पूरी विधि का वर्णन है। पुस्तक में डिटेल में बताया गया है कि कैसे अन्य धातुओं को सोने में बदला जा सकता है। यदि सोना ना भी बने तो कैसे केमिकल सॉल्यूशन द्वारा ऐसी धातुएं बनाई जा सकती हैं जिनकी पीली चमक सोने जैसी होती है।
अब बात करते हैं एक ऐसे मिस्टीरियस बुक की जो आज सबसे ज्यादा चलन में है और अगर आपने इसे एक बार पढ़ लिया तो आपको ऐसा ज्ञान प्राप्त होगा जो आपकी सोच के साथ-साथ आपको भी पूरी तरह से बदल देगा और यह कुछ और नहीं बल्कि यह है लाल किताब। सभी किताबों से कहीं अधिक रहस्यमई ज्ञान इस एक किताब में मौजूद है जिसे लाल किताब भी कहा जाता है।
आप माने या ना माने लेकिन इसे पढ़कर यदि आप इसे समझ गए तो निश्चित ही आपका दिमाग पहले जैसा नहीं रहेगा। माना जाता है कि लाल किताब के ज्ञान को सबसे पहले अरुण देव ने खोजा था। इसीलिए इसे अरुण संहिता कहा जाता है। फिर इस ज्ञान को रावण ने खोजा। इसके बारे में रावण ने भी लिखा है। फिर यह ज्ञान कहीं खो गया। लेकिन यह ज्ञान लोक परंपराओं में आज भी जीवित है।
दरअसल लाल किताब ज्योतिष की प्राचीनतम विद्या का ग्रंथ है। यह आज भी उत्तराखंड और हिमाचल क्षेत्र से हिमालय के सुदूर इलाकों तक फैली हुई है। बाद में इसका प्रचलन पंजाब से अफगानिस्तान के इलाकों तक फैल गया। उसके बाद अंग्रेजों के काल में इस विद्या के बिखरे सूत्रों को इकट्ठा कर जलंधर निवासी पंडित रूपचंद्र जोशी को हिमाचल में एक प्राचीन पांडुलिपि प्राप्त हुई। उस पांडुलिपि का उन्होंने ट्रांसलेशन किया और सन 1939 को लाल किताब के फरमान नाम से उस किताब को पब्लिश कर दिया।
इस किताब में कुल 383 पेजेस थे। बाद में इस किताब का न्यू एडिशन 1940 में 156 पेजेस के रूप में पब्लिश हुआ। जिसमें से कुछ खास सूत्रों को ही शामिल किया गया। फिर 1941 में अगले पिछले सारे सूत्रों को मिलाते हुए 428 पेजेस की बुक को पब्लिश किया गया। फिर 1942 में 383 पेजेस और 1952 में 1171 पेजेस वाले मिस्टीरियस बुक के न्यू एडिशंस को बार-बार पब्लिश किया गया। 1952 के एडिशन को अंतिम माना गया। इस किताब को मूल रूप से उर्दू और फारसी भाषा में लिखा गया था।
इस कारण ज्योतिष के कई प्रचलित और स्थानीय शब्दों की जगह इसमें उर्दू, फारसी के शब्द शामिल हैं। जिससे इस किताब को समझने में मुश्किल होती है। लाल किताब के फरमान नाम से जो भी किताबें बाजार में उपलब्ध हैं। उनमें से ज्यादातर ऐसी किताबें हैं जो बिजनेस प्रॉफिट्स के विज़न के बारे में लिखी गई हैं। अब इसमें एस्ट्रोलॉजी और लाल किताब के सूत्रों को मिक्स कर दिया गया है जो कि प्राचीन विद्या के साथ किया गया अन्याय ही माना जाएगा।
जिस ज्योतिष ने लाल किताब को जैसा समझा वैसा उसे लिखकर उसके उपाय लिख दिए जो कि कितने सही और कितने गलत हैं यह तो वही जानते हैं। अब इसी लाल किताब को और उसके ज्ञान को हासिल कर रावण ने भी अपने काल में इसे लिखा था और इसे रावण संहिता ही माना जाता है। इसमें ज्योतिष, आयुर्वेद और तंत्र से जुड़ी तमाम ऐसी जानकारी थी जो कि अचूक मानी गई है। हालांकि असली रावण संहिता के बारे में कुछ कहना मुश्किल है।
जिस तरह लाल किताब के नाम पर नकली किताबें मिलती हैं, उसी तरह रावण संहिता के नाम पर नकली रावण संहिता मिलती है। लेकिन अब असली लाल किताब कहां है? उसका ज्ञान कहां है कोई नहीं जानता। लेकिन एक बात तो तय है लाल किताब का ज्ञान बहुत दमदार था। इससे रावण को कई सारी मायावी शक्तियां हासिल हुई थी। और अगर यह ज्ञान आज इस धरती पर मौजूद होता तो शायद मानव आम नहीं बल्कि महाज्ञानी होते।
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