भगवान महाकाल की पौराणिक कथा

-: Unveiling Mahakal  :-

सतयुग की बात है जब अवंतिका नगरी जिसे आज हम उज्जैन के नाम से जानते हैं अपने धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध थी उस समय अवंतिका नगरी के समीप स्थित रत्न माल पर्वत की एक गुफा में दूषण नामक असुर का निवास था उसकी शक्तियां सीमित थी और उसका अधिकार केवल रत्न माल पर्वत तक ही सीमित था। दूषण का सपना था कि वह अपने राज्य का विस्तार पूरे पृथ्वी पर करें वह दिन रात विचार में डूबा रहता कि कैसे वह बाकी असुरों की तरह ताकतवर बन सकता है।

दूषण को यह भी त था कि अतीत में अन्य असुरों ने अपने अहंकार के कारण अपनी शक्तियां और राज्य खो दिए थे इसलिए उसने निर्णय लिया कि वह ब्रह्मदेव की कठोर तपस्या करेगा और उनसे अद्वितीय शक्तियां प्राप्त करेगा। रत्न माल पर्वत के घने जंगलों में दूषण ने ब्रह्मदेव की तपस्या आरंभ की वह वर्षों तक तपस्या में लीन रहा समय बीतता गया परंतु ब्रेव प्रकट नहीं हुए इसके बावजूद दूषण ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी तपस्या जारी रखी कई दशकों के बाद ब्रह्मदेव उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए।

उन्होंने दूषण से वरदान मांगने को कहा दूषण ने ब्रह्मदेव से त्रिदेव के समान शक्तिशाली बनने का वरदान मांगा ब्रह्मदेव इस मांग को सुनकर चिंतित हो गए उन्होंने दूषण को समझाने का प्रयास किया कि यह वरदान संसार के संतुलन के लिए हानिकारक हो सकता है लेकिन लेकिन दूषण ने अपनी तपस्या का हवाला देकर अपनी मांग पर जोर दिया विवश होकर ब्रह्मदेव ने दूषण को वरदान दे दिया लेकिन साथ ही यह चेतावनी भी दी कि वह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग शिव भक्तों पर नहीं करेगा।

शक्तियां प्राप्त करने के बाद दूषण ने अपनी गुफा को मायावी शक्ति से एक भव्य राज महल में बदल दिया उसने अपनी शक्ति का प्रयोग करके हजारों असुरी योद्धाओं को उत्पन्न किया और अवंतिका नगरी समेत आसपास के राज्यों पर हमला करना शुरू कर दिया वह अत्यंत क्रूरता से राजाओं और सैनिकों का वध करता और उनके राज्यों को अपने अधीन कर लेता।

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दूषण का आतंक इतना बढ़ गया कि पातलोक के कई असुर भी उससे संधि करने पर मजबूर हो गए समय के साथ दूषण का साम्राज्य बढ़ता गया और उसका नाम काल के रूप में प्रसिद्ध हो गया वह अपने अधीन राज्यों में भगवान की पूजा पाठ और यज्ञ को भी बंद कराने लगा उसके आदेश पर उसकी असुरी सेना पंडितों, मुनियों और प्रजा जनों को धमकाने लगी जो लोग उसका विरोध करते दूषण स्वयं उनका काल बन जाता वही दूषण के अत्याचार के बीच अवंतिका नगरी में चार ब्राह्मण भाई रहते थे जो महादेव के परम भक्त थे।

दूषण के आदेश और अत्याचारों के बावजूद उन्होंने महादेव की पूजा और यज्ञ करना बंद नहीं किया वे बिना डरे अपने विश्वास पर अडिग रहे उनकी इस भक्ति और साहस की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई जब दूषण को इन चार ब्राह्मण भाइयों के बारे में पता चला तो वह क्रोध से भर गया उसने अपने सैनिकों को उन्हें पूजा बंद करने की चेतावनी दे देने के लिए भेजा लेकिन ब्राह्मण भाइयों ने उनकी बात मानने से इंकार कर दिया सैनिकों की असफलता के बाद दूषण ने स्वयं उन्हें दंडित करने का निर्णय लिया।

दूषण अपनी तलवार लेकर ब्राह्मण भाइयों को मारने के लिए उनके यज्ञ स्थल पर पहुंचा जैसे ही उसने अपने प्रहार की तैयारी की धरती जोर से कांपने लगी अचानक धरती फटी और वहां से महादेव महाकाल के रूप में प्रकट हुए उनका प्रलयंकारी रूप देखकर दूषण भय से थरथरने लगा महाकाल ने दूषण को चेतावनी दी कि वह शिव भक्तों को कष्ट ना पहुंचाए लेकिन दूषण अपने अहंकार में चूर था।

उसने अपनी वरदानी शक्तियों का प्रयोग करते हुए लाखों असुरों की सेना उत्पन्न कर दी महाकाल ने अपने त्रिशूल से उन सभी असुरों का संहार करना शुरू कर दिया युद्ध भयंकर था महाकाल के प्रचंड प्रहार से दूषण की पूरी सेना नष्ट हो गई अंततः दूषण ने स्वयं महाकाल से युद्ध करने का निर्णय लिया लेकिन महाकाल के एक ही प्रहार से वह धराशाई हो गया।

महाकाल ने अपनी प्रचंड अग्नि से दूषण को भस्म कर दिया और उसकी राख को अपने शरीर पर सजाकर भस्मे शवर रूप धारण कर लिया। दूषण के अंत के बाद चारों ब्राह्मण भाइयों ने महादेव से अवंतिका नगरी में सदैव के लिए निवास करने की प्रार्थना की महादेव उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिव्य ज्योतिर्लिंग प्रकट किए और उसे वहीं स्थापित कर दिया उन्होंने यह आश्वासन दिया कि इस ज्योतिर्लिंग की उपस्थिति में अवंतिका नगरी पर कोई भी संकट नहीं आएगा इस प्रकार महाकाल ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई जो आज के उज्जैन में स्थित है और अनगिनत भक्तों की आस्था का केंद्र है

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