इतिहास के सबसे पहले हवाई प्लेन
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-: The Earliest Airplanes in History :-
आज हम बात करने वाले हैं इतिहास में पहली बार उड़ान भरने वाले उन विमानों के बारे में जो इंसान के सबसे बड़े सपने को हकीकत में बदलने की पहली सीढ़ी बने। एक ऐसा समय था जब लोग सिर्फ आसमान की तरफ देखकर सोचते थे। काश कुछ मिनट के लिए उड़ पाते। लेकिन उन्हीं में से कुछ लोग ऐसे भी थे जो वाकई उड़ने के लिए कुछ बना रहे थे। उन्हें नहीं पता था कि वह उड़ेंगे या नहीं, जिंदा भी बचेंगे या नहीं।
लेकिन फिर भी वह लगे रहे और उन्हीं कोशिशों से जन्म हुआ दुनिया के पहले उड़ने वाले विमानों का। कुछ तो ऐसे भी थे जिन्होंने धरती को छोड़कर पहली बार आसमान में अपना पैर रखा। यही वो लोग थे जिन्होंने सिर्फ खुद नहीं उड़े बल्कि पूरी दुनिया को आसमान की उड़ान सिखा दी। आज हम कुछ घंटों में एक देश से दूसरे देश पहुंच जाते हैं। लेकिन यह सफर इतना आसान कभी नहीं था।
डेपरडुसिन मोनोप्लेन
साल 1910 फ्रांस अरमंड डेपरडुसिन एक सिल्क व्यापारी और विमानन में रुचि रखने वाले व्यक्ति ने सोसाइटी डी प्रोडक्शन डेस एरोप्लेन डेपरडुसिन एसपीएडी नाम की कंपनी के जरिए एक नया विमान बनवाया जिसे आज हम कहते हैं डेपडसन मोनोप्लेन यह विमान अपने समय से कहीं आगे था। मोनोप्लेन डिज़ यानी इसमें सिर्फ एक जोड़ी पंख थे जो उस समय के पाइप्लेन डिजाइनों से बिल्कुल अलग और हल्के थे। फ्रेम लकड़ी का बना था।
ज्यादातर स्प्रूस और ऐश वुड जो हल्के लेकिन मजबूत होते हैं। पंखों और बॉडी को फाइन कैनवास कपड़े से ढंका गया था। इसे उड़ाने के लिए इस्तेमाल हुआ था एक ग्नोम रोटरी इंजन जो 50 से 100 हॉर्स पावर तक की क्षमता वाला था। इसमें एक ओपन कॉकपिट होता था जिसमें पायलट सामने की ओर बैठता था और उसे खुले आकाश में मशीन को नियंत्रित करना पड़ता था। इसे खासतौर पर रफ्तार और दूरी दोनों के लिए डिजाइन किया गया था। इसका वजन लगभग 250 से 300 किग्र के बीच था जो उस समय के दूसरे विमानों के मुकाबले हल्का था। इस विमान की पहली सफल उड़ान 1910 मेंफ्रांस में की गई थी।
लेकिन असली उपलब्धि तब हुई जब इसने 1912 में गॉर्डन बेनेट ट्रॉफी जीत लिया। एक अंतरराष्ट्रीय रेस जिसमें इसने करीब 105.4 किमी/ घंटा की रफ्तार हासिल की। इसके उड़ान का तरीका काफी स्थिर था और इसे बहुत जल्दी उड़ान भरने योग्य बना दिया गया था। डीपरडूसिन मोनोप्लेन उस समय का एक तेज, टिकाऊ और सटीक इंजीनियरिंग का उदाहरण माना गया। बाद में इसी डिजाइन को आधार बनाकर कई लड़ाकू विमान तैयार किए गए। यह विमान एक क्रांतिकारी कदम था जिसने यह साबित कर दिया कि अब विमान केवल उड़ने की मशीन नहीं। बल्कि गति और तकनीक की दौड़ में भी शामिल हो चुके हैं।
फोकर स्पिन
साल 1910 में डच विमान निर्माता और इंजीनियर एंटोन फोकर ने पहला विमान बनाया। जिसका नाम था फोकर स्पिन। स्पिन का अर्थ होता है मकड़ी। क्योंकि इसके पंखों का डिजाइन मकड़ी के जाले जैसा दिखता था जो इसे एक अनोखा और पहचानने योग्य रूप देता था। यह एक बाइप्लेन था। यानी इसमें दो जोड़ी पंख ऊपर और नीचे लगी थी। इसके पंख लकड़ी के फ्रेम पर कैनवास के कपड़े से ढके हुए थे।
विमान का फ्रेम हल्की लकड़ी और लोहे की तारों से बना था जो मजबूती के साथ-साथ वजन को कम रखने में मदद करता था। फोकस स्पिन में लगाया गया था एक 40 हॉर्स पावर का इंजन जो उस समय के शुरुआती इंजन थे और यह इंजन विमान के पीछे लगे प्रोपेलर को घुमाता था। कुल मिलाकर विमान का वजन लगभग 300 किलो था। यह डिजाइन खासतौर पर स्थिर उड़ान के लिए तैयार किया गया था ताकि शुरुआती पायलट भी इसे आसानी से उड़ा सकें।
इस विमान का पहला सफल उड़ान परीक्षण 1910 में ही हुआ था और इसके उड़ान भरने की दूरी और समय के रिकॉर्ड तो बहुत कम उपलब्ध हैं लेकिन इतना पता है कि इसने डच विमानन के इतिहास में पहला ठोस कदम रखा। इसके बाद फोकर ने लगातार सुधार करते हुए अपने मॉडल्स को विश्वस्तरीय बना दिया। जहां तक दुर्घटना की बात है, फोकर स्पिन के शुरुआती परीक्षणों में कोई बड़ी दुर्घटना रिकॉर्ड नहीं की गई है।
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फोकर ने इस विमान की डिजाइन पर विशेष ध्यान दिया था, जिससे यह अपेक्षाकृत सुरक्षित माना गया। फोकर स्पिन के डिजाइन ने बाद के फोकर विमान निर्माण की नींव रखी और इसे डच विमानन का पहला सफल विमान माना जाता है। इसने साबित कर दिया कि छोटी लेकिन मजबूत मशीनें भीआसमान में अपनी पहचान बना सकती हैं।
शॉर्ट नंबर 1 बाइप्लेन
साल 1909 में ब्रिटिश भाई हॉरेस और यूस्टेस शॉर्ट ने एक ऐसी उड़ने वाली मशीन बनाई जिसे देखकर हर कोई हैरान रह गया। इसका नाम था शॉर्ट बाय प्लेन यह कोई आम विमान नहीं था। इसकी बनावट और डिजाइन देखने में कुछ ऐसी थी कि जिसे देखो उसका दिमाग घूम जाए। सोचिए ऊपर और नीचे दो जोड़ी बड़े-बड़े पंख जो कैनवास के बने थे। पर असली ध्यान जाता था उन लंबी-लंबी लोहे की डंडियों, तारों पर जो पूरे विमान के फ्रेम को आपस में बांधे हुए थी। यह डंडियां इतनी लंबी थी कि मशीन के चारों तरफ जाल बिछा हो और मानो यह विमान नहीं बल्कि एक उड़ता हुआ मकड़ी का जाला हो।
विमान का पीछे का हिस्सा भी कम अजीब नहीं था। एक प्रकार का पूंछ जैसा हिस्सा जो हवा में संतुलन बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया था। लेकिन इसे देखकर लोगों को हमेशा अजीब एहसास होता था। यह विमान लगभग 350 किलो वजन का था जिसमें वो सारे लंबी डंडियां भी शामिल थी। इंजन था लगभग 40 हॉर्स पावर का जो इस भारी और जटिल संरचना को आसमान तक ले जाने की कोशिश करता था।
इस उड़ान की पहली कोशिश इंग्लैंड के हेड फील्ड पर हुई और जब यह मशीन जमीन से उठी तो हर किसी के होश उड़ गए। कैसे कोई इस अजीब तारों से घिरे विमान से उम्मीद कर सकता था कि यह आसमान में उड़ पाएगा। लेकिन उड़ान भरी और वह भी सफलतापूर्वक। इतना ही नहीं इस विमान की बनावट और उसकी डंडियों का जाल इतना खास था कि बाद में इस डिजाइन को देखकर कई विमान निर्माताओं ने इसे प्रेरणा माना।
यह विमान दिखने में जितना अजीब था उतना ही प्रभावशाली और इतिहास रचने वाला था। अगर आप इसे करीब से देखें तो यह एक जादुई मशीन लगती है जो तारों की जंजीरों में बंद। फिर भी उड़ान भरने के लिए बेकरार। यही शॉर्ट बे प्लेन नंबर वन ने ब्रिटेन की उड़ान की दुनिया में अपनी अनोखी पहचान बनाई।
एंटोनेट आई
साल था 1909 और फ्रांस में एक व्यक्ति था जिसका नाम इतिहास में दर्ज हो गया। लन लेवो वासुर वही व्यक्ति जिसने बनाया था एंटोनेट चार, एक ऐसा मोनोप्लेन जिसने उस दौर की सोच और तकनीक को चुनौती दी। एंटोनेट चार को देखकर ऐसा लगता था जैसे किसी ने हवा में तैरने वाला एक लंबा चमकदार तीर बना दिया हो। इसकी बनावट में इस्तेमाल की गई थी लकड़ी, तारऔर कैनवास। लेकिन उसे इतनी बारीकी से गढ़ा गया था कि वह मशीन नहीं किसी कलाकार का काम लगता था।
इस विमान की सबसे खास बात थी इसका आगे की ओर नुकीला नाक जिसमें लगा था एक घूमने वाला पंखा प्रोपेलर। यह पंखा इंजन की ताकत से घूमता था और उसी से यह विमान हवा को चीरते हुए आगे बढ़ता था। और पीछे पीछे था इसका अनोखा पूंछ वाला डिजाइन जो एक साधारण पूंछ नहीं बल्कि एक संतुलन साधने वाला सिस्टम था। यह पूंछ हवा के बहाव को तोड़ती थी और विमान को डगमगाने से रोकती थी। यह डिजाइन उस समय के बाकी विमानों से अलग और कहीं ज्यादा प्रभावी था।
अब बात करें इसके दिल की तो इसमें लगा था N28 V8 इंजन 50 हॉर्स पावर की ताकत वाला। यह इंजन लयन लेवासूर ने खुद डिजाइन किया था और यही इंजन इस पूरे विमान की आत्मा था। इसका वजन करीब 300 किलो था। पंख लंबे, पतले और चपटे थे और पूरा ढांचा देखने में इतना हल्का लगता था कि किसी को यकीन ही नहीं होता था कि यह वाकई उड़ सकता है।
लेकिन 1909 में जब पहली बार एंटनेट आवे ने खुले आकाश में उड़ान भरी तो हर दर्शक स्तब्ध रह गया। क्योंकि इतनी नाजुक दिखने वाली मशीन हवा में इतनी स्थिर, इतनी सुंदर और संतुलित उड़ रही थी जैसे उसे किसी अदृश्य शक्ति ने ऊपर उठा रखा हो। जहां तक दुर्घटनाओं की बात है इस विमान के शुरुआती परीक्षणों में कोई बड़ी घटना दर्ज नहीं हुई। इसे तकनीकी रूप से काफी संतुलित और सुरक्षित माना गया। एंटोनेट चार सिर्फ एक विमान नहीं था, यह एक संदेश था कि भविष्य की उड़ाने केवल ताकत पर नहीं बल्कि समझ, डिजाइन और कला पर टिकी होंगी।
एट्रिच ताउबे
1909 का साल और ऑस्ट्रिया में एक नौजवान इंजीनियर आइगो एट्रिच जिसकी नजरें आकाश में थी और दिल में था एक सपना ऐसा विमान बनाना जो बिल्कुल कुदरत के बनाए पक्षी जैसा दिखे और वैसे ही उड़ सके। इसी सोच से जन्म हुआ एट्रिड तौबे का। तौबे शब्द का मतलब होता है कबूतर और सच में यह विमान देखने में भी बिल्कुल उड़ते हुए कबूतर जैसा लगता था। इट रिच तौबे का डिजाइन आज भी लोगों को हैरान कर देता है।
इसका पंखों का आकार बिल्कुल परों जैसा था। आगे से चौड़ा और पीछे जाकर पतला। जैसे कोई पक्षी अपने पंख पूरी तरह फैला ले। पूरा ढांचा लकड़ी, कपड़े और तारों से तैयार किया गया था। इसमें लंबी मुड़ी हुई लोहे की डंडियां, टेंशन वायर्स लगी थी जो पंखोंको आकार में बनाए रखती थी और पूरे फ्रेम को संतुलित रखती थी। इस विमान का सबसे अलग हिस्सा था उसका पूंछ का डिजाइन जो पारंपरिक नहीं था। इसमें एक पतली सी पूंछ और उसके दोनों ओर पतले-पतले नियंत्रण सतहें रडर्स थे जो उड़ान में दिशा और संतुलन बनाए रखते थे।
दिखने में यह डिजाइन बिल्कुल किसी जैविक परिंदे के शरीर जैसा लगता था। एट्रिच तौबे में एक ऑस्ट्रो डमलर इंजन लगाया गया था। लगभग 65 हॉर्स पावर का। इसका वजन करीब 400 किलो था और यह इतनी नरमी से उड़ता था कि जमीन से उठते ही लगता था जैसे हवा ने उसे गोद में उठा लिया हो। तो ने अपनी पहली सफल उड़ान 1910 की शुरुआत में भरी थी। हालांकि इसका प्रोटोटाइप 1909 में ही तैयार हो चुका था।
एट्रिच ने इस विमान को हवा की नैसर्गिक बनावट और पक्षियों के उड़ान सिद्धांतों पर आधारित किया था और यही वजह है कि यह मशीन किसी भी दूसरी उड़ने वाली मशीन से अलग थी जहां बाकी विमान सिर्फ उड़ने के लिए बनाए गए थे। एटरिच ताऊबे को देखकर लोग भावुक हो जाते थे क्योंकि यह कुदरत और इंसानी तकनीक का एक मिलाजुला करिश्मा था। इस विमान से जुड़ी कोई बड़ी दुर्घटना शुरुआती उड़ानों में दर्ज नहीं हुई बल्कि इसकी उड़ान इतनी स्थिर और सुंदर थी कि कई देशों ने इसे जल्दी ही सैन्य प्रयोग के लिए भी अपनाया।
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