धर्मवीर संभाजी महाराज की शौर्य, बलिदान और स्वाभिमान की अमर गाथा

-: Sambhaji Maharaj :-

इतिहास में बहुत कम राजा हुए हैं जिन्होंने अपने शौर्य और बलिदान से मुगलों को घुटनों पर ला दिया लेकिन क्या आप जानते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी महाराज को औरंगजेब ने किस तरह की दर्दनाक मौत दी थी और क्या उन्होंने अपने आखिरी शब्दों में कुछ ऐसा कहा था जिसने मुगलों को झकझोर कर रख दिया कैसे मौत का डर दिखाकर औरंगजेब ने संभाजी महाराज को इस्लाम कबूल करने के लिए यातनाए दी लेकिन वह अपने इरादे से टस से मस नहीं हुए चाहे उन्हें मौत का ही सामना क्यों ना करना पड़ा हम जानेंगे कि संभाजी महाराज के साथ क्या-क्या हुआ था उन्हें किस तरह की यातनाएं दी गई थी और अंततः मराठों ने किस तरह से उनकी मृत्यु का बदला लिया।

आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे वीर योद्धा की कहानी जिनका नाम इतिहास में वीरता साहस और बलिदान का प्रतीक बन गया है जी हां हम बात कर रहे छत्रपति संभाजी महाराज की छत्रपति संभाजी महाराज जिनका पूरा नाम संभाजी राजे शिवाजी राजे भोसले था मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति और छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे वे एक वीर योद्धा लेखक और विचारक थे संभाजी महाराज ने बीजापुर और गोलकुंडा की सल्तनत को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई थी।

उनकी बहादुरी और विद्वता के कारण वे पूरे भारत में प्रसिद्ध हुए संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर किले में हुआ था जब वे केवल ढाई साल के थे तब उनकी माता सई बाई का निधन हो गया इसके बाद उनकी परवरिश उनकी दादी जीजा भाई ने की वे बहुत ही होशियार थे और 14 वर्ष की आयु में ही संस्कृत, मराठी और हिंदू शास्त्रों का गहरा अध्ययन कर चुके थे उन्होंने बुधभूषण, नक शिक और सात शतक जैसे संस्कृत ग्रंथ लिखे जो उनकी विद्वता का प्रमाण है।

संभाजी महाराज ने अपने 9 साल के शासनकाल में 210 युद्ध लड़े और उनकी सेना कभी नहीं हारी उन्होंने अपने पराक्रम से मुगलों पुर्तगालियों और अंग्रेजों को भी टक्कर दी संभाजी राजे ना केवल अपनी दादी के करीब थे बल्कि वे अपने दादा शाहजी महाराज के भी काफी करीब थे जीजाबाई ने अपने पुत्र शिवाजी की तरह ही पोते शंभाजी में भी राष्ट्र प्रेम, धर्म प्रेम, हिंदवी स्वराज, देव, देश, धर्म और आदर्श जीवन मूल्यों को स्थापित किया।

इसके अलावा उन्होंने गणित, तर्क, भूगोल, इतिहास, पुराण, रामायण, व्याकरण आदि का ज्ञान काशीराम शास्त्री से अर्जित किया वहीं पिता शिवाजी महाराज ने उन्हें शारीरिक प्रशिक्षण दिया शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र होने के नाते संभाजी अपने पिता द्वारा हिंदवी स्वराज के निर्माण के लिए किए गए प्रयासों को देखते हुए बड़े हुए थे।

मराठा साम्राज्य के राजकुमार के रूप में संभाजी ने कई अवसरों पर अपनी बहादुरी और सैन्य प्रतिभा साबित की उन्होंने 16 साल की उम्र में ही रामनगर में अपना पहला युद्ध लड़ा था और वे इसे जीते भी और 1675 से 76 के दौरान उन्होंने गोवा और कर्नाटक में सफल अभियानों का भी नेतृत्व किया था जीवू बाई जिन्हें यीशु बाई के नाम से भी जाना जाता है संभाजी महाराज की पत्नी थी इस वैवाहिक गठबंधन के बाद शिवाजी को कोंकण क्षेत्र पर नियंत्रण मिल गया था

छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक

जब 3 अप्रैल 1680 को छत्रपति शिवाजी महाराज का निधन हुआ तो मराठा साम्राज्य में सत्ता संघर्ष शुरू हो गया उनकी सौतेली मां सोयराबाई चाहती थी कि उनके पुत्र राजा राम को राजा बनाया जाए लेकिन संभाजी महाराज ने पन्हाला और रायगढ़ किलों पर कब्जा कर लिया 20 जुलाई 1680 को हिंदू परंपराओं के अनुसार उनका विधिवत राज्याभिषेक किया गया।

वे मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति बने संभाजी महाराज ने स्वयं को शक करता यानी कि एक नए युग की शुरुआत करने वाला और हिंदवी धर्मो धारक यानी हिंदू धर्म का रक्षक की उपाधियां दी उन्होंने एक नई राज मुद्रा भी बनवाई जिसमें लिखा था श्री शंभो शिव जात मुद्रास दयोर राजते यदक सेविनी लेखा वर्तते कस्य नोपी अर्थात भगवान शिव के भक्त और शिवाजी के पुत्र संभाजी का राज्य आकाश तक फैला है और सभी प्रजा जनों के लिए हितकारी है।

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शासनकाल और रणनीतिक विजय

अपने शासनकाल में संभाजी महाराज ने 210 से अधिक युद्ध लड़े और कभी पराजित नहीं हुए उनके पराक्रम से परेशान होकर औरंगजेब ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक संभाजी महाराज को बंदी नहीं बनाया जाएगा वह अपने किमोंश यानी राज्याभिषेक का मुकुट सिर पर नहीं पहने गा छत्रपति बनने के बाद संभाजी ने सबसे पहले बुरहानपुर पर हमला किया जो औरंगजेब की दक्षिणी राजधानी थी मराठा हों ने मुगल सेना को हराकर विशाल खजाना लूटा जिससे मराठा साम्राज्य की ताकत बढ़ गई।

1681 से 1683 के दौरान मैसूर अभियान चलाया गया जिसमें भीषण युद्ध के बाद मराठों ने विजय प्राप्त की और दक्षिण भारत में अपनी स्थिति को मजबूत किया पुर्तगालियों ने मुगलों की सहायता की थी इसीलिए संभाजी महाराज ने उनके गोवा और दमन के किलों पर हमला कर दिया मराठों ने पुर्तगालियों की सेना को हराकर उनके खजानो और हथियारों पर भी कब्जा कर लिया संभाजी महाराज ने हिंदू पुनर्निर्माण समिति स्थापित की जिसका उद्देश्य उन हिंदुओं को वापस धर्म में लाना था जिन्हें जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया गया था।

विश्वास घात और गिरफ्तारी

संभाजी महाराज ने मुगलों को भारत से पूरी तरह उखाड़ फेंकने की योजना बनाई थी इस योजना पर चर्चा करने के लिए उन्होंने अपने कुछ विश्वस्त सेनापतियों और मंत्रियों को संगमेश्वर में एक गुप्त बैठक के लिए बुलाया था लेकिन दुर्भाग्य से गनोजी शिरके जो उनके बहनोई थे ने विश्वासघात कर दिया और मुगलों से मिलकर उनकी गिरफ्तारी का मार्ग प्रशस्त किया।

गनोजी शिर के संभाजी महाराज से वतन दारी यानी कि जागीर और विशेष अधिकार मांग रहे थे लेकिन धर्मवीर संभाजी महाराज ने साफ इंकार कर दिया क्योंकि वे किसी भी प्रकार की भ्रष्ट या अनुचित मांगों को स्वीकार नहीं करते थे इस अपमान से क्रोधित होकर गनोजी शिरके ने मुगलों के साथ मिलकर उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचा।

गनोजी ने मुगल सरदार मुकर्रम खान को संभाजी महाराज के ठिकाने की गुप्त जानकारी दे दी संगमेश्वर के गुप्त मार्ग जो केवल मराठों को ज्ञात थे उनके बारे में भी गनोजी ने मुगलों को बता दिया था जिससे मुगल सेना को अप्रत्याशित लाभ मिल गया संभाजी महाराज ने अपने ज्यादातर सैनिकों को रायगढ़ भेज दिया था और उनके साथ सिर्फ 200 सैनिक ही बचे थे ।

उनके मित्र और सलाहकार कवि कलश और 25 विश्वस्त व्यक्ति भी उनके साथ थे जब संभाजी महाराज संघम मेश्वर से बाहर निकल रहे थे तभी मुकर्रम खान के नेतृत्व में 10000 मुगलों की एक विशाल सेना ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया मराठा सैनिकों ने अपनी पूरी ताकत से मुगलों की विशाल सेना का सामना किया लेकिन संख्या कम होने के कारण वे अंततः पराजित हो गए।

संभाजी महाराज और उनके वीर साथियों ने अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ी लेकिन अंततः 1 फरवरी 1689 को मुगलों ने संभाजी महाराज और उनके मित्र कवि कलश को धोखे से पकड़ लिया और बंदी बना लिया इस विश्वासघात ने मराठा साम्राज्य को गहरे संकट में डाल दिया लेकिन यह भी सच है कि संभाजी महाराज की गिरफ्तारी और बलिदान ने मराठा को और अधिक आक्रामक बना दिया जिससे आगे चलकर मुगलों का पतन शुरू हो गया था।

संभाजी महाराज और उनके मित्र कवि कलश को जुल्फिकार खान की सेना ने पकड़ लिया और उन्हें कराड और बारामती के रास्ते बहादुरगढ़ ले जाया गया इसके बाद उन्हें तुलापुर लाया गया जो भीमा, भामा और इंद्रायणी नदियों के संगम पर स्थित था तुलापुर में औरंगजेब ने संभाजी महाराज और कवि कलश का भयंकर अपमान किया उन्हें जोखों के कपड़े पहनाकर ऊंटों पर बांध दिया गया शहर में घुमाते हुए लोगों ने उन पर पत्थर कीचड़ और गोबर फेंका लेकिन संभाजी महाराज और कवि कलश जगदंबा जगदंबा का नाम लेते रहे।

अपने स्वाभिमान को बनाए रखा इसके बाद उन्हें औरंगजेब के दरबार में पेश किया गया जहां उनके सामने तीन शर्तें रखी गई पहली शर्त मराठा किलों को मुगलों को सौंप दें और छिपे हुए खजाने की जानकारी दें दूसरी शर्त मुगल दरबार के गद्दारों के नाम बताएं और तीसरी शर्त इस इस्लाम धर्म कबूल कर ले संभाजी महाराज ने इन तीनों शर्तों को मानने से साफ इंकार कर दिया।

जब औरंगजेब ने फिर से इस्लाम कबूल करने के लिए कहा तो संभाजी महाराज ने गर्व से उत्तर दिया धर्म मेरा प्राण है और मैं इसे नहीं छोड़ सकता इसके बाद संभाजी महाराज को तोड़ने के लिए औरंगजेब ने भयंकर यातनाएं देने का आदेश दिया मुगल सैनिकों ने उनके नाखून उखाड़ दिए फिर एक-एक कर उनकी उंगलियां काट दी गई।

जब भी औरंगजेब कारागार में आता संभाजी महाराज उसे अपमानजनक बातें कहते जिससे वह और भी क्रोधित हो जाता गुस्से में औरंगजेब ने उनकी जीभ काटने का आदेश दिया ताकि वह कुछ ना बोल सके इसके बाद उनकी त्वचा चाकुओं से छील दी गई और गर्म सलाखों से उनकी आंखें जला दी गई इसके कुछ दिनों बाद उनके दोनों हाथ भी काट दिए गए 40 दिनों तक परम यातनाएं देने के बाद संभाजी महाराज का सिर भी काट दिया गया।

उनके शरीर के टुकड़े टुकड़े कर तुलापुर के भीमा नदी संगम में फेंक दिए गए संभाजी महाराज ने अपने प्राण देकर भी अपने धर्म स्वाभिमान और मराठा स्वराज के सिद्धांतों से समझौता नहीं किया उनके इस परम बलिदान के कारण उन्हें धर्मवीर की उपाधि दी गई उनकी वीरता और बलिदान आज भी हर भारतीय को साहस और धर्म के प्रति अडिग रहने की प्रेरणा देती है।

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