-: Ravan History In Hindi :-
एक ऐसा रहस्यमय मंदिर जहां आज भी रखे हैं रावण के 10 सिर यह वही सिर है जो रावण ने खुद भगवान शिव को चढ़ाए थे। लंकापति रावण जो रामायण का मुख्य खलनायक था। माता सीता का उसने अपहरण किया और फिर भगवान श्री राम से युद्ध। मायावी शक्तियों और नाभि में अमृत कुंड होने के बावजूद रावण जीत ना सका। रावण ने वैसे तो अपने जीवन काल में कई पाप किए लेकिन एक चीज थी जो उसके अंदर कूट-कूट कर भरी थी और वह थी भगवान शिव के प्रति सच्ची भक्ति।
उसकी भक्ति में इतनी निष्ठा थी कि उसने हजारों साल भगवान शिव का तप किया और फिर एक-एक कर अपने सभी शीश काट काट कर उन्हें अर्पित कर दिए। लेकिन अगर मैं आपसे कहूं कि हमारे भारत देश में एक ऐसा मंदिर आज भी मौजूद है जहां खुद रावण ने अपने 10 सिर काटकर भगवान शिव को अर्पित किए थे तो क्या आप यकीन करेंगे? जी हां, यह सच है और उस मंदिर में आज भी शीला रूप में रावण के वो 10 सिर मौजूद है जो उसकी भक्ति के प्रतीक माने जाते हैं।
इस मंदिर की संपूर्ण जानकारी से पहले हमें रावण के उस वरदान की कहानी को जानना होगा जिसने उसके समस्त जीवन को बदल कर रख दिया। रावण, कुंभकरण और विभीषण तीनों ही महर्षि विश्वश्रवा और राक्षसी कैसी के पुत्र थे और ब्रह्मदेव के परपोते थे। रावण एक बहुत बड़ा ज्ञानी था। उसने शास्त्रों का बहुत ज्ञान अर्जित किया था। लेकिन देवताओं द्वारा राक्षसों पर अत्याचार और राक्षस प्रवृत्ति होने के कारण उसने ब्रह्मा को प्रसन्न कर वरदान प्राप्ति के उद्देश्य से घनघोर तप किया। हजारों वर्षों तक चले तप से ब्रह्मदेव प्रसन्न हुए।
रावण ने वरदान स्वरूप अमरतव मांगा। लेकिन ब्रह्मा जी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि यह वरदान देना असंभव है। तुम कुछ और मांग लो। तब रावण ने वरदान मांगा कि मुझे मनुष्य और वानर के अलावा कोई ना मार सके। ब्रह्मदेव ने तथास्तु कहा और रावण की नाभि के अंदर अमृत संग्रहित कर दिया। इसके बाद भी रावण रुका नहीं। इस बार उसने भगवान शिव की घोर तपस्या आरंभ की। रावण ने तपस्या के लिए एक ऐसा स्थान चुना जहां आज भी उसकी तपस्या के सबूत मिलते हैं।
यह जगह थी देवभूमि उत्तराखंड के नंदप्रयाग से 10 कि.मी. दूर एक छोटा सा गांव बैराज कुंड। रावण ने हजारों वर्षों तक महादेव की तपस्या की। लेकिन महादेव उसके समक्ष प्रकट नहीं हुए। तब उसने तपस्या को नेक्स्ट लेवल पर ले जाने का सोचा और एक-एक कर अपना सिर काटना शुरू कर दिया। हर बार जब वह अपने सर को काटता तो एक नया सिर प्रकट हो जाता क्योंकि रावण को केवल मनुष्य या वानर ही मार सकते थे। उसके अलावा कोई नहीं। इस प्रकार रावण ने अपने 10 शिष्य महादेव को काटकर भेंट कर दिए। भगवान शिव रावण की इस तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने ही रावण को दशानंद होने का वरदान दिया।
यह भी पढ़े :-
तब से रावण के 10 सिर हैं। शिवजी ने रावण को यह भी वरदान दिया कि उसका अगर कोई शीश काट देगा तो उसके नए शीश निकल आएंगे। तभी तो भगवान राम जितनी बार भी रावण का शीश काटते वो वापस अपनी जगह पर उग आता था। यह तो थी वरदान की बात। लेकिन जिस जगह रावण ने यह तपस्या की थी, वह देवभूमि उत्तराखंड के नंदप्रयाग से 10 कि.मी. दूर एक छोटे से गांव में बैराज कुंड नामक जगह पर स्थित है।
रावण ने जिस 10 स्थानों पर अपने सर काट कर रखे थे, उन स्थानों को दसमोली कहा जाता है। जिसके चलते इस गांव की पूरी पट्टी का नाम दसोली पड़ा है। वहीं नंदप्रयाग में आज भी वह हवन कुंड मौजूद है जहां पौराणिक काल के सबूत मिलते हैं। अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के संगम पर बसा नंदप्रयाग पांच धार्मिक प्रयागों में से दूसरा है। पहला प्रयाग है विष्णुप्रयाग। वैसे शुरू से ही नंदप्रयाग को आध्यात्मिक सुकून वाला क्षेत्र माना जाता है और शायद इसीलिए रावण ने महादेव की तपस्या के लिए इस स्थान को चुना था।
यह शहर बद्रीनाथ धाम के पुराने तीर्थ मार्ग पर मौजूद है और यहीं से 10 कि.मी. दूर स्थित है बैरास कुंड। कहते हैं जिस जगह रावण ने अपने आराध्य भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी वहां महादेव का एक मंदिर मौजूद है जिसका जिक्र केदार खंड और रावण संहिता में भी मिलता है। साथ ही स्कंद पुराण के अनुसार दशमोलेश्वर के नाम से बैरास कुंड क्षेत्र का उल्लेख किया गया है। बैरास कुंड में महादेव का एक मंदिर मौजूद है जिसकी पूजा अर्चना करने से आपकी हर मनोकामना पूरी होती है।
वहीं मंदिर के ठीक सामने पौराणिक कुंड भी बनाया हुआ है। जिसके जल से महादेव का जल अभिषेक किया जाता है। और तो और शिवरात्रि और श्रावण मास के अवसर पर यहां दूर-दूर से श्रद्धालु भक्ति के लिए पहुंचते हैं। वैसे वैरासुंड के अलावा नंदप्रयाग का संगम स्थल, गोपाल जी मंदिर और चंडिका मंदिर भी प्रसिद्ध है। वहीं देवभूमि में स्थित शिव के धामों में इस जगह का बहुत विशेष महत्व है। यहां पुरातत महत्व की कई सारी चीजें मिलती हैं।
कुछ समय पहले खेत की खुदाई के दौरान एक कुंड मिला था जिसका संबंध त्रेता युग से जोड़ा जाता है। वहीं पुराणों में भी रावण के हिमालय क्षेत्र में तप करने का उल्लेख मिलता है। वहीं कहते हैं कि महर्षि वशिष्ठ ने भी इसी स्थान पर तप और आराधना कर कर महादेव को प्रसन्न किया था। वैसे सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि मंदिर प्रांगण में आज भी रावण का पौराणिक हवन कुंड मौजूद है। वैसे मंदिर के पास रावण शीला भी मौजूद है जिस पर रावण की उंगलियों के निशान मौजूद हैं और इसका दावा केवल हम ही नहीं करते बल्कि वैज्ञानिक भी करते हैं।
उन उंगलियों के निशानों का माप बहुत ही विशालकाई है। साथ ही कार्बन डेटिंग से यह पता लगाया गया है कि यह त्रेता युग के समय का हो सकता है। लेकिन सबसे खास बात तो यह है। कहते हैं जब रावण ने अपने 10 सिर काटकर दान करे तो वह अचानक ही पत्थर के बन गए और आज इस मंदिर के आसपास 10 बड़ी-बड़ी शीला मौजूद है जो कि बिल्कुल विशालकाय सिर जैसे लगते हैं। स्थानीय लोग ना इन्हें छूते हैं और ना ही इनकी पूजा अर्चना करते हैं।
वो मानते हैं कि इन्हें छूने से या फिर इनकी पूजा अर्चना करने से सभी देवता रुष्ट हो जाएंगे। वैसे कुछ लोग कहते हैं कि यह सिर्फ एक कल्पना है लेकिन हमारे धार्मिक इतिहास को मानने वाले इसे सच मानते हैं और इसका जीता जागता उदाहरण है बैरास कुंड में स्थित यह मंदिर जो आस्था भक्ति और तपस्या का प्रतीक है। तो कभी भी अगर आप देवभूमि उत्तराखंड की तरफ प्रस्थान करें या घूमने जाएं तो इस मंदिर के दर्शन अवश्य कीजिएगा।
जुड़िये हमारे व्हॉटशॉप अकाउंट से- https://chat.whatsapp.com/JbKoNr3Els3LmVtojDqzLN
जुड़िये हमारे फेसबुक पेज से – https://www.facebook.com/profile.php?id=61564246469108
जुड़िये हमारे ट्विटर अकाउंट से – https://x.com/Avantikatimes
जुड़िये हमारे यूट्यूब अकाउंट से – https://www.youtube.com/@bulletinnews4810