नासा को मिली मंगल ग्रह पर भगवान गणेश की मूर्ति ?
-: NASA :-
नासा को मंगल ग्रह पर मिल गई गणेश जी की मूर्ति। क्या मंगल ग्रह पर कोई प्राचीन सभ्यता थी जो भगवान गणेश की पूजा करती थी? आखिर क्या है इस मूर्ति का खास रहस्य? हमारे शास्त्रों में मंगल ग्रह को मंगल देव कहा जाता है, यानी शक्ति, साहस और विजय का प्रतीक। लेकिन साइंस के नजरिए से यह एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन संभव है। मनुष्य पृथ्वी के अलावा मंगल ग्रह यानी मार्स में भी रह सकता है। नासा कहती है कि अरबों साल पहले मंगल बिल्कुल हमारी धरती जैसा था। वहां नीले समुद्र लहराते थे, नदियां गुनगुनाती थीं और शायद जीवन भी मौजूद था। मंगल पर ओलंपस मॉन्स है।
सौरमंडल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी और माउंट शार्क जैसी विशाल पहाड़ियां। लेकिन सबसे हैरानी का विषय है नासा को मिली एक ऐसी चट्टान जिसकी आकृति बिल्कुल गणेश भगवान जैसी है। जिसे देखकर नासा भी सोचने पर मजबूर हो गया कि क्या सच में मार्स में भी कभी कोई सभ्यता रहती थी और क्या हिंदू धर्म के ग्रंथों में इसका असली रहस्य छुपा हुआ है?
नासा ने अपना क्यूरियोसिटी रोवर 26 नवंबर 2011 को पृथ्वी के मंगल ग्रह के लिए लॉन्च किया था। यह रोवर मार्स साइंस लैबोरेटरी मिशन का हिस्सा था और 6 अगस्त 2012 को मार्स के गैल क्रेटर में यह उतरा था, जिसके बाद से ही आज तक क्यूरियोसिटी रोअर ने मंगल की मिट्टी में ऐसी चीजें पाईं जो चीख-चीख कर कहती हैं कि वहां कभी जीवन संभव था।
2024 में रोअर ने जेजेरो क्रेटर में चियावा फॉल्स नाम की चट्टान पाई, जिसमें पानी के निशान और ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स मौजूद थे। नासा के मुताबिक यह पृथ्वी पर बैक्टीरिया की कॉलोनी जैसा है। फिर 2025 में क्यूरियोसिटी ने कुंभरलैंड रॉक में डिकेन जैसे मॉलिक्यूल पाए जो जीवन के पुराने अवशेष हो सकते हैं। मंगल की मिट्टी में मिथेन गैस और मैग्नीज ऑक्साइड भी मिला जो सूक्ष्म जीवों की निशानी हो सकता है। तो क्या यह संभव है कि मंगल पर कोई प्राचीन सभ्यता थी जो हमारे शास्त्रों में देवी देवताओं और असुरों की कहानी से जुड़ी हो?
इससे जुड़ी एक और मजेदार थ्योरी है पेंस्परिया। यह कहती है कि पृथ्वी पर जीवन बाहर से आया, शायद मंगल ग्रह से। 1984 में अंटार्कटिका में एलएच 84001 नाम का एक उल्कापिंड मिला जो मंगल से आया था। इसमें बैक्टीरिया जैसे छोटे जीवों के निशान और उनके केमिकल्स भी मिले। वैसे देखा जाए तो मंगल से पृथ्वी की दूरी लगभग 6 करोड़ किलोमीटर है और माना जाता है कि टारीग्रेड जैसे छोटे जीव स्पेस में जो जिंदा रह सकते हैं, वो शायद पृथ्वी तक भी पहुंच गए थे। क्यूरियोसिटी ने मंगल की मिट्टी में बोरोन ढूंढा जो आरएनए बनाने में मदद करता है।
मंगल का फास्फोरस पानी में आसानी से भी घुल जाता है जो जीवन की शुरुआत को आसान बनाता है। हमारे वेदों में लिखा है कि जीवन ब्रह्मांड के अलग-अलग हिस्सों से आया था। तो शायद मंगल ही वह जगह हो जहां से हमारी असली कहानी शुरू हुई हो और गणेश भगवान का चिन्ह हमें यह बताने की कोशिश कर रहा है कि शायद हमारा इतिहास मंगल ग्रह से जुड़ा है। अब आते हैं मंगल के उन रहस्यमय निशानों पर जो हमें गणेश चतुर्थी की याद दिलाते हैं।
2022 में पर्सवरेंस रोअर ने मार्स मिशन के समय वो चट्टान देखी जो भगवान गणेश की मूर्ति जैसी थी। सूंड, कान, आंखें सब कुछ बिल्कुल भगवान गणेश जैसा लग रहा था। कई लोग कहते हैं कि यह प्राचीन सभ्यता का निशान है। शायद वह सभ्यता जो हमारे हिंदू शास्त्रों से जुड़ी हो। वैसे नासा इसे झुठलाती है और कहती है यह हवा और पानी से घिसकर बना हुआ पत्थर है। लेकिन गणेश चतुर्थी के मौके पर यह हमें सोचने पर मजबूर करता है। क्या यह बप्पा का डिवाइन साइन है? और केवल इतना ही नहीं, मंगल ग्रह पर और भी कई अजीब चीजें मिली हैं।
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2024 में क्यूरियोसिटी ने स्कल हिल नाम की खोपड़ी जैसी चट्टान पाई। 2022 में क्यूरियोसिटी को दरवाजा जैसा स्ट्रक्चर मिला। वहीं 2025 में काले गोल पत्थर मिले जो उल्कापिंड या लावा से बने हो सकते हैं। कोरल जैसे स्ट्रक्चर भी मिले जो पानी से बनते हैं। यही नहीं, वैज्ञानिक जॉन ब्रैंडनबर्ग कहते हैं कि 30 करोड़ साल पहले मंगल पर दो विशाल न्यूक्लियर धमाके हुए। मंगल की मिट्टी में ज़िनोन 129, यूरेनियम और थोरियम मिले जो कि न्यूक्लियर विस्फोट के निशान हैं।
यह धमाके साइडोनिया में हुए जहां वो इंसानी चेहरा और पिरामिड मौजूद हैं। ब्रैंडनबर्ग कहते हैं कि यह धमाके हिरोशिमा बम से 500 गुना ज्यादा ताकतवर थे। तो क्या यह संभव है कि किसी एलियन सभ्यता ने मंगल की सभ्यता को पूरी तरह से निस्त्रनाबूत और तबाह कर दिया? हमारे पुराणों में देवसुर युद्धों का जिक्र है, जहां ब्रह्मास्त्र जैसे हथियारों ने सब कुछ नष्ट कर दिया था। क्या मंगल पर भी ऐसा ही कोई युद्ध हुआ था? 2025 में क्यूरियोसिटी रोवर ने थोरियम और यूरेनियम के कई सारे सबूत पाए जो कि इस थ्योरी को बिल्कुल पुख्ता और मजबूत करते हैं।
लेकिन कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि यह ज्वालामुखी या उल्कापिंडों से बने हो सकते हैं। ऐसे में सवाल है कि फिर इतना रेडिएशन आया कहां से? क्या यह हमारे शास्त्रों में लिखे युद्धों का सबूत हो सकता है? वैसे देखा जाए तो नासा ने मंगल पर कई सारे मिशन भेजे हैं, जैसे वाइकिंग, क्यूरियोसिटी और प्रिजवरेंस, लेकिन हर बार कुछ छुपाने का शक भी होता है। 1976 में वाइकिंग ने फेस ऑन मार्स की तस्वीर ली लेकिन वहां लैंडिंग नहीं की। 1992 में मार्स ऑब्जर्वर अचानक फेल हो गया।
कुछ लोग कहते हैं कि नासा ने चुपके से साइडोनिया की रिसर्च की थी। वहीं 1996 में ग्लोबल सर्वेयर ने धुंधली तस्वीरें रिलीज की जिनमें छेड़छाड़ के सबूत मिलते हैं। बज़ एल्ड्रिन चांद पर कदम रखने वाले दूसरे इंसान थे। उन्होंने कहा कि मंगल के चांद फोबोस पर एक अजीब मोनोलिथ है जो नेचुरल नहीं लगता। तो क्या वो सब चट्टानें मैनमेड हैं? 2025 में क्यूरियोसिटी ने मिथेन गैस और ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स पाए जो कि जीवन का सबसे बड़ा हिंट देते हैं।
लेकिन वहीं दूसरी तरफ नासा इन्हें जियोलॉजिकल प्रोसेस कहती है। मार्स सैंपल रिटर्न मिशन, जो कि मंगल के सैंपल्स पृथ्वी पर लाएगा, 2030 के लिए टाल दिया गया है। क्या नासा गणेश चतुर्थी के इस मौके पर कुछ छिपा रहा है? वहीं, एक और सवाल आपके मन में जरूर उठा होगा कि अगर मंगल पर कोई जीवन मौजूद था तो आखिर वह खत्म क्यों हुआ? इस विषय पर वैज्ञानिक कहते हैं कि मंगल का मैग्नेटिक फील्ड खत्म हो गया होगा जिससे सौर हवाओं ने इसका वायुमंडल उड़ा दिया।
पानी सूख गया और ग्रह बंजर हो गया। लेकिन ब्रैंडनबर्ग की न्यूक्लियर थ्योरी कहती है कि यहां पर एक बहुत बड़ा युद्ध हुआ था जिसने मंगल ग्रह और उसकी सभ्यता को पूरी तरह से खत्म कर दिया। हमारे पुराणों में ब्रह्मास्त्रों और देव असुर युद्धों की कहानियां हैं। क्या मंगल की कहानी भी ऐसी ही हो सकती है? क्या भगवान गणेश जी का चिन्ह हमें यह बताने की कोशिश कर रहा है कि हमारा इतिहास अंतरिक्ष से जुड़ा है?
इस गणेश चतुर्थी पर मंगल के यह रहस्य, गणेश जी की मूर्ति, फेस ऑन मार्स और न्यूक्लियर धमाके हमें अपने शास्त्रों में गहराई की याद दिलाते हैं। क्या हमारे वेदों और पुराणों में मंगल की कहानी पहले से ही लिखी हुई है? गणेश जी का वह चिन्ह क्या यह सिर्फ एक पत्थर है या बप्पा का आशीर्वाद? क्या हमारा जीवन मंगल से आया था? जैसा कि पेनस्पर्मिया थ्योरी कहती है, नासा की नई खोजें हमें जवाब के करीब ले जा रही हैं। लेकिन सच्चाई अभी भी रहस्य है।
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