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-: Mystery of kashi vishwanath temple :-
क्या है बाबा विश्वनाथ के दर्शन की धार्मिक मान्यता और इतिहास, काशी विश्वनाथ का शिवलिंग आखिर क्यों दक्षिण की ओर झुका हुआ है, क्या हुआ जब औरंगजेब ने काल भैरव मंदिर पर आक्रमण करने की नाकाम कोशिश की, आखिर क्या है धनवंत्री और लोलार्क कुंड का रहस्य , क्या रहस्य छिपा है उत्तर काशी के त्रिशूल में क्यों उड़ा रखी है इस त्रिशूल ने वैज्ञानिकों की नींदे आखिर कौन सी धातु से देवताओं ने किया था इस त्रिशूल का निर्माण।
महादेव की नगरी काशी बनारस के बारे में सभी लोग जानते हैं यह दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से है यहां के घाट और गंगा जी की आरती देखने की हर किसी की ख्वाहिश होती है वाराणसी में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा विश्वनाथ हैं जो आज के समय में भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है वाराणसी में आध्यात्मिकता की महक और इस शहर की खूबसूरती हर किसी का मन मोह लेती है।
ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी के निर्माण के दौरान सूर्य की पहली किरण काशी यानी वाराणसी पर पड़ी थी भगवान शिव को स्वयं इस शहर और यहां रहने वाले लोगों के संरक्षक के रूप में जाना जाता है क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं कुछ समय के लिए इस पवित्र स्थान को अपना निवास स्थान बनाया था इसीलिए काशी को शिव की नगरी के नाम से भी जाना जाता है।
काशी नगरी को धर्म और संस्कृति का केंद्र बिंदु भी माना जाता है और इसके साथ ही हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के लिए सबसे पवित्र स्थान भी काशी को ही बताया गया है कहते हैं कि गंगा किनारे बसी यह पवित्र नगरी काशी भगवान शिव के त्रिशूल की नोक पर बसी है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान शिव का विवाह माता पार्वती से नहीं हुआ था तब वह सिर्फ कैलाश पर्वत पर ही निवास किया करती थे।
लेकिन विवाह के पश्चात भगवान शिव माता पार्वती का गौना कराकर पहली बार यहीं आए थे तभी से काशी भोले की नगरी और सबसे पवित्र नगरी के तौर पर जानी जाती है काशी एक ऐसी जगह है जहां के कण कण में हर चमत्कार के पीछे धार्मिक कहानियां पाई जाती हैं लोगों की मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति का कल्याण हो जाता है।
यहां आने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं यहां भगवान शिव के विराट और बेहद दुर्लभ रूपों के दर्शन करने का सौभाग्य रूपी फल हमें मिलता है और यहां प्रवाहित गंगा मैया में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में स्थित है कहने को तो इसकी संरचना ई है लेकिन लोगों की आस्था और मंदिर के प्रति महत्व आज भी वैसा ही है।
जैसा प्राचीन काल में हुआ करता था यहां देश विदेश से लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष आते हैं धार्मिक ग्रंथों में यहां आकर भगवान भवान शिव के दर्शन और रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व माना गया है ऐसा करने से श्रद्धालुओं को पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्त होता है काशी विश्वनाथ मंदिर ना केवल अपनी भव्य सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है बल्कि यह मंदिर अपने अंदर कई ऐसे रहस्यों को भी समेटे हुए हैं जो हर किसी को अचरज में डाल दे।
स्वयंभू लिंग का रहस्य
काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग को स्वयंभू लिंग कहा जाता है जिसका अर्थ है स्वयं उत्पन्न हुआ माना जाता है कि यह शिवलिंग प्राकृतिक रूप से प्रकट हुआ था और इसे किसी मानव ने स्थापित नहीं किया इस शिवलिंग के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह समय-समय पर अपने आकार में परिवर्तन करता है।
गुप्त दरवाजे का रहस्य
इस मंदिर के गर्भगृह में एक गुप्त दरवाजा है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे खोलने की अनुमति किसी को नहीं है यह दरवाजा हमेशा बंद रहता है और इसके पीछे क्या रहस्य है यह आज भी रहस्य बना हुआ है कुछ लोग मानते हैं कि इसके पीछे एक गुप्त सुरंग है जो सीधे गंगा नदी तक जाती है जबकि अन्य लोग इसे भगवान शिव की शक्ति के प्रतीक के रूप में देखते हैं।
मुक्ति का द्वार
कहा जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर का दर्शन करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है यह भी मान्यता है कि मृत्यु के समय भगवान शिव स्वयं इस स्थान पर आकर मृतक के कानों में राम का नाम फूंक हैं जिससे उसकी आत्मा को मुक्ति मिलती है इसी कारण से यह मंदिर मोक्ष प्राप्ति के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्थान माना जाता है।
गंगा और शिव का संबंध
वाराणसी को काशी या शिव की नगरी कहा जाता है यहां गंगा नदी की दिशा उत्तर की ओर बहती है जो कहीं भी नहीं देखा जाता कहा जाता है कि यह भगवान शिव की उपस्थिति का प्रतीक है शिव की नगरी काशी में गंगा का उत्तरवाहिनी होना भी एक अनोखा रहस्य है।
पौराणिक मान्यता है कि करीब आधी दूरी तय करने के बाद मां गंगा के मन में इच्छा जागी कि वह अपने आप को देखे इसलिए उन्होंने वाराणसी में अपना उत्तर की ओर मुह करके देखा और फिर समुद्र से मिलने के लिए आगे चल पड़ी इसलिए माना जाता है कि गंगा सिर्फ बनारस में ही उत्तरवाहिनी है।
तीन बार ध्वस्त और पुनर्निर्माण का रहस्य
इस मंदिर को मुगल शासकों द्वारा तीन बार ध्वस्त किया गया और हर बार इसे फिर से बनाया गया पुराने साक्ष्य के अनुसार सन 1669 में औरंगजेब द्वारा फिर से एक बार इस मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया गया और मंदिर तोड़कर यान वापी मस्जिद बनाई गई इसके बाद सन 1835 में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा लगभग 22 मन सोने से इस मंदिर को बनवाया गया था।
यानी कि राजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर के निर्माण के लिए 1000 किलोग्राम सोना भेंट के रूप में दिया था रणजीत सिंह ने इस मंदिर में सोना दान किया था इसलिए इसे स्वर्ण मंदिर या सोने का मंदिर भी कहा जाता है काशी विश्वनाथ मंदिर के शिखर पर तीन गुंबद का निर्माण किया गया है इन गुंबद को पूरी तरह से सोने से बनाया गया है यह गुंबद देखने में बहुत ही सुंदर लगती है।
माना जाता है कि महाराज रणजीत सिंह ने जो लगभग 1 टन सोना इस मंदिर में दान किया था उसी से इस मंदिर के छत्र पर सोना चढ़ाया गया था इस मंदिर की वर्तमान संरचना का निर्माण सन 1780 में महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा किया गया था वर्तमान में काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रबंधन 1983 से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किया जा रहा है।
काशी की अमरता का रहस्य
कहा जाता है कि काशी जिसे वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित है इस मान्यता के अनुसार यह शहर प्रलय के समय भी नष्ट नहीं होगा और भगवान शिव की कृपा यहां पर हमेशा बनी रहेगी इस मान्यता के पीछे एक रहस्यमय तत्व है है जो काशी को एक अजर अमर नगरी के रूप में स्थापित करता है।
काशी में मौजूद कुओं का रहस्य
काशी विश्वनाथ मंदिर के पास मौजूद ज्ञानवापी कुआं भी एक रहस्यमय स्थान है कहा जाता है कि जब औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त किया तो शिवलिंग को बचाने के लिए इसे ज्ञानवापी कुएं में छुपा दिया गया था आज भी इस कुएं को बेहद पवित्र माना जाता है और इससे जुड़ी कई कहानियां और मान्यताएं प्रचलित हैं काशी में एक धनवंतरी कुंआ भी है यह कुंआ मृत्युंजय महादेव मंदिर के पास है।
इस कुंए के बारे में ऐसा माना जाता है कि अगर कोई शख्स इस कुंए का पानी 45 दिनों तक पी लेता है तो उसकी सभी बीमारियां ठीक हो जाती हैं इस धनवंतरी कुंए को लेकर ऐसा कहा जाता है कि वैद्य धनवंत्री ने इस कुंए में बहुत सालों तक तपस्या की थी वैद्य की तपस्या की वजह से इस कुंए को ऐसा वरदान मिला साथ ही इस पानी की यह भी खासियत है कि आठ घाट में इसके आठ अलग अलग स्वाद का पानी है
बाबा काशी विश्वनाथ में होती है पांच आरती
आज तक आप लोगों ने केवल यही सुना है कि ज्यादातर मंदिरों में दो बार आरती की जाती है लेकिन काशी विश्वनाथ मंदिर में पांच आरती करने का विधान है मंगला आरती के साथ मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोले जाते हैं फिर दोपहर के भोग और शाम के भोग के समय आरती की जाती है इसके बाद बाबा काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की फिर रात में श्रृंगार आरती होती है और इसके बाद शयन आरती करते हैं।
पांचों आरतियां में सप्त ऋषि आरती सबसे खास मानी जाती है इस आरती को अलग-अलग गोत्र के साथ ब्राह्मण करते हैं सात प्रकार के अलग-अलग रास्तों से होते हुए ब्राह्मण या ऋषि डोली लेकर बाबा की आरती के लिए मंदिर पहुंचते हैं काशी विश्वनाथ में यह परंपरा 750 वर्षों से ज्यादा लंबे समय से निभाई जा रही है इस आरती के दर्शन का बहुत महत्व है।
काशी के कोतवाल का रहस्य
काशी के कोतवाल भगवान शिव के ही अवतार हैं जिन्हें हम काल भैरव के नाम से जानते हैं भगवान श्री काल भैरव का मंदिर हर उस शहर में मिल जाएगा जहां पर भगवान शिव के पवित्र 12 ज्योतिर्लिंग विद्यमान है माना जाता है कि भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन के पश्चात श्री काल भैरव के दर्शन करना अनिवार्य है अन्यथा ज्योतिर्लिंग के दर्शन करना अधूरा माना जाता है।
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श्री काल भैरव भगवान शिव के प्रस सिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों के पास रहकर उनकी सेवा करते हैं तथा उन शहरों के नगर कोतवाल कहलाते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर के पास में ही बाबा काल भैरव का भी मंदिर है जिनके दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है औरंगजेब ने जब काल भैरव मंदिर को नष्ट करने के लिए आक्रमण किया था तब अचानक से ना जाने कहां से पागल कुत्तों के झूठ ने औरंगजेब के सैनिकों पर हमला बोल दिया था।
वह तेजी से औरंगजेब के सैनिकों को काटने लगे थे जिससे औरंगजेब के सैनिक आपस में ही पागल होकर एक दूसरे को ही काटने और मारने लगे थे यह सब देखकर औरंगजेब को काल भैरव मंदिर को नष्ट करने का इरादा बदलना पड़ा और उसे वहां से वापस सेना सहित लौटना पड़ गया।
माता अन्नपूर्णा के मंदिर का रहस्य
काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित माता अन्नपूर्णा का मंदिर भी अपने आप में एक रहस्य है इस मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन कथा यहां बेहद चर्चित है कहते हैं एक बार काशी में अकाल पड़ गया था चारों तरफ तबाही मची हुई थी और लोग भूखे मर रहे थे उस समय महादेव को भी समझ नहीं आ रहा था कि अब वे क्या करें ऐसे में समस्या का हल तलाशने के लिए वे ध्यान मग्न हो गए तब उन्हें एक राह दिखी कि मां अन्नपूर्णा ही उनकी नगरी को बचा सकती है।
इस कार्य की सिद्धि के लिए भगवान शिव ने खुद मां अन्नपूर्णा के पास जाकर भिक्षा मांगी उसी क्षण मां ने भोलेनाथ को वचन दिया कि आज के बाद काशी में कोई भूखा नहीं रहेगा और उनका खजाना पाते ही लोगों के दुख दूर हो जाएंगे तभी से अन्नकूट के दिन उनके दर्शनों के समय खजाना भी बांटा जाता है जिसके बारे में मान्यता है कि इस खजाने को पाने वाला कभी आभाव में नहीं रहता इस घटना के बाद से वाराणसी में कोई भी कभी भूखा नहीं सोता और यह मंदिर आज भी इस रहस्य को जीवंत रखा हुआ है।
इस मंदिर की दीवारों पर बने चित्र अद्भुत क कला के नमूने हैं एक चित्र में देवी कलछी पकड़ी हुई है इस मंदिर में साल में केवल एक बार अन्नकूट महोत्सव पर मां अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा को सार्वजनिक रूप से एक दिन के लिए दर्शनार्थ के लिए निकाला जाता है तभी भक्त इनकी अद्भुत छटा के दर्शन कर सकते हैं।
तांत्रिक सिद्धि के लिए प्रसिद्ध है यह मंदिर
विश्वनाथ दरबार में ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है और इसे तांत्रिक सिद्धि के लिए उपयुक्त स्थान माना जाता है तंत्र साधना के लिए यहां बहुत से साधु सन्यासी आते हैं एक और दिलचस्प बात यह है कि बाबा विश्वनाथ के दरबार में चार प्रमुख द्वार हैं शांति द्वार, कला द्वार, प्रतिष्ठा द्वार, और निवृत्ति द्वार इन चारों द्वारों का तंत्र विद्या में अलग से वर्णन मिलता है पूरी दुनिया में यही एक ऐसा स्थान है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान है।
काशी में पाताल लोक से आते हुए पानी का रहस्य
काशी विश्वनाथ मंदिर के पास में ही लोलार्क कुंड है जो कि देखने में जितना ज्यादा अद्भुत है उतना ही अद्भुत और रोचक इस कुंड की कथा है काशी के इस लोलार्क कुंड का पानी आज भी रहस्य ही बना हुआ है क्योंकि इस कुंड में ना तो बारिश का पानी आता है और ना ही पानी किसी तालाब या जल स्त्रोत से आता है ऐसे में इस कुंड के बारे में मान्यता है कि इस लोलार्क कुंड में पानी सीधे पाताल लोक से आता है।
इस कुंड के बारे में स्कंद पुराण में बताया गया है जिसके अनुसार सार इसे सूर्य कुंड भी कहा जाता है क्योंकि शुक्ल पक्ष के भाद्रपद में इस कुंड में सूर्य की किरणें पड़ती हैं और उस दौरान इस कुंड में बालासन योग जैसी आकृति पड़ती है ऐसा माना जाता है कि जो महिला इस समय यहां स्नान करती है उसे संतान सुख प्राप्त होता है इस वजह से इस समय इस कुंड के पास बहुत भीड़ रहती है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के बाहर मौजूद शनिदेव के मंदिर का रहस्य
शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है और शनिदेव के प्रकोप से इंसान ही नहीं बल्कि भगवान भी डरते हैं इसलिए सभी लोग शनिदेव की दृष्टि से बचने के लिए शनिवार को शनि मंदिर में जाकर उनको तेल अर्पित करते हैं लगभग सभी जगह आपको शनिदेव मंदिर देखने को मिल जाएंगे लेकिन काशी विश्वनाथ मंदिर के बाहर बना हुआ शनिदेव का मंदिर कई कारणों से खास माना जाता है।
ऐसा बताया जाता है कि शनि देव को भगवान शिव की तलाश में काशी में प्रवेश करना था लेकिन उन्हें मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी इसलिए उन्हें शिव की तलाश में मंदिर के बाहर साढ़े साल तक रहना पड़ा यही कारण है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के बाहर आपको शनिदेव का मंदिर देखने को मिल जाएगा।
अखंड ज्योति का रहस्य
वाराणसी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग में एक ऐसा चमत्कार देखने को मिलता है जो हर किसी को अचंभे में डाल देता है व है अखंड ज्योति जी हां आपने सही सुना मंदिर के गर्भगृह में एक दीपक सदियों से लगातार जल रहा है चाहे दिन हो या रात बारिश हो या तूफान यह ज्योति कभी नहीं बुझती कई लोग इस अखंड ज्योति को एक चमत्कार मानते हैं। जबकि कुछ इसे वैज्ञानिक कारणों से जोड़कर देखते हैं लेकिन सच्चाई क्या है।
यह आज तक कोई नहीं जान पाया है इस ज्योति को लेकर कई किंवदंतियों भी प्रचलित हैं कहा जाता है कि यह ज्योति स्वयं भगवान शिव की कृपा से जल रही है कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि मंदिर के निर्माण में इस्तेमाल हुई कुछ खास सामग्रियों के कारण यह ज्योति लगातार जल रही है लेकिन यह बात भी पूरी तरह साबित नहीं हो पाई है वहीं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह ज्योति भगवान शिव की अनंत शक्ति का प्रतीक है।
उत्तर काशी के त्रिशूल का रहस्य
यूं तो काशी के नाम से वाराणसी प्रसिद्ध है लेकिन हम जिस त्रिशूल की बात कर रहे हैं वह काशी में तो है लेकिन वाराणसी में नहीं है आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत में कुल छह काशी हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनमें से दो काशी देवभूमि उत्तराखंड में मौजूद है एक तो उत्तर काशी और दूसरी गुप्त काशी हम यहां पर उत्तराखंड की उत्तर काशी की बात कर रहे हैं।
उत्तर काशी का भी धार्मिक महत्व काशी जितना ही है हिमालय की गोद में बसी उत्तर काशी को भगवान शिव का कलयुग का दूसरा निवास माना जाता है और इसी का का यहां भी काशी विश्वनाथ मंदिर मौजूद है कहा जाता है कि जब काशी या वाराणसी जलमग्न हो जाएगी तब भगवान विश्वनाथ को उत्तराखंड की इसी उत्तर काशी में स्थानांतरित कर दिया जाएगा उत्तर काशी के विश्वनाथ मंदिर का शिवलिंग दक्षिण की ओर झुका हुआ है।
इस शिवलिंग के दक्षिण की ओर झुकने के पीछे एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार मृकण्डु ऋषि के कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी के साथ भगवान शिव की कठोर तपस्या की उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और कहा तुम गुणहीन दीर्घायु पुत्र चाहते हो या अल्पायु गुणवान पुत्र जिसकी उम्र सिर्फ 16 वर्ष तक ही होगी तब मृकण्डु ऋषि ने कहा कि मुझे गुणवान पुत्र ही चाहिए।
भगवान शिव ने उन्हें गुणवान पुत्र का वरदान दे दिया कुछ समय बाद उनके यहां पर एक गुणवान बालक ने जन्म लिया जिसका नाम मार्कंडेय रखा गया मार्कंडेय विश्वनाथ मंदिर में तपस्या रत थे जब उनकी आयु 16 वर्ष हो गई तब मृत्यु के देवता यमराज उनके प्राण लेने के लिए आए तब मार्कंडेय काशी विश्वनाथ के शिवलिंग से जाकर लिपट गए जिसकी वजह से भगवान शिव का शिवलिंग दक्षिण की ओर झुक गया और यह शिवलिंग आज भी दक्षिण की ओर झुका हुआ है।
भगवान शिव अपने भक्त की भक्ति को देखकर प्रसन्न हो गए और यमराज को वापस जाने के लिए कहा तब यमराज ने कहा कि प्रभु आप ही आपकी सृष्टि के बनाए गए नियमों को तोड़ रहे हैं इससे संसार में आपकी ख्याति धूमिल हो जाएगी तब भगवान शिव ने अपनी आयु का एक दिन मार्कंडेय को दे दिया आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भगवान शिव की आयु भगवान विष्णु से सात गुना ज्यादा है।
भगवान शिव की आयु 3 अरब 52 करोड़ 80 लाख चतुर्य हैं एक चतुर्य की अवधि मानव वर्ष के हिसाब से 43200 वर्ष की होती है भगवान शिव का एक दिन 1000 चतुर्य का होता है इसलिए ऋषि मारकंडे को अपना एक दिन देने से वह चिरंजीवी हो गए और वह आज भी इस धरती पर मौजूद है यह तो थी उत्तर काशी के शिवलिंग के दक्षिण की ओर झुकने के पीछे की कथा चलिए अब यहां पर मौजूद दिव्य त्रिशूल के रहस्य के बारे में जानते हैं उत्तर काशी के काशी विश्वनाथ मंदिर के ठीक सामने मां पार्वती का मंदिर भी है।
माता पार्वती यहां त्रिशूल रूप में विराजमान है कहा जाता है कि राक्षस महिषासुर का वध करने के बाद मां दुर्गा ने अपना त्रिशूल धरती पर फेंका था और यह त्रिशूल यहीं आकर गिरा था ये वही महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा का त्रिशूल है यह कोई मामूली त्रिशूल नहीं है यह त्रिशूल काफी रहस्यमय है वैज्ञानिकों ने कई बार इस त्रिशूल के ऊपर शोध किया है और वह आज तक इस बात का पता नहीं लगा सके कि आखिर यह त्रिशूल किस धातु या पदार्थ से निर्मित है यह त्रिशूल बड़ा ही रहस्यमय है।
इस त्रिशूल को हाथ की सबसे छोटी उंगली कनिष्ठा से स्पर्श मात्र करने से ही इस त्रिशूल में कंपन होने लगता है। लेकिन दोनों हाथों से पूरी जान लगा देने पर भी यह त्रिशूल टस से मस्तक नहीं होता है इस त्रिशूल को ताकत के साथ नहीं हिलाया जा सकता है इतिहास में एक नहीं बल्कि कई बार इस त्रिशूल के अंत को खोजने के लिए सैकड़ों फीट जमीन के नीचे खुदाई की गई है लेकिन कोई भी इस त्रिशूल के अंत को नहीं ढूंढ पाया है ऊपर से 26 फीट का दिखाई देने वाला यह त्रिशूल जमीन के कितने अंदर तक ढसा है इसका पता लगाना बहुत मुश्किल है।
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