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-: Lord Krishna :-
भगवान् कृष्ण द्वारा एकलव्य का वध एक दिलचस्प और गूढ़ प्रसंग है, जो महाभारत में सीधे तौर पर उतना विस्तार से नहीं बताया गया है, लेकिन कुछ पुराणों और लोककथाओं में इसके बारे में उल्लेख मिलता है।
एकलव्य का वध – कथा:
1. एकलव्य कौन था?
एकलव्य निषादराज हिरण्यधनु का पुत्र था। उसने गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाकर स्वयं को धनुर्विद्या में पारंगत किया था। वह अत्यंत प्रतिभाशाली, निडर और निष्ठावान था।
2. भगवान् कृष्ण ने क्यों किया वध?
कुछ पुराणों और कथाओं के अनुसार, एकलव्य बाद में जरासंध (मगध के शक्तिशाली राजा, और श्रीकृष्ण के शत्रु) का सहयोगी बन गया था। वह कृष्ण और यादवों के विरुद्ध युद्ध के लिए तैयार हो रहा था। एक भविष्यवाणी के अनुसार, एकलव्य आगे चलकर श्रीकृष्ण के राज्य और धर्म की स्थापना में बाधा बनेगा।
इसी कारण, राजधर्म और धर्म की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने उसका वध किया।
3. एक अन्य दृष्टिकोण:
कुछ कथाओं में कहा गया है कि एकलव्य ने स्वयं कृष्ण से युद्ध करने की ठानी थी, या अर्जुन से प्रतिशोध लेना चाहा था (क्योंकि द्रोणाचार्य ने अर्जुन को ही सर्वश्रेष्ठ माना था)। यह भी एक कारण था कि भगवान् कृष्ण ने समय रहते उसे रोक दिया।
एकलव्य और जरासंध का संबंध:
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जरासंध, मगध का राजा, महाभारत काल का एक शक्तिशाली और अधर्मी शासक था। वह श्रीकृष्ण का कट्टर शत्रु था।
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जरासंध ने अपने राज्य को विशाल बनाने के लिए अनेक वीरों और प्रतिभावानों को अपनी सेना में शामिल किया — एकलव्य भी उनमें से एक था।
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एकलव्य, द्रोणाचार्य से अपमानित होकर (जब उसने उसका अंगूठा माँग लिया), अर्जुन और हस्तिनापुर के खिलाफ आक्रोश से भरा हुआ था। इसी कारण वह जरासंध से मिल गया।
कृष्ण द्वारा वध:
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श्रीकृष्ण ने देखा कि एकलव्य, जो अपार युद्ध कौशल का धनी है, जरासंध की सेना में रहकर अधर्म की ओर जा रहा है।
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यह भविष्यवाणी थी कि एकलव्य, अगर समय रहते न रोका गया, तो अर्जुन को मार देगा और धर्म की स्थापना में बाधा बनेगा।
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इसलिए श्रीकृष्ण ने एकलव्य को युद्ध में ललकारा और अंततः उसका वध कर दिया।
कुछ कथाओं में यह भी कहा गया है कि एकलव्य को धोखे से मारा गया, लेकिन यह भगवान कृष्ण की दृष्टि में एक रणनीतिक निर्णय था — जैसा उन्होंने भीष्म, द्रोण, कर्ण आदि के साथ भी किया। यह सभी निर्णय धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए लिए गए थे।
प्रतीकात्मक अर्थ:
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एकलव्य जैसे पात्रों का वध केवल शारीरिक नहीं, बल्कि एक संदेश भी होता है —
“प्रतिभा यदि गलत दिशा में जाए, तो वह विनाशकारी हो सकती है।”
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श्रीकृष्ण केवल युद्ध नहीं करते, वे समग्र दृष्टि से निर्णय लेते हैं — भविष्य, वर्तमान और धर्म को एक साथ देखकर।
एकलव्य का वध: आत्मा बनाम अहंकार?
कुछ दार्शनिक व्याख्याओं में यह कहा गया है कि:
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एकलव्य का चरित्र प्रतीक है कर्मयोगी प्रतिभा का — जो स्वयं प्रयास से महान बनता है।
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पर जब वह अहंकार, प्रतिशोध, और अधर्मी साथियों के साथ जुड़ जाता है, तो वह विनाशकारी बन जाता है।
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श्रीकृष्ण यहाँ उस चेतना के प्रतिनिधि हैं जो धर्म, संतुलन, और भविष्य की रक्षा के लिए काम करती है।
इसलिए एकलव्य का वध केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं, बल्कि उस अहंकारी प्रतिभा का नाश है जो धर्म-विरोधी दिशा में जा रही हो।
प्रतीकात्मक दृष्टि:
पात्र | प्रतीक किसका है? |
---|---|
एकलव्य | बिना मार्गदर्शन की प्रतिभा |
द्रोणाचार्य | सीमित गुरु-धर्म और पक्षपात |
अर्जुन | नियंत्रित और नियोजित प्रतिभा |
श्रीकृष्ण | दिव्य मार्गदर्शन, योग और धर्म |
जरासंध | अधर्म का राजनीतिक तंत्र |
सीख क्या है?
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प्रतिभा सम्माननीय है, पर मार्गदर्शन आवश्यक है।
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यदि शक्ति का प्रयोग अधर्मी साथियों के लिए किया जाए, तो वह नष्ट कर दी जाती है।
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धर्म की रक्षा कभी-कभी कठिन निर्णय माँगती है — जो कृष्ण जैसी दृष्टि से ही संभव है।
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