कोणार्क सूर्य मंदिर का रहस्य !

-: Konark Sun Temple Unknown Secret :-

700 साल पुराना यह मंदिर कई कहानियों और रहस्यों से घिरा हुआ है समय के साथ बदलाव शहरों का विकृत होना, उनका पुनर्निर्माण साम्राज्य का उदय,  पतन और पहचान का मिट जाना इस सब का साक्षी यह ऐतिहासिक मंदिर रहा है कोनार्क कलिंग वास्तुकला के सबसे उत्कृष्ट उदाहरणों में से एक है कोणार्क को ब्लैक पैगोडा भी कहा जाता है इसका उपयोग अधिकांश नाविकों और यात्रियों द्वारा दरा एक प्रमुख लैंडमार्क के रूप में किया जाता था।

मंदिर का इतिहास

सूर्यदेव को समर्पित इस मंदिर का नाम दो शब्दों कोण और अर्क से मिलकर बना है कोण यानी कोना और अर्क का अर्थ है सूर्य यानी सूर्य देव का कोना इसीलिए इसे कोणार्क के सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है इस मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा नरसिंह देव प्रथम ने करवाया था इस मंदिर के निर्माण में मुख्यत बलुआ पत्थरों ग्रेनाइट पत्थरों व कीमती धातुओं का इस्तेमाल किया गया है इस मंदिर को 1200 मजदूरों ने दिन रात मेहनत कर लगभग 12 वर्षों में बनाया था यह मंदिर कलिंग शैली में बनाया गया और इसका निर्माण 1250 ईसवी में पूरा हुआ था यह मंदिर 229 फीट ऊंचा है।

इसमें एक ही पत्थर से निर्मित भगवान सूर्य की तीन मूर्तियां स्थापित की गई हैं जो दर्शकों को बहुत ही आकर्षित करती है यह मंदिर उड़ीसा राज्य में पूरी शहर से लगभग 37 किलोमीटर दूर चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है इस मंदिर का स्वरूप व बनावट अद्भुत शिल्प कला का नमूना है इस मंदिर की बनावट एक विशाल और भव्य रथ के समान है जिसमें 12 जोड़ी पहिए हैं और रथ को सात बलशाली घोड़े खींच रहे हैं देखने पर ऐसा लगता है कि मानो इस रथ पर स्वयं सूर्यदेव बैठे हैं।

मंदिर के 12 चक्र साल के 12 महीनों को परिभाषित करते हैं और प्रत्येक चक्र आठ अरों से मिलकर बना है जो हर एक दिन के आठ पहरों को प्रदर्शित करता है वहीं अब सात घोड़े हफ्ते के सात दिनों को दर्शाते हैं इस मंदिर की सबसे रोचक बात यह है कि मंदिर में लगे चक्रों पर पड़ने वाली छाया से हम समय का सही सही अनुमान लगा सकते हैं यह एक प्राकृतिक धूप घड़ी का कार्य करते हैं। मंदिर का मुख पूर्व की ओर है और इसके तीन महत्त्वपूर्ण हिस्से देवल गर्भ गृह नाट मंडप और जगमोहन मंडप एक ही दिशा में है

मंदिर का चुंबकीय रहस्य

इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य यहां की चुंबकीय ताकत है प्रचलित कथाओं के अनुसार मंदिर के ऊपर 53 मीट्रिक टन का एक विशाल प्राकृतिक चुंबक लगा हुआ था जिसका प्रभाव इतना अधिक प्रबल था जिससे समुद्र से गुजरने वाले जहाज इस चुंबकीय क्षेत्र के चलते भटक जाया करते थे और इसकी ओर खींचे चले आते थे।

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इन जहाजों में लगा कंपास गलत दिशा दिखाने लग जाता था इसलिए उस समय के नाविकों ने उस बहुमूल्य चुंबक को हटा दिया और अपने साथ ले गए इस मंदिर का सब से आकर्षक पहलू यह था कि इसके निर्माण में चुंब कों का इस्तेमाल हुआ था जिसके कारण भगवान सूर्य की मूर्ति हवा में लटकी हुई प्रतीत होती थी जैसे ही आप मुख्य मंदिर में प्रवेश करते आपको बीच हवा में लटकी हुई एक लंबी मूर्ति दिखाई देती यह कई वर्षों तक एक रहस्य बना रहा कि ऐसा कैसे संभव हुआ।

उस समय लोग इस बात से अनजान थे कि यह अद्भुत द्रस्य चारों तरफ से बने चुंबकीय क्षेत्र के कारण संभव हुआ था एक समय ऐसा भी था जब मंदिर का मुख्य चुंबक अन्य चुंबक के साथ इस तरह की व्यवस्था से लगाया गया था कि मंदिर की मूर्ति हवा में तैरती हुई नजर आती थी पूरे मंदिर को चुंबकीय व्यवस्था के हिसाब से बनाया गया था विशाल काय चुंबक को निकालने की वजह से मंदिर का संतुलन बिगड़ गया जिसकी वजह से मंदिर की कई दीवारें और पत्थर गिरने लगे साल 1984 में इसको यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया था।

कोणार्क मंदिर का निर्माण खडा लाइट नामक पत्थर से किया गया है जो इस क्षेत्र में बहुता मात्रा में उपलब्ध है इस पूरी संरचना का निर्माण किसी भी प्रकार के सीमेंट के उपयोग के बिना किया गया था यह भारत की उन पहली संरचनाओं में से एक था जिसमें लोहे की बीम और डोबल का उपयोग किया था इनके अलावा यह मंदिर अपनी जटिल नक्काशी दार मूर्तियों के लिए भी प्रसिद्ध है। मंदिर की लंबी वक्री संरचना यानी कि विमान जो इसकी मुख्य संरचना थी।

वर्तमान में मौजूद नहीं है और ऐसा कहा जाता है कि यदि यह आज बची होती तो कोना मंदिर पुरी के जगन्नाथ मंदिर से भी ऊंचा होता मंदिर के टूटने के कारणों पर आज भी बहस जारी है।

इतिहासकारों ने इस मुद्दे पर विभिन्न अवधारणाएं प्रस्तुत की हैं कुछ का मानना है कि काला पहाड़ के आक्रमण के दौरान संरचना की भारी शीर्ष पट्टी को तोड़ दिया गया था जिससे असंतुलन पैदा हो गया और इसके परिणाम स्वरूप विमान गिरकर टूट गया 1848 में आया तूफान इस संरचना पर अंतिम आघात था। आज की की वर्तमान स्थिति में यह मंदिर ओड़ीशा राज्य की प्रतिष्ठा का प्रतीक है और भारत में सबसे अधिक देखे जाने वाले पर्यटक आकर्षणों में से एक है।

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