-: Kalyug ke Indradev :-
हमारे हिंदू धर्म के पुराणों, ग्रंथों और महाकाव्यों के आठ चिरंजीवियों में से एक चिरंजीवी जो आज भी सतयुग से जिंदा रहकर पाताल लोक पर राज कर रहे हैं। वही महाबली राजा जिसको हराने के लिए भगवान विष्णु को अपना पांचवा अवतार यानी वामन अवतार लेना पड़ा। हम बात कर रहे हैं प्रह्लाद के पौत्र शुक्राचार्य के शिष्य इंद्र को हराने वाले पाताल लोक के महाबली राजा बलि की जो आज भी जिंदा हैं।
भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद के पौत्र और राजा विरोचन के पुत्र राजा बलि का जब जन्म हुआ तब से ही देवराज इंद्र की सत्ता डगमगाने लगी। वामन पुराण, भविष्य पुराण और विष्णु पुराण में उनके बारे में बहुत उल्लेख किया गया है। अपने बल से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने वाले महान दानवीर राजा बलि चक्रवर्ती हिंदू धर्म के अब तक के सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक माने जाते हैं।
राजा बलि जैसा प्रतापी राजा इस धरती पर कोई भी पैदा ही नहीं हुआ। हालांकि दैत्य कुल में जन्म लेने के कारण उनके भीतर अहंकार, क्रोध और मद भरा हुआ था और गुरु शुक्राचार्य संग मिलकर बार-बार वह देवताओं को चुनौती दिया करते थे। राजा बलि ने अब तक संपूर्ण विश्व को लगभग जीत ही लिया था।
अग्निहोत्र सहित उन्होंने 98 यज्ञ संपन्न कराए थे। और इस तरह उनके राज्य और शक्ति का विस्तार होता ही जा रहा था। अगला पड़ाव था स्वर्ग के राजा इंद्र को हराकर संपूर्ण जगत को जीत लेना। उन्होंने 99वें युद्ध की घोषणा कर इंद्र के राज्य पर चढ़ाई कर दी और देवताओं, यक्षों और गंधर्वों को राजा बलि ने आसानी से हरा दिया और स्वर्ग पर कब्जा कर लिया।
लेकिन तभी समुद्र मंथन की बात आई जिसके चलते देवताओं और दैत्यों को एक साथ आना पड़ा। लेकिन देवों ने फिर से छल किया और अमृत उन्हें नहीं दिया। इससे क्रोधित होकर शुक्राचार्य ने राजा बलि के साथ मिलकर एक अंतिम युद्ध करने का निश्चय किया और संपूर्ण ब्रह्मांड पर अपना अधिकार जमाने के लिए राजा बलि ने 100वें अश्वमेघ यज्ञ का निश्चय किया।
लेकिन सारे देवी देवता इस यज्ञ से डर रहे थे। क्योंकि यह यज्ञ असीम अपार शक्तियों की प्राप्ति के लिए था। अगर राजा बलि वो यज्ञ संपन्न कर लेते तो उन्हें कभी भी नहीं हराया जा सकता था। अब ऐसे में सभी देवता भगवान विष्णु के पास मदद के लिए भागे। राजा बलि का अहंकार तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया।
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गुरु शुक्राचार्य यह चाल पहले से ही समझ चुके थे। उन्होंने राजा बलि को सावधान भी किया। लेकिन राजा बलि दान कार्य के चलते भगवान विष्णु के जाल में फंस गए। एक और सभी ब्राह्मणों को दान में कुछ ना कुछ राजा बलि देते जा रहे थे। ऐसे में बटुक ब्राह्मण के रूप में वामन अवतार आ गया है। राजा बलि ने वामन से दान में कुछ भी मांगने के लिए कहा। फिर क्या वामन रूपी भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि ने भी हां कर दिया और संकल्प पूरा होते ही वामन अवतार ने विशाल रूप धारण कर प्रथम दो पगों से ही पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लिया।
अब वामन अवतार ने राजा बलि से कहा हे राजन अब मैं अपना तीसरा कदम कहां रखूं? तब राजा बलि ने उनके सामने नगमस्तक होकर अपना सिर आगे करके कहा प्रभु अब तो मेरा सब कुछ चला ही गया है। हे मुनि आप अपना तीसरा कदम मेरे सर पर रखिए। तब वामन देवता ने राजा बलि के सर पर अपना पैर रखा और उन्हें पाताल लोक ले गए और सूतल लोक में स्थापित कर दिया।
राजा बलि की दान निष्ठा को देखकर भगवान विष्णु ने राजा बलि को कल्प के अंत तक जीवित रहने का वरदान भी दिया और साथ ही यह वादा भी किया जब कल्प के अंत में कलयुग में वह अपना दवां यानी कल्कि अवतार लेंगे तब कल्कि अवतार के रूप में राजा बलि को वह अपनी सेना में सहयोगी बनाएंगे और कलयुग के कली पुरुष का अंत करने में राजा बलि ही उनकी मदद करेंगे।
कई पुराणों में यह उल्लेख किया गया है कि आज भी पाताल में राजा बलि जीवित हैं और वह आज भी अपनी मुक्ति के लिए भगवान के 10वें अवतार का इंतजार कर रहे हैं। कहा जाता है कि कलयुग में जब भगवान कल्कि अवतार लेंगे तब राजा बलि का उद्धार होगा और उन्हें नए कल्प में अगला इंद्रदेव बनाया जाएगा।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि इंद्रदेव कोई व्यक्ति नहीं बल्कि एक पदवी है यानी उपाधि है जिस पर हर कल्प में एक नए इंद्रदेव को विराजमान किया जाता है।
सनातन धर्म में मुख्यतः भगवान ब्रह्मा के लाइफ साइकिल को समझें तो उनके एक दिन में दो कल्प होते हैं और हर कल्प में 14 मनवंतर होते हैं और इसी 14 मनवंतर में अलग-अलग शक्तिशाली महापुरुषों को स्वर्ग का कार्यभार सौंप कर उन्हें अगला इंद्रदेव बनाया जाता है। इस वर्तमान समय में इंद्रदेव का असली नाम है पुरंदर है वहीं विष्णु पुराण के तृतीय खंड के प्रथम अध्याय में पहले इंद्र से लेकर सातवें इंद्र के बारे में बताया गया है और इसी खंड के द्वितीय अध्याय में आठ से लेकर 14 इंद्रों के बारे में बताया गया है।
इन इंद्रों के नाम कुछ इस प्रकार है
सबसे पहले इंद्र थे यज्ञ, दूसरे थे द्विपक्षिया, तृतीय थे सुशांति, चौथे थे शिव, पंचम थे विभु और छठे थे मनोजवम। और वर्तमान काल में इंद्र हैं पुरंदर जो कि सातवें इंद्र हैं। वहीं आने वाले समय में जब हम कलयुग से सतयुग की तरफ बढ़ेंगे तो नए इंद्र देव होंगे आठवें यानी राजा बलि उसके बाद होंगे अद्भुत उसके बाद शांति फिर वशिष्ठ, ऋतुम ,देवस्पति और सूची यही होंगे आने वाले कल्पों में अगले इंद्रदेव।
कहा जाता है कि राजा बलि अभी भी पाताल लोक में निवास करते हैं और कलयुग के अंत में भगवान कल्कि अवतरित होंगे तो राजा बलि उनकी सहायता हेतु अपनी सेना का समर्थन उन्हें जरूर देंगे जिसकी सहायता से कल्कि अवतार कली पुरुष का अंत करेंगे और कलयुग का सूरज ढहलेगा और सतयुग का सूरज उज्जवल होगा और फिर राजा बलि को इंद्रदेव घोषित कर स्वर्ग का राजा नियुक्त किया जाएगा जो अगले कल्प तक इंद्रदेव की भूमिका निभाएंगे।
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