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भगवान श्रीकृष्ण के 5 अद्भुत चमत्कार

-: Janmastmi :-

भगवान श्री कृष्ण के बचपन के पांच ऐसे चमत्कार जिनसे सब उन्हें भगवान कहने लगे। भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान कृष्ण जिनका जन्म मथुरा में देवकी और वासुदेव के यहां हुआ। लेकिन उनका पालन पोषण गोकुल में नंद और यशोदा ने किया और उसकी वजह थी उनके मामा कंस जो एक क्रूर राजा थे और अपनी इसी क्रूरता के लिए उन्हें एक दिन एक भविष्यवाणी मिली कि उनकी प्यारी बहन देवकी का आठवां पुत्र ही उनका काल बनेगा।

इस डर से कंस ने देवकी के सभी पुत्रों को एक-एक कर मार डाला और श्री कृष्ण के जन्म के बाद भी उन्हें मारने की कई बार कोशिशें की। लेकिन भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं हर बार उन्हें चकमा दे गईं। श्री कृष्ण के बचपन की कहानियां ना सिर्फ रोमांचक हैं बल्कि भक्ति, करुणा और प्राकृतिक संरक्षण जैसे गहरे सबक भी सिखाती हैं। वैसे क्या आपने कभी भगवान कृष्ण के बचपन की उन रोमांचक कहानियों को सुना है जो गोकुल और वृंदावन की गलियों में आज भी गूंजती हैं?

आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण के पांच ऐसी चमत्कारी घटनाओं के बारे में बताएंगे जिन्हें सुनकर आपका मन मंत्रमुग्ध हो जाएगा। और आपको बता दूं दोस्तों, यह सभी कहानियां श्रीमद्भागवत पुराण से ली गई हैं, और हर एक में एक अनोखा रहस्य छुपा हुआ है। तो चलिए भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला के इस जादुई सफर पर निकलते हैं।

पहला चमत्कार – कंस के चुंगुल से बचना

भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा की जेल में एक तूफानी रात को हुआ। भविष्यवाणी के बाद से ही कंस ने देवकी और वासुदेव को कैद कर रखा था और एक-एक कर-कर उनके हर शिशु को कंस ने मार डाला था। लेकिन जिस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ उस रात चमत्कारिक रूप से जेल के सभी ताले खुल गए। पहरेदार सो गए और वासुदेव ने एक टोकरी में भगवान श्री कृष्ण को रख यमुना नदी को पार करना शुरू किया। बहाव बहुत था लेकिन तभी चमत्कार हुआ।

वासुदेव को आता हुआ देख खुद यमुना नदी ने रास्ता दे दिया। तेज बारिश से बचने के लिए खुद शेषनाग जी टोकरी के ऊपर अपने फन लेकर प्रस्तुत हो गए जिससे भगवान श्री कृष्ण बिल्कुल भी भीगे नहीं। वासुदेव सही सलामत गोकुल में नंद यशोदा के पास पहुंचे और भगवान श्री कृष्ण को उन्हें सौंप दिया। वहां योगमाया, जो खुद दुर्गा का अवतार मानी जाती है, उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की जगह ले ली।

जब कंस ने उस कन्या को मारने की कोशिश की तो वह हवा में उड़ गई और बोली, ‘तेरा काल तो गोकुल में सुरक्षित है।’ इसी से ही भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं की शुरुआत भी हुई। श्रीमद् भागवत पुराण के 10वें स्कंध के तीसरे अध्याय के श्लोक एक से लेकर 50 में इस घटना का बारीकी से वर्णन किया गया है। यह घटना जन्माष्टमी के त्यौहार का आधार भी मानी जाती है जो भगवान श्री कृष्ण की दिव्यता का उत्सव माना गया है।

दूसरा चमत्कार- एक फल विक्रेता को बड़ा इनाम देना

कहते हैं भगवान श्री कृष्ण बहुत दयालु हैं। जो उन्हें प्रेम करता है, वह अवश्य ही उनके प्रेम का 100 गुना प्रेम वापस हासिल कर पाता है। और ऐसा ही चमत्कार देखने को भी मिला। जब एक बार गोकुल में एक फल विक्रेता आई, उस समय अन्य विनय चलता था, जिस वजह से नंद जी ने एक पात्र में गेहूं भरकर उस फल विक्रेता को दिया, जिसके बदले में उन्हें ढेर सारे आम मिले। यह देखकर नन्हा कृष्ण भी अपनी छोटी सी मुट्ठी में अनाज लेकर उन्हें देने गया।

लेकिन रास्ते में अनाज धीरे-धीरे गिरता गया, और जब नन्हे कृष्ण ने उस फल विक्रेता को अपनी मुट्ठी खोलकर दिखाई, तो उसमें केवल दो से तीन अनाज के दाने ही बचे थे। लेकिन हंसते हुए उस फल विक्रेता ने भोले-भाले प्यारे कृष्ण को देखकर उन्हें ढेर सारे आम दे दिए। नन्हे कृष्ण आगे बढ़े और एक बार पीछे मुड़कर देखा और मुस्कुराए। तभी एक चमत्कार हुआ। महिला विक्रेता ने जैसे ही अपनी फलों की टोकरी को देखा, वह सोने, चांदी और रत्नों से भर चुकी थी।

यह देखकर वो फल विक्रेता और गोकुल के लोग हैरान रह गए। तो दोस्तों, आपके मन में यह सवाल भी आया होगा कि अनाज का सोने में बदलना आखिर कैसे संभव था? तो दोस्तों, यह भगवान श्री कृष्ण की उदारता और भक्तों को आध्यात्मिक धन देने की शक्ति को दर्शाता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चे मन से दी गई छोटी सी भेंट भी ईश्वर के सामने अनमोल होती है। वैसे इस घटना का वर्णन हरिवंश पुराण के अध्याय दो श्लोक 41 में मिलता है।

तीसरा चमत्कार – कंस के भेजे हुए राक्षसों को भगवान श्री कृष्ण द्वारा मुक्ति प्रदान

श्री कृष्ण के जन्म के बाद जब कंस को पता चला कि वह गोकुल में आज भी सुरक्षित है, तो उन्होंने श्री कृष्ण को मारने के लिए एक-एक कर करके अपने महाशक्तिशाली राक्षसों को भेजा: पूतना, संकटासुर, तृणावर्त, वत्सासुर, बकासुर, अघासुर, केशी और बहुत सारे शक्तिशाली राक्षस। आपको जानकर हैरानी होगी कि भगवान श्री कृष्ण ने एक-एक करके इन सबसे शक्तिशाली राक्षसों का वध किया था।

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वैसे इन सभी राक्षसों को इनके पूर्व जन्म में एक श्राप मिला था और उस श्राप से मुक्ति केवल इन्हें मृत्यु के जरिए ही प्राप्त हो सकती थी और वह भी भगवान श्री कृष्ण के हाथों ही और यह कृष्ण की अलौकिक शक्ति और उनकी करुणा को दिखाता है जो दुश्मनों को भी मुक्ति देती है। ये कथाएं बुराई पर अच्छाई की जीत और भक्ति की ताकत का प्रतीक हैं। श्रीमद् भागवत पुराण के 10वें स्कंध के छठे अध्याय के श्लोक एक से 44 में इस घटना का बारीकी से वर्णन किया गया है।

चौथा चमत्कार – गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी उंगली से उठाना

भागवत पुराण के 10वें स्कंध के 25वें अध्याय के श्लोक एक से लेकर 40 के अनुसार बाल कृष्ण ने अपने माता-पिता और वृंदावन के ग्रामीणों को भगवान इंद्र के सामने एक भव्य पूजा की तैयारी करते हुए देखा। हालांकि भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें उनकी भक्ति गोवर्धन पर्वत की ओर मोड़ने के लिए प्रेरित किया जो उनके जीवन का असली स्रोत है जो उनके मवेशियों के लिए उपजाऊ भूमि देते हैं, आश्रय देते हैं और चारा प्रदान करते हैं। उनकी बुद्धिमता से प्रभावित होकर ग्रामीण लोगों ने गोवर्धन की पूजा करने की सहमति जताई।

इससे क्रोधित होकर भगवान इंद्र ने वृंदावन में मुसलाधार वर्षा करने का निश्चय किया, जिससे बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। भगवान इंद्र की पीड़ा से ग्रामीणों को बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने अपने बाएं हाथ की छोटी उंगली से गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और उसके नीचे ग्रामीणों और पशुओं के लिए एक आश्रय बनाया। सात दिनों तक भगवान कृष्ण ने मुसलाधार वर्षा के दौरान उन्हें सुरक्षित रखा।

कृष्ण की दिव्य शक्ति को देखकर इंद्र को भी एहसास हुआ कि वह कोई साधारण बालक नहीं है बल्कि स्वयं भगवान विष्णु का अवतार है। विनम्र होकर भगवान इंद्र भगवान कृष्ण से क्षमा मांगने के लिए नीचे उतरे और वर्षा रोक दी। यह कथा हमें भक्ति, विनम्रता और पर्यावरण संरक्षण का महत्व भी सिखाती है।

पांचवा चमत्कार – मुंह खोलते ही ब्रह्मांड के दर्शन

श्रीमद् भागवत पुराण के 10वें स्कंध के आठवें अध्याय श्लोक 32 से लेकर 45 के अनुसार एक बार भगवान श्री कृष्ण घर के बाहर मिट्टी के आंगन में खेल रहे थे। उसी समय उनके बड़े भाई यानी दाऊ यानी बलराम जी ने उन्हें देखा कि कन्हैया मिट्टी खा रहे हैं। यह देखकर दाऊ ने उनकी शिकायत मां यशोदा से लगा दी। जैसे ही मां यशोदा ने यह सुना, वह सीधा बाल गोपाल के पास पहुंची। उन्होंने पूछा कि लल्ला, क्या तुमने मिट्टी खाई है? इस पर कान्हा बोला, ‘नहीं, मैंने कोई मिट्टी नहीं खाई।’

मां यशोदा ने उनकी बात पर बिल्कुल भी यकीन नहीं करा और उन्हें मुंह खोलने के लिए कहा। जैसे ही भगवान श्री कृष्ण ने अपना मुंह खोला तो मां यशोदा अचंभित रह गई क्योंकि मां यशोदा को नजर आ रहा था संपूर्ण ब्रह्मांड। माता यशोदा को अपनी आंखों पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था। उन्होंने सोचा कि आखिर उन्हें कान्हा के मुंह में सारी सृष्टि, जगत और समस्त प्राणी कैसे नजर आ रहे हैं। यह सब देखते ही माता यशोदा वहीं पर बेहोश हो गई। दोस्तों, यह कहानी सिखाती है कि ईश्वर में सारी सृष्टि समाई हुई है।

वैसे भगवान कृष्ण की यह चमत्कारी कहानियां सिर्फ रोमांचक किस्से नहीं हैं बल्कि इनमें जीवन के लिए गहरे सबक भी छुपे हुए हैं, जैसे भक्ति की ताकत, प्रकृति का सम्मान, बुराई पर जीत, करुणा और मोक्ष, विनम्रता और साहस। आप सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

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