-: East India Company :-
दोस्तों समय ने बड़े-बड़े बादशाहों को पटकनी दी है चाहे दुनिया जीतने वाला सिकंदर महान ही क्यों ना हो कुछ ऐसा ही हुआ ईस्ट कंपनी के साथ भी देखिए एक समय था जब ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार तो छोड़िए ईस्ट के कई बड़े-बड़े देशों में सरकारें चलाने का काम कर रही थी जी हां क्या रेल और क्या जहाज सब कंपनी का ही हुआ करता था 260000 सैनिक थे इनकी सेना में यानी ब्रिटेन की सेना से भी दोगुने और रेवेन्यू की बात तो पूछिए मत खजाने भर रखे थे।
लूट – लूट कर लेकिन फिर एक आंधी आई और ईस्ट इंडिया कंपनी की जड़ें हिलाक रख दी देखते ही देखते कंपनी बर्बाद हो गई कहते हैं ब्रिटिश राज में कभी सूरज नहीं डूबता था लेकिन उस दिन खुद ईस्ट इंडिया कंपनी का सूरज डूब गया उसे एक भारतीय ने ही घुटनों पर ला दिया था लेकिन आखिर क्या हुआ था उसके साथ कैसे दुनिया के बड़े-बड़े देशों पर राज करने वाली कंपनी रातों-रात बर्बाद हो गई और आज इसके क्या हालात हैं।
मुगल सम्राट शाह आलम ने ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल रॉबर्ट क्लाइव के साथ एक समझौते पर दस्तखत किया इसके बाद बंगाल बिहार और ओड़ीशा के रेवेन्यू पर मुगलों की जगह ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार हो गया और यही वह पल था जब कंपनी ने कपड़ों मसालों के कारोबार से आगे निकलकर कुछ ऐसा करना शुरू किया जो ना पहले भी हुआ था और ना ही कभी किसी ने सोचा था।
जिसका रिजल्ट यह निकला कि अगले कुछ सालों में कंपनी के 250 क्लर्क्स ने महज 20000 भारतीय सैनिकों के साथ मिलकर पूरे बंगाल पर कब्जा कर लिया और अगले 50 सालों में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना 2.50 लाख से ज्यादा की हो गई इसने पूरे भारतीय सबकॉन्टिनेंट को अपनी कॉलोनी बना लिया तब नारायण सिंह नाम के एक मुगल अधिकारी ने शाह आलम के साथ हुए समझौते के बाद कहा था कि अब क्या इज्जत रह जब हमें ऐसे अंग्रेज कारोबारियों के आदेश को मानना पड़ेगा।
जिन्हें अब तक ठीक से अपना पिछवाड़ा धुलना भी नहीं आया देखिए अक्सर हम कहते हैं कि ब्रिटिश सरकार ने भारत को गुलाम बनाया लेकिन सच तो यह है कुछ घुमंतु व्यापारियों की एक प्राइवेट कंपनी ने भारत को गुलाम बनाया था वो कंपनी जो रेंगते हुए ब्रिटेन में पैदा हुई थी अब हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसे समझने के लिए जरा 1600 ईसवी के उस सिनेरियो पर गौर कीजिए जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था और कहा भी क्यों ना जाए पूरी दुनिया के कुल प्रोडक्शन का 25 पर माल अकेला भारत पैदा करता था।
उस वक्त दिल्ली के तख्त पर मुगल बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की हुकूमत थी वह दुनिया के सबसे दौलतमंद बादशाहों में से एक थे और लोमड़ी की तरह चालाक थी तब देश इकोनॉमिक रूप से इतना समृद्ध था कि दूर दराज की दुनिया से लोग भारत को देखने आते थे ठीक इसी वक्त ब्रिटेन में क्वीन एलिजाबेथ फस्ट का शासन था और वह सिविल वॉर से उभर रहा था।
उसकी इकॉनमी खेतीबाड़ी पर डिपेंड थी यह दुनिया के कुल प्रोडक्शन का महज 3 फीदी माल ही तैयार कर पाता था उस वक्त यूरोप की पुर्तगाल और स्पेन जैसी प्रमुख शक्तियां व्यापार में ब्रिटेन को पीछे छोड़ चुकी थी व्यापार के रूप में तो ब्रिटेन के समुद्री लुटेरे पुर्तगाल और स्पेन के व्यापारिक जहाजों को लूटकर ही सेटिस्फाइड हो जाते थे तभी घुमंतु ब्रितानी व्यापारी राल्फ फिच को इंडियन ओशन मेसोपोटामिया पर्शियन गल्फ और साउथ ईस्ट एशिया की बिजनेस ट्रिप्स करते हुए भारत की समृद्धि के बारे में पता चलता है।
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ऐसे में राल फिच ने भारत की यात्रा की उससे मिली इंफॉर्मेशन के बेसिस पर जेम्स लैंकर ने ब्रिटेन के 200 रूस कदार व्यापारियों को एकजुट किया और 31 दिसंबर 1600 को एक नई कंपनी की नीव डाली जिसका नाम पड़ा ईस्ट इंडिया कंपनी इस कंपनी को ब्रिटेन की महारानी से ईस्ट एशिया में व्यापार का एका अधिकार प्राप्त हुआ।
इधर भारत में 1605 ईसवी में मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु हो चुकी थी अब उनकी जगह पर जहांगीर तख्त पर बैठे थे अकबर ने अपने शहजादे जहांगीर के लिए 5000 हाथी 12000 घोड़े 1000 चीते 10 करोड़ रुपए बड़ी अशर्फियां में 100 तोले से लेकर 500 तोले तक की हज अशरफियां 200 बेहतर मन कच्चा सोना 370 मन चांदी करोड़ के मन जवाहरात अपने पीछे छोड़े थे।
उस दौर में संपत्ति के मामले में केवल चीन का मिंग राजवंश ही बादशाह अकबर के बराबरी कर सकता था अब इन सबके बीच 1608 ईसवी में ईस्ट इंडिया कंपनी के कैप्टन विलियम हॉकिंस ने पहली बार भारत के सूरत बंदरगाह पर कदम रखा वहीं ब्रिटेन के बिजनेस कंपट डच और पुर्तगाली पहले से ही हिंद महासागर में मौजूद थे।
तब किसी ने अनुमान भी नहीं लगाया होगा कि यह कंपनी अपने ही देश से 20 गुना बड़े दुनिया के सबसे धनी देशों में से एक और उसकी लगभग 25 पर आबादी पर डायरेक्टली रूल करने वाली थी इस कंपनी के हाथ पहली सफलता तब लगी जब इसने पुर्तगाल का एक जहाज लूटा जो भारत से मसाले भर कर ले जा रहा था ईस्ट इंडिया कंपनी को उस लूट में 900 टन मसाले मिले इसे बेचकर कंपनी ने जबरदस्त मुनाफा कमाया।
अब यह उस समय की पहली चार्टेड जॉइंट स्टॉक कंपनियों में से एक थी जी हां आसान शब्दों में कहे तो अभी के शेयर मार्केट में लिस्टेड कंपनियों की तरह कोई भी इन्वेस्टर उसका हिस्सेदार बन सकता था इसलिए लूट की कमाई का हिस्सा कंपनी के इन्वेस्टर्स को भी मिला लूट पाट से किए गए पहले व्यापार में ईस्ट इंडिया कंपनी को करीब 300% का जबरदस्त मुनाफा हुआ।
वहीं इस दौरान कंपनी को यह भी समझ आ चुका था कि भारत में देखना है तो उसे मुगल बादशाह की इजाजत के साथ-साथ सपोर्ट की भी जरूरत पड़ेगी क्योंकि वह जानते थे कि मुगलों की विशाल सेना के साथ डायरेक्टली युद्ध करने से उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा इसलिए विलियम हॉकिंस 1609 में मुगल राजधानी आगरा पहुंचा और व्यापार की परमिशन मांगी गुजरात में पुर्तगाली पहले से ही मुगल बादशाह के अंडर में कारोबार कर रहे थे।
जिन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया पुर्तगालियों के विरोध की वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी को शुरुआत में व्यापार करने की परमिशन नहीं मिली जिसके बाद कंपनी ने थॉमस रॉ को भारत भेजा वह 1615 में मुगल राजधानी आगरा पहुंचे सिर पर 600 पौंड सालाना की तनख्वा के बदले कारोबार बढ़ाने का जिम्मा था थॉमस रो ने जैसे-तैसे जहांगीर को कीमती तोहफे और अपनी बातचीत से इंप्रेस कर लिया था।
इसके बाद जहांगीर ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ एक व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए समझौते के अकॉर्डिंग कंपनी और ब्रिटेन के सभी व्यापारियों को खरीदने और बेचने के लिए सबकॉन्टिनेंट के हर बंदरगाह के इस्तेमाल की इजाजत दी गई बदले में ब्रिटेन ने यूरोपियन प्रोडक्ट्स को भारत को देने का वादा किया लेकिन तब वहां बनता ही क्या था।
इसके बाद कंपनी के कारोबार और भारत में ब्रिटिश फौज लाने का रास्ता साफ हो गया शुरुआत में कंपनी चांदी के बदले भारत से चाय, मसाले, रेशम, कपास, गुड़, काशीरा, कपड़ा और खनिज ले जाती थी और उसे विदेशों में बेचकर बड़ा मुनाफा कमाती थी खास तौर पर ढाका के मलमल की ब्रिटेन में बड़ी मांग थी कंपनी जो भी चीज खरीदती उसका मूल्य चांदी देकर चुका ती जो उसने 1621 से लेकर 1843 तक स्पेन और संयुक्त राज्य अमेरिका में दासो को बेचकर जमा किया था।
करीब पांच दशक तक ऐसा चलता रहा लेकिन वह अकेले ऐसे नहीं थे जो चांदी के बदले सोना कमा रहे थे ईस्ट इंडिया कंपनी के कोम्पिडेटेर के रूप में पुर्तगाली और फ्रांसीसी भी भारत में जड़े जमा कर बैठे थे यही बात ब्रिटेन के गले से तले नहीं उतर पा रही थी ऐसे में इनसे कंपटीशन करने के लिए 1670 में ब्रिटिश सम्राट चार्ल्स सेकंड ने ईस्ट इंडिया कंपनी को विदेश में जंग लड़ने और कॉलोनी बनाने का अधिकार दे दिया और यह कंपनी के लिए एक अहम फैसला साबित हुआ।
कंपनी ने अपने कंपीटीटर को हराकर बंगाल के कई क्षेत्रों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया 1686 में तो ब्रिटेन से सेना बुलाकर वह मुगलों से भी भिड़ गए हालांकि इसमें कंपनी की बुरी तरह हार हुई जिसके बाद औरंगजेब ने ईस्ट इंडिया कंपनी के तमाम फैक्ट्री आउटलेट्स की घेराबंदी करवा दी तब ब्रिटिश सरकार ने अपने अधिकारियों को भेजकर औरंगजेब से माफी मांगी।
इसके बाद ही उन्हें वापस बिजनेस की इजाजत मिल सकी लेकिन 1707 में औरंगजेब के निधन के बाद सारा गेम ही पलट गया देखिए सभी नवाब अपनी-अपनी ताकत दिखाने लगे ईस्ट इंडिया कंपनी एक नवाब के खिलाफ दूसरे की मदद करने लगी और अपनी ताकत बढ़ाती रही कंपनी ने इन सरकमस्टेंसस का फायदा उठाते हुए लाखों की संख्या में स्थानीय लोगों को सेना में भर्ती करना शुरू कर दिया।
जिसने प्लासी की जंग को जन्म दिया दरअसल बंगाल के नवाब सिराज उड़ दौलाह ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिक बढ़ाने से खफा थे जिसके चलते 23 जून 1757 प्लासी में ईस्ट इंडिया कंपनी और सिराज उड़ दौलाह के बीच जंग हुई नवाब के सेनापति मीर जाफर ईस्ट इंडिया कंपनी से मिले हुए थे जिससे नवाब बनने की बहुत चाहत थी करीब 5000 सैनिक, 500 हाथी और 50 तोपों से ले सिराज उड़ दौलाह की सेना ईस्ट इंडिया कंपनी के महज 3000 सैनिकों से हार गई जिसके बाद मीर जाफर को बंगाल की गद्दी मिलती है।
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लेकिन उसकी कमान अंग्रेजों के हाथ में थी मीर जाफर ने कंपनी से पीछा छुड़ाने के लिए डच सेना की मदद ली लेकिन वह हार गए इसके बाद बंगाल प्रांत के टैक्स कलेक्शन की कमान ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में चली गई तब बंगाल में आज का पश्चिम बंगाल बिहार और उड़ीसा शामिल थे इसकी राजधानी मुर्शिदाबाद थी जिसकी चका चौद लंदन से भी कहीं ज्यादा थी इस जीत ने कंपनी के बिजनेस मॉडल को बदल के रख दिया अब तक जो कंपनी मुनाफे के लिए व्यापार करती थी
उसका पूरा फोकस टैक्स कलेक्शन पर हो गया 1784 में ब्रिटिश संसद ने इंडिया एक्ट पारित कर दिया जिसके बाद भारत की धरती पर ब्रिटिश साम्राज्य का शासन हो गया वहीं जब कंपनी को लगने लगा कि कठपुतली नवाब अब काम नहीं आएंगे तो उसने मीर जाफर की मौत के बाद बंगाल को डायरेक्ट अपने कब्जे में ले लिया इसके बाद मुगल सम्राट ने कंपनी को बंगाल का दीवान बना दिया यानी इसके बाद कंपनी बहादुर अस्तित्व में आया लेकिन अंग्रेजों के सामने अब भी दो बड़ी चुनौतियां थी।
साउथ में टीपू सुल्तान और विंध्या के साउथ में मराठा टीपू सुल्तान ने फ्रेंच व्यापारियों से दोस्ती करके सेना को आधुनिक बना दिया था वहीं मराठा दिल्ली के जरिए देश पर शासन करने का सपना देख रहे थे कंपनी ने टीपू और उनके पिता हैदर अली से चार युद्ध लड़े लेकिन 1799 में टीपू श्रीरंग पटनम की जंग में हार जाते हैं इसी तरह पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद मराठा साम्राज्य टुकड़ों में बट गया।
इसके बाद 1819 में अंग्रेजों ने पेशवा को पुणे से लाकर कानपुर के पास बिठूर में बिठा दिया अब इसी बीच देखिए पंजाब उनके लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरा था महाराजा रणजीत सिंह जब तक रहे तब तक उन्होंने अंग्रेजों की दाल नहीं गलने दी लेकिन 1839 में उनकी मौत के बाद हालात बिल्कुल बदल गए दो लड़ाइयां और हुई और 10 साल बाद पंजाब भी अंग्रेजों के हाथ में आ गया।
इन सब के बीच 1848 में लॉर्ड डल हाउजी विलय नीति लेकर आए इसके तहत जिस शासक का कोई पुरुष उत्तराधिकारी नहीं होता था उस रियासत को कंपनी अपने कब्जे में ले लेती थी इस तरह से अंग्रेजों ने सतारा, संबलपुर, उदयपुर, नागपुर और झांसी पर कब्जा जमा लिया जिसने 1857 की क्रांति के बीच को सीताराम पांडे ने फ्रॉम सिपोल टू सूबेदार मेमोर में लिखा है कि सबको लग रहा था कि अंग्रेज भारतीय धर्मों का सम्मान नहीं करते नाराजगी तो थी।
लेकिन जब यह खबर आई कि नई बंदूकों के कारतूस पर गाय और सूअर की चर्बी का लेप है तो इसने सिपाहियों की नाराजगी को क्रांति की शक्ल दे दी जिसके चलते मंगल पांडे को फांसी पर चढ़ा दिया गया वहां से उठी चिंगारी ने झांसी, अवध, दिल्ली, बिहार में क्रांति को हवा दी रानी लक्ष्मीबाई बहादुर शाह जफर नाना साहिब आदि ने मिलकर एक साथ बगावत कर दी ब्रिटेन में ईस्ट इंडिया कंपनी की मोनोपोली पर तो सवाल 19वीं सदी की शुरुआत से ही उठ रहे थे।
जिसके चलते ब्रिटिश संसद ने 1813 में ही दूसरी कंपनियों के लिए भारत में व्यापार करने के रास्ते खोल दिए थे अब इसके बाद 1833 में ब्रिटिश सरकार ने कंपनी से व्यापार का अधिकार छीनकर उसे एक सरकारी कॉर्पोरेशन में बदल दिया वहीं 1857 की क्रांति के लिए तो ईस्ट इंडिया कॉरपोरेशन और उसकी नाकामी को ही जिम्मेदार माना गया।
जिसके बाद ब्रिटेन की महारानी ने इस कंपनी के सभी अधिकारों को खत्म कर दिया और वह भारत पर सीधा शासन करने लगी कंपनी की करीब 2.50 लाख की सेना का ब्रिटिश सेना में विलय कर दिया गया और आखिरकार भारत को करीब एक सदी तक गुलाम बनाकर रखने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी को 1874 में भंग कर दिया जाता है अगर फिलहाल की बात करें तो अब भी इसकी कमर टूटी हुई है।
उससे भी मजेदार बात यह है कि भारत को गुलाम बनाने वाली इस ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक और अब भारतीय मूल के बिजनेसमैन संजीव मेहता हैं संजीव मेहता ने इसे 2010 में 15 मिलियन डॉलर यानी 120 करोड़ में खरीद लिया था यानी अब यह एक भारती के इशारों पर काम करती है मेहतानी ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीदने के बाद इसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म बना दिया अभी यह कंपनी चाय, कॉफी, चॉकलेट आदि की ऑनलाइन सेल्स करती है।
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