-: Dhumraketu avatar of Lord Ganesha :-
आज से लगभग लाखों वर्ष पहले सत्य युग में जब ब्रह्मलोक में सभी देवताओं की सभा चल रही थी और उसका नेतृत्व स्वयं ब्रह्मदेव कर रहे थे तो उस सभा में सभी देवताओं की सहमति से ब्रह्मदेव ने जब सूर्यदेव को कर्म राज्य का अधिश्वर बना दिया तब सूर्यदेव काफी खुश हुए और खुद में गर्वित भी और इसी गर्वित ने धीरे-धीरे अभिमान का रूप ले लिया और इसी अभिमान को करते-करते एक दिन सूर्यदेव को बेहद जोरदार छींक आ गई और यह कोई मामूली छींक ना थी क्योंकि इस छींक से एक बेहद शक्तिशाली असुर का जन्म हुआ।
इसके बाद सूर्यदेव भी सोच में पड़ गए कि आखिर उन्हें छींक कैसे आ गई जबकि देवताओं को इस प्रकार की कोई भी समस्या नहीं होती फिर वह असुर सूर्यदेव को बिना एहसास दिलाए सूर्यलोक से बाहर निकलकर ब्रह्मांड के अंधेरे में भटकने लगा जिसके बारे में शुक्राचार्य को आभास हो गया और वे तुरंत ही उसके समक्ष प्रकट हुए फिर शुक्राचार्य ने उसके स्वभाव के अनुसार उसे एक नई पहचान दी और उसका नाम रखा अहं सुर साथ ही उसे एक नया लक्ष्य भी दिया जिसके दौरान अहं सूर को सैकड़ों वर्षों तक श्री गणेश की तपस्या करनी थी।
जिसके लिए अहं कासुर सहमत हो गया और उसे शुक्राचार्य ने सब कुछ समझाकर पृथ्वी के ही एक शांत वन में तपस्या के लिए भेज दिया जिसके बाद अहं सुर श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए उनकी तपस्या में लिप्त हो गया और फिर तपस्या करते-करते सैकड़ों वर्ष बीतने लगे पर फिर भी श्री गणेश प्रकट ना हुए जिसके बाद अपने गुफा में बैठे शुक्राचार्य काफी चिंतित होने लगे जिसके बाद शुक्राचार्य ने महादेव का ध्यान किया और महादेव को सारी बात बताई फिर महादेव ने शुक्राचार्य को सही समय आने तक प्रतीक्षा करने का सुझाव दिया।
जिसके बाद शुक्राचार्य निश्चिंत हो गए और समय यूं ही बीतता गया फिर सैकड़ों वर्ष की जगह लगभग हजार वर्ष बीत गए लेकिन अहं सुर विचलित ना हुआ और यूं ही तपस्या में लीन रहा और आखिर में वह दिन आ ही गया जब श्री गणेश अहं सुर से प्रसन्न होकर प्रकट हुए जिसके बाद अहं सुर ने शुक्राचार्य के कहे अनुसार श्री गणेश से बेहद शक्तिशाली वरदान मांग लिया जिसमें उसने किसी भी देवता, गन्धर्व, जानवर या मनुष्य से कभी भी पराजित ना होने का वर मांग लिया और भी कई असीमित शक्तियां भी मांग ली।
जिसके जवाब में श्री गणेश ने अहं सुर को खुद श्री गणेश के सिवाय किसी और से ना हारने का वर दे दिया और कहा तथास्तु इतना कहकर श्री गणेश अंतर्धान हो गए जिसके बाद अहं सुर खुशी के मारे ठाके लगाने लगा और फिर उसने अपने अर्जित वरदान को वहीं जांचना शुरू कर दिया जिन्हें देख उसकी आंखें वहीं फटी की फटी रह गई इसके बाद अहं सुर असुरों के गुरु शुक्राचार्य के सम्मुख प्रकट हुआ और उन्हें सारी बात बताई जिसके बाद शुक्राचार्य ने अहं सुर को पूरे ब्रह्मांड में सबसे शक्तिशाली असुर होने के कारण उसे पूरे ब्रह्मांड में असुरों के राजा के रूप में नियुक्त कर दिया।
इसके बाद अहं सुर के हाथों ब्रह्मांड की पूरी आसुरी सेना आ चुकी थी साथ ही उसके पास पहले से ही श्री गणेश से प्राप्त असीमित शक्तियां भी मौजूद थी जिसका फायदा उठाकर अहं सुर ने धीरे-धीरे गुरु शुक्राचार्य के कहे अनुसार पूरे ब्रह्मांड के कोने-कोने में जाकर सभी लोकों में आक्रमण कर असुर साम्राज्य का विस्तार करना शुरू कर दिया उसने तमाम देवताओं और गन्धर्व को भी आसानी से हराकर उनके लोकों में आसुरी साम्राज्य स्थापित कर दिया ऐसे ही आसुरी साम्राज्य का विस्तार करते-करते समय गुजरता गया और समय के अनुसार अहं सुर और भी ज्यादा ताकतवर बनता गया।
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साथ ही उसका अभिमान भी बढ़ता गया और एक दिन उसने स्वर्ग लोक पर भी आक्रमण कर सभी देवताओं को एक साथ में परास्त कर दिया जिसके बाद सभी देवता अहं सुर के डर से स्वर्ग से भागने पर मजबूर हो गए और फिर अहं सुर ने स्वर्ग लोक को भी अपने अधीन कर लिया फिर समय के अनुसार अंता सूर ने शुक्राचार्य की भी बातें माननी छोड़ दी क्योंकि उसका अभिमान सातवें आसमान में पहुंच चुका था और इसी प्रकार धीरे-धीरे पूरे ब्रह्मांड में अहं सूर को अभिमाना सूर के नाम से भी जाना जाने लगा और उस समय पूरा ब्रह्मांड अभिमाना सुर के नाम मात्र से ही कांप उठता था।
अभिमाना सुर यानी कि अहं सुर ने ऋषि मुनियों को भी त्राहि – त्राहि करने पर मजबूर कर दिया उसने पृथ्वी को भी नहीं बक्शा देवता भी अभिमाना सुर के डर से पूरे ब्रह्मांड में छिप छिप कर रहने लगे थे हर जगह सिर्फ अभिमाना सुर का ही डंका बजने लगा था अभिमाना सुर ने पूरे ब्रह्मांड में त्रिदेव समेत सभी देवी देवताओं के पूजा पाठ को भी बंद करवा दिया था यहां तक कि वह श्री गणेश की भी पूजा पाठ ना होने देता और जो उसकी बात ना मानता उसे मृत्यु के घाट उतार दिया जाता।
अभिमाना सुर का अभिमान अपने चरम सीमा तक पहुंच चुका था और फिर यहां सभी देवता गंधर्व और ऋषि मुनि थक हारकर त्रिदेव के पास गए और उन्हें सारी बातें बताई जिसके बाद त्रिदेव ने देवताओं गन्धर्व और ऋषि मुनियों को श्री गणेश का ध्यान करने का सुझाव दिया इसके बाद समस्त देवता समेत गन्धर्व और ऋषि मुनि के एक शांत वातावरण में जाकर श्री गणेश की आराधना करने लगे फिर कई वर्षों तक आराधना करने के बाद श्री गणेश प्रकट हुए जिसके बाद सभी ने श्री गणेश को अभिमाना सुर के दुष्कर्मो के बारे में बताया और उसे दंडित करने के लिए प्रार्थना करने लगे।
फिर श्री गणेश ने सभी देवता गन्धर्व और ऋषियों को अभिमाना सुर को दंडित करने का आश्वासन दिया जिससे कि सभी निश्चिंत हो गए फिर श्री गणेश ने अभिमाना सुर को स्वप्न में आकर दर्शन भी दिए और उसे समझाया भी लेकिन के बावजूद भी अभिमाना सुर ने अपने अत्याचार को पूरे ब्रह्मांड में यूं ही जारी रखा जिसके बाद श्री गणेश के अंदर एक क्रोध जगा और उस भयंकर क्रोध में श्री गणेश ने विकराल धूम्रकेतु अवतार ले लिया और फिर वह निकल पड़े अभिमाना सुर का अभिमान तोड़ने जब अभिमाना सुर बचे कूचे ब्रह्मांड के राज्यों पर विजय प्राप्ति का षड्यंत्र रच रहा था तभी वहां अभिमाना सुर को कुछ गड़बड़ होने का एहसास होने लगा।
क्योंकि उसका पूरा असुर लोक कांपने लगा था जैसे कि कोई भूकंप आ गया हो इसके बाद वहां धूम्रकेतु अवतार का आगमन हो गया जिसे देख सभी असुर थड़क कांपने लगे और अभिमाना सुर तो जैसे बोखला उठा यह देख अभिमाना सुर हक्का बक्का हो गया वह श्री गणेश को इस अवतार में देख समझ गया कि बिना युद्ध के और कोई बचने का रास्ता नहीं है।
फिर उसने अपनी पूरी सेना को धूम्रकेतु अवतार पर टूट पड़ने का आदेश दे दिया जिसके बाद तो कई असुर डर के मारे वहां से पहले ही पलायन कर चुके थे और बाकी असुरों ने हिम्मत कर के धूम्रकेतु अवतार पर प्रहार करने की कोशिश तो की पर धूम्र केतु अवतार के एक ही प्रहार से अभिमाना सुर के सभी आसुरी सेना जल के खांक में तब्दील हो गई इसके बाद अभिमाना सुर बिल्कुल ही अकेला पड़ गया फिर उसने श्री गणेश से ही प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल उन्हीं के अवतार धूम्रकेतु पर करना शुरू कर दिया।
लेकिन इससे उनके ऊपर कोई असर ना हुआ इससे पहले की धूम्र केतु अवतार अपनी तरफ से कोई वार करते हैं अभिमाना सूर श्री गणेश का नाम लेते हुए धूम्र केतु तार के चरणों में जा गिरा और गिड़गिड़ा वह लगातार दया की भीख मांगने लगा जिसके काफी देर बाद धूम्र केतु अवतार अपने पूर्ण रूप श्री गणेश के रूप में आए और फिर अभिमाना सुर की शक्तियों को सीमित कर दिया और उसे दोबारा से ऐसी दुस्साहस ना करने की सलाह दे दी।
फिर श्री गणेश ने अभिमाना सुर को सीधे पृथ्वी के पाताल लोक में जाने की आज्ञा दी जिसके बाद अभिमाना सुर श्री गणेश की बात मानते हुए सीधा पाताल लोक को प्रस्थान कर गया यह देख सभी देवता समेत गंधर्व और ऋषि मुनि श्री गणेश से काफी प्रसन्न हुए इसके बाद पूरा ब्रह्मांड अभिमाना सुर के आतंक से मुक्त हुआ और सभी चयन भरी सांस लेने लगे और फिर श्री गणेश सभी देवताओं समेत गंधर्व और ऋषि मुनियों को अभिवादन कर कैलास को लौट गए
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