जीवन को भगवान की ओर चलने का प्रयत्न करना चाहिए
-: Bhagwan :-
दिन बीत गया, संध्या हुई, रात आयी, फिर प्रातःकाल हो गया; शिशिर ऋतु गयी, बसन्त आ गया; बसन्त गया, हेमन्त आया इस प्रकार काल अपनी क्रीडा कर रहा है खेल रहा है और हमारे एक व्यक्तिके पास निश्चित आयु के दिन बीत रहे हैं। थोड़ी-सी पूँजी है और वह समाप्त हुई जा रही है। आगेके लिये उसका कोई ध्यान नहीं है; उसका भविष्य अन्धकारमय है। ठीक यही दशा हमारी है, जो भगवान्की तरफ न लगकर संसारके प्रपञ्च्चोंमें ही रचे-पचे रहते हुए जीवन व्यतीत कर रहे हैं- मानव जीवनको व्यर्थ खो रहे हैं।
पता नहीं काल किस समय, किस हेतुसे, किस निमित्तसे, क्या बनकर आ जायगा और हमारा यह जीवन समाप्त हो जायगा । इसलिये जैसे-कैसे भी हो, अपने जीवनको भगवान्की ओर मोड़ देना बहुत आवश्यक है। व हमारे वर्तमान जीबन में परिवर्तन की आवश्यकता है; क्योंकि इस जीवनकी समाप्तिपर- मनुष्य-देह मिलनेसे भगवान्को पानेका जो अवसर हाथ में आया है, उसके निकल जाने पर पश्चात्ताप के सिवा कुछ नहीं रह जायगा।
इसलिये जीवन रहते थोड़ा-बहुत ही जिससे जितना हो सके, उतना ही जीवनको भगवान्की ओर लगानेका प्रयत्न करना चाहिये और वह होना चाहिये असली मनसे । भूखा व्यक्ति रोटी प्राप्त करनेके लिये स्वयमेव मनसे चेष्टा करता है।
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उसके इस प्रयत्नमें कहीं दिखावट नहीं होती; क्योंकि उसे भूख लगी है। प्यासे व्यक्ति को निरन्तर जलका स्मरण बना रहता है और जल-प्राप्ति की वह चेष्टा करता है; क्योंकि जल के बिना उससे रहा नहीं जा रहा है, प्यास उसे बेचैन किये हुए है। उसके जल-प्राप्ति के प्रयत्नमें कोई दिखावट नहीं, प्रशंसा-प्राप्तिका भाव नहीं, सच्चे मनसे उसका यह प्रयत्न्न होता है। ठीक इसी प्रकार सच्चे मनसे – अन्तर्हृदयसे भगवान्के लिये हम लोगोंको सचेट होना चाहिये ।
दुनियामें रहकर घर-बाहरके काम करने पड़ते हैं और सब करने ही चाहिये । वे छूट नहीं सकते, छोड़ने की बात कहना ही व्यर्थ है। पर उन पर एक नियन्त्रण तो हो सकता है जितनी आवश्यकता हो, उतना उनमें मन लगे, उतना उनमें समय लगे, उतना ही प्रयास उनके लिये हो ।
शेष मनकी सारी वृत्तियाँ, शेष सारा समय और शेष सारे प्रयास केवल भगवान् के लिये हों।
समझमें आ जाने पर तो घर के, शरीर के, आजीविका-के सारे काम भी भगवान की सेवा बन सकते हैं। पर जब तक ऐसी वृत्ति न बने, तबतक घरके, शरीरके, आजीविका के कार्यों से बचा हुआ समय एवं वृत्तियाँ भगवान्में लगनी चाहिये । आगे चलकर जीवन का सम्पर्क एकमात्र भगवान जुड़ जाने पर हम जो कुछ भी करेंगे, वह भगवान् की सेवा ही होगी।
जैसे पतिव्रता स्त्रीके जीवन के सारे काम केवल पतिके लिये होते हैं उसका कपड़े पहनना, शृङ्गार करना, खाना, पीना, सोना-सत्र-के-सब पति के लिये होते हैं, अपने लिये नहीं । इसी प्रकार यदि हम अपने जीवनको भगवान् के अर्पित कर दें, उसे भगवान् का बना दें तो जीवनका प्रत्येक छोटा-बड़ा कार्य भगवान् के लिये हो सकता है। फिर तो दिनभर भगवान्की पूजा होती है। इसके लिये हम आज इसी क्षण से प्रयत्न करें और भगवान को जीवन की एक आवश्यकता बना लें। इतना कर लिया तो मानव जीवन सफल है।
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