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Maratha Warrior

Maratha Warrior : जिसने 41 बार मुगलों को परास्त किया

-: Maratha Warrior :-

एक महान मराठा योद्धा, जिसने अपनी तलवार की धार से दिल्ली के तख्त को हिला कर रख दिया, और मुग़ल बादशाह को यमुना नदी में नाव लेकर भागने पर मजबूर कर दिया। यह कहानी है उस मराठा वीर की जिसने ना केवल मुगलों को बल्कि निजाम, नवाबों, पुर्तगालियों और तमाम ताकतवर शासकों को धूल चटाई। यह कहानी सिर्फ युद्धों की नहीं बल्कि साहस, रणनीति, कूटनीति और मराठा एकता की है। यह कहानी है पेशवा बाजीराव प्रथम की जिसने अपने जीवन में 41 युद्ध लड़े और एक भी नहीं हारा।

मराठा इतिहास की शुरुआत होती है छत्रपति शिवाजी महाराजसे,। जिन्होंने 17वीं सदी में अपनी तलवार, साहस और गोरिल्ला युद्ध की रणनीति से मुगल सल्तनत को चुनौती दी। शिवाजी महाराज ने ना केवल मराठा स्वराज की स्थापना की बल्कि हिंदुत्व स्वराज का सपना देखा जिसमें सभी धर्मों के लोग स्वतंत्रता और सम्मान के साथ जी सकें। उनकी रणनीति थी तेजी, चतुराई और पहाड़ी किलों का सहारा लेकर दुश्मनों को चकमा देना।

शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद उनके पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज, जिन्हें प्यार से सब छावा कहते हैं। उन्होंने मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली। लेकिन 1689 में औरंगजेब ने संभाजी महाराज को क्रूरता से मार डाला। संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद में औरंगजेब ने उनके बेटे शाहूजी महाराज को और उनकी पत्नी यशोबाई को कैद कर लिया।

1689 से 1707 तक, यानी औरंगजेब की मृत्यु तक, वे मुगल कैद में रहे। और जैसा कि हम आपको पहले की वीडियो में बता चुके हैं कि इस दौरान मराठा साम्राज्य की कमान संभाली संभाजी के छोटे भाई राजा राम ने। राजा राम ने दक्कन और दक्षिण भारत में मुगलों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध जारी रखा। लेकिन 1707 में राजा राम की मृत्यु हो गई, जिसके बाद राजा राम के बेटे शिवाजी द्वितीय को छत्रपति बनाया गया।

लेकिन क्योंकि वह बहुत छोटे थे, इसीलिए उनकी माता ताराबाई ने संरक्षिका के रूप में शासन चलाया। उन्होंने मुगलों को दक्कन में टिकने नहीं दिया। औरंगजेब की मृत्यु ने मुगल सल्तनत को कमजोर कर दिया, लेकिन मराठा साम्राज्य में भी एक नया संकट खड़ा हो गया। 1708 में शाहूजी महाराज को मुगल कैद से रिहा किया गया और उन्होंने छत्रपति की गद्दी पर दावा ठोका, लेकिन ताराबाई ने इसे स्वीकार नहीं किया जिससे मराठाओं में गृह युद्ध की स्थिति बन गई। इस संकट ने मराठा साम्राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया।

एक तरफ शाहूजी महाराज और दूसरी तरफ ताराबाई। इस गृह युद्ध में शाहूजी महाराज को पेशवा बालाजी विश्वनाथ का साथ मिला। पेशवा यानी मराठा साम्राज्य का प्रधानमंत्री जो छत्रपति का सबसे महत्वपूर्ण सलाहकार, सेनापति और प्रशासक होता है। बालाजी विश्वनाथ एक कुशल कूटनीतिज्ञ और रणनीतिकार थे। उन्होंने शाहूजी के लिए कई युद्ध लड़े और ताराबाई के समर्थकों को हराकर मराठा साम्राज्य को एकजुट किया और मुगलों के साथ भी चतुराई से संधि की।

1719 में उन्होंने मुगलों से स्वराज कर वसूली का अधिकार भी हासिल किया जिसने मराठा साम्राज्य को आर्थिक और सैन्य रूप से मजबूत किया। लेकिन इस प्रक्रिया में पेशवा की शक्ति बढ़ती चली गई। अगर आपको यह डिटेल समझ नहीं आती तो आज की गवर्नमेंट के अकॉर्डिंग सिंपल लैंग्वेज में समझिए। जैसे कि भारत में राष्ट्रपति की पोस्ट सबसे सुपीरियर है, लेकिन असली ताकत प्रधानमंत्री के पास होती है। वैसे ही मराठा साम्राज्य में छत्रपति सम्मानित थे, लेकिन असली शक्ति पेशवा के हाथों में आ गई।

बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद उनके बेटे बाजीराव बल्लाल भट्ट 1720 में केवल 20 साल की उम्र में पेशवा बने, जिन्हें आज पेशवा बाजीराव प्रथम के नाम से जाना जाता है। यह वो समय था जब मुगल सल्तनत अपने पतन की ओर बढ़ रही थी। मुगल बादशाह फर्रूख सियार की हत्या कर दी गई थी और उसकी जगह मोहम्मद शाह रंगीला गद्दी पर बैठा था। मोहम्मद शाह अपनी अय्याशी और नाच गानों के लिए कुख्यात था और उसका शासन कमजोर था।


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इस कमजोरी का फायदा उठाकर कई क्षत्रिय शक्तियां उभर रही थी। जैसे रुहेलखंड में रोहिल्ला, हैदराबाद के निजाम, अवध के नवाब और अन्य छोटी बड़ी रियासतें। लेकिन इन सबके बीच बाजीराव ने मराठा साम्राज्य को एक नई दिशा दी। उनके तेज, दिमाग, साहस और रणनीति ने मराठाओं को भारत के एक बड़े हिस्से में फैला दिया। बाजीराव ने अपने जीवन में 41 युद्ध लड़े और एक में भी नहीं हारे। उन्होंने मुगलों, निजाम, पुर्तगालियों, सिंधियों और अन्य शासकों को हराकर मराठा साम्राज्य को कर्नाटक से दिल्ली और गुजरात से बुंदेलखंड तक फैलाया।

बाजीराव को मराठा इतिहास का सबसे महान पेशवा माना जाता है, और इसका कारण थी उनकी अद्भुत सैन्य रणनीति। रणनीति।बाजीराव की घुड़सवार सेना को इतिहास में बेजोड़ माना जाता है। उनकी सेना में हल्के और तेज घोड़े थे जो किसी भी इलाके में तेजी से हमला कर सकते थे। उनकी रणनीति थी हिट एंड रन, यानी दुश्मन पर बिजली की तरह हमला करो और तुरंत ही गायब हो जाओ। बाजीराव की सेना रात में हमला करती और सुबह होने से पहले ही गायब हो जाती।

उनकी सेना इतनी तेज थी कि वह दो दिनों में ही 90 कि.मी. का मुश्किल रास्ता पार कर लेते थे। बाजीराव ने अपनी सेना को हमेशा हल्का और चुस्त दुरुस्त रखा ताकि वह लंबी दूरी तय कर सके और दुश्मन को चकमा दे सके। इतिहासकार उन्हें घुड़सवार सेना का सबसे महान कमांडर मानते हैं। कहा जाता है कि अगर स्वर्ग से कोई घुड़सवार लीडर उतरे तो वो बाजीराव जैसा होगा। बाजीराव की सबसे बड़ी जीत थी 1736 में दिल्ली पर उनका हमला।

दरअसल 12 नवंबर 1736 को बाजीराव ने अपनी 5000 घुड़सवारों की सेना के साथ दिल्ली की ओर कूच किया। उनकी सेना ने बुंदेलखंड पार किया और यमुना नदी के किनारे डेरा डाला। यहां से आगरा केवल 65 कि.मी. दूर था। मराठा जनरल मल्हार राव होलकर ने यमुना नदी को पार किया और दोआब के कई कस्बों पर कब्जा कर लिया। दिल्ली में जब यह खबर पहुंची कि मराठे किसी भी समय हमला कर सकते हैं, तो मोहम्मद शाह रंगीला के होश उड़ गए।

उसने अपनी सेना को बाजीराव का मुकाबला करने भेजा, जिसमें अवध के गवर्नर शहादत खान और मथुरा के गवर्नर खान बंगश शामिल थे। मल्हार राव होलकर और शहादत खान के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसमें होलकर जी को हार का सामना करना पड़ा। होलकर ग्वालियर लौट आए, जहां बाजीराव ने डेरा डाला था। शहादत खान और खान बंगश ने जश्न मनाना शुरू कर दिया और दिल्ली में खबर भेजी कि मराठाओं को खदेड़ दिया गया। है।

मोहम्मद शाह ने अपने चापलूसों की बात में आकर राहत की सांस ली। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि बाजीराव की चाल अभी बाकी है और तभी बाजीराव ने अपनी हार को एक रणनीति में बदला। वह जानते थे कि मथुरा से दिल्ली जाने का रास्ता मुगलों की नजर में है। इसीलिए उन्होंने मेवात के पहाड़ी और जंगली रास्ते का सहारा लिया। यह रास्ता बेहद मुश्किल था, लेकिन बाजीराव की घुड़सवार सेना, जो हल्के और तेज घोड़ों से लैस थी, उन्होंने इसे आसानी से पार कर लिया।

केवल 2 दिनों में 90 कि.मी. का मुश्किल रास्ता तय कर कर बाजीराव दिल्ली से मात्रा 12 कि.मी. दूर ताल कटोरा जिसे आज हम ताल कटोरा स्टेडियम के नाम से जानते हैं उसी के पास उन्होंने डेरा डाल दिया। जब मोहम्मद शाह को यह खबर मिली तो उसका नशा और नींद दोनों गायब हो गए। उसने अपने चापलूसों को कोसा और तभी बाजीराव ने मोहम्मद शाह को अल्टीमेटम भेजा कि अगर दोपहर तक संधि नहीं हुई तो मराठे दिल्ली पर कब्जा कर लेंगे।

मोहम्मद शाह इतना डर गया कि उसने यमुना नदी में नाव से भागने की योजना बनाई। यह वही मुगल सल्तनत थी जिसके सामने कभी अकबर और औरंगजेब के समय में पूरा हिंदुस्तान झुकता था, लेकिन बाजीराव के सामने वो भागने की सोच रहे थे। लेकिन तभी दिल्ली के एक कमांडर अमीर खान ने हिम्मत दिखाई और 12,000 घुड़सवारों और 20,000 पैदल सैनिकों के साथ बाजीराव का मुकाबला करने निकला। आमिर खान ने एक रक्षात्मक रणनीति बनाई जिसमें मराठाओं को घेर कर रोकने की योजना थी।

लेकिन उसके कुछ उत्साही सैनिकों ने बिना सोचे समझे मराठाओं पर हमला बोल दिया। बाजीराव ने मौके का फायदा उठाया। उसने अपने 500 घुड़सवारों को मुगलों को ललकारने के लिए भेजा। मुगल कमांडर अमीर हसन ने सोचा कि मराठे कमजोर हैं और उन्हें आसानी से हराया जा सकता है। लेकिन यह सोच बाजीराव की चाल थी। उन्होंने मुगलों को अपनी ओर खींचा और फिर अचानक से हमला बोल दिया। बाजीराव ने अपनी सेना को लड़ते-लड़ते पीछे धकेला जिससे मुगल उनकी पहुंच में आ गए।

जब अमीर हसन बहुत दूर निकल आए, तो बाजीराव ने उन पर धावा बोल दिया। अमीर हसन गिरफ्तार हो गए और दिल्ली की हार तय हो गई। लेकिन बाजीराव ने दिल्ली को लूटने के बजाय केवल 3 दिन तक नियंत्रण रखा और फिर अजमेर की ओर कूच कर दिया। ऐसा इसीलिए क्योंकि उनका मकसद दिल्ली को लूटना नहीं बल्कि मुगलों को उनकी औकात दिखाना था। साथ ही शहादत खान की सेना दिल्ली की ओर बढ़ रही थी, जिससे बाजीराव ने रणनीति रूप में पीछे हटना बेहतर समझा।

इस हमले में मुगल सल्तनत की कमजोरी को पूरे भारत में उजागर कर दिया गया। दिल्ली की हार से तिलमिलाए मोहम्मद शाह ने बाजीराव को हराने के लिए निजामुल मुल्क को दिल्ली बुलाया। दिसंबर 1737 में भोपाल में बाजीराव और निजाम का आमनासामना हुआ। निजाम ने भोपाल पर कब्जा कर लिया और मराठाओं का इंतजार करने लगे, लेकिन बाजीराव ने चतुराई दिखाई। उन्होंने भोपाल को चारों ओर से घेर लिया, जिससे निजाम की सेना को रसद और भोजन की कमी हो गई।

निजाम के साथ सवाई जय सिंह की सेना भी थी, लेकिन मराठाओं की तेजी और रणनीति के आगे वो भी नहीं टिक सके। इसके बाद शहादत खान का बेटा सफ्तर जंग निजाम की मदद के लिए भोपाल की ओर बढ़ा। लेकिन बाजीराव ने उसे रास्ते में ही रोक लिया। निजाम की सेना कमजोर पड़ने लगी और आखिरकार उन्हें संधि के लिए मजबूर होना पड़ा।

7 जनवरी 1739 को दोराहा की संधि हुई जिसके तहत मालवा और नर्मदा -चंबल के बीच का बड़ा इलाका मराठाओं के कब्जे में आ गया। इस संधि ने मराठा साम्राज्य को और मजबूत किया और बाजीराव की शक्ति को पूरे भारत में स्थापित किया। बाजीराव ने केवल मुगलों और निजामों को ही नहीं हराया बल्कि कई और शक्तियों को भी मुंहतोड़ करारा जवाब दिया। उन्होंने पुर्तगालियों के खिलाफ 1739 में पसई का युद्ध लड़ा और पुर्तगालियों को पश्चिम तट से खदेड़ दिया।

यह युद्ध मराठा नौसेना की ताकत को भी दर्शाता है। बाजीराव ने सिंधियों को भी हराया जो अरब सागर के तट पर अपनी ताकत बनाए हुए थे। बाजीराव की एक और खासियत थी उनकी कूटनीति। उन्होंने युद्धों के साथ-साथ संधियों और गठबंधनों के जरिए मराठा साम्राज्य को मजबूत किया। उन्होंने बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल की मदद की जिन्हें मुगलों ने हराया था। छत्रसाल ने बदले में अपनी बेटी मस्तानी का विवाह बाजीराव से कर दिया।

लेकिन बाजीराव मस्तानी फिल्म में बाजीराव की प्रेम कहानी को ज्यादा दिखाया गया, लेकिन उनकी असली कहानी युद्ध और रणनीति की थी। इसी के साथ बाजीराव की मृत्यु 1740 में केवल 40 साल की उम्र में हो गई। कहा जाता है कि वह एक युद्ध अभियान के दौरान बीमार पड़ गए और खरगोन में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु ने मराठा साम्राज्य को गहरा झटका दिया, लेकिन उनकी विरासत ने मराठाओं को और मजबूत किया।

उनके बेटे बालाजी बाजीराव, जिन्हें नाना साहेब के नाम से जानते हैं, उन्होंने पेशवा की गद्दी संभाली और मराठा साम्राज्य को और भी ज्यादा विस्तृत किया। बाजीराव पेशवा ने सिखाया कि साहस, रणनीति और एकता से कोई भी ताकतवर दुश्मन को हराया जा सकता है। उन्होंने मराठा साम्राज्य को उस ऊंचाई पर पहुंचाया जहां से उन्होंने दिल्ली के तख्त को ललकारा और मुगल सल्तनत की नींव हिला डाली।

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