आखिर ‘हड़प्पा सभ्यता’ का अंत कैसे हुआ?

-: Harappan religion and beliefs :-

‘हड़प्पा सभ्यता’ (जिसे सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है) का अंत आज भी एक रहस्य बना हुआ है, लेकिन इतिहासकारों और पुरातत्वविदों ने इसके अंत के पीछे कुछ प्रमुख कारणों की संभावना जताई है। इनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

1. प्राकृतिक आपदाएँ 

  • नदी का मार्ग बदलना: हड़प्पा सभ्यता की समृद्धि का मुख्य आधार नदियाँ थीं, खासकर घग्गर-हकरा (जो संभवतः सरस्वती नदी रही हो)। जैसे ही ये नदियाँ सूखने लगीं या मार्ग बदलने लगीं, कृषि और जल आपूर्ति प्रभावित हुई।

  • बाढ़ और सूखा: कुछ स्थानों पर बार-बार बाढ़ के निशान मिले हैं, वहीं कुछ क्षेत्रों में लंबे समय तक सूखा पड़ा होगा।

2. जलवायु परिवर्तन 

  • लगभग 1900 ई.पू. के बाद जलवायु में बदलाव आया—मानसून कमजोर पड़ा और क्षेत्र धीरे-धीरे शुष्क होता गया। इससे खेती प्रभावित हुई और लोग पलायन करने लगे।

3. आर्थिक पतन और व्यापार में गिरावट 

  • हड़प्पा सभ्यता का व्यापार मेसोपोटामिया जैसी सभ्यताओं से होता था। जब यह व्यापार टूटने लगा, तो आर्थिक ढांचा चरमरा गया।

4. आर्यों का आगमन (विवादास्पद सिद्धांत) 

  • कुछ विद्वान मानते हैं कि आर्यों के आगमन से हड़प्पा सभ्यता का पतन हुआ। हालांकि, इस सिद्धांत को अब काफी हद तक खारिज किया जा चुका है क्योंकि इसके पुख्ता सबूत नहीं हैं।

5. सामाजिक-राजनीतिक ढांचे में गिरावट 

  • सभ्यता में केंद्रीकृत शासन का पतन हुआ और लोग छोटे-छोटे गांवों में बसने लगे। इससे नगरीय संस्कृति का पतन हुआ।

निष्कर्ष 

हड़प्पा सभ्यता का अंत किसी एक कारण से नहीं हुआ, बल्कि यह एक धीमी प्रक्रिया थी जिसमें प्राकृतिक, आर्थिक, और सामाजिक बदलाव शामिल थे। कुछ स्थलों पर लोग धीरे-धीरे गाँवों में बस गए, जिससे सभ्यता नगरीय से ग्रामीण रूप में बदल गई।

हड़प्पा सभ्यता का पतन: टाइमलाइन

कालखंड घटनाएँ
2600–1900 BCE (परिपक्व हड़प्पा काल)  शहरों की स्थापना (मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, लोथल, धोलावीरा आदि), व्यवस्थित नगर योजना, जल प्रबंधन, व्यापार का उत्कर्ष
1900–1700 BCE (उत्तर-हड़प्पा काल / पतन की शुरुआत) शहरों का धीरे-धीरे परित्याग, नदी मार्गों में बदलाव, जलवायु परिवर्तन के संकेत, व्यापार में गिरावट
1700–1300 BCE (स्थायी पतन) नगरीय जीवन समाप्त, लोग छोटे गाँवों की ओर स्थानांतरित हुए, सभ्यता का देहाती स्वरूप में रूपांतरण

कुछ प्रमुख स्थल और वहाँ मिले पतन के संकेत

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स्थल पतन के संकेत
मोहनजोदड़ो बार-बार बाढ़ के संकेत, अव्यवस्थित भवन निर्माण
हड़प्पा निर्माण में गिरावट, व्यापारिक वस्तुओं की कमी
धोलावीरा जल प्रबंधन प्रणाली का क्षरण
कालीबंगन अग्निकुंडों का उपयोग बंद, सूखे के संकेत

पतन के बाद क्या हुआ?

  • वैदिक संस्कृति का उभार हुआ (लगभग 1500 BCE से)

  • हड़प्पा संस्कृति के अवशेष — जैसे मिट्टी के बर्तन, कृषि पद्धतियाँ, और कुछ धार्मिक प्रतीक — आगे की सभ्यताओं में समाहित हुए

उत्तर-हड़प्पा काल (Post-Harappan Period)

(लगभग 1900 BCE – 1300 BCE)

उत्तर-हड़प्पा काल हड़प्पा सभ्यता के बाद का चरण था, जिसमें सभ्यता के कई तत्व बचे रहे लेकिन उसका स्वरूप बदल गया था।

🔸 विशेषताएँ:

तत्व बदलाव
नगरीय जीवन बड़े शहर समाप्त, छोटे गाँवों का विकास
व्यापार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ठप, स्थानीय स्तर पर व्यापार जारी
कला और शिल्प नई शैली के बर्तन और औज़ार बनने लगे
लिखित लिपि हड़प्पा की लिपि गायब हो गई (अब तक अपठनीय भी है)
धार्मिक परंपराएँ पीपल, शिव-लिंग जैसे प्रतीकों का चलन जारी रहा

उत्तर-हड़प्पा के प्रमुख स्थल

स्थान विशेष जानकारी
राखीगढ़ी (हरियाणा) हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा ज्ञात स्थल
भोगावों (पंजाब) उत्तर-हड़प्पा संस्कृति के महत्त्वपूर्ण संकेत
आलमगीरपुर (पश्चिमी उत्तर प्रदेश) गंगा-यमुना घाटी की ओर विस्तार का प्रमाण

हड़प्पा से वैदिक संस्कृति की ओर बदलाव

  • आर्यों के आगमन (लगभग 1500 BCE) के बाद, एक नई संस्कृति का विकास हुआ जिसे वैदिक सभ्यता कहते हैं।

  • हालांकि आर्यों और हड़प्पावासियों के बीच सीधे टकराव के प्रमाण नहीं हैं, परंतु धीरे-धीरे संस्कृति का रूपांतरण हुआ।

हड़प्पा सभ्यता की विरासत

  • जल प्रबंधन प्रणाली की प्रेरणा आज भी शहरी योजनाओं में देखी जा सकती है।

  • साफ़-सफ़ाई और नालियों की व्यवस्था हड़प्पा की उन्नत सोच को दर्शाती है।

  • कुछ धार्मिक प्रतीकों (जैसे पीपल, योग मुद्रा में पुरुष) को बाद की भारतीय संस्कृति में अपनाया गया।

हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक मान्यताएँ

हड़प्पावासियों की धार्मिक मान्यताओं को समझने के लिए हमारे पास कोई ग्रंथ नहीं हैं, लेकिन जो कुछ मूर्तियाँ, मुहरें और कलाकृतियाँ मिली हैं, उनसे काफी कुछ अंदाज़ा लगाया गया है।


प्रमुख धार्मिक प्रतीक और संकेत

प्रतीक / वस्तु क्या दर्शाता है?
पशुपति मुहर एक योगमुद्रा में बैठा व्यक्ति, जिसके चारों ओर जानवर हैं — कुछ विद्वान इसे शिव का प्रारंभिक रूप मानते हैं।
पीपल के पत्ते और वृक्ष पवित्र वृक्ष का प्रतीक — बाद में हिंदू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में भी महत्व
प्रजनन प्रतीक स्त्री मूर्तियाँ (मातृदेवी) — उर्वरता और शक्ति का प्रतीक
नाग/सर्प चित्रण शायद सुरक्षा या पूजन से जुड़ा प्रतीक
अग्निकुंड जैसे ढाँचे धार्मिक अनुष्ठानों में अग्नि की भूमिका का संकेत

योग और ध्यान की झलक?

कुछ मुहरों में बैठे हुए योगमुद्रा के चित्र मिले हैं। इससे लगता है कि ध्यान, आसन या तपस्या जैसी अवधारणाएँ उस समय मौजूद थीं।

जानवरों की पूजा या प्रतीकात्मकता

जानवर संभावित महत्व
सांड़ (Bull) शक्ति, कृषि और उर्वरता का प्रतीक
गैंडा, हाथी, बाघ पशुपति मुहर में दर्शित — शक्ति और प्रकृति से जुड़ाव
एक सींग वाला जानवर (यूनिकॉर्न) रहस्यमयी प्रतीक — आज तक इसका स्पष्ट अर्थ पता नहीं

धार्मिक स्थल?

  • कोई बड़ा मंदिर नहीं मिला, परंतु कई घरों में घर के मंदिर या पूजा स्थल जैसे संरचनाएं मिली हैं।

  • छोटे-छोटे वेदियां, जलकुंड, अग्निकुंड और मूर्तियों की स्थापना — जिससे लगता है कि घरेलू पूजा आम थी।

निष्कर्ष

हड़प्पा धर्म प्रकृति, उर्वरता, और योग-तपस्या पर आधारित था। इसमें संगठित धर्म या देवमंदिर की बजाय लोक-आधारित पूजा पद्धति थी। कई प्रतीकों की छवि बाद की वैदिक और हिंदू संस्कृति में भी मिलती है, जिससे पता चलता है कि हड़प्पा की धार्मिक सोच ने आगे चलकर भारतीय सभ्यता की नींव रखी।

अगर चाहो तो अगली बार हम बात कर सकते हैं:

  •  हड़प्पा की लिपि और लेखन प्रणाली

  •  हड़प्पा के वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान (जैसे जल निकासी, मापन, नगर योजना)

  •  हड़प्पा की कला और शिल्प

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