HIGHLIGHT

5 Richest Kings in Indian History

भारत के 5 अमीर राजा जो चुटकी बजाकर पूरी दुनिया खरीद सकते थे

-: 5 Richest Kings in Indian History :-

प्राचीन भारत के पांच सबसे शक्तिशाली साम्राज्य जो बहुत अमीर थे। आखिर इन साम्राज्यों को अमीर बनाने वाले सम्राट कौन थे? प्राचीन भारत एक समृद्ध और शक्तिशाली देश था। इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था क्योंकि दुनिया का संपूर्ण व्यापार और राजनीति के केंद्र उस समय केवल भारत में ही हुआ करते थे।

तब भारत की सीमाओं का विस्तार हिंदू कुश पर्वतमाला से लेकर अरुणाचल प्रदेश की पर्वतमाला तक और कैलाश पर्वत से लेकर कन्याकुमारी के पार समुद्र पर्याय तक भारत में ही हुआ करता था, और इसीलिए आज हम जानेंगे उन पांच शक्तिशाली साम्राज्यों के बारे में जो बहुत अमीर थे। साथ ही उन महान सम्राटों के बारे में भी जानेंगे जिन्होंने अपने राज्य को, अपने साम्राज्य को, एक अमीर साम्राज्य बनाया।

विक्रमादित्य का साम्राज्य

विक्रम संवत के अनुसार अवंतिका यानी उज्जैन के महाराजधिराज राजा विक्रमादित्य आज से 2294 वर्ष पूर्व जन्मे थे। विक्रमादित्य अपने ज्ञान वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। जिनके दरबार में नवरतन रहते थे। यानी कि नौ ऐसे लोग जो अलग-अलग कलाओं में माहिर थे। इन्हें नवरत्न भी कहा जाता था और यहीं से इस परंपरा का आरंभ हुआ था। महाकवि कालिदास की पुस्तक ज्योति विरद भरण के अनुसार उनके पास 30 मिलियन सैनिक और 100 मिलियन विभिन्न वाहनों के अलावा 25,000 हाथी और 400,000 समुद्री जहाजों की एक विशाल सेना थी।

इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इतनी विशाल सेना को संभालने के लिए उनके पास कितना अधिक धन मौजूद होगा। साथ ही साथ उनके ही नाम से वर्तमान में भारत में विक्रम संवत प्रचलित है। साथ ही उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बाद समुद्रगुप्त के पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय हुए। जिन्हें चंद्रगुप्त विक्रमादित्य कहा जाता है।

विक्रमादित्य द्वितीय के बाद 15वीं सदी में सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य हेमु। सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के बाद विक्रमादित्य पंचम कल्याणी के राज सिंहासन पर अरुण हुए। उन्होंने लगभग 108 ईसा पूर्व में चालुक्य राज की गद्दी को संभाला और राजा भोज के काल में यही विक्रमादित्य थे। कहते हैं विक्रमादित्य का साम्राज्य बहुत ही कुशल, समृद्ध और धनवान था। यहां धन के रूप में सोने के सिक्के प्रचलित थे। जिसपर विक्रमादित्य की तस्वीर बनी हुई थी। कहते हैं इनके साम्राज्य के दौरान किसी को भी गरीबी का सामना नहीं करना पड़ता था।

गुप्त साम्राज्य

गुप्त साम्राज्य के दो महत्वपूर्ण राजा हुए। पहले समुद्रगुप्त और दूसरे चंद्रगुप्त द्वितीया। शुंग वंश के पतन के बाद सनातन संस्कृति की एकता को फिर से एकजुट करने का श्रेय गुप्त वंश के लोगों को जाता है। गुप्त वंश की स्थापना 320 ईसा पूर्व लगभग चंद्रगुप्त प्रथम ने की थी और 1510 ईसा पूर्व तक यह वंश शासन में रहा।

इस वंश में अनेक प्रतापी राजा हुए। कहते हैं नरसिंह गुप्त बाल द्वितीय को छोड़कर सभी गुप्त वंशी राजा वैदिक धर्मावलंबी थे। गुप्त वंश के सम्राटों को अगर बारीकी से जाने तो पहले श्रीगुप्त, घटोत्कच, चंद्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, रामगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय, कुमारगुप्त प्रथम और स्कंदगुप्त आगे चलकर हुए। स्कंदगुप्त और हूणों की सेना में बहुत बड़ा भयंकर मुकाबला हुआ और गुप्त सेना विजय हुई। कहते हैं इनके पास अत्यधिक सेना का बल मौजूद था।

साथ ही साथ इनके पास बहुत अधिक मात्रा में धन था। आप इस बात से भी अंदाजा लगा सकते हैं कि इन्होंने उस समय में कई सारे मंदिरों का निर्माण करवाया था जिसमें इंटरलॉकिंग टेक्निक की सहायता ली गई थी जिसके लिए बहुत अधिक खर्चा भी हुआ था और उस समय में गुप्त साम्राज्य इतना सक्षम था कि उसने करोड़ों अरबों खरबों की संपत्ति सिर्फ मंदिरों पर लगाई।

चालुक्य राजवंश साम्राज्य

चालुक्य राजवंश में सबसे शक्तिशाली पुलककेशिन द्वितीय था। जिसका शासनकाल 609 ईसा पूर्व से 642 ईसा पूर्व के मध्यम का माना जाता है। कहते हैं कि पुलकेशिन ने गृह युद्ध में चाचा मंगलेश पर विजय प्राप्त कर सत्ता पर कब्जा कर लिया था। उसने श्री पृथ्वी वल्लभ सत्याश्रय की उपाधि से अपने आप को विभूषित किया था।

पुलककेशिन ने कई राजाओं को परास्त कर उनके क्षेत्रों पर अपना अधिकार और कब्जा कर लिया। जैसे राष्ट्रकूट राजा गोविंद, लाट, मालवा और भ्रंगुच्छू के गुर्जरों को भी उसने हराया था। उसने कदंबों को हराया। मैसूर के गंगो और साथ ही साथ केरल के अल्पों को भी पछाड़ दिया था। कोंकण की राजधानी पूरी पर भी उसने कब्जा जमा लिया था। पल्लव राजा महेंद्र वर्मन कोपराजित कर कांची तक उसने अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया। उससे भयभीत होकर शेर, चोल और पांड्यों ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली।


यह भी पढ़े- फ्रिज के बिना कैसे ठंडी रखते थे चीज़ें? जाने कब आया फ्रिज


उसने नर्मदा से कावेरी के तट के सभी प्रदेशों पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया था। इस प्रकार दक्षिण के एक बड़े भूभाग पर उसका शासन था। कहते हैं चालुक्य राजवंश साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली राजा के तौर पर पुलककेशिन ने अपने आप को साबित किया था। उनके पास इतनी अधिक धन संपत्ति थी जिसका हिसाब किताब इतिहास के पन्नों तक में नहीं लिखा जा सका। कहते हैं वह जिस रथ पर विराजमान होते थे वह खुद स्वर्ण का बना हुआ था यानी कि सोने का।

उनके संपूर्ण महल पर चांदी और साथ ही सोने की परत चढ़ी हुई थी और सबसे ज्यादा महंगा था उनका राज सिंहासन जिसमें 35 से अधिक रत्न जड़े हुए थे। इसके अलावा पूरा का पूरा राज सिंहासन सोने का बना हुआ था। कई इतिहासकार मानते हैं कि उस समय में उसकी कीमत लगभग 200 करोड़ के आसपास थी और अब उसकी कुल संपत्ति का अंदाजा लगा पाना लगभग नामुमकिन है। शायद उस राज सिंहासन की कीमत खरबों में हो।

पल्लव साम्राज्य

ऐसा माना जाता है कि पल्लवों द्वारा स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के पूर्व वे सात वाहनों के राजा के सामान्य थे। पल्लवों का शासन बाद में कांची से भी प्रारंभ हुआ। उनका शासन क्षेत्र तमिल और तेलुगु था। पल्लव वंशी की राजधानी कांची जो कि इस समय तमिलनाडु में कांचीपुरम मानी जाती है वही थी।

साथ ही विष्णु गोप के बाद जिस पल्लव राजा का इतिहास ज्यादा देखने को मिलता है। उनका नाम है सिंह विष्णु। जिनका साम्राज्य 575 ईसा पूर्व से लेकर 600 ईसा पूर्व तक माना जाता है। सिंह विष्णु के बाद उनके पुत्र महेंद्रवर्मन प्रथम सम्राट बने। उनके काल में चालुक्यों से उनका संघर्ष होता गया। परंतु उनकी सेना ने कभी हार नहीं मानी। महेंद्रवरर्मन प्रथम के शासनकाल में एक बार चालुक्य सम्राट पुलककेशिन द्वितीय की सेना पल्लव राजधानी के एकदम करीब पहुंच गए।

परंतु सम्राट की सेना ने बहादुरी से मुकाबला किया और पुललूर के युद्ध में चालुक्यों को बुरी तरह पराजित कर दिया। इसी के साथ ही पल्लवों ने साम्राज्य के कुछ उत्तरी भागों को छोड़कर शेष भाग को वापस जीत लिया। कहते हैं चोल राज्य की उस समय धन संपत्ति सिर्फऔर सिर्फ पल्लव साम्राज्य की वजह से ही बढ़ी क्योंकि पल्लव साम्राज्य उस समय में बहुत ही समृद्ध माना जाता है। उनकी अमीरी का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि राजा के अलावा आम प्रजा भी सोने के सिक्कों के साथ आदानप्रदान करती थी।

विजयनगर साम्राज्य

राजा कृष्णदेव राय का जन्म 16 फरवरी 1471 ईस्वी को कर्नाटक के हम्पी में हुआ। उनके पिता का नाम तुलुवा नरसा नायक और माता का नाम नागला देवी था। उनके बड़े भाई का नाम वीर नरसिंह था। कृष्णदेव राय को आंध्र भोज की उपाधि प्राप्त थी। इसके अलावा उन्हें अभिनव भोज और आंध्र पितामह भी कहा जाता है।

कृष्णदेव राय एक अजय योद्धा थे। इस महान सम्राट का साम्राज्य अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक भारत के बड़े भूभाग में फैला हुआ था। जिसमें आज कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, गोवा और उड़ीसा प्रदेश शामिल है। महाराजा के राज्य की सीमाएं पूर्व में विशाखापट्टनम और पश्चिम में कोंकण साथ ही दक्षिण में भारतीय प्रायद्वीप के अंतिम छोर तक पहुंच गई थी।

धन संपत्ति के मामले में वह इतने अमीर थे कि आज उनकी संपत्ति लगभग खरबों से भी ज्यादा होती। आप यह मान सकते हैं कि दुनिया का सबसे अमीर आदमी जो इस समय में ईलॉन मस्क है वो उनसे भी 100 गुना ज्यादा अमीर थे।

जुड़िये हमारे व्हॉटशॉप अकाउंट से- https://chat.whatsapp.com/JbKoNr3Els3LmVtojDqzLN
जुड़िये हमारे फेसबुक पेज से – https://www.facebook.com/profile.php?id=61564246469108
जुड़िये हमारे ट्विटर अकाउंट से – https://x.com/Avantikatimes
जुड़िये हमारे यूट्यूब अकाउंट से – https://www.youtube.com/@bulletinnews4810

Post Comment

You May Have Missed