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क्या है बुद्ध धर्म का इतिहास

What Is Buddhism

-: What Is Buddhism :-

हमारी इस दुनिया में हजारों रिलायंस मौजूद हैं और उन्हीं में से एक है बुद्धिज्म यानि बौद्ध धर्म जो क्रिश्चयनिटी, इस्लाम और हिंदू धर्म के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म माना जाता है दरअसल बौद्ध धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है जो आज से करीब पचीस सौ साल पहले गौतम बुद्ध के द्वारा भारत में शुरू किया गया था और आज दुनिया की 7% से ज्यादा आबादी यानी करीब 54 करोड़ लोग इस धर्म को फॉलो करते हैं तो दुनिया में बौद्ध धर्म की शुरुआत आखिर किस तरह से हुई इस धर्म के सिद्धांतों और शिक्षाओं में क्या है और कैसे यह दुनिया के सबसे बड़े धर्मों में से एक बना यह सब कुछ आज हम जानेगे।

बौद्ध धर्म की शुरुआत करने वाले भगवान गौतम बुद्ध का जन्म आज से करीब पचीस सौ साल पहले सन 480 बिशि के आसपास लुंबिनी नाम की एक जगह पर इक्ष्वाकु वंश के राज घराने में हुआ था आज के समय में यह जगह नेपाल के अंदर मौजूद है गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन और मां का नाम महामाया था जो कोलिय वंश से ताल्लुक रखती थी जन्म के समय गौतम बुद्ध का नाम सिद्धार्थ गौतम था। जबकि बौद्ध उन्हें ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद दिया गया गौतम बौद्ध का शुरुआती जीवन बड़ी ऐशो-आराम मुजरा क्योंकि उनके पिता उनके ऊपर दुख और पीड़ाओं को नहीं देखना चाहते थे।

दरसल जन्म के समय गौतम बुद्ध के बारे में यह भविष्यवाणी की गई थी कि आगे चलकर अपने पिता की राजगद्दी पर राजपाट नहीं संभालेंगे बल्कि इसकी जगह वे लोगों को धर्म का मार्ग दिखाने का काम करेंगे और यह भविष्यवाणी सुनने के बाद राजा शुद्धोधन काफी चिंतित हो गए थे इसलिए उन्होंने यह फैसला लिया कि वे सिद्धार्थ को एक ऐसा जीवन देंगे जो पूरी तरह खुशियों से भरा होगा और संसार के दुख व पीड़ाएं उन्हें छू भी नहीं पाएंगे यही वजह थी कि गौतम बुद्ध ने अपना शुरुआती जीवन आलीशान महलों में रहकर बिताया जहां उनकी हर एक इच्छा पूरी की जाती थी।

यहां तक कि राजा शुद्धोदन ने सिद्धार्थ की सेवा में लगे बूढ़े बीमार व बदसूरत दिखने वाले नौकरों को महज से निकाल दिया था और उनकी जगह जवान बहुत सुंदर नौकर ही गौतम बुद्ध की सेवा में लगाए जाते थे उनकी सेवा में लगा कोई भी नौकर उनसे जीवन के दुखों के बारे में कभी कोई बात नहीं करता था जिसके चलते गौतम बुद्ध को कभी यह पता ही नहीं चल सका कि इंसान के जीवन में दुख जैसी कोई चीज भी होती है बल्कि उन्हें तो लगता था कि दुनिया में खुशियों के अलावा और कुछ नहीं होता यहां तक कि दोस्तों उनकी पसंद की एक सुंदर लड़की से उनकी शादी भी करवा दी गई थी।

लेकिन इतना सब कुछ होने के बावजूद भी गौतम बुद्ध को अपनी लाइफ से कभी संतुष्टि नहीं हुई उन्होंने अपने जिंदगी के 29 साल इसी तरह महल में रहकर ऐशो-आराम के साथ बीता है लेकिन 29 साल की उम्र में जब वह पहली बार अपने महल से बाहर निकले तो जिंदगी की हकीकत कि अगर वह पूरी तरह आराम रह गए दरअसल बाहर निकलकर उन्होंने पहली बार बूढ़े, बीमार, दुखी और मरे हुए व्यक्ति को देखा और जब उन्हें पता चला कि यह सारे दुख दुनिया के हर एक इंसान को झेलने पड़ते हैं तो उन्हें जिंदगी की असली सच्चाई का एहसास हुआ जिसे जानने के बाद वे खुद भी पूरी तरह दुखी हो गए।

इसी तरह एक बार जब वे अपने महल से बाहर घूमने के लिए निकले तो उन्होंने एक संन्यासी व्यक्ति को देखा जो उन्हें दुनिया के बाकी लोगों से कहीं ज्यादा खुश और समझदार लगा उसको देखते ही गौतम बुद्ध ने यह तय कर लिया कि वे अपना राजपाट और लग्जरियस लाइफ को त्याग कर अपना बाकी का जीवन उस मोंग की तरह ही बिताएंगे ताकि वह इंसान के जीवन से जुड़ी कठिनाइयों और दुखों का जवाब को सके इसके बाद उन्होंने अपनी जिंदगी के छह साल इसी खोज में एक संन्यासी रहकर बिताएं वे जंगलों में पेड़ पौधों की पत्तियां व फल खाकर गुजारा करते और अपना सारा समय ध्यान करते हुए बिता देते।

अक्सर वह मेडिटेशन करते हुए इस गहराई तक चले जाते कि उन्हें कई-कई दिन तक खाने-पीने का भी होश नहीं रहता है और इस कठोर तपस्या की वजह से ही उनका शरीर किसी कंकाल के जैसा नजर आने लगा था एक दिन वह पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर इसी तरह ध्यान कर रहे थे कि तभी उन्हें सच्चे ज्ञान का एहसास हुआ उन्हें समझ आ गया कि इंसान अगर अपनी इच्छाओं को खत्म कर दे तो उसे सभी तरह के कष्टों और दुखों से छुटकारा मिल जाएगा।

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उन्हें एहसास हुआ कि दुनिया में सब कुछ समय के साथ लगातार बदलता रहता है और इंसानों के पास उन चेंजेस को स्वीकार करने के अलावा और कोई भी रास्ता नहीं होता। यह विचार आते ही उनके मन से मौत का डर पूरी तरह समाप्त हो गया दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी और जिस अवस्था में थे उसे बौद्ध धर्म का अंतिम लक्ष्य यानि निर्माण माना जाता है जहां इंसान के अंदर से दुख पीड़ा और डर खत्म हो जाते हैं वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जिस पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था।

बाद में उस पेड़ को बोधिवृक्ष और उस जगह को बोधगया का नाम दिया गया साथी ज्ञान प्राप्त होने के बाद वे सिद्धार्थ गौतम की जगह गौतम बुद्ध कहलाए जाने लगे अब जो कि गौतमबुद्ध चाहते थे कि दुनिया के दूसरे लोग भी उनकी तरह निर्वाण प्राप्त करके अपने दुखों से मुक्ति पा लें इसलिए उन्होंने चार ऐसे नियम बनाए जिन्हें फॉलो करके दुनिया का कोई भी इंसान निर्माण प्राप्त कर सकता है इन नियमों को फॉर नोबल ट्रुथ जानी चार आर्य सत्य कहते हैं और इन्हीं चार नियमों पर पूरा बहुत धर्म आधारित है तो चलिए अब जानते हैं बहुत धर्म के इन चार नोबल ट्रुथ के बारे में।

दुख

इस आर्य सत्य में गौतम बुद्ध ने बताया है कि किस तरह यह दुनियां दुखों से भरी हुई है वे कहते हैं कि सुख का ना मिलना सुख को पाने का प्रयास करना और सुख मिल जाने के बाद उसको बरकरार ना रख पाना यह हर एक चीज दुख का कारण है यानी इंसान के लिए जन्म से लेकर मृत्यु पूरा दुख ही दुख है और यह दुख मृत्यु के बाद भी खत्म नहीं होता क्योंकि पुनर्जन्म के जरिए दुख की यह साइकिल अनंतकाल तक चलती रहती है।

दुख समुदाय

इस दूसरे आर्य सत्य में गौतम बुद्ध ने इंसान के जीवन मै दुःख होने के अलग-अलग कारणों के बारे में बताया है यहां उन्होंने कर्म, इच्छा और मोहक को इंसान के दुखों का प्रमुख कारण माना है।

दुख निरोध

इस तीसरे आर्य सत्य में गौतम बुद्ध ने बताया है कि इंसान के दुखों का अंत संभव है क्योंकि दुनिया में मिलने वाले दुखों का कारण इंसान खुद ही होता है इसलिए इंसान अगर चाहे तो वह भी गौतम बुद्ध की तरफ अपने इन दुखो को हमेशा के लिए खत्म कर सकता है।

दुख निरोध मार्ग

गौतम बुद्ध ने इस चौथे और आखिरी आर्य सत्य में एक ऐसी रास्ते को बताया है जिस पर चलकर कोई भी व्यक्ति अपने दुखों से हमेशा के लिए छुटकारा पा सकता है उनके द्वारा बताए गए इस रास्ते को द नोबल एटफोल्ड पथ या कहें अष्टांगिक मार्ग का नाम दिया गया है इस मार्ग में आठ अलग-अलग सीढ़ियां है जिन पर चलकर दुखों से मुक्ति प्राप्ति की जा सकती है और यह अष्टांगिक मार्ग कुछ इस प्रकार है।

गौतम बुद्ध कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति सही ढंग से उनके बताए इस अष्टांगिक मार्ग पर चले तो वह भी उन्हीं की तरह अपने सभी दुखों से हमेशा के लिए निजात पा सकता है बौद्ध धर्म में इन चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग के अलावा और भी कई बुनियादी अवस्थाएं हैं जिनका इस धर्म में काफी ज्यादा महत्व है गौतम बुद्ध निर्माण हासिल करने के बाद 45 साल तक जीवित रहे थे और यह 45 साल उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में इधर-उधर घूमकर अपनी शिक्षा में दिए समय के साथ धीरे-धीरे लोग उनके फॉलोवर्स बनते गए और इस तरह दुनिया में बौद्ध धर्म की शुरुआत हो गई।

सन् चार सौ बीसी में जब गौतम बुद्ध का देहांत हो गया तो उनके फ्लॉवर्स ने बौद्ध धर्म को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते यह धर्म पूरे एशिया में फैल गया खासतौर से ईस्ट और साउथ ईस्ट एशिया के अंदर बोधिधर्म ने अपनी सबसे मजबूत पकड़ बनाई है बौद्ध धर्म एक ऐसा धर्म है जिसे अलग-अलग लोग अपनी अलग-अलग परिस्थितियों के अनुसार अपने खुद के हिसाब से फॉलो कर सकते हैं यही वजह है कि आज दुनिया में हमें अलग-अलग जगहों पर कई अलग-अलग तरह के बौद्ध धर्म देखने को मिलते हैं।

लेकिन उन सभी को इस धर्म की दो मुख्य शाखाएं थेरवाद और महायान में बाटा जाता है थेरवाद बौद्ध धर्म की सबसे पुरानी शाखा है जिसमें पाली भाषा में लिखे हुए प्राचीन धार्मिक ग्रंथों का पालन होता है इस बोध धर्म के फ्लावर्स महात्मा बुद्ध को देवता नहीं बल्कि एक महापुरुष मानते हैं यहां तक कि इनके धार्मिक समारोह में बहुत पूजा भी नहीं होती है। थेरवाद मुख्य रूप से श्री लंका, बर्मा, कंबोडिया, वियतनाम और लाओस जैसे देशों में फॉलो किया जाता है।

वहीं महायान बौद्ध धर्म की अगर बात करें तो इसके फ्लॉवर्स मानते हैं कि दुनिया के ज्यादातर लोगों के लिए निर्माण मार्ग को अकेली प्राप्त करना संभव नहीं है और उन्हें इस कार्य में सहायता की जरूरत होती है महायान शाखा में प्रेरणा और सहायता के लिए बोधि सत्वों को माना जाता है और बोधिसत्व वे लोग होते हैं जो निर्माण पा चुके होते हैं।

बौद्ध धर्म की यह शाखा मुख्य रूप से चीन, जापान, कोरिया, ताइवान, तिब्बत, भूटान, मंगोलिया और सिंगापुर आदि देशों में देखने को मिलती है तिब्बती बौद्ध धर्म में गुरु का बहुत महत्व होता है जहां उन्हें लामा कहकर बुलाते हैं और दलाई लामा का नाम आपने सुना नियमों का जो कि तिब्बती बौद्ध धर्म के लीडर है।

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