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कम पानी में खेती: ड्रिप इरिगेशन और अन्य उपाय

Water Conservation and Farming

-: Water Conservation and Farming :-

जल संरक्षण और खेती एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए विषय हैं। जल की उपलब्धता खेती की सफलता के लिए अत्यंत आवश्यक है, और जल संरक्षण के बिना कृषि की दीर्घकालिक स्थिरता संभव नहीं है।

ड्रिप इरिगेशन

ड्रिप इरिगेशन (Drip Irrigation) एक आधुनिक सिंचाई प्रणाली है, जिसमें पानी को पाइप और ड्रिपर्स के माध्यम से पौधों की जड़ों तक धीरे-धीरे पहुँचाया जाता है। यह तरीका जल संरक्षण और उच्च फसल उत्पादन के लिए बहुत प्रभावी है।

यहाँ एक संक्षिप्त और उपयोगी लेख दिया गया है:

ड्रिप इरिगेशन: कम पानी में अधिक उपज का मंत्र

ड्रिप इरिगेशन प्रणाली को सूक्ष्म सिंचाई (Micro Irrigation) का हिस्सा माना जाता है। इसमें पानी को पाइप, ट्यूब और नोज़ल्स के ज़रिए सीधे पौधे की जड़ तक पहुँचाया जाता है। इससे पानी की बचत होती है और पौधे को ज़रूरत के अनुसार ही नमी मिलती है।

ड्रिप इरिगेशन के प्रमुख लाभ:

  1. पानी की 30-70% तक बचत होती है पारंपरिक सिंचाई की तुलना में।

  2. खाद और पोषक तत्वों को भी ड्रिप के साथ मिलाकर दिया जा सकता है (Fertigation)।

  3. खरपतवार की समस्या कम होती है क्योंकि पानी केवल पौधे तक ही जाता है।

  4. उपज में वृद्धि होती है क्योंकि पौधों को नियमित नमी मिलती है।

  5. हर प्रकार की मिट्टी के लिए उपयुक्त, विशेषकर रेतयुक्त भूमि।

ड्रिप इरिगेशन कैसे काम करता है?

  • एक मुख्य टंकी या जलस्रोत से पानी पाइपलाइन के माध्यम से खेत में जाता है।

  • छोटे-छोटे ड्रिपर्स या नोज़ल से पानी बूंद-बूंद करके पौधों की जड़ों तक पहुँचता है।

  • एक टाइमर या वॉल्व से पानी की मात्रा और समय को नियंत्रित किया जा सकता है।

सरकारी सहायता और योजनाएँ:

भारत सरकार की “प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना” के अंतर्गत ड्रिप इरिगेशन लगाने पर किसानों को सब्सिडी मिलती है। राज्य सरकारें भी अलग-अलग योजनाओं के तहत सहायता देती हैं।

निष्कर्ष:

ड्रिप इरिगेशन एक आधुनिक, वैज्ञानिक और पर्यावरण-सम्मत तरीका है जो हर किसान को अपनाना चाहिए। यह केवल जल ही नहीं बचाता, बल्कि खेती को लाभकारी और टिकाऊ भी बनाता है।

जल संरक्षण और खेती

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ अधिकांश जनसंख्या की आजीविका खेती पर निर्भर करती है। परंतु बढ़ती जनसंख्या, अनियमित मानसून और भूमिगत जलस्तर में गिरावट ने खेती को संकट में डाल दिया है। ऐसे में जल संरक्षण की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है।

जल संरक्षण के उपायों में शामिल हैं:

खेती में जल संरक्षण के लाभ:

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जल संरक्षण केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि आज की आवश्यकता है। यदि हम जल की एक-एक बूंद को बचाने का प्रयास करें, तो न केवल खेती, बल्कि पूरे पर्यावरण को संजीवनी मिल सकती है।

सरकारी योजनाएँ और सामूहिक प्रयास

भारत सरकार और राज्य सरकारें जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ चला रही हैं, जैसे:

किसानों की भूमिका और जागरूकता

जल संरक्षण तभी सफल हो सकता है जब किसान जागरूक होकर आधुनिक तकनीकों को अपनाएँ, जैसे:

सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता

जल संरक्षण केवल व्यक्तिगत प्रयास नहीं है, यह सामूहिक जिम्मेदारी है। यदि ग्राम स्तर पर सभी किसान मिलकर तालाब बनाएं, नहरों की मरम्मत करें या वर्षा जल संग्रहण करें, तो एक बड़ा बदलाव संभव है।

निष्कर्ष:
खेती और जल का संबंध अटूट है। यदि हम आज जल को संजो कर रखें, तभी आने वाली पीढ़ियाँ खुशहाल रह पाएँगी। “एक बूंद जल, लाखों जीवन” — इस मंत्र को अपनाकर हम एक हरित और समृद्ध भारत की नींव रख सकते हैं।

प्रेरणादायक उदाहरण और सफलता की कहानियाँ

  1. राजस्थान का अजमेर ज़िला: यहाँ के कई गाँवों में स्थानीय समुदाय ने परंपरागत जौहर और तालाबों का पुनर्निर्माण कर जल संकट को मात दी है। इससे न केवल खेती में सुधार हुआ बल्कि पशुपालन और पेयजल की समस्या भी हल हुई।

  2. महाराष्ट्र का हिवरे बाज़ार गाँव: यह गाँव जल संरक्षण के लिए देशभर में मिसाल बन गया है। यहाँ के किसानों ने वर्षा जल संचयन, टपक सिंचाई और सामूहिक प्रयासों से सूखा प्रभावित क्षेत्र को हरित क्षेत्र में बदल दिया।

  3. पंजाब और हरियाणा: परंपरागत धान की खेती से हटकर अब किसान जल बचाने के लिए डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस (DSR) तकनीक अपनाने लगे हैं, जिससे भूजल दोहन में भारी कमी आई है।

जनता के लिए संदेश

समापन विचार

जल संकट आने वाले समय में खाद्य संकट में बदल सकता है। इसलिए यह समय है सोचने का नहीं, करने का। जल संरक्षण से न केवल खेती बचेगी, बल्कि हमारी सभ्यता और संस्कृति भी सुरक्षित रहेगी।

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