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इतिहास के अजीबो-गरीब फैशन ट्रेंड्स

Unusual fashion trends in history

-: Unusual fashion trends in history :-

 फैशन का मतलब सिर्फ स्टाइल नहीं होता बल्कि यह किसी भी समय के समाज संस्कृति और सोच को दर्शाता है लेकिन अगर हम इतिहास में झांके तो हमें ऐसे कई फैशन ट्रेंड्स मिलेंगे जो आज के समय में हमें अजीब असुविधा जनक और कभी-कभी खतरनाक भी लग सकते हैं आज हम आपको बताएंगे इतिहास के 10 सबसे अजीब फैशन ट्रेंड्स के बारे में जिनके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

चोपिन

चोपिन एक का के ऊंचे प्लेटफार्म सैंडल थे जो मुख्य रूप से 16वीं और 17वीं शताब्दी में यूरोप खासकर इटली और स्पेन में फैशन ट्रेंड का हिस्सा थे यह ना केवल महिलाओं की ऊंचाई बढ़ाने बल्कि उनके सामाजिक दर्जे को भी दर्शाने के लिए पहने जाते थे चोपिन का सबसे पहले उपयोग स्पेन में हुआ लेकिन यह इटली खासकर वेनिस में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो गए यह प्राचीन यूनान और रोमन सभ्यताओं के कठोर तलवे वाले सैंडल से प्रेरित थे।

इनका उपयोग मुख्य रूप से शाही और अमीर वर्ग की महिलाओं द्वारा किया जाता था चॉप इंज लकड़ी या कॉर्क से बनाए जाते थे और इनकी ऊंचाई 5 से 20 इंच तक होती थी कुछ मामलों में यह 30 इंच तक भी ऊंचे होते थे ऊंचे चोपिन को पहनने वाली महिलाओं को सर्वेंट्स या वॉकिंग स्टिक्स की मदद लेनी पड़ती थी इन जूतों को कीमती सिल्क, मखमल और कढ़ाई से सजाया जाता था जिससे इनका शाही रूप बना रहे अब सवाल यह उठता है कि महिलाएं इतनी ऊंची सैंडल्स को क्यों पहनती थी।

दरअसल अमीर महिलाएं अपनी ऊंचाई बढ़ाने और अपने आप को अधिक प्रभावशाली दिखाने के लिए इन्हें पहनती थी गंदी सड़कों से अपने कपड़ों को बचाने के लिए और सामाजिक प्रतिष्ठा दिखाने के लिए ऊंची ऊंची चोपिन को पहना जाता था जितनी ऊंचाई उतनी ही अधिक प्रतिष्ठा शादी के समय दुल्हन विशेष रूप से ऊंचे चॉप इंस पहनती थी जिससे वे अधिक आकर्षक लगे।

17वीं शताब्दी के अंत तक फ्रांस और इंग्लैंड में अधिक आरामदायक और  स्टाइलिश हील्स का ट्रेंड शुरू हुआ चोपिन को अनकंफर्ट बल और खतरनाक माना जाने लगा क्योंकि इसमें ऊंचाई के कारण गिरने की संभावना बढ़ गई थी धीरे-धीरे य फैशन हाई हील्स में बदल गया जो आज के मॉडर्न फुटवेयर का आधार बना चोपिन को आज म्यूजियम्स में ऐतिहासिक जूतों के रूप में दिखाया जाता है जो प्राचीन यूरोपीय फैशन का प्रतीक थे

ब्लैक एंड टीथ

जापान में आठवीं से 19वीं सदी तक महिलाओं के लिए काले दांत रखना सुंदरता और ऊंचे वर्ग का प्रतीक माना जाता था शादीशुदा महिलाओं और रईस लोगों के लिए अपने दांतों को लोहे और सिरके के मिश्रण से काला करना जरूरी था यह इतना लोकप्रिय था कि इसे कानूनी रूप से भी मान्यता मिली हुई थी सोचिए अगर आज कोई ऐसे काले दांत लेकर घूमे तो लोग उसे देखकर क्या कहेंगे।

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क्रैको शूज

14वीं सदी के यूरोप में अगर आपके जूते की नोक लंबी नहीं थी तो आप अमीर नहीं माने जाते थे क्रैको शूज की नोक इतनी लंबी होती थी कि कई बार इन्हें रस्सी से घुटनों से बांधना पड़ता था ताकि लोग इन्हें पहनकर आराम से चल सके इस अजीब फैशन की मजेदार बात यह थी कि व्यक्ति जितना अमीर होता था उसके जूते की नोक उतनी ही लंबी होती थी सोचिए अगर आज के जमाने में कोई ऐसे जूते पहनकर सड़क पर निकले तो लोग क्या सोचेंगे शायद व इंसान मजाक का पात्र ही बनकर रह जाएगा।

पाउडर्ड विग

18वीं सदी के यूरोप में बालों को स्टाइल करना एक कला थी लेकिन यह कला अजीब भी थी अमीर पुरुष और महिलाएं बड़े बड़े पाउडर्ड विग पहनते थे जिन्हें सफेद रंग देने के लिए खास तरह का पाउडर लगाया जाता था यह पाउडर इतना जहरीला था कि इससे त्वचा रोग और बाल झड़ने की समस्या होने लगती थी।

लेकिन यह तो सिर्फ शुरुआत थी यह विग्स इतने विशाल और भारी होते थे कि उनमें जुएं और चूहे तक अपना घर बना लेते थे कई बार तो महिलाएं सोते समय अचानक अपने विग में मरा हुआ चूहा पाकर डर जाती थी जरा सोचिए अगर आज के जमाने में ऐसा कोई करे तो कैसा लगेगा।

हॉबल स्कर्ट

1910 के दशक में फैशन डिजाइनर्स ने एक नया ट्रेंड शुरू किया हॉबल स्कर्ट यह स्कर्ट इतनी ज्यादा टाइट होती थी कि महिलाएं ठीक से चल भी नहीं पाती थी उन्हें छोटे-छोटे कदम रखने पड़ते थे जिससे उनकी चाल धीमी और शालीन लगे लेकिन दिक्कत तब हुई जब महिलाएं इस स्कर्ट को पहनकर गिरने लगी और कई बार उन्हें गंभीर चोटें भी आई तब जाकर यह अजीब ट्रेंड खत्म हुआ।

आर्सेनिक ड्रेसेस

अगर आप सोचते हैं कि फैशन के लिए सिर्फ लोग आराम से समझौता करते थे तो आपको यह जानकर हैरानी हो होगी कि 19वीं सदी में महिलाएं आर्सेनिक डाइड हरी ड्रेसेस पहनती थी जो धीरे-धीरे जहरीली गैस छोड़ती थी इस फैशन ने कई महिलाओं को बीमार कर दिया और कुछ मामलों में उनकी मौत भी हो गई बावजूद इसके यह ट्रेंड चलता रहा क्योंकि इस हरे रंग की चमक को खूबसूरती का प्रतीक माना जाता था आज शायद ही कोई ऐसे कपड़े पहनना चाहेगा जो उन्हें धीरे-धीरे मौत की ओर ले जाती हो

गीगान्टिक विंग्स 

18वीं स की यूरोपियन महिलाएं अपने विग्स के फैशन को एक नए स्तर पर ले गई उन्होंने इनमें छोटे-छोटे जहाजों, फूलों और पक्षियों तक को सजाना शुरू कर दिया यह विग्स इतने बड़े होते थे कि कभी-कभी इन्हें पहनकर दरवाजे में से निकलना भी मुश्किल हो जाता।

कोडपीसेज

16वीं सदी में पुरुषों के लिए कोड पीस पहनना फैशन बन गया था यह एक चमड़े का अजीब टुकड़ा था जिसे पेंट के सामने लगाया जाता था और इसे जितना बड़ा बनाया जाता था उतना ही ज्यादा स्टाइलिश माना जाता था आज के समय में तो लोग इसे देखकर हंस ही पड़ेंगे लेकिन उस समय यह ताकत और मर्दानगी का प्रतीक माना जाता था यह फैशन यूरोप में 1540 के दशक में आकार और सजावट के मामले में अपने चर्म पर पहुंच गया था लेकिन 1590 के दशक तक इसका उपयोग बंद हो गया।

रफ्स

16वीं सदी के अमीर लोग अपने कपड़ों में बड़े-बड़े कॉलर्स पहनते थे जो देखने में शानदार लगते थे लेकिन इतने भारी होते थे कि गर्दन हि ला पाना भी मुश्किल हो जाता था रफ्स एक यूरोपीय फैशन स्टाइल था जो 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान लोकप्रिय था यह एक बड़ा और फुलाव दार कॉलर था जिसे पुरुष और महिलाएं दोनों पहनते थे।

इसका उदय यूरोप के पुनर्जागरण काल में हुआ और यह मुख्य रूप से स्पेन, इंग्लैंड, फ्रांस और नीदरलैंड्स में फैला 16वीं सदी की शुरुआत में साधारण छोटे कॉलर से विकसित होकर यह बड़ा और अधिक सजावटी हो गया अगर बात करें इसकी लोकप्रियता की तो एलिजाबेथ एरा में इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम और अन्य रईस वर्ग ने इसे एक प्रतिष्ठा और फैशन के प्रतीक के रूप में अपनाया।

इसे स्टार्च किए हुए लेनन से बनाया जाता था और इसे आकार देने के लिए विशेष आयरन का उपयोग किया जाता था आगे चलकर 17वीं शताब्दी में इसकी लोकप्रियता कम होने लगी जब अधिक सुविधाजनक और आरामदायक कॉलर और क्रेविट फैशन में आ गए रफ्स को शाही वर्ग चर्च के उच्च पदाधिकारी और धनवान लोग पहनते थे जिससे यह धन और चक्ति का प्रतीक बन गया था हालांकि आज के फैशन में नहीं है लेकिन ऐतिहासिक नाटकों और फिल्मों में इसे देखा जा सकता है।

लेड मेकअप

प्राचीन काल से ही लोग सुंदरता बढ़ाने के लिए मेकअप का उपयोग करते आए हैं लेकिन कई बार यह उत्पाद खतरनाक भी साबित हुए हैं लेड यानी शीशे का उपयोग मेकअप में हजारों वर्षों तक किया गया लेकिन बाद में इसके घातक प्रभावों का पता चला मिस्र वासियों ने 4000 ईसा पूर्व से ही शीश युक्त मेकअप का उपयोग किया था।

आंखों के चारों ओर कोल लगाया जाता था जिसमें शीशे के यौगिक होते थे इसे ना केवल सौंदर्य बढ़ाने बल्कि बुरी नजर से बचाने और सूरज की किरणों से सुरक्षा के लिए भी प्रयोग किया जाता था वहीं ग्रीक और रोमन महिलाओं ने गोरी त्वचा पाने के लिए सफेद लेड के पाउडर का इस्तेमाल किया इसे सेर यूसा कहा जाता था और इसे धन और ऊंचे दर्जे का प्रतीक माना जाता था।

हालांकि इस मेकअप का लगातार उपयोग त्वचा को नुकसान पहुंचाता था जिससे झुर्रियां बाल झड़ना और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं होती थी 16वीं शताब्दी में एलीसा बेथ प्रथम सहित कई रईस महिलाएं वेनेशियन सेरिसा नामक एक शीसा आधारित मेकअप का उपयोग करती थी जिससे चेहरा सफेद और चिकना दिखता था इसे लगाने से त्वचा धीरे-धीरे खराब हो जाती थी लेकिन सुंदरता की होड़ में लोग इसे अनदेखा करते रहे।

18वीं से 19वीं शताब्दी में इस फैशन में गिरावट आती गई वैज्ञानिकों ने महसूस किया कि शीसा त्वचा और आंतरिक अंगों को नुकसान पहुंचाता है जिससे लड पॉइजनिंग हो सकती है 19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में लेड बेस्ड मेकअप का उपयोग कम होने लगा शीसा युक्त मेकअप इतिहास के सबसे घातक सौंदर्य प्रथाओं में से एक था।

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