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-: Taj Mahal History :-
क्या आप जानते हैं कि दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल सिर्फ एक मकबरा नहीं बल्कि रहस्यों और कहानियों का खजाना है शाहजहां और मुमताज की अमर प्रेम कहानी के इस प्रतीक में छिपी हैं ऐसी दास्ताने जो आपको रोमांचित कर देंगी कैसे हजारों कारीगरों ने इसे अपनी मेहनत और बेमिसाल कला से बनाया क्या सच में यमुना नदी के उस पार कला ताजमहल बनाने की योजना थी ताजमहल को बनाने में कौन-कौन कीमती पत्थरों का उपयोग किया गया और इन्हें कहां से लाया गया और वह कौन सी तकनीक थी जिससे यह सदियों तक चमकदार बना रहा।
ताजमहल के निर्माण की गहराइयों में इसके छिपे हुए रहस्यों की परतें खोलेंगे और जानेंगे इसकी अद्वितीय वास्तुकला बेमिसाल कारीगरी और उन मिथकों के बारे में जो इसे और भी रहस्यमय बनाते हैं तो तैयार हो जाइए क्योंकि हम आपको दिखाने वाले हैं इतिहास के इस चमत्कार का हर पहलू जो इसे बनाता है दुनिया के सात अजूबों में से एक अजूबा साल 1607 में मुगल शहजादे खुर्रम का रिश्ता अर्ज मंद बानों से तय हुआ। 5 साल बाद 1612 में दोनों का निकाह हुआ और र्रम ने अपने प्यार को एक नया नाम दिया।
मुमताज महल यानी महल की मणि या महल का गहना यही शहजादा खुर्रम आगे चलकर शाहजहां के नाम से प्रसिद्ध हुए और अर्ज मं बानो मुमताज महल के नाम से जानी गई अर्जो मंद उनके जीवन का वह हिस्सा बनी जिनसे उनकी मोहब्बत अमर हो गई। हालांकि शाहजहां ने दो और शादियां की अकबराबादी महल और कंधारी महल से पर इतिहासकार बताते हैं कि उनके दिल में मुमताज के लिए वह प्यार और लगाव था।
जो किसी और के लिए नहीं था लेकिन मोहब्बत की दास्तान सिर्फ खुशी की नहीं थी 1631 में जब मुमताज अपनी 14वीं संतान को जन्म देते हुए बुरहानपुर में चल बसी तो शाहजहां पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा कहते हैं कि उनकी दाढ़ी जिसमें बस कुछ ही सफेद बाल थे अचानक सफेद हो गई थी।
उनकी आंखें रोते-रोते कमजोर हो गई और उन्हें चश्मे की जरूरत पड़ने लगी उनका गम इतना गहरा था कि वह खुद को दरबार से दूर कर लेना चाहते थे वे सन्यासी बनकर बाकी की जिंदगी बिताने का विचार करने लगे उस गमगीन हालत में उन्होंने संगीत जेवरात रेशमी कपड़े और खुशबुओं से भी किनारा कर लिया और दो साल तक सामान्य जिंदगी जीना छोड़ दिया।
यहां तक कि उनके रिश्तेदारों ने भी उन्हें समझाने की कोशिश की कि अगर वह इस गम में खुद को यूं ही खोते रहे तो शायद मुमताज को भी स्वर्ग का सुख छोड़कर धरती पर लौटना पड़ेगा शाहजहां की बेटी जहां अरा बेगम धीरे-धीरे उन्हें इस दुख से बाहर लेकर आई और दरबार के कार्यों में उनकी सहायता करने लगी।
लेकिन शाहजहां का प्यार अधूरा नहीं रहा मुमताज की यादों को हमेशा के लिए अमर करने का फैसला उन्होंने उसी वक्त कर लिया था बुरहानपुर में उनकी अस्थाई कब्र के बाद शाहजहां ने वह ख्वाब देखना शुरू किया जो ताजमहल की शक्ल में साकार हुआ कई लोग सोचते हैं कि ताजमहल बस एक गुंबद वाली इमारत है लेकिन असल में यह एक विशाल परिसर है जो लगभग 555 एकड़ इलाके में फैला हुआ है इसमें केवल संगमरमर का मकबरा ही नहीं बल्कि अन्य मकबरे जल संरचनाएं दक्षिण की और ताजगंज का छोटा सा कस्बा और यमुना नदी के उत्तर में चांदनी बाग या महताब बाग भी शामिल है।
आधुनिक विश्व के इस अजूबे का निर्माण 1632 ईसवी में आगरा के यमुना नदी के किनारे शुरू हुआ और लगभग 1648 ईसवी तक यह बनकर पूरा हो गया था ताजमहल मुख्य रूप से हुमायूं के मकबरे से प्रेरित है हुमायूं का मकबरा जो 1562 में बनाया गया था मुगलों की स्थापत्य कला का पहला प्रमुख उदाहरण था जिसमें एक चबूतरे पर केंद्रीय गुंबद सिमिट्रिकल डिजाइन और चार बाग यानी स्वर्ग के चार बागों की योजना शामिल थी शाहजहा ने हुमायूं के मकबरे से प्रेरणा लेकर ताजमहल को और भी भव्य रूप में ढाला जिसमें भारतीय और फारसी वास्तुकला का संगम देखा जा सकता है।
ताजमहल के निर्माण में सिमेट्री और ज्योमेटिक प्लानिंग का खास खास महत्व था शाहजहां के समय की मुगल कला में इनका इस्तेमाल बहुत ही बारीकी से किया गया है जिससे हर चीज में एक तरह का संतुलन दिखाई देता है अब बात करते हैं ताजमहल के निर्माण और उसमें की गई कलाकारी की ताजमहल जिस भूमि पर बना है वह आगरा के किले बंद शहर के दक्षिण में स्थित है यह भूमि राजा जयसिंह प्रथम ने शाहजहां को दी थी जिसके बदले में उन्हें आगरा के केंद्र में एक बड़ा महल दिया गया ताज महल के निर्माण की प्लानिंग 1631 में की गई थी और 1632 में इसका निर्माण शुरू हो गया था।
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लगभग 1.2 हेक्टेयर यानी ती एकड़ इलाके की खुदाई की गई इसे मिट्टी से भरा गया ताकि पानी का रिसाव कम किया जा सके और इसे नदी के किनारे के स्तर से 50 मीटर यानी 160 फीट ऊंचा करके समतल किया गया मकबरे के क्षेत्र में नीव बनाने के लिए बड़े-बड़े गड्ढे खोदे गए और उनमें चूना और पत्थरों को भरा गया चे प्लेटफार्म को ईटों और गारी से बनाया गया मकबरे की मुख्य इमारत और प्रमुख समाधि कक्ष के अंदरूनी हिस्से को सफेद संगमरमर से सजाया गया है अन्य आंतरिक सतहों और सहायक भवनों को लाल बलुवा पत्थर से बनाया गया जिसमें सुरक्षा के लिए एक लाल परत चढ़ाई गई थी।
सफेद संगमरमर राजस्थान के मकराना से लाया गया जबकि लाल बलुआ पत्थर उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी से मंगाया गया सजावट के लिए उपयोग किए गए प्रेशियस और सेमी प्रेशियस पत्थरों को दुनिया भर से मंगाया गया था जिनमें चीन से जेड और क्रिस्टल तिब्बत से फिरोजा अफगानिस्तान से लेपिस लजूली श्रीलंका से नीलम और अरब से कार्नेलियन मंगाए गए थे कुल मिलाकर सफेद संगमरमर में 28 प्रकार के प्रेशियस और सेमी प्रेशियस पत्थरों को जड़ा गया था इस अद्भुत मकबरे के निर्माण में 200 हज से अधिक कारीगर मजदूर चित्रकार और अन्य लोग शामिल थे।
बुखारा से मूर्तिकार सी और फारस से कैलीग्राफर दक्षिण भारत से डिजाइनर्स बलूचिस्तान से पत्थर काटने वाले कारीगर और इटालियन कारीगर भी इसमें शामिल थे निर्माण कार्य के लिए एक विशाल ईंट का मचान बनाया गया था क्योंकि लकड़ी का मचान इसके लिए काफी नहीं था इसके अलावा 15 किलोमीटर लंबा मिट्टी का एक रैंप तैयार किया गया जिस पर संगमरमर और अन्य सामग्रियों को बैलों और हाथियों द्वारा खींची गई गाड़ियों से लाया गया था कहा जाता है कि ताज महल के निर्माण में लगभग 1000 हाथियों का उपयोग किया गया था।
एक जटिल पुली प्रणाली का उपयोग करके पत्थरों को ऊंचाई तक पहुंचाया जाता था पानी को नदी से जानवरों द्वारा चलाए जाने वाले उपकरणों से खींचा जाता था जब यह संरचना आंशिक रूप से तैयार हो गई तो शाहजहां ने 6 फरवरी 1643 को मुमताज महल की मृत्यु की 12वीं वर्षगांठ पर मकबरे में पहली प्रार्थना की मकबरे का निर्माण 1648 में समाप्त हुआ लेकिन इस प्रोजेक्ट के अन्य पर काम अगले पाच वर्षों तक जारी रहा
ताज महल से जुड़े मिथक
सहजहा ने यमुना नदी के पार एक काले ताज महल बनाने की योजना बनाई थी इस विचार का आधार यूरोपियन यात्री और रत्न व्यापारी जॉन बेपिस ट्रेनियर के लेखों से मिलता है जिन्होंने 1665 में आगरा का दौरा किया था यमुना के उस पार मेहताप बाग में मिले काले पत्थरों के अवशेषों को इस सिद्धांत का प्रमाण माना गया लेकिन 1990 के दशक में हुई खुदाई से पता चला कि वे पत्थर वास्तव में सफेद संगमरमर थे जो काले हो गए थे।
2006 में आर्कियोलॉजिस्ट ने महताब बाग के एक जलाशय को पुनर निर्मित किया और पाया कि सफेद मकबरे का गहरा प्रतिबिंब पानी दिखाई देता है यह शाहजहां की सिमेट्री के प्रति दीवानगी को दर्शाता है और यह सिद्धांत अधिक विश्वसनीय माना जाता है शायद ताजमहल का यही काला प्रतिबिंब काले ताजमहल के पीछे की सच्चाई हो एक और मिथक यह है कि शाहजहां ने ताजमहल से जुड़े कारीगरों और वास्तुकार को क्रूर सजा दी थी।
जैसे कि उनकी हत्या या उनके हाथ कटवा दिए थे, हालांकि इन दावों का कोई प्रमाण नहीं है कुछ कहानियां कहती हैं कि कारीगरों ने कांट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए थे कि वे कभी भी ऐसा डिजाइन फिर नहीं बनाएंगे लेकिन इसका भी कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता शायद ताजमहल के कारीगरों का कांट्रैक्ट पर साइन करना ही उनके हाथ काटने की ओर सांकेतिक रूप से इशारा करता हो।
आर्किटेक्ट्स और कारीगरों का योगदान
ताजमहल से जुड़े इतिहास में दो आर्किटेक्ट्स के नाम विशेष रूप से सामने आते हैं पहले उस्ताद अहमद लाहौरी यह वही वास्तुकार थे जिन्होंने दिल्ली के लाल किले की नीव रखी थी दूसरे मीर अब्दुल करीम यह सम्राट जहांगीर के प्रिय वास्तुकार थे और ताज महल के निर्माण के सुपरवाइजर के रूप में इन्हें नियुक्त किया गया था इसके साथ ही मकर मत खान का नाम भी निर्माण कार्य की निगरानी करने वालों में लिया गया है यह टीम शाहजहां के निर्देशन में ताजमहल के अद्वितीय डिजाइन को साकार करने में जुटी थी
कैलीग्राफी और सजावट
ताजमहल परिसर में कुरान की आयतों का उपयोग सजावटी तत्त्वों के रूप में किया गया है हालिया शोध से पता चला है कि यह आयतें एक फारसी कैलीग्राफर अब्दुल हक द्वारा चुनी गई थी जो 1609 में ईरान के शिराज से भारत आए थे।
उनकी शानदार कला के लिए शाहजहां ने उन्हें अमानत खान की उपाधि दी इस बात की पुष्टि गुंबद के अंदर कुरान की आयतों के पास की एक शिलालेख से होती है जिसमें लिखा है अमानत खान शिराजी द्वारा लिखा गया मुख्य द्वार पर लिखी हुई आयत में लिखा है ‘हे आत्मा तू शांत है अपने प्रभु के पास लौट उसके साथ शांति में और वह तेरे साथ शांति में’ कैलीग्राफी का अधिकांश हिस्सा तुलतूली स्क्रिप्ट मै है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि ऊंचाई वाले पैनलों पर स्क्रिप्ट को थोड़ा बड़ा बनाया गया है ताकि वे नीचे से देखने पर सही दिखें मकबरे के मार्बल सेन टाफ पर की गई कैलीग्राफी बेहद बारीक और नाजुक है परिसर के विभिन्न हिस्सों में एब्स्ट्रेक्ट डिजाइनों का उपयोग किया गया है विशेषकर चबूतरे मीनारों मुख्य द्वार मस्जिद जवाब और मकबरे की सतह पर ताजमहल कॉम्प्लेक्शन इसका सिमिट्रिकल सफेद संगमरमर का मकबरा है।
इसका डिजाइन चारों दिशाओं में लगभग नियर परफेक्ट सिमेट्री को दर्शाता है इस मकबरे में कुल चार मंजिलें हैं निचली बेसमेंट मंजिल जहां शाहजहां और मुमताज की असली कबे हैं प्रवेश मंजिल जिसमें नीचे की असली कब्रों समान ही सेनटा फ है इसके अलावा एक गोलाकार गलियारा और छत मौजूद है ताजमहल के ऊपर बना संगमरमर का गुंबद इसकी सबसे अद्भुत विशेषता है इसकी ऊंचाई लगभग 35 मीटर है इसकी ऊंचाई और भी अधिक प्रभावशाली लगती है क्योंकि यह लगभग 7 मीटर ऊंचे एक सिलेंडर कल ड्रम पर बना हुआ है।
अपनी विशेष आकृति के कारण इस गुंबद को अनियन डोम या अमरूद डोम भी कहा जाता है ताजमहल के चबूतरे के चारों कोनों पर पर चार ऊंची मीनारें स्थित हैं जिनकी ऊंचाई 40 मीटर से अधिक है मीनारों को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वे हल्के झुकाव के साथ चबूतरे के बाहर की ओर बनाई गई हैं इसका उद्देश्य यह था कि यदि मीनारें गिरे तो वे मकबरे की मुख्य संरचना से दूर गिरे।
शाहजहां के बाद के वर्ष
साल 1658 में औरंगजेब ने शाहजहां को गद्दी से हटाकर आगरे के किले में नजरबंद कर दिया जहां से वे ताज महल को देख तो सकते थे लेकिन वहां से वे कहीं बाहर नहीं निकल सकते थे शाहजहां की मृत्यु 1666 में हुई जिसके बाद औरंगजेब ने उन्हें उनकी पत्नी मुमताज महल के पास इसी मकबरे में दफनाया 19वीं सदी के अंत तक ताज महल के कुछ हिस्से खराब अवस्था में पहुंच गए थे।
इस समय ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन ने एक रेस्टोरेशन प्रोजेक्ट शुरू करवाया जिसे 1908 में पूरा किया गया उन्होंने मुख्य कक्ष में एक बड़ा लैंप लगाने और बगीचों को यूरोपीय शैली के लॉन में बदलने का आदेश दिया जो आज भी मौजूद है 1942 में जापानी वायु सेना के संभावित हवाई हमलों से बचाने के लिए ताजमहल को मचान से ढक दिया गया था 1965 और 1971 के भारत पाकिस्तान युद्धों के दौरान भी इसी तरह के उपाय किए गए थे 19वीं सदी के अंत में ताजमहल पर पर्यावरण प्रदूषण का प्रभाव पड़ने लगा जिससे इसकी सफेद संगमरमर की सतह पीली भूरी पड़ने लगी
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