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-: Sundha Mata Temple :-
सुंधा माता मंदिर राजस्थान राज्य के जालोर जिले की सुंधा पर्वत (अरावली की पहाड़ियों में) स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर लगभग 1220 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और देवी चामुंडा माता को समर्पित है, जिन्हें यहाँ सुंधा माता कहा जाता है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और शांति का भी अद्भुत संगम है।
सुंधा माता मंदिर का इतिहास:
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प्राचीनता:
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मंदिर का निर्माण लगभग सातवीं से नौंवी शताब्दी के बीच माना जाता है।
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यह मंदिर परमार वंश के शासकों द्वारा बनवाया गया था, जो उस समय इस क्षेत्र पर शासन करते थे।
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मंदिर की वास्तुकला में गुर्जर-प्रतिहार शैली की झलक देखने को मिलती है।
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चामुंडा माता की मूर्ति:
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यहाँ स्थापित चामुंडा माता की मूर्ति काले पत्थर से बनी हुई है और अत्यंत प्राचीन है।
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मूर्ति को लेकर मान्यता है कि यह स्वयं प्रकट हुई थी (स्वयंभू मूर्ति)।
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राजपूतों की आस्था:
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विशेषकर चौहान वंश और स्थानीय राजपूत जातियों में सुंधा माता को कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
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युद्ध में विजय की कामना से पहले कई शासक यहाँ आशीर्वाद लेने आते थे।
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मंदिर का पुनर्निर्माण:
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कई बार मंदिर को आक्रमणों में नुकसान पहुंचा, लेकिन स्थानीय राजाओं व भक्तों द्वारा इसका पुनर्निर्माण किया गया।
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वर्तमान मंदिर का निर्माण आधुनिक काल में भक्तों और मंदिर ट्रस्ट के सहयोग से हुआ है।
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ऐतिहासिक अभिलेख:
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मंदिर परिसर में कई प्राचीन शिलालेख (inscriptions) मिले हैं जो 1200-1300 ई. के आसपास के हैं।
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ये शिलालेख मंदिर के संरक्षण और स्थानीय राजाओं द्वारा दिए गए दान का उल्लेख करते हैं।
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अन्य रोचक तथ्य:
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यहाँ एक झरना (waterfall) भी है जो मानसून में बेहद आकर्षक लगता है।
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सुंधा माता मंदिर तक अब रोपवे (cable car) की सुविधा भी है।
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नवरात्रि के समय यहाँ विशेष मेलों और भजन संध्याओं का आयोजन होता है।
अब हम बात करते हैं सुंधा माता मंदिर से जुड़ी कुछ और खास बातों की, जैसे वहाँ कैसे पहुँचा जाए, दर्शन की विधि, रोपवे, और आसपास के दर्शनीय स्थल।
दर्शन की विधि व मान्यताएँ:
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नवरात्रि विशेष:
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चैत्र और आश्विन नवरात्रि में यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
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नौ दिन तक लगातार जागरण, भजन, और विशेष पूजन होते हैं।
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कथाओं के अनुसार:
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मान्यता है कि यहाँ शक्ति पीठ के रूप में देवी का एक अंश विराजमान है।
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यहाँ पूजा करने से भय, रोग, और संकटों से मुक्ति मिलती है।
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दर्शन क्रम:
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पहले दर्शन के लिए जल, नारियल, चुनरी और मिठाई चढ़ाई जाती है।
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फिर माता को कुमकुम, अक्षत और फूल अर्पित किए जाते हैं।
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रोपवे (Cable Car) सुविधा:
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सुंधा माता रोपवे राजस्थान का पहला पहाड़ी रोपवे प्रोजेक्ट था।
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यह श्रद्धालुओं के लिए 5-7 मिनट में मंदिर तक पहुँचने का आसान और रोमांचक तरीका है।
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रोपवे का संचालन आम तौर पर सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक होता है (त्योहारों पर समय बढ़ सकता है)।
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टिकट शुल्क व समय की पुष्टि के लिए स्थानीय स्रोत से जानकारी लेना बेहतर है।
कैसे पहुँचे सुंधा माता मंदिर?
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स्थान:
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सुंधा माता मंदिर, बगोडा तहसील, जालोर ज़िला, राजस्थान में स्थित है।
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निकटतम शहर:
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जालोर – लगभग 70 किलोमीटर
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भीनमाल – लगभग 35 किलोमीटर
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जोधपुर – लगभग 180 किलोमीटर
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रेल मार्ग:
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सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भीनमाल या जालोर है।
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वहाँ से टैक्सी या बस द्वारा मंदिर पहुँचा जा सकता है।
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सड़क मार्ग:
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राजस्थान रोडवेज की बसें सुंधा माता के लिए उपलब्ध हैं।
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निजी वाहन से पहाड़ी रास्ता भी सुरक्षित और सुंदर है।
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आसपास घूमने लायक स्थान:
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सुंधा जलप्रपात (Waterfall): बरसात के मौसम में बेहद खूबसूरत झरना।
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वन क्षेत्र: पहाड़ी क्षेत्र में कई प्रकार की वनस्पतियाँ और पक्षी देखे जा सकते हैं।
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धार्मिक स्थल: पास ही अन्य छोटे मंदिर भी हैं जैसे हनुमान मंदिर, शिव मंदिर आदि।
अब हम सुंधा माता मंदिर से जुड़ी कुछ और आस्था, स्थानीय परंपराएँ, और रहने-खाने की सुविधाएँ भी देख लेते हैं – ताकि आपकी यात्रा पूरी जानकारी के साथ हो।
स्थानीय परंपराएँ और मान्यताएँ:
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कुलदेवी की पूजा:
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खासकर राजपूत, चौहान, और आसपास की जातियाँ सुंधा माता को कुलदेवी मानती हैं।
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जब किसी परिवार में कोई विशेष मांगलिक कार्य होता है (जैसे विवाह, संतान जन्म आदि), तो लोग यहाँ आकर धोक (साष्टांग प्रणाम) देते हैं।
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मनोकामना पूर्ति के लिए मन्नत:
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लोग माता के दरबार में नारियल चढ़ाकर या चुनरी ओढ़ाकर मन्नत माँगते हैं।
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मन्नत पूरी होने पर वापस आकर माता को धन्यवाद अर्पित करते हैं।
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बलि प्रथा (अब बंद):
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पुराने समय में कुछ जगहों पर बलि देने की प्रथा थी, लेकिन अब यह पूरी तरह बंद हो चुकी है।
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रहने की सुविधा (Accommodation):
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धर्मशालाएँ:
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मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित धर्मशालाएँ और विश्राम गृह बहुत ही सस्ती और साफ-सुथरी होती हैं।
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नवरात्रि या त्योहारों में पहले से बुकिंग करवाना अच्छा रहेगा।
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निजी होटल / लॉज:
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पास के कस्बों जैसे भीनमाल या जालोर में निजी होटल उपलब्ध हैं।
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यहाँ से टैक्सी या गाड़ी लेकर मंदिर पहुँचना आसान है।
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खान-पान की सुविधा:
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भक्तों के लिए भंडारा:
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कई बार मंदिर परिसर में निःशुल्क भंडारा (प्रसादी भोजन) होता है, विशेषकर नवरात्रि में।
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स्थानीय भोजन:
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बाहर की दुकानों में राजस्थानी भोजन जैसे दाल-बाटी, गट्टे की सब्ज़ी, कढ़ी आदि मिलती है।
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साधारण नाश्ते में कचौरी, समोसा, चाय भी आसानी से मिल जाते हैं।
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ट्रैवल टिप्स और जरूरी बातें:
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पहनावे में सादगी रखें – यह एक पवित्र स्थल है।
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प्लास्टिक और कचरा फेंकने से बचें – यह क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील है।
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बारिश के मौसम में फिसलन हो सकती है – अच्छे ग्रिप वाले जूते पहनें।
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कैमरा ले जा सकते हैं, लेकिन मुख्य गर्भगृह में फोटोग्राफी वर्जित हो सकती है।
अब हम सुंधा माता मंदिर से जुड़ी कुछ आध्यात्मिक विशेषताएँ, लोककथाएँ, और अगर आप परिवार के साथ जा रहे हैं तो क्या खास ध्यान रखें, इन सब पर नज़र डालते हैं।
सुंधा माता से जुड़ी लोककथाएँ और पौराणिक मान्यताएँ:
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माता का प्रकट होना:
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मान्यता है कि चामुंडा माता ने इस पहाड़ी पर राक्षसों का संहार किया था और तभी से यहाँ उनकी शक्ति का वास माना जाता है।
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कुछ मान्यताओं में कहा जाता है कि माता स्वयं यहाँ स्वयंभू रूप में प्रकट हुई थीं।
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शक्ति पीठ से संबंध:
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स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, सुंधा माता का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक नहीं है, परंतु लोगों की आस्था और शक्तिपूजा इसे विशेष दर्जा देती है।
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देवी के तीन रूपों – सरस्वती, लक्ष्मी और काली – का एकत्र रूप यहाँ माना जाता है।
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ध्यान और आत्मिक शांति:
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पहाड़ी की ऊँचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ का वातावरण बहुत शांत, ठंडा और आध्यात्मिक होता है।
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कई श्रद्धालु यहाँ आकर कुछ समय ध्यान (meditation) में भी बिताते हैं।
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सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मंदिर का दृश्य बेहद भव्य और दिव्य होता है।
परिवार और बच्चों के साथ यात्रा कर रहे हैं?
यहाँ कुछ जरूरी सुझाव हैं:
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बुजुर्गों के लिए:
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यदि बुजुर्ग साथ हैं, तो रोपवे का उपयोग सबसे सुविधाजनक है।
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मंदिर परिसर में व्हीलचेयर की सुविधा सीमित हो सकती है, इसीलिए पहले से पता कर लें।
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बच्चों के लिए:
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छोटे बच्चों को गर्म कपड़े और आरामदायक जूते पहनाएँ (विशेष रूप से ठंड और बारिश में)।
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फिसलन वाले स्थानों पर सतर्क रहें।
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स्वास्थ्य सुविधा:
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मंदिर के पास प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन गंभीर स्थितियों के लिए नजदीकी कस्बे तक जाना पड़ सकता है।
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क्या खरीद सकते हैं वहाँ से? (स्थानीय बाज़ार)
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मंदिर परिसर के बाहर कई छोटी दुकानें हैं जहाँ से आप:
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देवी माँ की तस्वीरें और मूर्तियाँ
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पूजन सामग्री (कुमकुम, चुनरी, नारियल)
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स्थानीय हस्तशिल्प वस्तुएँ
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बच्चों के खिलौने और स्नैक्स
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यात्रा का सर्वोत्तम समय:
मौसम | विशेषता |
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सितंबर – मार्च | सबसे अच्छा समय; मौसम ठंडा और सुखद |
अक्टूबर (आश्विन नवरात्रि) | बड़ा मेला, बहुत भीड़ |
जुलाई – अगस्त (मानसून) | हरा-भरा वातावरण और झरनों का सौंदर्य |
अब बस एक बात और बताइए — क्या आप चाहेंगे कि मैं एक 1-दिन या 2-दिन की पूरी यात्रा योजना (Itinerary) बना दूँ? उसमें मैं शामिल कर सकता हूँ:
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जाने का सही समय
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कहाँ रुकें
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क्या-क्या देखें
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बजट और खर्चों का अनुमान
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