आदि शंकराचार्य का महत्व एवं उनके मठ

-: Shankaracharya History :-

आदि शंकर या आदि शंकराचार्य यह भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्म प्रवर्तक थे उन्होंने अद्वैत वेदांत को ठोस आधार प्रदान किया भगवत गीता उपनिषदों और वेदांत सूत्रों पर लिखी हुई उनकी टिकाये बहुत प्रसिद्ध हैं उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधान कारण वाद और मीमांसा दर्शन के ज्ञान कर्म समुच्चय वाद का खंडन किया आदि शंकराचार्य जी का जन्म साल 788 में हुआ था। इन्होंने भारतवर्ष की चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी जो आज भी बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन आचार्यों को शंकराचार्य कहा जाता है।

यह चारों पीठ हैं ज्योतिष पीठ बद्रिका आश्रम, श्रृंगेरी पीठ, द्वारिका शारदा पीठ और पूरी गोवर्धन पीठ आदि शंकराचार्य जी ने अनेक विधर्मी हों को भी अपने धर्म में दीक्षित किया था यह भगवा भगवान शंकर के अवतार भी माने जाते हैं इन्होंने ब्रह्म सूत्रों की बड़ी ही विषद और रोचक व्याख्या की है उनके विचार और उपदेश आत्मा और परमात्मा की एक रूपता पर आधारित है जिनके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है।

आदि शंकराचार्य जी ने वेदों में लिखे ज्ञान को एकमात्र ईश्वर को संबोधित समझा और उसका प्रचार तथा वार्ता पूरे भारतवर्ष में की उस समय वेदों की समझ के बारे में मतभेद होने पर उत्पन्न चारवा जैन और बौद्ध मतों को शास्त्रार्थ द्वारा खंडित किया कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य जी का जन्म केरल में कालड़ी अथवा काश नामक गांव में हुआ था इनके पिता का नाम शिव गुरु भट्ट तथा माता का नाम अयबा था भगवान शिव की घोर आराधना करने के बाद इनका जन्म हुआ था इसीलिए उनका नाम शंकर रखा गया।

जब यह तीन ही वर्ष के थे तब इनके पिता का देहांत हो गया यह बड़े ही मेधावी तथा प्रतिभाशाली थे छ वर्ष की अवस्था में ही यह प्रकांड पंडित हो गए और आठ वर्ष की अवस्था में इन्होंने सन्यास ग्रहण कर लिया इनके सन्यास ग्रहण करने के समय की कथा बहुत ही अद्भुत है कहते हैं इनकी माता अपने एकमात्र पुत्र को सन्यासी बनते देखना नहीं चाहती थी।

जिसके लिए उन्होंने आज्ञा नहीं दी तब एक दिन नदी के किनारे एक मगरमच्छ ने शंकराचार्य जी का पैर पकड़ लिया और उस वक्त का फायदा उठाते हुए शंकराचार्य जी ने अपनी मां से कहा माता मुझे सन्यास लेने की आज्ञा दें नहीं तो यह मगरमच्छ मुझे खा जाएगा इससे भयभीत होकर माता ने तुरंत ही इन्हें सन्यासी होने की आज्ञा प्रदान कर दी और आश्चर्य की बात यह है कि जैसे ही माता ने आज्ञा दी वैसे ही तुरंत मगरमच्छ ने शंकराचार्य जी का पैर छोड़ दिया और इन्होंने गोविंद नाथ जी से सन्यास ग्रहण किया शुरुआत में कुछ दिनों तक यह काशी में रहे।

उस समय इन्होंने विजल बिंदु के ताल वन में मंडन मिश्र को सप्तक शास्त्रार्थ में परास्त किया था इन्होंने समस्त भारतवर्ष में भ्रमण करके वैदिक धर्म को पुनर्जीवित किया कुछ बौद्ध इन्हें अपना शत्रु भी समझते हैं क्योंकि इन्होंने बौद्धों को कई बार शास्त्रार्थ में पराजित करके वैदिक धर्म की पुनर स्थापना की थी इनकी मृत्यु का कारण किसी को भी ज्ञात नहीं है लेकिन कहा जाता है कि 32 वर्ष की छोटी सी आयु में संवत 800 में केदारनाथ के पास यह सह  शरीर शिवलोक चले गए

कैसे चुने  जाता है शंकराचार्य  

आदि शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में एक-एक यानी चार मठों की स्थापना की थी इन चारों मठों में उत्तर के बद्रिका आश्रम का ज्योतिर मठ, दक्षिण का श्रृंगेरी मठ, पूर्व में जगन्नाथ पुरी का गोवर्धन मठ और पश्चिम में द्वारिका का शारदा मठ शामिल है मठ के प्रमुख को मठाधीश कहा जाता है मठाधीश को ही शंकराचार्य की उपाधि दी जाती है अब सवाल यह उठता है कि शंकराचार्य बनने के नियम और प्रक्रिया क्या है।

आदि शंकराचार्य द्वारा रचित ग्रंथ मठामनाय में चारों मठों की व्यवस्था के नियम सिद्धांत और शंकराचार्य की उपाधि ग्रहण करने के नियम लिखे हैं मठामनाय को महा अनुशासन भी कहते हैं इस ग्रंथ में 73 श्लोक हैं मठामनाय के अनुसार शंकराचार्य की उपाधि ग्रहण करने के लिए पात्र का सन्यासी और ब्राह्मण होना आवश्यक है इसके अलावा सन्यासी दंड धारण करने वाला होना चाहिए इंद्रियों पर उसका नियंत्रण होना चाहिए और तन मन से वह पवित्र हो सन्यासी का वाग में होना आवश्यक है।

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यानी वह चारों वे और छह वेदांत का परम विद्वान हो और शास्त्रार्थ में निपुण हो इन समस्त नियमों को धारण करने वाले सन्यासी को वेदांत के विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ भी करना पड़ता है इसके बाद सनातन धर्म के 13 अखाड़ों के प्रमुख आचार्य महामंडलेश्वर और संतों की सभा शंकराचार्य के नाम पर सहमति जताती है जिस पर काशी विद्वत परिषद की मोहर लगाई जाती है इस प्रकार सन्यासी शंकराचार्य बन जाता है इसके बाद शंकराचार्य दस नामी संप्रदाय में से किसी एक संप्रदाय पद्धति की साधना करता है

मठ में क्या होता है

सनातन धर्म में मठों को धर्म आध्यात्म की शिक्षा के सबसे बड़े संस्थान के रूप में जाना जाता है इनमें गुरु शिष्य परंपरा का निर्वाहन होता है और शिक्षा भी इसी परंपरा से दी जाती है इसके अलावा मठों द्वारा विभिन्न सामाजिक कार्य भी किए जाते हैं।

शंकराचार्य का महत्व

शंकराचार्य का स्थान सनातन धर्म में सबसे बड़े गुरु का होता है जैसे बौद्ध धर्म में दलाई लामा और ईसाई धर्म में पोप का स्थान होता है उसी प्रकार सनातन धर्म में शंकराचार्य का स्थान होता है आदि गुरु शंकराचार्य ने इस परंपरा की शुरुआत की थी।

आदि गुरु को जगतगुरु की उपाधि प्राप्त है जिसका इस्तेमाल पहले केवल भगवान श्री कृष्ण के लिए ही किया जाता था समस्त हिंदू धर्म इन चारों मठों के दायरे में आता है विधान यह है कि हिंदुओं को इन्हीं मठों की परंपरा से आए किसी संत को अपना गुरु बनाना चाहिए

ज्योतिर्मठ

उत्तराखंड में बद्रीनाथ स्थित ज्योतिर मठ के अंतर्गत दीक्षा ग्रहण करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद गिरी, पर्वत और सागर संप्रदाय नाम के विशेषण लगाए जाते हैं ज्योतिर्मठ का महाकाव्य अय मात्मा ब्रह्म है।

इस मठ के पहले मठाधीश तोटकाचार्य थे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती इसके 44 में मठाधीश बनाए गए थे अथर्व वेद को इस मठ के अंतर्गत रखा गया है वर्तमान में ज्योतिर मठ पीठ के शंकराचार्य स्वामी मुक्तेश्वरा नंद सरस्वती हैं

श्रृंगेरी मठ

क्षिण भारत के चिक मंगलुरु स्थित श्रृंगेरी मठ के अंतर्गत दीक्षित होने वाले सन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती और पुरी विशेषण लगाए जाते हैं श्रृंगेरी मठ का महाकाव्य अहम ब्रह्मास्मि है इस मठ के अंतर्गत यजुर्वेद को रखा गया है मठ के पहले मठाधीश आचार्य सुरेश्वर चार्य थे वर्तमान में स्वामी भारती तीर्थ इसके शंकराचार्य हैं जो इसके 66वें मठाधीश हैं।

गोवर्धन मठ

भारत के पूर्व में गोवर्धन मठ है जो उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी में है इस मठ के अंतर्गत दीक्षित होने वाले सन्यासियों के नाम के बाद वन और अरण्य विशेषण लगाए जाते हैं मठ का महाकाव्य प्रज्ञान ब्रह्म है और ऋग्वेद इसके अंतर्गत रखा गया है गोवर्धन मठ के पहले मठाधीश आदि शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्म पाद चार्य थे वर्तमान में निश्चलानंद सरस्व इस मठ के शंकराचार्य हैं जो कि इस मठ के 145 वे मठाधीश हैं।

शारदा मठ

पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में शारदा मठ है इसके अंतर्गत दीक्षा ग्रहण करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद तीर्थ और आश्रम विशेषण लगाए जाते हैं इस मठ का महाकाव्य तत्वम सी है और सामवेद को इसके अंतर्गत रखा गया है शारदा मठ के पहले मठाधीश हस्ता मलक या पृथ्वी धर थे वे आदि शंकराचार्य के चार प्रमुख शिष्यों में से एक थे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को इस मठ का 79 वां शंकराचार्य बनाया गया था शारदा पीठ के वर्तमान शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती हैं।

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