आखिर क्या है 100 के नोट पर बने रानी की वाव का इतिहास

क्या आपने कभी सोचा है कि एक ऐसी संरचना जो बाहर से केवल एक सीढ़ीदार बावड़ी दिखती है भीतर से एक उल्टे मंदिर की तरह हो सकती है रानी की बाब गुजरात के पाटन में स्थित एक ऐसी ही अद्भुत संरचना है जमीन के नीचे छिपा यह स्थापत्य चमत्कार ना केवल जल संरक्षण की मिसाल है बल्कि कला संस्कृति और धर्म का जीवंत प्रतीक भी है।

यहां मौजूद हर सीढ़ी हर मूर्ति और हर नक्काशी मानो समय की परतों को खोलते हुए इतिहास की अनसुनी कहानियां सुनाती है यह सिर्फ एक बावड़ी नहीं बल्कि एक ऐसा रहस्यमय मंदिर है जो आपको अपनी गहराइयों में खींच लेता है तैयार हो जाइए इस अनमोल धरोहर की अनोखी यात्रा पर जाने के लिए रानी की वाव यानी रानी की बावड़ी गुजरात के पाटन शहर में स्थित एक सीढ़ीदार बावड़ी है।

बावड़ी दरअसल एक सीढ़ीदार कुआ होता है जो एक जल स्रोत के रूप में काम करता है रानी की बाव सरस्वती नदी के किनारे स्थित है इसका निर्माण 11वीं शताब्दी के चालक के राजा भीमदेव प्रथम की पत्नी उदयमति द्वारा कराया गया था समय के साथ यह बावड़ी सरस्वती नदी की गाद में दब गई थी और 1940 के दशक में इसे फिर से खोजा गया।

1980 के दशक में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण यानी एएसआई द्वारा इसका पुनर्निर्माण किया गया साथ ही यह 2014 से यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज साइट में भी शामिल है यह बावड़ी एक उल्टे मंदिर की तरह डिजाइन की गई है जो जल की पवित्रता को दर्शाती है इसमें सात मंजिलों पर अनेक सीढ़ियां हैं जो सुंदर मूर्तियों से सजी हुई हैं। इन मूर्तियों में 500 से अधिक प्रमुख मूर्तियां और 1000 से अधिक छोटी मूर्तियां शामिल हैं जो धार्मिक सांसारिक और प्रतीकात्मक चित्रण का संगम है।

यह एक ऐसा स्मारक है जो समय के साथ मिट्टी में दबा रहा और सदियों तक गुमनाम रहा कहा जाता है कि साल 1304 में जैन मुनि मेरू तुंग ने अपनी पुस्तक प्रबंध चिंतामणि में रानी की वाव का उल्लेख किया था। इसमें बताया गया था कि चूड़ा समा राजवंश के राजा नर वहा खंगा के बेटी रानी उदय मती ने इसका निर्माण करवाया था यह निर्माण सहस्र लिंग तालाब की भव्यता को भी मात देने के लिए किया गया था।

इसका निर्माण साल 1063 ईसवी में शुरू हुआ था और इसे पूरा होने में लगभग 20 साल लगे हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि रानी उदयमति विधवा थी या नहीं लेकिन यह बावड़ी राजा भीमदेव प्रथम के सम्मान में बनाई गई थी इस बावड़ी का निर्माण चालक के स्थापत्य शैली में किया गया था। जिसमें माउंट आबू के विमल व साही मंदिर जैसी वास्तुकला की झलक मिलती है।

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लेकिन इस भव्य निर्माण का दुर्भाग्य यह रहा कि समय के साथ सरस्वती नदी की बाढ़ के कारण यह पूरी तरह मिट्टी और गाद में दब गई 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश अधिकारी हेनरी कॉसंस और जेम्स बर्गस ने इसे देखा उस समय यह सिर्फ एक विशाल गड्ढे के रूप में दिखाई दे रही थी जिसमें कुएं का शाफ्ट और कुछ स्तंभ ही बच पाए थे।

इस बावड़ी को लेकर जेम्स टॉड ने अपनी किताब ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इंडिया में लिखा कि इसकी सामग्री का उपयोग पाटन में एक दूसरी बावड़ी के निर्माण में किया गया था 1940 के दशक में बड़ौदा राज्य के संरक्षण में खुदाई के दौरान इसे फिर से खोजा गया इसके बाद 1981 से 1987 तक भारतीय पुरातत्व सर्वे क्ण ने इसका बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण किया खुदाई के दौरान रानी उदयमति की एक मूर्ति भी प्राप्त हुई जो इस स्थान की महत्ता को और बढ़ाती है।

समय के साथ रानी की वाव को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली 22 जून 2014 को इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया इसके साथ ही इसे 2016 में क्लीने आइकॉनिक प्लेस का दर्जा दिया गया आज यह ना केवल भारतीय संस्कृति की एक महत्त्वपूर्ण धरोहर है बल्कि एक ऐसा स्मारक है जो जल संरक्षण और स्थापत्य कला की अद्भुत मिसाल पेश करता है।

रानी की वाव की वास्तुकला

रानी की वाव को गुजरात में बनी सीढ़ीदार बावड़ियों में सबसे बेहतरीन और विशाल उदाहरण माना जाता है इसे उस समय के कारीगरों की उच्चतम क्षमता और मरु गुर्जर स्थापत्य शैली के बेहतरीन संयोजन से बनाया गया था इसकी वास्तुकला और मूर्तियां माउंट आबू के विमल बा साही मंदिर और मोढेरा के सूर्य मंदिर के समान है है रानी की वाव को नंदा प्रकार की बावड़ी के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

इसका आकार और डिजाइन इसे अन्य बावड़ियां से अलग और भव्य बनाता है यह लगभग 213 फीट लंबी 66 फीट चौड़ी और 92 फीट गहरी है इसकी चौथी मंजिल की गहराई सबसे अधिक है जहां से यह एक आयताकार जलाशय तक जाती है जिसका आकार 31 * 31 फीट है और यह 75 फीट तक की गहराई में स्थित है इसका प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में है जबकि कुआं सबसे पश्चिमी छोर पर है।

कुएं का शाफ्ट 33 फीट व्यास का है और यह 98 फीट गहरा है यह बावड़ी सात मंजिलों में विभाजित है जो सीढ़ियों के माध्यम से एक गहरे गोलाकार कुएं तक जाती है इसकी संरचना और डिजाइन में गहरी बारीकियां दिखाई देती हैं।

सीढ़ीदार गलियारे को नियमित अंतराल पर स्तंभों और बहुमंजिला मंडप के साथ विभाजित किया गया है दीवारें स्तंभ कंगूरे और बीम नक्काशी व अलंकरण से सजे हुए हैं इसके अलावा साइड की दीवारों में बनी अलमारियों में नाजुक आकृतियां और मूर्तियां बनी हुई हैं जो उसकी सुंदरता को और बढ़ाती हैं रानी की वाव में कुल 212 खंभे हैं जो इसे स्थापत्य कला का चमत्कार बनाते हैं।

रानी की वाव की अद्भुत मूर्तियां

रानी की वाव में 500 से अधिक मुख्य मूर्तियां और 1000 से अधिक छोटी मूर्तियां हैं जिनमें धार्मिक प्रतीकात्मक और दैनिक जीवन का चित्रण साहित्यिक कृतियों के संदर्भ में शामिल है इस बावड़ी की सजावट पूरे ब्रह्मांड को दर्शाती है जिसमें देवी, देवता, आकाशीय, प्राणी, पुरुष, और महिलाएं, साधु, पुजारी, आम लोग, जानवर, मछलिया और पक्षी के साथ-साथ पेड़-पौधे भी शामिल हैं।

बावड़ी की मूर्तियां कई हिंदू देवी देवताओं को दर्शाते हैं जिनमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, कुबेर, लगु शल, भैरव, सूर्य, इंद्र, और हैग्रीव जैसे देवता शामिल हैं इसी तरह मां लक्ष्मी, पार्वती, सरस्वती, चामुंडा, क्षेमकरी, सुरयाणी, सप्तमात्रिका और महिषासुर मर्दिनी के रूप में मां दुर्गा जैसी देवियों की मूर्तियां भी हैं यहां भगवान विष्णु से संबंधित मूर्तियां अन्य देवताओं की तुलना में ज्यादा हैं जिन पर शेष नाक पर लेटे हुए विष्णु, विश्वरूप विष्णु और भगवान विष्णु के दशावतार भी शामिल हैं।

अन्य मूर्तियों में देवताओं के परिवार जैसे ब्रह्मा सावित्री, उमा महेश्वर और लक्ष्मी नारायण शामिल है विशेष रूप से ध्यान देने योग्य मूर्तियों में अर्धनारीश्वर और नवग्रह भी है दीवारों पर स्थानीय ज्योमेटिक कपड़ा डिजाइनों और पारंपरिक पटोला डिजाइनों से मिलते जुलते लेटस वर्क पैटर्स और डिजाइन उखरे गए हैं यह भी कहा जाता है कि रानी की वाव में गुप्त सुरंग थी जो पाटन के दूसरे हिस्से तक जाती थी।

इसे युद्ध के समय में शरण लेने के लिए बनाया गया था हालांकि अब यह सुरंग बंद हो चुकी है आज रानी की वाव की तस्वीर को भारतीय ₹1 के नोट पर भी देखा जा सकता है जिसे 2018 से शुरू किया गया था रानी की बाव सिर्फ एक संरचना नहीं बल्कि एक प्रेम की कहानी जल संरक्षण की मिसाल और भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है यह हमें याद दिलाता है कि कैसे हमारे पूर्वजों ने कला और विज्ञान को एक साथ जोड़कर ऐसी धरोहर बनाई जो हजारों साल बाद भी अमर है।

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