जाने कुम्भ मेले का अद्भुद इतिहास और रहस्य!

-: Prayagraj Mahakumbh 2025 :-

2025 का प्रयागराज महाकुंभ मेला एक ऐसा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महोत्सव जो आस्था परंपरा और आधुनिक तकनीक का अद्भुत संगम बनने जा रहा है यह महाकुंभ 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक आयोजित होगा और इसमें करीब 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है प्रशासन इस महाकुंभ को इतिहास के सबसे व्यवस्थित और सुरक्षित आयोजनों में से एक बनाने के लिए दिन रात जुटा हुआ है 92 सड़कों का नवीनीकरण 30 पंटन पुलों का निर्माण और 800 से अधिक बहुभाषी साइनेट श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए तैयार किए गए हैं।

कुंभ के दौरान सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है।  एआई आधारित निगरानी प्रणाली अंडरवाटर ड्रोन और भीड़ प्रबंधन टीमों की सहायता से हर गतिविधि पर बारीकी से नजर रखी जाएगी स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत बनाने के लिए अस्थाई अस्पताल इमरजेंसी मेडिकल सेवाएं और विशेष स्वास्थ्य दल तैनात किए गए हैं महाकुंभ 2025 को पर्यावरण अनुकूल आयोजन बनाने के लिए खास कदम उठाए गए हैं सौर ऊर्जा, प्लास्टिक फ्री एरिया और स्वच्छता अभियानों के माध्यम से कुंभ को टिकाऊ और स्वच्छ बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम कला प्रदर्शन और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए एक विशेष मोबाइल पप लांच की गई है जिसमें यात्रा दिशा निर्देश, आपातकालीन सेवाएं और यातायात जानकारी शामिल हो होंगी इसके अलावा 800 विशेष ट्रेनें श्रद्धालुओं को गंतव्य तक पहुंचाने के लिए चलाई जाएंगी प्रयागराज का महाकुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है जिसकी प्रस्तुति और व्यवस्थाएं प्रत्येक आयोजन के साथ और अधिक विस्तृत और भव्य होती जा रही हैं 2019 के अर्ध कुंभ मेले के लिए 4200 करोड़ की लागत से एक अस्थाई शहर बसाया गया था।

यह शहर 250 हेक्टेयर में फैला था जिसमें एकलाख बाविस हजार अस्थाई शौचालय साधारण डॉरमेट्री टेंट से लेकर फाइव स्टार सुविधाओं वाले टेंट भारतीय रेलवे द्वारा 800 विशेष ट्रेनें और आईबीएम द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित वीडियो निगरानी शामिल थी इसके अलावा इनलैंड वॉटरवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा नदी परिवहन प्रबंधन और आगंतुकों की सुविधा के लिए एक मोबाइल एप्लीकेशन भी विकसित किया गया 142 साल पहले साल महाकुंभ का आयोजन महज बिस हजार रुपय की लाग से हुआ था।

महाकुंभ मेला 2025 की तैयारियों के बीच इस महा आयोजन का जो बजट निकलकर सामने आ रहा है वह करीब 7500 करोड़ रपए है 17वीं शताब्दी में कुंभ मेलों के दौरान अखाड़ों के बीच वर्चस्व की लड़ाई एक प्रमुख समस्या बन गई थी यह लड़ाइयां अक्सर शाही स्नान के समय प्राथमिकता को लेकर होती थी हर अखाड़ा चाहता था कि उसे पहला और सबसे शुभ समय मिले क्योंकि यह उनकी प्रतिष्ठा और धार्मिक वर्चस्व का प्रतीक था कई बार ऐसे विवाद हिंसक झड़पों में बदल जाते थे जिनमें कई लोगों की मृत्यु हो जाती थी।

ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल के दौरान दस्तावेजों में ऐसे कई उदाहरण दर्ज हैं जहां अखाड़ों के बीच खूनी संघर्ष भी हुए 1760 के हरिद्वार कुंभ मेले में शैव और वैष्णव साधुओं के बीच हिंसक झड़पें हुई जिनमें सैकड़ों साधुओं की जान चली गई थी इसी तरह 1789 के नासिक कुंभ मेले में एक और खूनी संघर्ष हुआ जिसमें 12000 से अधिक सन्यासियों के मारे जाने का दावा एक मराठा पेशवा के ताम्र पत्र में किया गया है।

18वीं शताब्दी में इन बार-बार होने वाले संघर्षों अखाड़ों की युद्ध प्रिय प्रकृति और कुंभ मेलों में होने वाले व्यापार और कर संग्रह के अवसरों ने ईस्ट इंडिया कंपनी का ध्यान अपनी ओर खींचा कंपनी के अधिकारियों ने कुंभ मेले के दौरान शिविरों का लेआउट तैयार किया व्यापारिक स्थानों को व्यवस्थित किया और स्नान के क्रम को निर्धारित किया ताकि झड़पों से बचा जा सके साल 1947 में स्वतंत्रता के बाद यह भूमिका राज्य सरकारों को सौंप दी गई।

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अब राज्य सरकारें कुंभ मेले के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा तैयार करती हैं जिनमें सुरक्षा स्वच्छता यातायात और शिविर व्यवस्था शामिल है कुंभ के मेले में कई साधु ऐसे भी होते हैं जिनका संबंध किसी भी अखाड़े से नहीं होता इन्हे अकेले साधु कहा जाता है वे किसी संस्था या संगठन के बजाय स्वतंत्र रूप से अपने धार्मिक और आध्यात्मिक अनुष्ठान करते हैं इतिहास में कुंभ मेले के दौरान कई भगदड़ की घटनाएं हुई हैं जिनमें सैकड़ों लोग लोगों की जान चली गई 1820 में हरिद्वार कुंभ मेले के दौरान भगदड़ में 485 श्रद्धालु मारे गए थे।

1996 के कुंभ मेले में भगदड़ के कारण 50 लोगों की मृत्यु हुई इन घटनाओं ने प्रशासन को भीड़ प्रबंधन और इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार की ओर ध्यान देने के लिए मजबूर किया हर कुंभ मेले के बाद सीखे गए सबक को अगली बार बेहतर तरीके से लागू किया जाता है इसके अलावा कुंभ मेला स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा आर्थिक इंजन भी है लाखों तीर्थ यात्री और पर्यटकों के आगमन से व्यापार होटल व्यवसाय परिवहन और स्थानीय सेवाओं में भारी वृद्धि होती है 1776 और 1808 के कुंभ मेले में 20 से 25 लाख श्रद्धालु शामिल हुए थे।

18920 के बीच जब भारत भयानक अकाल हैजा और प्लेग महामारी का सामना कर रहा था कुंभ मेले में श्रद्धालुओं की संख्या घटकर मात्र तीन से 4 लाख ही रह गई थी वहीं सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने ईंधन और संसाधनों की कमी के कारण कुंभ मेले पर प्रतिबंध लगा दिया था इस प्रतिबंध के साथ-साथ जापान द्वारा कुंभ स्थल पर बमबारी और नरसंहार की झूठी अफवाहों ने 1942 के कुंभ मेले में श्रद्धालुओं की उपस्थिति को नाटकीय रूप से कम कर दिया था।

इससे पहले के दशकों में प्रत्येक कुंभ मेले में लगभग 20 से 40 लाख श्रद्धालु एकत्रित होते थे आजादी के बाद कुंभ मेले में श्रद्धालुओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई 1954 के कुंभ मेले में 50 लाख श्रद्धालु शामिल हुए वहीं 1977 में एक करोड़ और 1989 में डेढ़ करोड़ श्रद्धालुओं ने भाग लिया 14 अप्रैल 1998 को हरिद्वार कुंभ मेले में एक करोड़ श्रद्धालु एक ही दिन में उपस्थित हुए थे वहीं 2001 के प्रयागराज कुंभ मेले में इकोनोस सेटेलाइट की तस्वीरों ने इस बात की पुष्टि की कि यह आयोजन विश्व का सबसे बड़ा मानव समागम था।

सरकारी अनुमानों के अनुसार 70 मिलियन यानी 7 करोड़ से अधिक लोग पूरे आयोजन में शामिल हुए थे। जिसमें से 4 करोड़ लोग मोनी  अमावस्या के एक ही दिन में स्नान के लिए संगम पर पहुंचे 2007 के प्रयागराज अर्ध कुंभ मेले में लगभग 7 करोड़ तीर्थ यात्रियों ने हिस्सा लिया था इसके बाद 2013 के प्रयागराज कुंभ मेले में यह संख्या 12 करोड़ तक पहुंच गई नासिक कुंभ मेले में भी भारी संख्या में श्रद्धालु एकत्र हुए जहां उपस्थिति का अनुमान 7.5 करोड़ तक लगाया गया था ।

कुंभ मेला ना केवल विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक सामाजिक और प्रशासन शक्ति का भी प्रतीक है आधुनिक प्रौद्योगिकी बेहतर प्रबंधन और समर्पित प्रशासनिक प्रयासों के माध्यम से कुंभ मेला अब एक वैश्विक सांस्कृतिक विरासत के रूप में स्थापित हो चुका है यह आयोजन ना केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि यह सामूहिक एकता सांस्कृतिक गौरव और मानवता की शक्ति का भी उदाहरण है।

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