-: Maurya Dynasty :-
मौर्य वंश प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली राजवंश था, जिसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी। इस साम्राज्य के विस्तार और संगठन में उनके गुरु चाणक्य (कौटिल्य) का महत्वपूर्ण योगदान था। मौर्य साम्राज्य अपने चरम पर सम्राट अशोक के शासनकाल में पहुँचा, जिन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया और उसके प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मौर्य वंश के प्रमुख शासक
1. चंद्रगुप्त मौर्य (321–297 ईसा पूर्व)
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नंद वंश को पराजित कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
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सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस प्रथम को हराकर उत्तर भारत पर अधिकार स्थापित किया।
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भारत के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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अपने जीवन के अंतिम समय में जैन धर्म को अपनाकर संन्यास ले लिया।
2. बिंदुसार (297–273 ईसा पूर्व)
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चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र और मौर्य साम्राज्य के दूसरे शासक।
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अपने शासनकाल में साम्राज्य का विस्तार दक्षिण भारत तक किया।
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उनके शासनकाल के बारे में अधिक ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
3. सम्राट अशोक (273–232 ईसा पूर्व)
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मौर्य साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली शासक।
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कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) के बाद बौद्ध धर्म अपना लिया और अहिंसा का संदेश फैलाया।
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बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अनेक शिलालेखों और स्तूपों का निर्माण कराया।
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उनके दूतों ने श्रीलंका, मध्य एशिया और अन्य देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
मौर्य वंश का पतन (185 ईसा पूर्व)
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अशोक के बाद कमजोर शासकों के कारण साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर हुआ।
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अंतिम शासक बृहद्रथ मौर्य को उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने मारकर शुंग वंश की स्थापना की।
मौर्य साम्राज्य की विशेषताएँ
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एक केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था।
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प्रसिद्ध अर्थशास्त्री चाणक्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र नामक ग्रंथ।
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अशोक के शिलालेख और अभिलेख, जो उनकी नीतियों और धार्मिक विचारों को दर्शाते हैं।
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बौद्ध धर्म और अहिंसा के प्रचार में अहम भूमिका।
मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था
मौर्य साम्राज्य एक संगठित और केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था पर आधारित था। इसका विवरण चाणक्य के अर्थशास्त्र और विभिन्न शिलालेखों में मिलता है।
1. राजा
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राजा को पूर्ण शक्ति प्राप्त थी, लेकिन वह मंत्रियों और अधिकारियों से परामर्श करता था।
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सम्राट अशोक ने शासन को अधिक धर्मपरायण और नैतिक मूल्यों पर आधारित बनाया।
2. मंत्रिपरिषद
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राजा के सलाहकारों का एक समूह, जिसे मंत्रिपरिषद कहा जाता था।
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चाणक्य इसके प्रमुख रणनीतिकारों में से एक थे।
3. प्रांतीय प्रशासन
मौर्य साम्राज्य को चार प्रमुख प्रांतों में विभाजित किया गया था:
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उज्जयिनी (पश्चिम)
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तक्षशिला (उत्तर)
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सुवर्णगिरि (दक्षिण)
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पाटलिपुत्र (मुख्य राजधानी, पूर्व)
हर प्रांत का प्रमुख कुमार (राजकुमार) या महामात्य होता था।
4. नगर प्रशासन
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नगरों का प्रशासन नगराध्यक्ष देखते थे।
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पाटलिपुत्र (राजधानी) का प्रशासन विशेष रूप से संगठित था।
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कर वसूली, व्यापार, जनसंख्या नियंत्रण और सुरक्षा की विशेष व्यवस्था थी।
अर्थव्यवस्था और कर व्यवस्था
मौर्य काल में आर्थिक व्यवस्था मजबूत थी।
1. कृषि और सिंचाई
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कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ थी।
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किसानों से भूमि कर लिया जाता था।
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बड़े पैमाने पर सिंचाई सुविधाएँ विकसित की गई थीं।
2. व्यापार और वाणिज्य
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आंतरिक और बाहरी व्यापार विकसित था।
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व्यापार मार्गों की सुरक्षा के लिए विशेष व्यवस्थाएँ थीं।
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भारत का व्यापार ग्रीस, रोम, चीन और श्रीलंका तक फैला हुआ था।
3. कर प्रणाली
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राज्य को चलाने के लिए विभिन्न प्रकार के कर लगाए जाते थे।
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कृषि कर, व्यापार कर, और श्रम कर प्रमुख थे।
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कर एकत्र करने के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किए गए थे।
मौर्य साम्राज्य की सैन्य व्यवस्था
मौर्य साम्राज्य की सेना विशाल और संगठित थी।
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पैदल सेना, घुड़सवार सेना, हाथी दल, और रथ सेना शामिल थी।
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सेना का नेतृत्व सेनापति और उच्च अधिकारी करते थे।
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गुप्तचर व्यवस्था (गुप्तचरों का एक जाल) विकसित थी, जिससे राज्य की सुरक्षा बनी रहती थी।
धर्म और संस्कृति
मौर्य काल में विभिन्न धर्मों का विकास हुआ।
1. बौद्ध धर्म और अशोक
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अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाकर उसे एशिया में फैलाया।
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श्रीलंका, चीन, जापान और दक्षिण एशिया में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भिक्षुओं को भेजा गया।
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सांची और सारनाथ में बौद्ध स्तूपों का निर्माण हुआ।
2. अन्य धर्म
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जैन धर्म को भी संरक्षण मिला।
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वैदिक परंपराएँ जारी रहीं।
मौर्य वंश का पतन
मौर्य वंश का पतन धीरे-धीरे कमजोर शासकों और आंतरिक विद्रोहों के कारण हुआ।
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अशोक की मृत्यु (232 ईसा पूर्व) के बाद कमजोर उत्तराधिकारी सत्ता में आए।
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प्रांतों में अलगाववाद बढ़ने लगा।
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सेना और प्रशासन में अनुशासन की कमी आई।
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अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी और शुंग वंश की स्थापना की (185 ईसा पूर्व)।
मौर्य काल की कला और वास्तुकला
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मौर्य काल में कला और वास्तुकला का अभूतपूर्व विकास हुआ। यह काल भारतीय स्थापत्य कला के विकास में एक महत्वपूर्ण चरण माना जाता है।
1. स्तंभ (Pillars)
मौर्य साम्राज्य की सबसे प्रसिद्ध वास्तुकला उपलब्धि अशोक स्तंभ हैं।
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यह स्तंभ एक ही पत्थर से बनाए जाते थे।
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इन स्तंभों के शीर्ष भाग पर आमतौर पर सिंह, बैल, हाथी या घोड़े की आकृतियाँ उकेरी जाती थीं।
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सबसे प्रसिद्ध स्तंभ सारनाथ स्तंभ है, जिसका शीर्ष चार शेरों से सुसज्जित है (यह भारत का राष्ट्रीय प्रतीक भी है)।
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इन स्तंभों पर बौद्ध धर्म से संबंधित आदेश और शिक्षाएँ खुदी होती थीं।
2. स्तूप (Stupas)
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अनेक स्तूपों का निर्माण कराया।
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सांची स्तूप (मध्य प्रदेश) सबसे प्रसिद्ध स्तूपों में से एक है।
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स्तूपों का निर्माण बुद्ध के अवशेषों को संरक्षित करने के लिए किया जाता था।
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इन स्तूपों की बाहरी दीवारों पर सुंदर नक्काशी होती थी।
3. गुफा वास्तुकला (Rock-cut Caves)
मौर्य काल में गुफाओं को काटकर सुंदर वास्तुकला विकसित की गई।
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बिहार में स्थित बाराबर और नागार्जुनी गुफाएँ इसका उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
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इन गुफाओं का प्रयोग जैन और बौद्ध भिक्षु ध्यान और निवास के लिए करते थे।
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गुफाओं की दीवारें चिकनी और चमकदार बनाई जाती थीं।
4. मूर्तिकला और चित्रकला
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इस काल की मूर्तियाँ और शिल्पकला मुख्य रूप से धार्मिक विषयों पर आधारित थी।
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मौर्य काल की कुछ प्रमुख मूर्तियों में यक्ष और यक्षिणी की मूर्तियाँ शामिल हैं, जो प्राकृतिक सौंदर्य और कलात्मक कौशल को दर्शाती हैं।
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मौर्यकालीन कला में बौद्ध धर्म के प्रतीकात्मक रूपों को अधिक महत्व दिया गया।
मौर्यकालीन साहित्य और शिक्षा
मौर्य काल में साहित्य, शिक्षा और दर्शन का भी उल्लेखनीय विकास हुआ।
1. अर्थशास्त्र (Kautilya’s Arthashastra)
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चाणक्य (कौटिल्य) द्वारा रचित यह ग्रंथ मौर्य प्रशासन, अर्थव्यवस्था, राजनीति और कूटनीति का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।
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इसमें कर प्रणाली, सैन्य रणनीति और शासन प्रबंधन की विस्तृत जानकारी दी गई है।
2. बौद्ध साहित्य
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मौर्य काल में बौद्ध धर्मग्रंथों की रचना पाली भाषा में हुई।
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त्रिपिटक (विनय पिटक, सुत्त पिटक, अभिधम्म पिटक) इसी काल में संकलित किए गए।
3. जैन साहित्य
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जैन धर्म के प्रमुख ग्रंथ अंग और उपांग इस काल में लिखे गए।
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इन ग्रंथों में महावीर स्वामी की शिक्षाओं का उल्लेख मिलता है।
मौर्य साम्राज्य की विरासत
मौर्य साम्राज्य का भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इस काल में प्रशासन, कला, धर्म और शिक्षा का व्यापक विकास हुआ।
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अशोक के शिलालेख और स्तंभ आज भी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक हैं।
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बौद्ध धर्म का प्रचार भारत से बाहर श्रीलंका, तिब्बत, चीन, जापान और दक्षिण-पूर्व एशिया में हुआ।
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अशोक चक्र (सारनाथ स्तंभ से लिया गया) भारत के राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया गया है।
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चाणक्य का अर्थशास्त्र आज भी प्रशासन और कूटनीति में प्रासंगिक माना जाता है।
मौर्य वंश ने भारतीय इतिहास में एक ऐसी नींव रखी, जिस पर आगे चलकर कई महान साम्राज्य खड़े हुए।
मौर्य साम्राज्य की सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था
मौर्य काल में समाज और धर्म का ढांचा मजबूत और विविध था। इस समय हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों का सह-अस्तित्व देखने को मिलता है। समाज जाति व्यवस्था पर आधारित था, लेकिन राज्य का हस्तक्षेप भी महत्वपूर्ण था।
1. सामाजिक व्यवस्था
(a) वर्ण व्यवस्था
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मौर्य काल में समाज चार वर्णों में विभाजित था – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
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ब्राह्मणों को धार्मिक कार्यों की जिम्मेदारी दी गई थी।
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क्षत्रिय शासक और सैनिक थे।
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वैश्य व्यापार और कृषि से जुड़े थे।
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शूद्र सेवाकारी कार्यों में लगे थे, लेकिन उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थिति प्राप्त थी।
(b) महिलाओं की स्थिति
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महिलाओं को समाज में सम्मान प्राप्त था, लेकिन उनकी भूमिका सीमित थी।
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अशोक ने महिलाओं के कल्याण के लिए विशेष नीतियाँ अपनाईं और कई धार्मिक संगठनों में उनकी भागीदारी को बढ़ावा दिया।
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बौद्ध और जैन धर्म में महिलाओं को संन्यास ग्रहण करने की अनुमति थी।
(c) दास प्रथा
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मौर्य काल में दास प्रथा प्रचलित थी, लेकिन अशोक के शासनकाल में इसका दमन किया गया।
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दासों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाए गए।
2. धार्मिक स्थिति
मौर्य काल धार्मिक सहिष्णुता का काल था। इस समय विभिन्न धर्मों का विकास हुआ।
(a) बौद्ध धर्म
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अशोक ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया और इसे राज्य का मुख्य धर्म बना दिया।
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उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए शिलालेखों और स्तूपों का निर्माण कराया।
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उनके द्वारा भेजे गए भिक्षुओं ने श्रीलंका, तिब्बत, चीन और अन्य देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
(b) जैन धर्म
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चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने शासन के अंतिम दिनों में जैन धर्म अपना लिया और श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में संन्यास लिया।
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इस काल में जैन धर्म का प्रचार भी बढ़ा।
(c) वैदिक धर्म
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हिंदू धर्म के विभिन्न रूप इस काल में प्रचलित थे।
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यज्ञ, पूजा और देवी-देवताओं की आराधना का महत्व बना रहा।
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ब्राह्मणों का प्रभाव समाज में विद्यमान था।
(d) अशोक की धम्म नीति
अशोक ने धार्मिक सहिष्णुता और नैतिकता पर आधारित “धम्म नीति” चलाई।
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इसमें अहिंसा, दया, सत्य और धार्मिक सहिष्णुता पर बल दिया गया।
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उन्होंने पशु बलि पर रोक लगाई और लोगों को नैतिक आचरण अपनाने के लिए प्रेरित किया।
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अपने आदेशों को शिलालेखों पर अंकित कराया।
3. शिक्षा और विज्ञान
मौर्य काल में शिक्षा और विज्ञान का भी विकास हुआ।
(a) शिक्षा
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प्रमुख शिक्षा केंद्र – तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला और उज्जयिनी।
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तक्षशिला विश्वविद्यालय गणित, चिकित्सा, खगोलशास्त्र और दर्शनशास्त्र का प्रमुख केंद्र था।
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बौद्ध और जैन मठों में धार्मिक शिक्षा दी जाती थी।
(b) विज्ञान और चिकित्सा
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इस काल में आयुर्वेद का विकास हुआ।
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राज्य द्वारा चिकित्सालयों और औषधालयों की स्थापना की गई।
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पशु चिकित्सा भी प्रचलित थी।
निष्कर्ष
मौर्य काल भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण युग था, जिसमें प्रशासन, धर्म, समाज और संस्कृति का व्यापक विकास हुआ।
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धर्म का प्रसार और सहिष्णुता इस काल की सबसे बड़ी विशेषता थी।
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अशोक की नीतियाँ और बौद्ध धर्म का प्रचार भारत और एशिया के इतिहास में एक नया मोड़ साबित हुआ।
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इस काल में शिक्षा, विज्ञान और चिकित्सा का विकास हुआ, जिसने आने वाली सभ्यताओं को प्रभावित किया।
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