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भगवद गीता से सीखने योग्य जरूरी बातें

Life Lessons from the Bhagavad Gita :

-: Life Lessons from the Bhagavad Gita :-

भगवद गीता जीवन का एक गहन मार्गदर्शक ग्रंथ है, जिसमें कई महत्वपूर्ण शिक्षाएँ दी गई हैं। यहाँ कुछ प्रमुख बातें दी गई हैं जो हमें गीता से सीखनी चाहिए:

1. अपना कर्तव्य करो, फल की चिंता मत करो

(कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन॥ – गीता 2.47)
गीता सिखाती है कि हमें अपने कर्तव्य (duty) को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करना चाहिए, लेकिन परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए।

2. आत्म-संयम और मन पर नियंत्रण रखो

गीता के अनुसार, जो व्यक्ति अपने मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखता है, वही सच्ची शांति और सफलता प्राप्त करता है। आत्म-संयम से व्यक्ति अपने जीवन को संतुलित बना सकता है।

3. हर परिस्थिति में समभाव बनाए रखो

(सुख-दुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ॥ – गीता 2.38)
सफलता और असफलता, लाभ और हानि, सुख और दुःख – इन सब में समान रहने वाला व्यक्ति ही सच्चा योगी है। जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव को समान रूप से स्वीकार करना चाहिए।

4. सच्ची भक्ति और समर्पण से ही मुक्ति संभव है

भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ उनकी शरण में आता है, वह सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है।

5. अहंकार और मोह का त्याग करो

अहंकार और मोह इंसान को अपने सच्चे लक्ष्य से भटकाते हैं। इसलिए, जीवन में विनम्रता अपनानी चाहिए और माया (भौतिक इच्छाओं) के आकर्षण में न फँसकर अपने आत्म-कल्याण की ओर बढ़ना चाहिए।

6. सच्चा योगी वही है जो समर्पित भाव से जीवन जीता है

योग केवल आसनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति अपने कर्तव्यों को पूरी श्रद्धा के साथ निभाता है और हर परिस्थिति में स्थिर बना रहता है।

7. सच्ची खुशी आत्मज्ञान से आती है

भौतिक सुख-सुविधाएँ क्षणिक होती हैं, लेकिन आत्मज्ञान (Self-Realization) से मिलने वाली खुशी स्थायी होती है। इसलिए, व्यक्ति को बाहरी चीजों पर निर्भर न रहकर अपने भीतर ज्ञान और शांति को खोजना चाहिए।

8. निस्वार्थ सेवा सबसे बड़ा धर्म है

भगवद गीता में कहा गया है कि जो व्यक्ति बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की सेवा करता है, वह सच्चे धर्म का पालन करता है और ईश्वर की कृपा प्राप्त करता है।

9. भय और संदेह को त्यागो

(वितरागभयक्रोधाः मन्मया मामुपाश्रिताः॥ – गीता 4.10)
भय और संदेह व्यक्ति की सबसे बड़ी कमजोरियाँ हैं। आत्मविश्वास, श्रद्धा और भक्ति के माध्यम से हम इनसे मुक्त हो सकते हैं।

10. परिवर्तन ही संसार का नियम है

कुछ भी स्थायी नहीं है – न सुख, न दुःख, न सफलता, न असफलता। इसलिए, हमें परिस्थितियों के अनुरूप खुद को ढालना आना चाहिए और हर बदलाव को सहजता से स्वीकार करना चाहिए।


भगवद गीता में जीवन के हर पहलू को संतुलित और सकारात्मक तरीके से जीने की सीख दी गई है। यहाँ कुछ और महत्वपूर्ण बातें दी गई हैं जो हमें गीता से सीखनी चाहिए:

1. सच्चा ज्ञान वही है जो अहंकार को नष्ट करे

भगवान कृष्ण कहते हैं कि जिस व्यक्ति का अहंकार और अज्ञान नष्ट हो जाता है, वही सच्चे ज्ञान को प्राप्त करता है। असली ज्ञान वही है जो हमें विनम्र और सरल बनाए।

👉 “ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः।
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्॥”
(गीता 5.16)
(जब व्यक्ति का अज्ञान नष्ट हो जाता है, तब उसका ज्ञान सूर्य की तरह चमकने लगता है।)

2. इच्छा ही दुख का कारण है

गीता में कहा गया है कि व्यक्ति की इच्छाएँ ही उसके दुखों का कारण होती हैं। जब हम इच्छाओं पर नियंत्रण पा लेते हैं, तभी सच्ची शांति प्राप्त कर सकते हैं।

👉 “काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्॥”
(गीता 3.37)
(इच्छा और क्रोध ही मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु हैं, जो उसे विनाश की ओर ले जाते हैं।)

3. जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा हो रहा है

भगवान कृष्ण कहते हैं कि हमें अतीत और भविष्य की चिंता छोड़कर, वर्तमान में जीना चाहिए। हर घटना किसी न किसी कारण से होती है, और उसमें कुछ अच्छा छिपा होता है।

👉 “न त्वं शोचितुमर्हसि॥” (गीता 2.27)
(बीते हुए पर शोक मत करो, बल्कि आगे बढ़ो।)

4. व्यक्ति अपने विचारों से ही महान या विनाशकारी बनता है

हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही हमारा जीवन बनता जाता है। इसलिए, हमें हमेशा सकारात्मक और उच्च विचार रखने चाहिए।

👉 “उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥”
(गीता 6.5)
(व्यक्ति खुद ही अपना मित्र और खुद ही अपना शत्रु होता है।)

5. भक्ति, ज्ञान और कर्म – तीनों का संतुलन जरूरी है

भगवद गीता कहती है कि केवल भक्ति, केवल ज्ञान या केवल कर्म से जीवन सफल नहीं होता। इन तीनों का संतुलन जरूरी है।

👉 “योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।” (गीता 2.48)
(योग में स्थित होकर कर्म करो, लेकिन आसक्ति मत रखो।)

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6. मृत्यु एक यात्रा है, न कि अंत

गीता में मृत्यु को एक बदलाव की तरह देखा गया है, न कि अंत के रूप में। आत्मा अमर होती है और केवल शरीर बदलता है।

👉 “वासांसि जीर्णानि यथा विहाय,
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यानि संयाति नवानि देही॥”
(गीता 2.22)
(जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है।)

7. हर इंसान के भीतर दिव्यता है

भगवान कृष्ण कहते हैं कि हर व्यक्ति के भीतर दिव्यता (divinity) है, बस उसे पहचानने की जरूरत है। आत्म-साक्षात्कार (Self-Realization) से हम इसे अनुभव कर सकते हैं।

👉 “ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।” (गीता 15.7)
(हर जीव मेरे ही अंश के रूप में मौजूद है।)

8. निडर बनो और जीवन का सामना करो

डर जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी है। भगवान कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि वीरता ही सच्चे मानव जीवन का गुण है।

👉 “न भय, न शोक, न चिंता – जो सच्चा योगी है, वही मुक्त है।”

9. संगति का प्रभाव जीवन पर पड़ता है

अच्छी संगति से व्यक्ति अच्छा बनता है, और बुरी संगति से पतन की ओर जाता है। इसलिए, हमें हमेशा सद्गुणी और ज्ञानी लोगों का संग करना चाहिए।

👉 “सत्संगति ही जीवन को सही दिशा देती है।”

10. भगवान को हर जगह देखो और सभी में प्रेम रखो

भगवद गीता सिखाती है कि हमें हर जीव में ईश्वर को देखना चाहिए और सभी से प्रेम करना चाहिए।

👉 “समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।” (गीता 13.27)
(जो सभी प्राणियों में समान रूप से स्थित परमेश्वर को देखता है, वही सच्चा ज्ञानी है।)


भगवद गीता का ज्ञान बहुत गहरा और विस्तृत है। इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए हम इसे पाँच प्रमुख विषयों में बाँट सकते हैं:

1️⃣ कर्मयोग (निष्काम कर्म) – बिना स्वार्थ और फल की चिंता किए कर्म करने की शिक्षा
2️⃣ ज्ञानयोग (आत्म-ज्ञान और विवेक) – आत्मा, परमात्मा और ब्रह्मांड का रहस्य
3️⃣ भक्तियोग (समर्पण और श्रद्धा) – भगवान की भक्ति और उनके प्रति पूर्ण समर्पण
4️⃣ मृत्यु और आत्मा – जीवन और मृत्यु के रहस्य को समझना
5️⃣ योग और ध्यान – मानसिक शांति और आत्म-साक्षात्कार का मार्ग

अब, आइए इन विषयों को विस्तार से समझते हैं।

कर्मयोग (निष्काम कर्म) – बिना फल की चिंता के कर्म करो

भगवान कृष्ण गीता के द्वितीय अध्याय (श्लोक 47) में कहते हैं:

👉 “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”
(गीता 2.47)

(तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल में नहीं। इसलिए, फल की चिंता मत करो और कर्म करने से पीछे मत हटो।)

🔹 मुख्य शिक्षा:

ज्ञानयोग (आत्म-ज्ञान और विवेक) – आत्मा अजर-अमर है

भगवान कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अजर-अमर और अनंत है।

👉 “न जायते म्रियते वा कदाचिन्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥”
(गीता 2.20)

(आत्मा का न जन्म होता है, न मृत्यु। यह नित्य, शाश्वत और अविनाशी है। शरीर के नष्ट होने पर भी आत्मा नहीं मरती।)

🔹 मुख्य शिक्षा:

भक्तियोग (समर्पण और श्रद्धा) – ईश्वर में अटूट भक्ति

गीता के नौवें अध्याय (राजविद्या योग) में भगवान कृष्ण कहते हैं:

👉 “अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥”
(गीता 9.22)

(जो व्यक्ति बिना किसी अन्य विचार के सिर्फ मेरी भक्ति करता है, मैं उसकी रक्षा करता हूँ और उसकी हर जरूरत को पूरा करता हूँ।)

🔹 मुख्य शिक्षा:

मृत्यु और आत्मा – मृत्यु एक बदलाव है, अंत नहीं

भगवान कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि मृत्यु केवल शरीर का परिवर्तन है, आत्मा अमर है।

👉 “वासांसि जीर्णानि यथा विहाय,
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यानि संयाति नवानि देही॥”
(गीता 2.22)

(जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को त्यागकर नए कपड़े पहनता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है।)

🔹 मुख्य शिक्षा:

योग और ध्यान – मानसिक शांति और आत्म-साक्षात्कार का मार्ग

भगवान कृष्ण गीता के छठे अध्याय में कहते हैं:

👉 “योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥”
(गीता 2.48)

(योग का अर्थ है समभाव – सफलता और असफलता में समान रहना। जो समभाव में रहता है, वही सच्चा योगी है।)

🔹 मुख्य शिक्षा:

निष्कर्ष: गीता हमें क्या सिखाती है?

कर्तव्य करो, फल की चिंता मत करो।
सच्चा सुख आत्म-ज्ञान से आता है, भौतिक वस्तुओं से नहीं।
भगवान पर पूर्ण विश्वास और समर्पण से हर संकट टल जाता है।
मृत्यु केवल शरीर का अंत है, आत्मा अमर है।
योग और ध्यान से जीवन में शांति और संतुलन आता है।

“जो व्यक्ति गीता के ज्ञान को जीवन में अपनाता है, वह हर परिस्थिति में शांत, संतुलित और सफल जीवन जी सकता है।”

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