-: Jantar Mantar Amazing History :-
भारत में अनेकों अद्भुत और अनोखे विश्व प्रसिद्ध स्मारक हैं जिनकी कारीगरी और शिल्प कला देखकर दुनिया भर के लोग हैरान रह जाते हैं आज हम ऐसे ही एक हैरत अंगेज स्मारक की बात करने जा रहे हैं क्या आप जानते हैं जयपुर में एक ऐसी जगह है जहां सैकड़ों साल पहले बिना किसी एडवांस टेक्नोलॉजी के ही ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाने की कोशिश की जा रही थी और यहां एक या दो नहीं बल्कि 19 ऐसे यंत्र हैं जो समय मापने से लेकर ग्रहों की स्थिति और ग्रहण की भविष्यवाणी तक करने में सक्षम है यहां दुनिया का सबसे बड़ा पत्थर का संडा मौजूद है जो समय को दो सेकंड की सटीकता से माप सकता है इस अद्भुत स्मारक का निर्माण 18वीं सदी में सवाई जयसिंह द्वितीय ने करवाया था और इन यंत्रों का डिजाइन और कारीगरी आज भी लोगों को चौका देती है।
जंतर मंतर 19 खगोलीय यंत्रों का संग्रह है जिसे जयपुर के संस्थापक और राजपूत राजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा बनवाया गया था इस स्मारक का निर्माण 1734 में पूरा हुआ यह दुनिया की सबसे बड़ी पत्थर से बनी हुई सूर्य घड़ी का घर है और इसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा भी प्राप्त है यह ऐतिहासिक स्मारक सिटी पैलेस और हवा महल के पास स्थित है यहां मौजूद यंत्रों के माध्यम से बिना किसी आधुनिक उपकरण के खगोलीय स्थितियों का अवलोकन किया जा सकता है।
यह ऑब्जर्वेटरी टॉमिक पोजीशनल एस्ट्रोनॉमी का एक उदाहरण है जिसे कई सभ्यताओं ने साझा किया था इस स्मारक में ऐसे यंत्र हैं जो तीन प्रमुख क्लासिकल सेलेटििन कोऑर्डिनेट सिस्टम में काम करते हैं होराइजन जेनिथ लोकल सिस्टम, इक्वेटोरियल सिस्टम और एक्लिप्स सिस्टम इनमें से कमाला यंत्र प्रकार एक ऐसा इंस्ट्रूमेंट है जो दो सिस्टम्स में काम करता है और कोऑर्डिनेट्स को एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम में डायरेक्टली ट्रांसफॉर्म करने की क्षमता रखता है।
यहां दुनिया की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी भी स्थित है जो समय मापने की सटीकता का अद्भुत उदाहरण है 19वीं सदी में यह मॉन्यूमेंट काफी डैमेज हो गया था इसका इनिशियल रिस्टो मेशन मेजर आर्थर गैरेट जो जयपुर जिले में असिस्टेंट स्टेट इंजीनियर और एक एमेच्योर एस्ट्रोनॉमल थे उनकी सुपर विज़न मै किया गया था। जंतर – मंतर का मतलब क्या होता है जंतर नाम संस्कृत के शब्द यंत्र से लिया गया है जिसका अर्थ है इंस्ट्रूमेंट या मशीन और मंत्र शब्द संस्कृत के मंत्र से लिया गया है जिसका अर्थ है कंसल्ट या कैलकुलेट इसलिए जंत्र मंत्र का शाब्दिक अर्थ है कैलकुलेटिंग इंस्ट्रूमेंट यानी गणना करने वाला यंत्र
क्यों बनाया गया था जंत्र मंत्र को
महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय को खगोल विज्ञान में अत्यधिक रुचि थी उन्होंने देखा कि खगोलीय पिंडों की स्थिति का निर्धारण करने के लिए उस समय उपयोग की जाने वाली जिस तालिका में वास्तविक स्थिति और तालिका में दी गई गणना हों के बीच मेल नहीं था इस समस्या को हल करने के लिए उन्होंने पांच नई वेधशाला हों का निर्माण विभिन्न शहरों में किया जिनमें दिल्ली, वाराणसी, उज्जैन और मथुरा भी शामिल है।
वेधशाला के यंत्र और उनका उपयोग
जयपुर के जंतर मंतर में कुल 19 यंत्र हैं जो समय मापने ग्रहण की भविष्यवाणी करने प्रमुख तारों और पिंडों की स्थिति का पता लगाने ग्रहों की डिक्लाइन को मापने और खगोलीय ऊंचाई एवं अन्य खगोलीय आंकड़ों को निर्धारित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं वृहत सम्राट यंत्र जिसका अर्थ है यंत्रों का महान राजा 27 मीटर यानी 88 फीट ऊंचा है जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी धूप घड़ियों में से एक बनाता है इसका मुख 27 डिग्री कोण पर स्थित है जो जयपुर का अक्षांश है।
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यह जयपुर के स्थानीय समय में लगभग दो सेकंड की सटीकता के साथ समय बताने के लिए जाना जाता है इसकी छाया 1 मिलीमीटर प्रति सेकंड की गति से दिखाई देती है शीर्ष पर मौजूद एक छोटी छत्री या गुंबद का उपयोग ग्रहण और मानसून के आगमन की घोषणा के लिए एक मंच के तौर पर किया जाता है इन यंत्रों का आकार बहुत विशाल है ताकि उनकी सटीकता बढ़ाई जा सके हालांकि निर्माण के समय में राज मित्रं को इतनी बड़ी संरचनाओं का अनुभव नहीं था।
जंतर मंतर का निर्माण स्थानीय पत्थर और संगमरमर से किया गया था प्रत्येक यंत्र पर खगोलीय गणना हों को मापने के लिए एक स्केल अंकित है जो संगमरमर की आंतरिक सतह पर खुदा हुआ है इसके अलावा कुछ यंत्रों के निर्माण में कांसे की पट्टियां ईंट और गारे का भी उपयोग किया गया था यह वेधशाला लगभग 18700 वर्ग मीटर के इलाके में फैली हुई है इस वेधशाला का उपयोग साल 1800 तक नियमित रूप से होता रहा लेकिन इसके बाद यह उपेक्षा और जरजर अवस्था में चली गई जंतर मंत्र को ब्रिटिश शासन के दौरान भी कई बार पुनर स्थापित किया गया।
विशेष रूप से 1902 में 1948 में इसे एक राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया 2006 में एक बार फिर से बड़े स्तर पर इसका पुनर स्थापन किया गया 20वीं सदी की शुरुआत में पुनर स्थापन प्रक्रिया के दौरान कुछ यंत्रों की मूल निर्माण सामग्री को बदलकर नई सामग्रियों का उपयोग किया गया था 1968 में इसे राजस्थान का राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गयायह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि जंतर मंतर का निर्माण कब श शुरू हुआ था लेकिन 1728 तक यहां कई यंत्र बनाए जा चुके थे।
जयपुर में इन यंत्रों का निर्माण 1738 तक जारी रहा 1735 के दौरान जब निर्माण अपने चरम पर था उस समय कम से कम 23 खगोल शास्त्री जयपुर में काम कर रहे थे बदलते राजनीतिक माहौल के कारण जयपुर ने दिल्ली की जगह राजा जयसिंह की मुख्य वेधशाला का स्थान ले लिया और यह उनकी मृत्यु 1743 तक उनका मुख्य खगोलीय केंद्र बना रहा राजा जयसिंह के निधन के बाद उनके उत्तराधिकारी ईश्वरी सिंह के शासनकाल में वेधशाला को समर्थन मिलना बंद हो गया।
इसका कारण उनके और उनके भाई के बीच उत्तराधिकार की लड़ाई थी इसके बाद ईश्वरी सिंह के उत्तराधिकारी माधव सिंह ने वेधशाला का समर्थन किया लेकिन इसकी गतिविधियां जयसिंह के समय की तरह सक्रिय नहीं रही प्रताप सिंह के शासनकाल में जंतर मंतर का आंशिक रूप से पुनर स्थापन किया गया हालांकि इस समय वेधशाला की गतिविधियां फिर से कम हो गई।
इस दौरान इस क्षेत्र में एक मंदिर का निर्माण किया गया और प्रताप सिंह ने इस वेधशाला स्थल को एक गन फैक्ट्री में बदल दिया आगे चलकर राजा राम सिंह ने 1876 में जंतर – मंतर को बहाल किया उन्होंने कुछ यंत्रों को अधिक टिकाऊ बनाने के लिए उनकी रेखाओं में सीसे का उपयोग किया और कुछ प्लास्टर से बने यंत्रों को पत्थर से पुनर स्थापित किया गया हालांकि जल्द ही वेधशाला फिर से उपेक्षित हो गई और 1901 तक इसे बहाल नहीं किया गया माधो सिंह द्वितीय के शासनकाल में इसे फिर से एक बार पुनर स्थापित किया गया
प्राचीन भारतीय ग्रंथों से मिली प्रेरणा
वैदिक ग्रंथों में खगोलीय शब्दावली समय मापन और कैलेंडर का उल्लेख मिलता है लेकिन खगोलीय यंत्रों का स्पष्ट वर्णन नहीं है खगोलीय यंत्रों जैसे शंकु और क्लप्स का सबसे पहला उल्लेख वै दंगों में मिलता है शंकु जो कि जंतर मंत्र में भी उपयोग किया गया है का वर्णन प्राचीन ग्रंथों जैसे कात्यायन शुलभ सूत्र में किया गया है इसके अलावा खगोलीय यंत्रों पर चर्चा चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के हिंदू ग्रंथ अर्थशास्त्र बौद्ध ग्रंथ सार्दुल कर्ण अवदाना और जैन ग्रंथ सूर्य प्रज्ञ पति में भी की गई है।
खगोल शास्त्रियों जैसे आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, वरा मिहीर, श्रीपति और भास्कर ने यंत्रों और खगोलीय सिद्धांतों पर महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है भास्कर ने विशेष रूप से यंत्र अध्याय में यंत्रों का विस्तृत वर्णन दिया है इन में कई यंत्रों जैसे चक्र यंत्र यष्टि यंत्र धनुर यंत्र और नाड़ी वलय यंत्र के सिद्धांतों का उल्लेख है जो दर्शाता है कि भारत में खगोलीय यंत्रों का विकास गहरी ऐतिहासिक और वैचारिक जड़ों से प्रेरित है सवाई जयसिंह द्वारा बनाई गई।
खगोलीय तालिका को जिजी मोहम्मद शाही के नाम से जाना जाता था यह तालिका एं भारत में लगभग एक सदी तक लगातार उपयोग की गई हालांकि इन तालिका हों का भारत के बाहर ज्यादा महत्व नहीं था इनका उपयोग खगोलीय पिंडों की स्थिति जानने के साथ-साथ समय मापने के लिए भी किया जाता था।
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