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ओलंपिक्स में भारतीय हॉकी का स्वर्णिम इतिहास

Indian Hockey History

-: Indian Hockey History :-

ओलंपिक का नाम सामने आते ही भारतीय हॉकी का वह स्वर्णिम दौर आज भी सुर्खियां बटोर है जिस पर हर भारतीय गर्व करता है भारतीय हॉकी का ओलंपिक्स में गोल्डन रिकॉर्ड है जो आज भी कायम है हॉकी में आठ स्वर्ण पदकों का दबदबा इस दौर में भी दूसरी टीमों के लिए एक उदाहरण है हालांकि 1980 के मॉस्को ओलंपिक्स के बाद वह सिलसिला टूट गया था भारत के ओलंपिक इतिहास में हॉकी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है यही एक खेल है जिसमें हमने पूरी दुनिया पर राज किया हॉकी में भारत ने अब तक आठ स्वर्ण पदक सहित कुल 12 मेडल अपने नाम किए हैं आज हम जानेंगे भारतीय हॉकी के स्वर्णम इतिहास को।

एमस्टरडम ओलंपिक्स 1928

भारतीय हॉकी के स्वर्ण युग की शुरुआत- भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में पहली बार 1928 में कदम रखा था फील्ड हॉकी 1908 और 1920 के खेलों का हिस्सा थी लेकिन भारत ने इसमें भाग नहीं लिया था जब भारतीय हॉकी टीम 1928 ओलंपिक खेलों में भाग लेने के लिए बॉम्बे बंदरगाह से एमस्टरडम रवाना हो रही थी तब सिर्फ तीन लोग उसे विदा करने आए थे ।

इसके उलट जब टीम स्वर्ण पदक जीतकर भारत लौटी तब हजारों लोग विजेता टीम का स्वागत करने के लिए खड़े थे 1928 ओलंपिक के हॉकी इवेंट में कुल नौ टीमों ने भाग लिया था 17 मई को टूर्नामेंट के अपने शुरुआती मुकाबले में भारत ने ऑस्ट्रिया को 6-0 से हरा दिया इसके बाद भारत ने बेल्जियम को 9-0 और डेनमार्क को 5-0 से मार दी स्विट्जरलैंड को 6-0 से हराने के साथ ही भारतीय टीम फाइनल में पहुंच गई।

मेजर ध्यानचंद का चला जादू

26 मई को टूर्नामेंट के फाइनल में भारत के सामने कई परेशानियां खड़ी थी फिरोज खान चोट और शौकत अली बुखार के चलते फाइनल मुकाबले से बाहर हो गए थे वहीं कप्तान जयपाल सिंह भी कुछ मैच पहले ही स्वदेश लौट चुके थे इसके बावजूद भारत ने 23000 फैंस के सामने नीदरलैंड्स को 3-0 से मात दे दी ध्यानचंद ने दो और जॉर्ज मार्टिनस ने एक गोल दाक करर भारतीय हॉकी के स्वर्ण युग की शुरुआत की।

पूरे टूर्नामेंट में भारत ने कुल 29 गोल किए थे जिनमें से 14 गोल तो अकेले ध्यानचंद ने ही दागे थे भारतीय टीम के विजय अभियान की एक खास बात यह रही कि उसने पूरे टूर्नामेंट में एक भी गोल नहीं खाया इसमें सबसे बड़ा योगदान भारतीय गोलकीपर रिचर्ड एलन का था एलन गोल पोस्ट के सामने दीवार बनकर खड़े हो गए थे और विपक्षी टीम का कोई भी खिलाड़ी इस दीवार को भेद नहीं सका।

लॉस एंजेलिस ओलंपिक्स 1932

अमेरिका को 241 के विशाल अंतर से हराया- 1929 की आर्थिक मंदी का असर लॉस एंजलिस ओलंपिक खेलों पर भी पड़ा था इसका नतीजा यह हुआ कि हॉकी स्पर्धा में भारत जापान और अमेरिका ने ही हिस्सा लिया भारतीय टीम का पहला मुकाबला जापान से हुआ जिसे भारत ने 11-1 से अपने नाम कर लिया भारत का अगला मुकाबला मेजबान अमेरिका से होना था इस मुकाबले में भारतीय टीम के जीत की उम्मीदें सबको थी लेकिन शायद ही किसी ने यह कल्पना की होगी कि भारत औसतन हर एक 3 मिनट पर गोल करेगा भारत ने इस मुकाबले में गोलों की झड़ी लगाते हुए अमेरिका को 24-1 के विशाल अंतर से हराया था।

गोलकीपर का ऑटोग्राफ देना पड़ा महंगा

अमेरिका की ओर से इकलौता गोल विलियम वडिंगटन ने किया लेकिन उनके गोल करने की कहानी भी काफी दिलचस्प है भारतीय टीम के आक्रमण से अमेरिकी टीम के हौसले पस्त हो चुके थे ऐसे में एक मौके पर अमेरिकी खिलाड़ियों को भारतीय रक्षा पंक्ति ने अपने घेरे में प्रवेश करने दिया लेकिन जब खिलाड़ियों ने पीछे मुड़कर देखा तो पता चला कि गोलकीपर रिचर्ड एलन गोल पोस्ट पर मौजूद ही नहीं थे।

वह तो गोल पोस्ट के पीछे ऑटोग्राफ दे रहे थे इस तरह भारतीय गोलकीपर की दरया दिल्ली से अमेरिका एक गोल करने में सफल रहा अमेरिका के खिलाफ इस जीत के साथ ही भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में अपना दूसरा स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया भारत ने दो मुकाबलों में कुल 35 गोल दागे जिनमें से 25 गोल दो भाइयों रूप सिंह और ध्यानचंद के नाम रहे रूप सिंह ने 13 और बड़े भाई ध्यानचंद ने 12 गोल दागे थे

बर्लिन ओलंपिक 1936

भारत ने लगाई गोल्डन हैट्रिक – बर्लिन में भारतीय हॉकी टीम की कमान ध्यानचंद के हाथों में थी भारत ने शानदार आगाज करते हुए लीग स्टेज के अपने पहले मैच में ही हंगरी को 4-0 से शिकस्त दे दी थी इसके बाद भारत ने अमेरिका को 7-0 और जापान को 9-0 से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया सेमीफाइनल में भारत ने फ्रांस को 10-0 से मात दी

जर्मनी से लिया बदला

फाइनल मुकाबले में भारत का मुकाबला जर्मनी से हुआ उस फाइनल में भारत ने अभ्यास मैच में मिली हार का बदला लेते हुए जर्मनी को 8-1 से मात दी इस जीत के साथ ही भारतीय हॉकी टीम ने लगातार तीसरी बार स्वर्ण पदक पर कब्जा किया गौर तलब है कि 1936 के ओलंपिक खेल शुरू होने से पहले एक अभ्यास मैच में भारतीय टीम को जर्मनी ने 4-1 से हरा दिया था मेजर ध्यानचंद ने अपनी आत्मकथा गोल में लिखा है इस हार ने हमें इतना हिलाकर रख दिया था कि हम पूरी रात सो नहीं पाए।

मेजर ध्यानचंद ने ठुकराया हिटलर का ऑफर

कहा जाता है कि शानदार प्रदर्शन से खुश होकर हिटलर ने ध्यानचंद को खाने पर बुलाया और उन्हें जर्मनी की ओर से खेलने का ऑफर दिया हिटलर ने इसके बदले उन्हें जर्मन सेना में कर्नल के पद का भी लालच दिया था।

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लेकिन ध्यानचंद ने कहा हिंदुस्तान मेरा वतन है और मैं वहां खुश हूं मैंने भारत का नमक खाया है और मैं भारत के लिए ही खेलूंगा हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने अपने इस आखिरी ओलंपिक में कुल 13 गोल दागे थे इस तरह एमस्टरडम, लॉस एंजलिस और बर्लिन ओलंपिक को मिलाकर कर ध्यानचंद ने कुल 39 गोल किए जो उनकी बादशाहत को बयां करते हैं।

लंदन ओलंपिक्स 1948

आजादी के बाद अंग्रेजों से लगान वसूला- 1948 के लंदन ओलंपिक में पहली बार भारत ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भाग लिया था 1947 में हुए भारत के बंटवारे के बाद भारतीय हॉकी टीम बिखर गई थी इक्तीदार अली दारा जैसे कई खिलाड़ी पाकिस्तान चले गए थे जिसके चलते भारतीय हॉकी महासंघ यानी कि आईएफएच को टीम चुनने में काफी मुश्किलें आई।

अंततः किशन लाल के नेतृत्व में नई नवेली भारतीय टीम लंदन पहुंची भारतीय टीम ने अपने पहले ही मैच में ऑस्ट्रिया को 8-0 से हराकर अपने इरादे जाहिर कर दिए इसके बाद भारत ने अर्जेंटीना को 9-1 और स्पेन को 2- 0  से मात देकर सेमीफाइनल में जगह बनाई सेमीफाइनल में भारत ने नीदरलैंड्स को एक रोमांचक मुकाबले में 2- 1 से मात दी

लगातार चौथा स्वर्ण पदक

फाइनल में भारतीय टीम के सामने ग्रेट ब्रिटेन की टीम थी भारत के लिए यह मैच बेहद खास था क्योंकि इस मुकाबले के ठीक 3 दिन बाद पूरा देश आजादी की पहली वर्ष गांठ मनाने जा रहा था भारत ने फाइनल में ग्रेट ब्रिटेन को 4-0 से मात देकर लगातार चौथा स्वर्ण पदक जीत लिया इस जीत के बाद पूरा देश अंग्रेजों के खिलाफ मिली इस जीत से खुशी से झूम उठा।

इसके बाद भारतीय टीम ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक्स और 1956 के मेलबर्न ओलंपिक्स में भी स्वर्ण जीता यानी कि हॉकी में भारत ने लगातार छह स्वर्ण जीतकर एक रिकॉर्ड कायम कर दिया था आगे चलकर 1960 के रोम ओलंपिक्स में भारत लगातार सात सण जीतने के सपने से चूक गया यहां भारतीय टीम को सिल्वर मेडल से ही संतोष करना पड़ा

जब पाकिस्तान ने तोड़ा भारतीयों का दिल

फाइनल में भारत के सामने पाकिस्तानी टीम थी जिसने स्पेन को मत देकर फाइनल में जगह बनाई थी मुकाबले के छठे मिनट में ही अहमद नसीर ने गोल करके पाक टीम को बढ़त दिला दी इसके बाद भारत ने बराबरी करने की बहुत कोशिश की लेकिन पाकिस्तान के डिफेंस को भेद नहीं पाए अंततः भारत यह मुकाबला 0-1 से हार गया था इस हार के साथ ही भारत का लगातार सातवीं बार स्वर्ण पदक जीतने का सपना टूट गया

टोक्यो ओलंपिक्स 1964

पाकिस्तान से लिया बदला – टोक्यो ओलंपिक्स में भारतीय टीम की साख दांव पर लगी थी करोड़ों भारतीय प्रशंसकों की यही ख्वाहिश थी कि टीम इंडिया पाकिस्तान को मात देकर स्वर्ण पदक जीत कर आए जिसे पूरा करने में भारतीय टीम पूरी तरह सफल भी रही टोक्यो में भारतीय टीम की कमान चरणजीत सिंह के हाथों में थी इस ओलंपिक में भारतीय टीम ने सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया को 3-1 से हराकर फाइनल में जगह बनाई थी।

उधर पाकिस्तान ने भी स्पेन को 3- 0 से मात देकर फाइनल में जगह बना ली यानी कि एक बार फिर भारत और पाकिस्तान फाइनल में एक दूसरे से भिड़ने वाले थे फाइनल मुकाबले में भारतीय टीम का लक्ष्य रोम ओलंपिक की हार का बदला चुकता करना था अंततः भारत ने इस मुकाबले को 1-0  से जीतकर रोम ओलंपिक में फाइनल में मिली हार का बदला ले लिया।

पाकिस्तान को मात देकर भारतीय टीम के सातवीं बार स्वर्ण पदक जीतने पर पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई इसके बाद 1968 के मेक्सिको ओलंपिक में पहली बार ऐसा मौका आया जब भारतीय टीम फाइनल में जगह नहीं बना पाई इस ओलंपिक में भारत को कहां से पदक मिला 1972 के मियूनिक ओलंपिक में भी भारत कस्य से पदक ही जीत सका हालांकि यह भारत का ओलंपिक्स में लगातार 10वां मेडल था

मॉस्को ओलंपिक 1980

1976 के मोंट्रियल ओलंपिक में भारतीय टीम पदक जीतने से चूक गई थी ओलंपिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था जब भारत के हिस्से में कोई भी पदक नहीं आया हालांकि मॉस्को में भारत ने स्वर्ण पदक जीतकर जरूर इसकी भरपाई कर दी थी।

फाइनल में भारत का मुकाबला पल में टॉप पर रहने वाली स्पेनिश टीम से हुआ टीम इंडिया ने बेहद रोमांचक फाइनल मुकाबले में स्पेन को 4-3 से हराकर रिकॉर्ड आठवीं बार स्वर्ण पदक जीत लिया भारत को 16 साल बाद स्वर्ण पदक दिलवाने में सुरेंद्र सिंह सोड़ी की अहम भूमिका रही मॉस्को ओलंपिक में सुरेंद्र सिंह ने कुल 15 गोल दागे जो एक ओलंपिक में किसी भी भारतीय खिलाड़ी का सर्वाधिक स्कोर था।

टोक्यो ओलंपिक 2020

भारतीय टीम ने मनप्रीत सिंह की कप्तानी में शानदार प्रदर्शन करते हुए टोक्यो में कांस्य पदक जीता यह पदक 41 साल बाद भारतीय टीम को मिला था इससे पहले भारत को आखिरी पदक 1980 में मॉस्को में मिला था

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