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आखिर कैसे डूबी थी द्वारका नगरी?

Dwarka City History & facts

-: Dwarka City History & facts :-

समुद्र की गहराइयों में दबी एक नगरी जो कभी सोने से चमकती थी क्या यह वही द्वारका है जहां स्वयं भगवान कृष्ण ने शासन किया था श्री कृष्ण ने इसे अपनी यदुवंशी कुल के लिए सुरक्षित स्थान के तौर पर बसाया था ताकि वे मथुरा के आक्रमणों से बच सकें लेकिन जब श्री कृष्ण इस दुनिया से विदा हुए तो यह पूरी नगरी समुद्र में समा गई।

पर क्या सच में ऐसा हुआ या सिर्फ यह एक मिथक है आधुनिक विज्ञान और पुरातत्व विदों की खोज ने जो खुलासे किए हैं वे चौका देने वाले हैं तो आइए आज हम सुलझा हैं द्वारिका के रहस्यों को और जानते हैं क्या सच में समुद्र के नीचे भगवान श्री कृष्ण की नगरी बसी थी।

द्वारिका हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है और इसे चार धामों में से एक तथा सप्त पुरि हों में शामिल किया गया है यह श्री कृष्ण की कर्म भूमि और भारत के सात सबसे प्राचीन नगरों में से एक मानी जाती है भारतीय इतिहास और पुराणों में द्वारका का जिक्र बहुत विस्तार से मिलता है।

श्रीमद् भागवत, महाभारत और विष्णु पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने जब मथुरा छोड़ने का निर्णय लिया तब उन्होंने समुद्र के किनारे एक अद्भुत नगरी बसाई जिसका नाम था द्वारका यह कोई साधारण शहर नहीं था बल्कि एक चमत्कारी सात द्वीपों से घिरी स्वर्ण निम नगरी थी।

कहा जाता है कि यह नगरी इतनी समृद्ध थी कि यहां की गलियां सोने से दमकती थी महाभारत के मोसल पर्व और सभा पर्व द्वारिका नगरी की स्थापना का जिक्र किया गया है इसके अलावा इसमें इसकी समृद्धि और इसके जल मग्न होने का भी उल्लेख है वहीं भागवत पुराण के स्कंद 10 और 11 में भगवान श्री कृष्ण द्वारा द्वारिका के निर्माण और यदुवंश के अंत के बाद नगर के समुद्र में समा जाने का वर्णन मिलता है।

विष्णु पुराण, हरिवंश पुराण, और स्कंद पुराण में द्वारका की भव्यता उसकी नगर व्यवस्था और उसके सात द्वीपों का उल्लेख है द्वारका की इमारतें सोने चांदी और रत्नों से सुसज्जित थी महलों के खंबे कीमती पत्थरों से जड़े हुए थे और उनके गुंबद सूर्य की रोशनी में चमकते थे यह नगरी समुद्र के किनारे बसी थी और अपनी दिव्यता से समस्त आर्यावर्त को आकर्षित करती थी।

इस नगर की गलियां चौड़ी और स्वच्छ थी जहां व्यापार और वाणिज्य फल फूल रहा था बाजारों में कीमती धातुएं वस्त्र और दुर्लभ मसाले बेचे जाते थे बड़े-बड़े राजकीय भवनों के साथ यहां सुंदर उद्यान जलाशय और कलात्मक मूर्तियों से सजे हुए स्थान थे भगवान श्री कृष्ण यहां न्याय प्रिय राजा के रूप में विराजमान थे।

उनके प्रशासन में नगर सुव्यवस्थित था जहां नागरिक सुख समृद्धि का जीवन व्यतीत कर रहे थे यहां धार्मिक अनुष्ठान संगीत नृत्य और शिक्षाओं का भी बड़ा महत्व था जिससे यह नगरी आध्यात्मिकता और संस्कृति का केंद्र बनी हुई थी यहां की कुल जनसंख्या 9 लाख से अधिक मानी जाती थी।

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कुछ ग्रंथों के अनुसार तो यह 10 लाख से ज्यादा थी नगर का क्षेत्रफल लगभग 84 योजन था आपको बता दें कि एक योजन में 12 से 15 किलोमीटर होते हैं यानी कि द्वारिका लगभग 1000 से 1200 वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैली थी

सात द्वीपों से घिरी नगरी

द्वारका केवल एक नगरी नहीं बल्कि सात छोटे-छोटे द्वीपों का समूह भी था जिन पर विस्तृत बस्तियां बसाई गई थी नगर के भीतर 16108 महल थे यह संख्या भगवान श्री कृष्ण की 16108 रानियों से जुड़ी मानी जाती है भगवान श्री कृष्ण का महल जिसे हरि दर्शन महल कहा जाता था। सोने और चांदी से बना था इसके अलावा यहां एक पुल का भी निर्माण किया गया जिसका नाम था सुदामा सेतु।

यह सेतु नगर के द्वीपों को जोड़ने वाला विशाल पुल था यहां एक विशाल सभा भवन भी था जहां पर शासन, न्याय और प्रशासन से जुड़े निर्णय लिए जाते थे वहीं रंगभूमि जहां युद्ध कला, घुड़सवारी, रथ संचालन और अन्य सैन्य प्रशिक्षण होते थे वह भी यहां मौजूद थी द्वारिका नगरी चारों ओर से सुदृढ़ दीवारों और समुद्र से घिरी थी जिससे बाहरी आक्रमणों से हमेशा बची रही।

आर्थिक और व्यापारिक समृद्धि

द्वारिका भारत के सबसे बड़े समुद्री व्यापार केंद्रों में से एक थी द्वारका नगरी अरब सागर के माध्यम से मिस्र, मेसोपोटामिया रोम और ग्रीस से व्यापार करती थी यहां से कपास, मसाले, हाथी दांत, कीमती रत्न, स्वर्ण और चांदी का निर्यात किया जाता था राजा के रूप में भगवान श्री कृष्ण द्वारका के सर्वे सर्वा थे। लेकिन प्रशासन के लिए विभिन्न मंत्रियों और सेना प्रमुखों को नियुक्त किया गया था।

अगर बात करें सैन्य शक्ति की तो यहां 64 लाख से अधिक सैनिक श्री कृष्ण की यादव सेना में थे 4 लाख से अधिक अश्व 6000 से अधिक रथ सेना और 1000 से अधिक युद्ध हाथी इनकी सेना में शामिल थे युद्ध में महारथी सेनापति जैसे बलराम आदि शामिल थे द्वारका में जल निकासी और स्वच्छता की उन्नत प्रणाली भी प्रयोग की जाती थी विशाल तालाब और जलाशय कृषि और पशुपालन के लिए उपजाऊ भूमि और गौशालाएं यहां जगह-जगह थी।

कैसे जलमग्न हुई द्वारका

महाभारत के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के गोलोक धाम गमन के बाद द्वारिका धीरे धीरे समुद्र में समा गई महाभारत में मोसल पर्व मई उल्लेख है की यदु वंश विनाश के बाद द्वारिका का जलमग्न होना तय था यह गौरवशाली नगर समुद्र की लहरों में धीरे-धीरे समा गया पुराणों के अनुसार सात दिनों तक समुद्र की जल राशि बढ़ती रही और अंततः द्वारिका जलमग्न हो गई।

पुरातात्विक खोज और प्रमाण

1963 में डेकन कॉलेज पुणे भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण और गुजरात सरकार के सहयोग से द्वारिका का पहला आधिकारिक एक्सक वेशन किया गया था इस दौरान 3000 साल पुराने मिट्टी के बर्तन और अवशेष भी मिले जो द्वारिका की प्राचीनता को दर्शाते हैं इसके बाद 1983 में प्रसिद्ध पुरातत्वविद डॉक्टर एस आर राव ने समुद्री द्वारिका के अवशेषों की खोज की उन्होंने गुजरात के ओखा तट से 40 मीटर की गहराई में द्वारिका के डूबे हुए महलों और पत्थरों से बनी सड़कों के प्रमाणों को खोजा।

इस खोज में महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इसमें 9000 साल पुराने नगर के अवशेष समुद्र में 40 मीटर गहराई पर मिले महल सीढ़ियां दीवारें और पत्थरों से बनी संरचनाएं पाई गई इसके अलावा शंख मुद्राएं ताम्र उपकरण और मिट्टी के बर्तन जो महाभारत काल के बताए जाते हैं वह भी यहां काफी बड़ी मात्रा में मिले कार्बन डेटिंग परीक्षण से यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह अवशेष 7500 ईसा पूर्व तक के हो सकते हैं।

यह विश्व की सबसे पुरानी ज्ञात डूबी हुई नगरिया में से एक हो सकती है द्वारका सिर्फ एक नगर नहीं बल्कि वैभव आध्यात्मिकता और उन्नत विज्ञान का अद्भुत उदाहरण था भगवान श्री कृष्ण द्वारा बसाई गई यह नगरी विश्व की सबसे समृद्ध नगरिया में से एक थी हालांकि समुद्र की लहरों ने इसे अपने गर्भ में संभा लिया लेकिन इसके अवशेष अब भी इसके ऐतिहासिक और पौराणिक अस्तित्व को प्रमाणित कर रहे हैं आज वैज्ञानिक और पुरा तत् विदों द्वारा इसे भारतीय अटलांटिस कहा जाता है और यह दुनिया की सबसे प्राचीन डूबी हुई सभ्यताओं में से एक मानी जाती है।

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