-: Calendar & Samvat History :-
कैलेंडर एक ऐसी वस्तु है जिसकी अहमियत जब वह ना हो तब पता चलती है कैलेंडर अन्य आवश्यक वस्तुओं के मुकाबले मामूली प्रतीत हो सकता है लेकिन यह भी एक फैक्ट है कि हम सभी कैलेंडर के अनुसार ही चलते हैं काम की या छुट्टी की योजना तैयार करनी है तो कैलेंडर की ही जरूरत पड़ती है।
मनुष्य में आदि काल से ही यह प्रवृत्ति प्रबल रही है कि वह हर चीज पर नियंत्रण रखे ऐसी चीजों पर भी जो उसके सामर्थ्य के बाहर हो प्राकृतिक घटनाओं का भी लेखाजोखा रखने का कार्य खोजी और उत्साही प्राचीन मनुष्य ने समय समय पर किया दुनिया भर में सूर्योदय और सूर्यास्त नियम से होता है चंद्रमा नियम से घटता और बढ़ता है।
यही वे प्राकृतिक घटनाएं थी जिनके अनुसार मनुष्य स्वयं के कार्यों को साध सकता था उनके अनुसार चल सकता था और उसने ऐसा किया भी इसी तरह उसने समय को बांधने के लिए घड़ी का आविष्कार किया तथा गुजरते दिन को मापने के लिए पंचांग का सूर्य के अनुसार दिन और महीने विभाजित कर तैयार हुआ सौर पंचांग और चंद्र की कलाओं की गणना पर आधारित पंचांग बना चंद्र पंचांग।
दुनिया का सबसे पुराना कैलेंडर
साल 2013 की बात है अंग्रेज पुरा तत् विदों ने दावा किया कि उन्होंने विश्व का सबसे पुराना कैलेंडर खोज निकाला है उन्हें यह कैलेंडर मिला स्कॉटलैंड की वॉरेन फील्ड पर यह कैलेंडर जमीन में किए गए 12 गड्ढों में निर्मित था यह 12 गड्ढे दक्षिण पूर्व शितिज की दिशा में थे जो कि एक ऐसी पहाड़ी की ओर इशारा कर रहे थे जहां से शीतकालीन अयनांत यानी विंटर सॉलिट सनराइज होता है पुरा तत् विदों का मानना है कि शिकारी और संग्रह करता मनुष्य इन गड्ढों का उपयोग सूर्य के मुकाबले चांद की ऊंचाई और कला तथा बदलते मौसम की जानकारी पाने के लिए करते थे इस कैलेंडर को 10000 साल पुराना बताया गया।
आज का कैलेंडर
मौजूदा समय में जो कैलेंडर हमारे आपके घर में टंगा हुआ है उसका नाम है ग्रेगोरियन कैलेंडर अब यह ग्रेगोरियन कैलेंडर किस तरह अस्तित्व में आया इसका भी रोचक इतिहास है दरअसल इसे 13वें पोप ग्रेगोरी द्वारा प्रचलित किया गया था जिन्होंने इसे जूलियन कैलेंडर में सुधार के बाद पेश किया था वहीं जूलियन कैलेंडर रोमन सम्राट जूलियस सीजर के द्वारा बनाया गया था जिन्होंने 46 ईसा पूर्व में इसकी शुरुआत की थी उन्हीं के नाम पर इसे जूलियन कैलेंडर कहा गया और चूंकि वे रोम के सम्राट थे इसीलिए इसे रोमन कैलेंडर भी कहा जाता है।
इस कैलेंडर में 365 दिन थे और प्रति चार वर्षों में एक अतिरिक्त दिन जोड़ा जाता था यानी कि इसमें एक लीप ईयर भी होता था यह कैलेंडर बहुत हद तक सटीक तो था लेकिन सम्राट से 100 वर्ष की गणना में महज 11 मिनट की भूल हो गई थी इसी कारण समय के साथ यह कैलेंडर मौसम के साथ सामंजस्य बैठाने में भूल करता रहा इस भूल का परिणाम यह हुआ कि जिस ईस्टर को 21 मार्च को मनाया जाता था वह कैलेंडर में दूर होता चला गया पोप ग्रेगरी को इस बात की चिंता हुई और उन्होंने अलोयसियस लियस नामक इटालियन वैज्ञानिक को इस भूल को सुधारने के लिए बुलाया।
काफी हिसाब किताब लगाने के बाद लीशियस ने सुझाया कि इस भूल को सुधारने के लिए 10 दिन की छलांग लगानी होगी साथ ही उसने एक सुझाव यह भी दिया कि अगले चा 40 वर्षों तक लीप ईयर का अस्तित्व ना रहे जब जूलियन कैलेंडर की 4 अक्टूबर 1582 गुरुवार की रात को लोग सोए तो अगले दिन यानी शुक्रवार को लोग ग्रेगोरियन कैलेंडर की 15 अक्टूबर 1582 की तारीख के साथ जा गए हालांकि मजेदार बात यह है कि इतना सटीक होने के बाद भी यह कैलेंडर सर वर्ष से 26 सेकंड पीछे चलता है इसी के चलते 3323 सालों में एक दिन का अंतर आएगा जिसे हाल फिलहाल के लिए तो नजरअंदाज किया जा सकता है।
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भारत के पंचांग
जिस समय जूलियस सीजर ने जूलियन कैलेंडर को चलाया उस समय भारत में पहले से ही कई प्रकार के संवत चलन में थे इनमें सबसे प्रसिद्ध संवत है विक्रम संवत जो कि उज्जैन के महान सम्राट विक्रमादित्य द्वारा चलाया गया था इसके आरंभ की तिथि 57 से 58 ईसा पूर्व मानी जाती है महाकवि कालिदास इन्हीं सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्नों में से एक थे हालांकि सम्राट विक्रमादित्य और कालिदास के काल निर्धारण को लेकर विद्वान में कई मतभेद हैं बहरहाल रोचक बात यह है कि राजा प्रजा में यह संदेश देने के लिए कि उनके शासन के साथ एक नए युग का प्रारंभ हो रहा है।
नया संवत चलाते थे लेकिन संवत शुरू करने की एक विशेष परंपरा भी थी और हर कोई संवत आरंभ करने का अधिकारी नहीं था किसी भी नए संवत को शुरू करने की शास्त्र सम्मत विधि यह थी कि जो भी राजा अपना संवत चलाना चाहता है उसे संवत के प्रथम दिन के पूर्व तक राज्य के जितने भी लोग जिस किसी के भी ऋणी हो उन का ऋण चुकाना होगा विक्रम संवत में महीनों के नाम विदेशी संव दों की तरह देवता मनुष्य या संख्यावाचक नहीं है तथा इसकी तिथियां भी सूर्य और चंद्र की गति पर आधारित हैं।
यानी कि यह कहा जा सकता है कि विक्रम संवत वैज्ञानिक और प्रामाणिक है हालांकि भारत में कई प्रकार के संवत प्रचलन में थे जिसका जिक्र 11वीं शताब्दी में भारत आए अल बूनी ने किया था उसने अपनी पुस्तक में जिक्र किया है लोग आमतौर से श्री हर्ष, विक्रमादित्य, शक, वल्लभ और गुप्त वत को काम में लाते हैं मौर्य काल में भी पंचांग निर्माण किया जाता था।
जिसका जिक्र मेगस्थनीज ने किया है मेगस्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में नियुक्त राजदूत था और उसने लिखा है कि नए वर्ष के दिन यहां पंचांग सुनाया जाता है और बच्चों की जन्मपत्री बनाने के लिए उनका जन्म समय लिखा जाता है पुराणों में भी काल निर्धारण स्पष्ट रूप से किया गया है एक महीने को दो पक्ष कृष्ण और शुक्ल तथा वर्ष को दो अयन दक्षिणायन और उत्तरायण में बांटा गया है इसे क्रमशः देवताओं की रात्रि और दिन मानकर हमारे एक वर्ष को देवताओं का एक दिन माना गया है।
राष्ट्रीय संवत
चैत्र प्रतिपदा 1879 22 मार्च 1957 को शक् संवत को भारत के राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में अपनाया गया यह 78 ईसवी में प्रारंभ हुआ था इसके नामकरण के पीछे कई मत हैं लेकिन सबसे प्रचलित मत के अनुसार इसे कुषण राजा कनिष्क ने चलाया था हालांकि इस संवत की शुरुआत किसने की यह भारतीय इतिहास और काल गणना के सबसे बड़े अबूझ प्रश्नों में से एक है।
अन्य संवत् सरों की गाथा
ज्योतिर विदा भरण में कलयुग के छह व्यक्तियों के नाम आए हैं जिन्होंने संवत चलाए थे यह नाम इस प्रकार हैं युधिष्ठिर, विक्रम, शालीवाहन, विजया, अभिनंदन, नागार्जुन व कल्की कलहन ने भी राज तरंगिणी में तीन संवत् सरों के उपयोग का उल्लेख किया है सप्तऋषि संवत, कली संवत और शक संवत कश्मीर में प्रचलित संवत का नाम सप्तऋषि संवत के रूप में मिलता है जिसका उल्लेख कलहन में भी किया गया है।
इसे लौकिक संवत के नाम से भी जाना जाता है यह चंद्र और सौर संवत है और चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को ईसा पूर्व 3076 में प्रारंभ हुआ माना जाता है श्रीलंका के ग्रंथ महाव में उल्लेख है कि सम्राट अशोक का राज्याभिषेक सप्तऋषि संवत 6208 में हुआ था एक अन्य संवत है वीर निर्वाण संवत जिसका संबंध भगवान महावीर के निर्माण से है महावीर स्वामी का निर्माण ईसा पूर्व 527 में कार्तिक कृष्ण अमावस्या की अर्धरात्रि में हुआ था इसलिए इस संवत की प्रथम तिथि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा है एक अन्य प्रसिद्ध और ऐतिहासिक संवत है।
गुप्त संवत गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है इस स्वर्ण युग में समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त जैसे महान प्रतापी सम्राटों ने देश पर शासन किया था चंद्रगुप्त प्रथम ने 319 से 320 ईसवी में गुप्त संवत प्रारंभ किया इसकी शुरुआत सम्राट के राज्य के दिन हुई थी सम्राट चंद्रगुप्त को ही गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है गुप्त संवत तथा शक् संवत के बीच 241 वर्षों का अंतर था इन सम्राट ने लिच्छवी राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया था गुप्त काल में मिले अनेक शिलालेखों में गुप्त संवत की तिथियां उत्कीर्ण है।
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