-: Brihadishvara Temple History & facts :-
तमिलनाडु के तंजावूर में स्थित एक मंदिर जो 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है इसकी ऊंचाई इसकी नक्काशी इसकी भव्यता सब कुछ अद्भुत है लेकिन इसमें सबसे चौकाने वाली बात है इसकी छत पर रखी 80 टन की विशाल ग्रेनाइट शिला इतनी ऊंचाई तक इसे उस समय कैसे पहुंचाया गया था क्या उस समय कोई खास तकनीक मौजूद थी क्या यह एक चमत्कार था या फिर इसके पीछे कोई रहस्यमय शक्ति थी आज हम बृहदेश्वर मंदिर की इस अनसुलझी गुथी को सुलझाने की कोशिश करेंगे।
बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण और इतिहास
यह कहानी हमें 11वीं सदी के महान चोल राजा राज राजा प्रथम के दौर में ले जाती है दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य ने कला संस्कृति और वास्तु कला में दुनिया को चौका देने वाली चीजें दी लेकिन इन सब में सबसे अद्भुत था बृहदीश्वरा इसका निर्माण चोल साम्राज्य के महान राजा राज राजा प्रथम ने 1003 ईसवी से 1010 ईसवी के बीच में करवाया।
इस मंदिर के मुख्य देवता हैं भगवान शिव मंदिर की ऊंचाई 216 फीट है जो अपने समय में दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर था इसके शिखर पर रखे गए पत्थर का कुल वजन 80 टन है जो इसकी एक खास विशेषता है राज राजा प्रथम ने अपनी शक्ति और साम्राज्य की भव्यता दिखाने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया था इसे राज राजेश्वर मंदिर भी कहा जाता था लेकिन बाद में इसे बृहदीश्वरा नाम दिया गया।
चोल शासक भगवान शिव के उपासक थे चोलो द्वारा बनाए गए सबसे शुरुआती मंदिरों में से एक चिदंबरम का नटराज मंदिर है 985 ईसवी में राजगद्दी पर बैठने वाले राज राजा प्रथम ने साल 1004 ईसवी में चिदंबरम के मंदिर को कई बड़े अनुदान और उपहार दिए प्रज्ञता वश मंदिर के अधिकारियों ने उन्हें श्री राज राजा और शिव पद शेखर की उपाधियों से सम्मानित किया।
कुछ लोगों का मानना है कि इसी समय उन्होंने अपनी राजधानी तंजावूर में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर की स्थापना पर विचार किया दूसरे लोगों की राय है कि राज राजा द्वारा अपने साम्राज्य का विस्तार करने के बाद उन्हें सम्राटों में शेर के रूप में जाना जाने लगा उन्होंने अपनी इस उपलब्धि का जश्न मनाने के लिए भगवान शिव को समर्पित इस भव्य मंदिर का निर्माण किया।
राज राजा प्रथम ने अपने शासनकाल के 19वें वर्ष में बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया था इस इमारत और उसके निर्माण से संबंधित जानकारी एक प्रमुख स्रोत व शिलालेख हैं जो मंदिर के चबूतरे पर चारों ओर मौजूद है एक शिलालेख में लिखा है राजा ने अपने शासनकाल के 25 वें वर्ष यानी कि 1010 ईसवी के 215 वें दिन पर मंदिर के निर्माण के शीर्ष पर लगाए जाने वाले सोने के कलश को उपहार के रूप में दिया है।
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इसका अर्थ यह है कि इस भव्य मंदिर को पूरा करने में केवल 6 वर्ष लगे थे इस मंदिर के बारे में एक आश्चर्यजनक बात यह है कि इसमें उपयोग किया गया ग्रेनाइट पत्थर आसपास के इलाकों में मौजूद नहीं था ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के निर्माण के लिए दूर दराज के इलाकों से अच्छी क्वालिटी का ग्रेनाइट लाया जाता था हालांकि यह कहां से लाया गया इसकी सही सही जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि तंजावूर से लगभग 48 किमी दूर ममल नामक पहाड़ी से काटकर इन पत्थरों को लाया जाता था
80 टन का पत्थर इतनी ऊंचाई तक कैसे पहुंचा
इस अद्भुत संरचना का सबसे बड़ा रहस्य है इसकी चोटी पर रखा गया 80 टन का विशाल ग्रेनाइट पत्थर जिसे इतनी ऊंचाई तक उठाने की तकनीक आज भी वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य है इतिहासकारों और वैज्ञानिकों के अनुसार यह पत्थर किसी जादू से नहीं बल्कि अद्भुत इंजीनियरिंग तकनीकों से चोटी तक पहुंचाया गया था।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस मंदिर के निर्माण के लिए 6 किलोमीटर लंबे एक रैंप का निर्माण किया गया था यह रैंप तंजा वड से लेकर मंदिर की चोटी तक धीरे-धीरे चढ़ता हुआ जाता था इस रैंप पर हजारों हाथियों बैलों और मजदूरों की मदद से इस भारी पत्थर को खींचा गया होगा और चोटी तक पहुंचाया गया होगा इस तरह की तकनीक मिस्र के पिरामिड में भी देखी गई है जहां भारी भरकम पत्थरों को ले जाने के लिए रैम्स का प्रयोग किया गया था
मंदिर के अद्भुत और रहस्यमय तथ्य
बृहदेश्वर मंदिर की सबसे से चौकाने वाली बात यह है कि दोपहर के समय इसकी छाया जमीन पर नहीं पड़ती यह अद्भुत वास्तुकला का परिणाम है जहां मंदिर की संरचना इस प्रकार से बनाई गई है कि उसकी छाया तक जमीन पर नहीं पड़ती मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थित विशाल नंदी प्रतिमा भारत की सबसे बड़ी नंदी मूर्तियों में से एक है।
यह एक ही पत्थर को काटकर बनाई गई है और इसका वजन लगभग 25 टन है मंदिर के गर्भ गृह में स्थित शिवलिंग भी एक ही पत्थर से बना है और इसका वजन लगभग 20 टन है जो इसे भारत के सबसे बड़े शिवलिंग में से एक बनाता है इसके अलावा मंदिर की बाहरी दीवारों पर भरत नाट्यम नृत्य की 81 मुद्राओं की नकाशी की गई है जो तमिलनाडु की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है।
मंदिर की दीवारों पर की गई चित्रकारी में फूलों मसालों और पत्तियों से प्राप्त प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया गया था जो आज भी अपनी चमक बनाए हुए हैं मंदिर के निर्माण में किसी भी प्रकार के सीमेंट या मिट्टी का उपयोग नहीं किया गया है पत्थरों को इस प्रकार से जोड़ा गया है कि वे आपस में इंटरलॉक हो जाते हैं जो प्राचीन भारतीय इंजीनियरिंग का एक अद्भुत उदाहरण है।
ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के ऊपरी हिस्से पर कभी भी बिजली नहीं गिरती जबकि यह इलाका ज्यादातर तूफानों से प्रभावित रहता है मंदिर की दीवारों पर सुंदर चोल काली चित्रकार हैं जो भगवान शिव गणेश और अन्य देवी देवताओं के जीवन को दर्शाती हैं इसके गर्भगृह की ऊपरी मंजिल पर 108 करण नृत्य मुद्राओं की मूर्तियां बनी हैं जो भरत नाट्य नृत्य शैली की आधारशिला है तो दोस्तों बृहदीश्वरा की यह अद्भुत विशेषताएं हमें प्राचीन भारतीय वास्तुकला और इंजीनियरिंग की महानता का एहसास कराती हैं यह मंदिर ना केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि यह हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है।
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