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-: Badrinath dham ka rahasya :-
क्या है बद्रीनाथ धाम के छ महीनों तक बंद रहने का कारण मंदिर बंद होने पर भी क्यों नहीं बुझती इस मंदिर की अखंड ज्योति क्यों इस मंदिर में रावल बनने का अधिकार सिर्फ केरल के नंबो दरी ब्राह्मण को ही है आखिर क्या है इस मंदिर की मूर्ति की रोचक कहानी आखिर क्यों वसुधारा झरने का पानी पापियों के ऊपर नहीं गिरता।
बद्रीनाथ में मौजूद भीम पुल का आखिर क्या है रहस्य आखिर क्या है तप्त कुंड का रहस्य जिसके पानी का तापमान हमेशा 54 डिग्री रहता है आखिर क्यों हो जाएगा बद्रीनाथ धाम जल्द ही विलुप्त आखिर क्यों जोशी मठ में मौजूद भगवान नरसिंह की मूर्ति का हाथ हर साल पतला होता जा रहा है जो अब सिर्फ सुई के जितना ही बचा है आखिर यह हाथ मूर्ति से अलग हो जाने पर क्या होगा आखिर कलयुग के अंत का बद्रीनाथ धाम के साथ क्या कनेक्शन है।
देवभूमि के नाम से मशहूर उत्तराखंड अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है इस पूरे राज्य में कई हिंदू मंदिर और तीर्थ स्थल हैं यहां सालों भर पर्यटक घूमने आते हैं उत्तराखंड की हर दूसरी जगह देखने लायक है अपनी संस्कृति सभ्यता और खूबसूरत पहाड़ों की वजह से यह पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र भी माना जाता है। कहते हैं कि क्षीर सागर में श्री हरि विष्णु माता लक्ष्मी के साथ शेषनाग पर रहते हैं जिसे बैकुंठ धाम कहा जाता है जहां वही पुण्य आत्मा जाती है जिसने अपने जीवन से मोक्ष की प्राप्ति कर ली होती है।
क्या आपको पता है कि इस धरती पर भी एक ऐसी जगह है जिसे दूसरा बैकुंठ धाम कहा जाता है इस धरती पर जिस धाम को दूसरे बैकुंठ धाम के रूप में जाना जाता है वह उत्तराखंड यानी देवभूमि में मौजूद है जहां हर साल लाखों श्रद्धालु बड़ी आस्था और श्रद्धा से दर्शन करने आते हैं उत्तराखंड के चमोली जनपद के अल्क नंदा नदी पर स्थित है।
बद्रीनाथ धाम हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक है बद्रीनाथ धाम से जुड़ी यह मान्यता है कि जो आए बद्री वो ना आए ओदरी इसका मतलब है कि जो व्यक्ति जीवन में एक बार बद्रीनाथ के दर्शन कर ले उसे दोबारा माता के गर्भ में नहीं जाना पड़ता है यहां पर दर्शन करने से प्राणी जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है यानी कि उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
हम सभी जानते हैं कि सनातन धर्म में पूजा पाठ के दौरान शंख बजाने का विशेष महत्त्व है यही नहीं किसी भी शुभ काम को शुरू करने से हिंदू धर्म के अनुयाई शंख जरूर बजाते हैं सनातन धर्म में शंख का इतना महत्व होने के बाद भी शंख और चक्रधारी भगवान विष्णु के मंदिर में ही शंख नहीं बजाया जाता है जी हां हम बात कर रहे हैं बद्रीनाथ धाम की दरअसल बद्रीनाथ में पूजा अर्चना के समय कभी शंख नहीं बजाया जाता है अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी कौन सी वजह है जिसके चलते बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता है
बद्रीनाथ धाम के रहस्यों को जानने से पहले हम बात करते हैं बद्रीनाथ धाम के निर्माण के बारे में जिसको लेकर अलग-अलग तरह की बातें की जाती है कुछ जानकारों का कहना है कि बद्रीनाथ धाम की स्थापना भगवान नारायण के द्वारा की गई थी आपको शायद यह नहीं पता होगा कि बद्रीनाथ धाम पहले भगवान शिव का स्थान हुआ करता था जिसमें भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ इस धाम में निवास करते थे।
एक बार जब भगवान विष्णु ध्यान करने के लिए कोई विशेष स्थान ढूंढ रहे थे तो उन्हें यह स्थान दिखाई दिया और वे इस स्थान की ओर आकर्षित हो गए और यह सब जानते हुए कि यह स्थान उनके आराध्य भगवान शिव का है तो वे इस स्थान को भगवान शिव से कैसे मांगते इसीलिए उनके मन में एक लीला करने की आई उन्होंने एक बालक का रूप ले लिया।
वे जोर-जोर से रोने लगे जिसे देखकर कुछ देर बाद माता पार्वती की उन पर नजर गई लेकिन वह बालक चुप नहीं हो रहा था और जब माता पार्वती उनको अंदर लेकर आई तो भगवान शिव समझ गए कि यह नारायण की लीला है भगवान शिव ने कहा कि तुम इसे छोड़ दो यह बालक स्वयं ही चुप हो जा जाएगा लेकिन माता पार्वती नहीं मानी और नारायण रूपी बालक को अंदर सुलाने के लिए ले आई तभी भगवान नारायण के मन में एक और लीला करने की आई और उन्होंने धाम का अंदर से दरवाजा बंद कर लिया ।
जैसे ही भगवान शिव अंदर जाने का प्रयास करते हैं तो भगवान नारायण ने कहा कि प्रभु मुझे यह धाम पसंद आ गया है आप सभी केदारनाथ में वास करें और मैं इसी धाम में रहकर अपने भक्तों को दर्शन दूंगा और तभी से भगवान शिव ने भगवान नारायण को वरदान दिया था कि लोग आज से नारायण को बद्रीनाथ के नाम से भी जानेंगे और तभी से ही भगवान शिव केदारनाथ में चले गए इसलिए ही इस धाम को चारों धामों में प्रमुख माना जाता है बद्रीनाथ मंदिर के संबंध में पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसका निर्माण ब्रह्मादेवी देवताओ के अनुरोध पर भगवान विश्वकर्मा ने कराया था।
बद्रीनाथ मंदिर में मौजूद मूर्ति से जुड़ा रहस्य
बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति की पूजा की जाती है यह मूर्ति 1 मीटर लंबी है जिसे शालिग्राम से निर्मित किया गया है और इसके बारे में मान्यता है कि इसे आदि गुरु शंकराचार्य जी ने सातवीं शताब्दी में अलकनंदा नदी से निकालकर स्थापित किया था और यह मूर्ति भगवान विष्णु की स्वयं प्रकट हुई प्रतिमा में से एक मानी जाती है।
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दरअसल छठवीं शताब्दी के आसपास इस मंदिर की सुरक्षा के लिए कोई भी सैनिक तैनात नहीं थे इसलिए हुड़ों और बौद्धों के डर से पुजारियों ने इस मंदिर की मूर्ति को सुरक्षित रखने के लिए अलकनंदा में फेंक दिया था सैकड़ों वर्षों के बाद जब शंकराचार्य बद्रीनाथ पहुंचे तब उन्होंने पुजारियों से मूर्ति के बारे में पहुचा तो उन्होंने बताया कि मूर्ति को सैकड़ों वर्ष पहले हमारे पूर्वजों ने हुडो के डर से अलकनंदा में फेंक दिया था और हमें यह ज्ञात नहीं है कि उन्होंने कौन सी दिशा में मूर्ति को अलकनंदा में डाला था।
इतना सुनते ही शंकराचार्य ने ध्यान लगाया और अलकनंदा की ओर चल पड़े और अचानक से नारद कुंड में कूद गए यह देखकर पुजारियों में हाहाकार मच गया क्योंकि नारद कुंड का काफी विशाल भवर था जिसमें किसी का जिंदा बचना मुश्किल लगता था लेकिन शंकराचार्य देव पुरुष थे जब वह बाहर आए तो उनके हाथ में बद्री विशाल की मूर्ति थी शास्त्रों के अनुसार इस मंदिर के बारे में बताया गया है कि इस मंदिर में विराजमान भगवान नारायण की पूजा छ महीने इंसान और छह महीने देवता करते हैं
हर साल केदारनाथ की तरह ही 6 महीने के लिए बंद होते हैं इस मंदिर के कपाट
हर साल केदारनाथ धाम के कपाट भाई दूज के दिन छ महीने के लिए बंद कर दिए जाते हैं इसके बाद अक्षय तृतीया पर खुलते हैं कपाट बंद होने की तिथि की घोषणा विजय दशमी के दिन होती है और कपाट खुलने की घोषणा महाशिवरात्रि के दिन की जाती है वहीं बद्रीनाथ धाम के कपाट आमतौर पर केदारनाथ धाम धाम के दो दिनों बाद खुलते हैं।
अब आप यह सोच रहे होंगे कि बद्रीनाथ धाम के कपाट छ महीने के लिए बंद क्यों कर दिए जाते हैं तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के चमोली जिले में है और हर साल अक्टूबर से नवंबर के महीनों में यहां पर तेज बर्फबारी शुरू हो जाती है इसके कारण आवागमन के रास्ते बाधित हो जाते हैं।
इस कारण से हर साल बद्रीनाथ धाम के कपाट को बंद कर दिया जाता है वहीं बद्रीनाथ के कपाट बंद होने के बाद उनकी पूजा जोशी मठ के नरसिंहा मंदिर में स्थित बद्री विशाल उत्सव मूर्ति के तौर पर चलती है
नहीं बुझती है इस मंदिर की अखंड ज्योति
बद्रीनाथ मंदिर के बारे में यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि 6 महीने के लिए मंदिर बंद होने के समय यहां जलाई जाने वाली अखंड ज्योत 180 दिनों से भी अधिक बिना तेल और बाती के लगातार जलती रहती है जी हां जब मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं तो उस समय पुजारी यहां पर एक अखंड ज्योति जलाते हैं और जब छ महीने के बाद दोबारा से कपाट खोले जाते हैं तो यह अखंड ज्योति सभी को जलती हुई ही मिलती है जो आज भी वैज्ञानिकों के लिए किसी रहस्य से कम नहीं है।
बद्रीनाथ धाम के ब्राह्मणों से जुड़ा रहस्य
सातवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने नारायण की मूर्ति को नारद कुंड से निकालकर यहां स्थापित किया था और उन्होंने यह परंपरा शुरू की थी कि उत्तर भारत में दक्षिण के ब्राह्मण और दक्षिण भारत में उत्तर के ब्राह्मण पुजारी बने इससे संस्कृतियों का आदान प्रदान होगा यही वजह है कि बद्रीनाथ मंदिर में केरल के नंबूद्रीपद ब्राह्मण ही रावल बन सकते है।
रावल बनने के लिए जरुरी शर्त है की वह ब्रम्चारी हो वह संस्कृत और वेदो का ज्ञान रखता हो रावल बनने से पहले नायब रावल बनाया जाता है ताकि सारी परंपराओं का सही ज्ञान हो जाए इनका चयन बद्रीनाथ मंदिर समिति करती है इसके अलावा सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि बद्रीनाथ मंदिर में मौजूद मूर्ति को कोई सामान्य व्यक्ति स्पर्श नहीं कर सकता है केवल पुजारी ही मूर्ति को स्पर्श कर सकते हैं।
वैसे तो बद्रीनाथ मंदिर की कई परंपराएं और मान्यताएं चौकाने वाली हैं ऐसी ही एक परंपरा है यहां के रावल यानी मुख्य पुजारी से जुड़ी हुई है जिन्हें साल में दो बार स्त्री वेष धारण करना पड़ता है रावल पूरे साज श्रृंगार के बाद ही मंदिर में प्रवेश करते हैं अब आप यह सोचेंगे कि आखिर पुजारी को ऐसा क्यों करना पड़ता है तो चलिए इसके पीछे का कारण हम आपको बताते हैं।
दरअसल बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु अपने 24 स्वरूपों में से एक नर नारायण रूप में विराजमान है नारायण के साथ ही लक्ष्मी जी की पूजा होती है साथ में गणेश जी, कुबेर और उद्धव के भी विग्रह हैं लक्ष्मी जी का मंदिर बाहरी हिस्से में है विजया दशमी के आसपास मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं इसके बाद वसंत पंचमी के दिन कपाट खुलने की तारीख मुहूर्त देखकर तय की जाती है।
सामान्य तौर पर अप्रैल माह में मंदिर के कपाट खोले जाते हैं इस बीच रावल को कपाट खोलने और बंद करने की परंपरा का निर्वहन करना होता है हिंदू परंपरा और संस्कृति के अनुसार पुरुष किसी पर स्त्री को नहीं छूता ऐसे में रावल को लक्ष्मी जी की सखी पार्वती का रूप धारण करना हो होता है वह सखी बनकर जाते हैं और लक्ष्मी जी के विग्रह को मंदिर में लाते हैं इस बीच उन्हें स्त्री वेश धारण करना पड़ता है
बद्रीनाथ में पिंड दान से जुड़ा रहस्य
ऐसा कहा जाता है कि पांडवों ने बद्रीनाथ धाम में ही अपने पितरों का पिंड दान किया था यही वजह है कि आज भी बद्रीनाथ के ब्रह्म कपाल क्षेत्र में लोग दूर-दूर से अपने पितरों का पिंड दान करने आते हैं कहते हैं कि इस स्थान पर पिंड दान करने से पितरों की आत्मा को नरक लोक से मुक्ति मिल जाती है।
स्कंद पुराण में ब्रह्म कपाल को फलदाई पित करक तीर्थ माना गया है ब्रह्मा जी जब स्वयं के द्वारा उत्पन्न शतरूपा की सुंदरता पर मोहित हो गए थे तब शिव ने अपने त्रिशूल से उनका पांचवा सिर काट दिया था जिससे शिव जी को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था भगवान शिव को भी इसी स्थान पर ब्रह्मा की हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी
बद्रीनाथ धाम में मौजूद वसुधारा झरने से जुड़ा रहस्य
बद्रीनाथ धाम से तकरीबन 4 किलोमीटर की दूरी पर वसुधारा झरना मौजूद है जो आज के समय में कई रहस्यों को अपने अंदर समेटे हुए हैं इस झरने का पानी तकरीबन 400 फीट की ऊंचाई से नीचे गिरता है जो देखने में काफी मनमोहक लगता है ऐसा बताया जाता है कि पांडव महाभारत युद्ध के बाद इसी वसुधारा के रास्ते से होकर स्वर्गारोहिणी यात्रा के लिए गए थे। पांचों पांडवों में से सहदेव ने इसी वसुधारा के निकट अपने प्राण त्यागे थे।
इस वसुधारा झरने का पानी हर किसी व्यक्ति पर नहीं गिरता इस झरने का पानी मन में पाप रखने वाले व्यक्ति के ऊपर कभी नहीं गिरता इस झरने का पानी पापियों के शरीर को नहीं छूता है जो सच्चे मन व सात्विक भावना से यहां की यात्रा करता है जिसका मन पवित्र होता है जो पुण्य आत्मा होता है उसी के ऊपर इसकी बूंदे गिरती है ऐसा कहा जाता है कि जिस किसी के ऊपर इसका जल गिरता है वह पुण्य आत्मा होती है वह उसे मोक्ष का अधिकारी माना जाता है इतनी अधिक ऊंचाई से गिरते झरने के पानी की बूंदें दूर से अति मनमोहक नजर आती हैं।
बद्रीनाथ धाम में मौजूद भीम पुल से जुड़ा रहस्य
बद्रीनाथ धाम से कुछ ही दूरी पर भीम पुल मौजूद है जो पर्यटकों के लिए आज आकर्षण का केंद्र बना हुआ है पहाड़ों से अलग जिस तरह से एक शिला रखी गई है वह हर किसी को हैरान कर सकती है लेकिन इस शिला का संबंध महाभारत काल से जुड़ा हुआ है ऐसी मान्यता है कि स्वर्ग की यात्रा के समय द्रौपदी व पांडव रास्ते में सरस्वती नदी को जब पार ना कर सके तो महाबली भीम ने एक बड़ी सी शिला को उठाकर नदी के दोनों छोर पर रख दिया।
व आगे जाने का मार्ग प्रशस्त किया तभी से इस पुल को भीम पुल के नाम से जाना जाने लगा सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि इतनी बड़ी शिला को भीम ने केवल अपनी उंगलियों की मदद से उठा दिया था जिसका प्रमाण आज भी आपको इस शिला पर देखने को मिलता है भीम पुल के पत्थर में पांच अंगुलियों के निशान आज भी देखने को मिलते हैं भीम पुल भारी शिला से निर्मित ऐसा सुरक्षित पुल है जो आज भी सैकड़ों लोगों की आवाजाही का साधन है
बद्रीनाथ धाम के प्रसाद से जुड़ा रहस्य
बद्रीनाथ धाम में श्रद्धालुओं को दिया जाने वाला प्रसाद भी अपने आप में एक विशेष मान्यता रखता है क्योंकि बद्रीनाथ धाम पहुंच ने वाले श्रद्धालुओं को तुलसी का प्रसाद वितरित किया जाता है बद्रीनाथ धाम में सबसे ज्यादा तुलसी का प्रसाद ही चढ़ाया जाता है।
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इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि तुलसी बद्रीनाथ के आसपास के इलाकों में बहुतायत में पाई जाती है स्थानीय लोग इसे केवल भगवान को अर्पित करने के लिए ही तोड़ते हैं बद्रीनाथ आने वाले श्रद्धालु इस प्रसाद को अपने घर ले जाते हैं इसकी खासियत यह है कि यह ठंडी जलवायु में ही उगती है और और इसकी खुशबू महीनों तक बनी रहती है
बद्रीनाथ में मौजूद तप्त कुंड का रहस्य
वैसे तो बद्रीनाथ मंदिर चारों ओर से बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरा हुआ है लेकिन यहां से कुछ दूरी पर एक ऐसा कुंड स्थित है जहां पर ठंड के बावजूद भी इसका पानी हमेशा गर्म रहता है इसका नाम तप्त कुंड है इसे भगवान सूर्यदेव का निवास स्थल भी माना जाता है क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान सूर्यदेव को भक्षा- भक्षी की हत्या का पाप लगा था तो उन्होंने इस पाप की मुक्ति के लिए नारायण से उपाय पूछा था।
तब नारायण ने भगवान सूर्यदेव को बद्रीनाथ धाम में मौजूद एक कुंड के अंदर तपस्या करने को कहा था तभी से इस कुंड को सूर्यदेव का निवास स्थान माना जाने लगा यह कुंड हमेशा पानी से भरा हुआ रहता है इस कुंड के आसपास का तापमान हमेशा 9 से 10 डिग्री रहता है यह तापमान इतना कम होता है जिससे का पानी भी आराम से जम सकता है।
लेकिन इस कुंड के पानी का तापमान हमेशा 54 डिग्री रहता है जो कि काफी गर्म होता है ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को शरीर से संबंधित चर्म रोग से हमेशा हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है इस कुंड की हैरान करने वाली बात तो यह है कि इस कुंड को बाहर से छूने पर इसका पानी काफी गर्म लगता है।
लेकिन नहाते समय कुंड का पानी शरीर के तापमान के समान हो जाता है है जिससे इस कुंड में स्नान करने से शरीर जलता नहीं है यह काफी हैरान करने वाली बात है कि जहां आसपास का तापमान इतना ठंडा होता है कि जहां पर नल का पानी भी जमकर बर्फ बन जाए लेकिन इस कुंड के पानी का तापमान हमेशा 54 डिग्री रहता है
बद्रीनाथ धाम के रास्तों से जुड़ा रहस्य
बद्रीनाथ धाम को सबसे पवित्र धामों में से एक माना जाता है लेकिन बद्रीनाथ धाम पहुंचना इतना भी आसान नहीं है इसके लिए श्रद्धालुओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है क्योंकि बद्रीनाथ धाम जाने के लिए जो रास्ते बनाए गए हैं वह काफी जटिल है बद्रीनाथ धाम जाने के लिए पहाड़ों को काटकर रास्ते बनाए गए हैं जिसके चलते हर समय यहां पर खतरा बना रहता है।
क्योंकि कभी भी सड़क पर चट्टान का बाहरी टुकड़ा आकर गिर सकता है जिससे किसी की भी जान जा सकती है लेकिन जो श्रद्धालु सच्ची श्रद्धा के साथ बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर जाता है उसको किसी भी तरह की हानि नहीं पहुंचती है वही जो लोग कपट्टी मन से बद्रीनाथ धाम पहुंचते हैं उनके साथ अक्सर इस तरह की घटनाएं देखने को मिल जाती हैं।
अगर देखा जाए तो आज से 100 साल पहले जो बद्रीनाथ धाम जाने के लिए रास्ते हुआ करते थे वह आज के समय तैयार की गई सड़कों से कहीं ज्यादा जटिल और खतरनाक हुआ करते थे क्योंकि आज के समय में लोग संसाधनों की मदद से बद्रीनाथ धाम पहुंच जाते हैं लेकिन तकरीबन 100 साल पहले तक किसी भी तरह के संसाधन के आवागमन का रास्ता नहीं हुआ करता था और लोग पैदल ही यात्रा पूर्ण कर सकते थे जिसके चलते उन्हें कई महीनों की यात्रा करने के बाद बद्रीनाथ धाम के दर्शन हुआ करते थे
बद्रीनाथ धाम में शंख क्यों नहीं बजाया जाता
मान्यता के मुताबिक मंदिर के प्रांगण में तुलसी भवन नाम की जगह पर एक बार लक्ष्मी जी ध्यान मुद्रा में बैठी थी उस समय भगवान विष्णु ने शंख चूर्ण नाम के दैत्य का वध किया था भगवान विष्णु नहीं चाहते थे कि उनकी ध्यान साधना में कोई विघ्न आए इसलिए उन्होंने शंख नहीं बजाया तभी से बद्रीनाथ धाम में शंखनाद नहीं किए जाने की परंपरा की शुरुआत हो गई।
बद्रीनाथ धाम हो जाएगा विलुप्त
जोशीमठ में भगवान नरसिंह का मंदिर है जिसका बद्रीनाथ से खास जुड़ाव माना जाता है मान्यता के अनुसार जिस शालिग्राम पत्थर में शंकराचार्य नारायण की पूजा किया करते थे उसी पत्थर में भगवान नरसिंह की मूर्ति उभर आई थी नारायण ने उन्हें नरसिंह के शांत रूप का दर्शन दिया था।
कहा जाता है कि जोशी मठ में स्थित भगवान नरसिंह की मूर्ति का एक हाथ हर साल पतला होता जा रहा है और अभी भगवान का वह हाथ सुई की गोलाई के बराबर रह गया है जिस दिन यह हाथ अलग हो जाएगा उस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बद्रीनाथ जाने का रास्ता बंद हो जाएगा मान्यताओं की माने तो कहा जाता है कि भविष्य में बद्रीनाथ मंदिर विलुप्त हो जाएगा
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