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सगंध पौधों की खेती: कम लागत, ज़्यादा मुनाफ़ा

Aromatic Plants Farming

-: Aromatic Plants Farming :-

सगंध पौधों की खेती (Aromatic Plants Farming) एक लाभदायक कृषि व्यवसाय है, जिसमें ऐसे पौधों की खेती की जाती है जिनसे सुगंधित तेल (Essential Oil) प्राप्त किया जाता है। ये तेल परफ्यूम, दवाइयों, सौंदर्य प्रसाधनों, साबुन और खाद्य उत्पादों में उपयोग होते हैं।

सगंध पौधों के प्रमुख प्रकार:

  1. पुदीना (Mentha)

  2. लेमन ग्रास (Lemongrass)

  3. गेंदे का फूल (Marigold)

  4. गुलाब (Rose)

  5. जायपत्री (Citronella)

  6. चमेली (Jasmine)

  7. केवड़ा (Kewra)

सगंध पौधों की खेती के लाभ:

आवश्यक बातें:

आमदनी का उदाहरण:

सरकारी सहायता:

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सगंध पौधों की खेती: ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संबल देने वाली क्रांतिकारी पहल

देशभर में परंपरागत खेती के विकल्प के रूप में सगंध पौधों की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसान इस दिशा में आगे बढ़कर अधिक लाभ कमा रहे हैं। जैविक और प्राकृतिक उत्पादों की मांग बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इनकी खपत में इजाफा हुआ है।

शोध संस्थानों की भूमिका

लखनऊ स्थित CSIR-CIMAP (Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants) जैसे संस्थान किसानों को प्रशिक्षण, पौध सामग्री, और आसवन इकाई लगाने की तकनीकी जानकारी प्रदान कर रहे हैं। “AROMA मिशन” के अंतर्गत देशभर के हजारों किसानों को इससे जोड़ा गया है।

आवश्यक तेलों की उद्योगों में मांग

आज परफ्यूम, साबुन, हर्बल उत्पाद, आयुर्वेदिक दवाएं और भोजन में फ्लेवरिंग एजेंट के रूप में इन तेलों का बड़ा बाजार है। कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ भारतीय किसानों से सीधे संपर्क कर तेल खरीद रही हैं।

महिला किसानों की भागीदारी

इस क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी भी उल्लेखनीय है। कई स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups) के माध्यम से महिलाएँ खेती से लेकर तेल निष्कर्षण और पैकेजिंग तक का कार्य कर रही हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में महिला सशक्तिकरण को बल मिल रहा है।

आंकड़ों के आईने में:

भविष्य की संभावनाएँ:

सगंध पौधों की खेती: चुनौतियाँ और समाधान

प्रमुख चुनौतियाँ:

  1. बाजार की जानकारी का अभाव – कई किसान तेल की बिक्री को लेकर असमंजस में रहते हैं।

  2. प्रसंस्करण इकाइयों की कमी – गांवों में आसवन (Distillation) प्लांट की उपलब्धता नहीं होने से उत्पाद की गुणवत्ता और मूल्य घटता है।

  3. प्रारंभिक निवेश – कुछ पौधों की खेती और तेल निकालने के लिए प्रारंभिक पूंजी की आवश्यकता होती है।

  4. प्रशिक्षण की कमी – तकनीकी ज्ञान के बिना उत्पादन और लाभ प्रभावित होता है।

समाधान:

प्रेरणादायक उदाहरण:

गुलाब सिंह, जिला छतरपुर (मध्य प्रदेश)
खेती से निराश होकर शहर पलायन कर चुके गुलाब सिंह ने 2019 में लेमनग्रास की खेती शुरू की। मात्र 1 एकड़ ज़मीन से पहले वर्ष ही ₹60,000 की आमदनी हुई। अगले साल उन्होंने आसवन संयंत्र लगवाया और अब वे न केवल खुद का उत्पादन करते हैं बल्कि आस-पास के किसानों से भी तेल खरीदकर आगे सप्लाई करते हैं। आज उनकी सालाना आय ₹8 लाख तक पहुँच चुकी है।

निष्कर्ष:

सगंध पौधों की खेती केवल एक फसल नहीं, बल्कि एक ग्रामीण उद्यमिता की नींव है। यह खेती प्राकृतिक संसाधनों का संतुलन बनाए रखते हुए किसान को आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है। अगर यह सही मार्गदर्शन और बाज़ार से जुड़ती है, तो यह कृषि क्षेत्र की दिशा और दशा बदल सकती है।

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