-: Untold History of Kashmir :-
कश्मीर जिसे हम अक्सर धरती का स्वर्ग कहते हैं। एक ऐसी जगह जिसकी खूबसूरती की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है। बर्फ से ढकी पहाड़ियां, रंग बिरंगे फूलों से सजे बाग, झीलों में तैरते शिकारे। कश्मीर की यह तस्वीर हर किसी ने देखी है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस वादी की खूबसूरती से भी कहीं ज्यादा गहरा है इसका इतिहास। यह वो जमीन है जहां ऋषि मुनियों ने तप किया।
जहां देवताओं के मंदिर बने जहां हिंदू, बौद्ध, सूफी और शव परंपराओं ने एक साथ सांस ली। कश्मीर सिर्फ तस्वीरों में कैद एक हसीनवादी नहीं। यह एक जीता जागता इतिहास है। एक ऐसी भूमि जिसने हजारों सालों तक तमाम राजाओं, विजेताओं, संतों और सम्राटों को आते-जाते देखा।
कश्मीर का इतिहास शुरू होता है पौराणिक मान्यता से। जहां कहा जाता है कि यह पूरा इलाका कभी एक विशाल झील था। जिसे महान ऋषि कश्यप ने अपने तप से सुखाया और इस भूमि को बसाया। इसीलिए इसका नाम पड़ा कश्यप मीर जो आगे चलकर kashmir के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भौगालिक दृष्टि से कश्मीर हिमालय की गोद में बसा एक सुरम्य क्षेत्र है। यहां की सीमा उत्तर में लद्दाख, पूर्व में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में पंजाब से मिलती है।
इस क्षेत्र में बहने वाली प्रमुख नदियां हैं झेलम, चिनाब और सिंधु। झेलम नदी कश्मीर की जीवन रेखा मानी जाती है जो श्रीनगर से होते हुए पाकिस्तान की ओर बहती है। kashmir को घेरने वाली हिमालय श्रृंखलाएं जैसे पुंज, जोजिला और पीर पंजाल इस क्षेत्र को प्राकृतिक रूप से एक घाटी का रूप देते हैं। सर्दियों में बर्फ की चादर और गर्मियों में हरियाली। यह भूगोल ही कश्मीर की रहन-सहन, वेशभूषा और कृषि को आकार देता है।
इस प्राचीन भूमि का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है राजतरंगिणी जिसे 12वीं सदी में कलहण ने लिखा था। यह भारत का पहला ऐतिहासिक वृतांत माना जाता है जिसमें लगभग 5400 वर्षों के 100 से अधिक राजाओं की कथाएं दर्ज हैं। इस ग्रंथ में गोंद वंश से लेकर ललितादित्य मुक्ता पीड़ और हर्ष जैसे शासकों का जिक्र मिलता है। तीसरी सदी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक ने यहां बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए कई स्तूपों और मठों का निर्माण करवाया था।
बौद्ध भिक्षु कश्मीर से होकर तिब्बत और चीन तक पहुंचे। आठवीं सदी में कारकोटा वंश का उदय हुआ और राजा ललितादित्य मुक्ता पीठ के शासन में kashmir ने अपना स्वर्ण युग देखा। उन्होंने मार्तंड सूर्य मंदिर जैसे अद्भुत मंदिरों का निर्माण करवाया। फिर आए उत्पल और लोहारा वंश जिन्होंने अगले कई 100 वर्षों तक शासन किया। इस दौरान कश्मीर कला, संस्कृति और स्थापत्य का केंद्र बना रहा। यहां की धार्मिक सहिष्णुता का उदाहरण है कि एक ही स्थान पर शिव मंदिर, बौद्ध विहार और सूफी दरगाहें पनपी।
1339 में शाहमीर वंश ने kashmir में मुस्लिम शासन की शुरुआत की। इसके बाद 1586 में मुगलों ने कश्मीर पर अधिकार किया। अकबर से लेकर जहांगीर तक सभी मुगल बादशाह kashmir की सुंदरता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यहां कई बाग-बागीचों और महलों का निर्माण करवाया। 1819 में महाराजा रणजीत सिंह ने kashmir को सिख साम्राज्य में मिला लिया और 1846 में अमृतसर संधि के तहत कश्मीर को ₹75 लाख में डोगरा राजा गुलाब सिंह को सौंप दिया।
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इसके बाद डोगरा राजवंश ने कश्मीर पर 101 वर्षों तक शासन किया। गुलाब सिंह से लेकर महाराजा हर सिंह तक। डोगरा शासनकाल में कश्मीर ने शिक्षा, प्रशासन और धार्मिक स्थलों का पुनरुद्धार देखा। पर साथ ही साथ जनता में वर्गभेद और असंतोष भी पनपने लगा। और हां क्या आप जानते हैं कि जम्मू कश्मीर की दो राजधानियां हैं। श्रीनगर गर्मियों की राजधानी होती है। मई से अक्टूबर तक जबकि जम्मू सर्दियों की राजधानी होती है।
नवंबर से अप्रैल तक श्रीनगर झीलों और वादियों के लिए जाना जाता है। वहीं जम्मू माता वैष्णो देवी जैसे शक्ति स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। अब बात करते हैं तीर्थों की। तो कश्मीर सिर्फ सुंदरता ही नहीं श्रद्धा की भी भूमि है। यहां स्थित है पवित्र अमरनाथ की गुफा जहां शिव जी स्वयं बर्फ के लिंग के रूप में प्रकट होते हैं। यह यात्रा हर साल लाखों श्रद्धालुओं द्वारा सावन में की जाती है। दूसरी ओर जम्मू क्षेत्र में स्थित है माता वैष्णो देवी का पवित्र मंदिर।
त्रिकूट पर्वत की गोद में स्थित यह मंदिर साल भर भक्ति और विश्वास से गूंजता रहता है। और अब अगर बात करें कश्मीर की आत्मा की तो वह बसती है डल झील में। श्रीनगर में स्थित यह झील ना सिर्फ प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक है बल्कि यह kashmir की संस्कृति, कारीगरी और जीवन शैली का भी केंद्र है। डल झील पर तैरते शिकारे, हाउसबोट, कमल के फूल और पानी पर चलती सब्जी मंडियां यह सब मिलकर एक ऐसी तस्वीर बनाते हैं जिसे शब्दों में बांधना मुश्किल है।
एक समय ऐसा भी था जब डल झील हर साल 10 लाख से ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करती थी। लेकिन कुछ दशकों तक अशांति के कारण यहां पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आ गई। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से शांति बहाल हुई और फिर लाखों देसी विदेशी पर्यटक kashmir की ओर लौटने लगे। साल 2022 में रिकॉर्ड 1. 88 करोड़ से भी ज्यादा पर्यटक जम्मू कश्मीर पहुंचे जो एक नया ऐतिहासिक आंकड़ा था।
कश्मीर सिर्फ एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि आर्थिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण है। यहां के सेब, चेरी, नाशपाती, बादाम और अखरोट जैसे फल और सूखे मेवे देश विदेशों में निर्यात किए जाते हैं। साथ ही यहां की हस्तकला भी प्रसिद्ध है। जैसे कि पशमीना शॉल, कश्मीरी कालीन और लकड़ी की नक्काशी। कश्मीर की कढ़ाई जिसे सूजनी और आरी वर्क कहा जाता है, दुनिया भर में सरा ही जाती है।
कश्मीर की कहानी सिर्फ बर्फ, झील और सुंदरता ही नहीं यह तप, आस्था, युद्ध, सहिष्णुता और परंपरा की भी कहानी है। यह वो भूमि है जिसने सदियों से भारत की आत्मा को संभाल कर रखा है। चाहे वह अमरनाथ की पवित्र बर्फीली गुफा हो या मार्तंड का सूर्य मंदिर। चाहे ललितादित्य जैसे सम्राट हो या कलहण जैसे इतिहासकार हर कण में संस्कृति बसी है। यहां हर घाटी में इतिहास सांस लेता है। लेकिन कश्मीर की वर्तमान परिस्थितियों को देखकर यही कहना जरूरी है कि शांति ही वह मार्ग है जो विकास, पर्यटन और भाईचारे का भविष्य तय करेगा।
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