जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी कुछ खास और रोचक बातें!

-: Secrets Of Jagannath Rath Yatra :-

उड़ीसा के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान पुरी में हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को इस विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा का आयोजन होता है भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण करते हुए अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते है।

मूर्तियों में नहीं है हाथ पैर और पंजे

सुनने में यह बात अजीब जरूर लगती है लेकिन यह सच है भगवान जगन्नाथ बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम जी तीनों की मूर्तियों में किसी के हाथ पैर और पंजे नहीं होते इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है प्राचीन काल में इन मूर्तियों को बनाने का काम विश्वकर्मा जी कर रहे थे उनकी यह शर्त थी कि जब तक मूर्तियों को बनाने का काम पूरा नहीं हो जाता तब तक उनके कक्ष में कोई भी प्रवेश नहीं करेगा।

लेकिन राजा ने पहले ही उनके कक्ष का दरवाजा खोल दिया इसके बाद विश्वकर्मा जी ने मूर्तियों को बनाना बीच में ही छोड़ दिया था तभी से मूर्तियां अधूरी रह गई जो कि आज तक पूरी नहीं हो पाई है तब से इन तीनों मूर्तियों के हाथ पैर और पंजे नहीं होते इन मूर्तियों को नीम की लकड़ी से बनाया गया था पुराणों के अनुसार नीम की लकड़ी से बने भगवान विष्णु की मूर्तियां शुभ मानी जाती है मूल रूप से लकड़ी की इन तीनों मूर्तियों को दसवीं शताब्दी में बनाया गया था और बाद में 11वीं और 12वीं शताब्दी में इनका पुनर्निर्माण किया गया।

ऐसे होते हैं रथ यात्रा के रथ

भगवान जगन्नाथ की यात्रा के रथ भी बेहद खास होते हैं उन्हें नीम के पेड़ की लकड़ी से बनाया जाता है रथ यात्रा की तैयारी हर साल बसंत पंचमी से शुरू हो जाती है खास बात यह है कि इसको बनाने में किसी भी प्रकार की धातु का प्रयोग नहीं किया जाता इसके अलावा रथ की लकड़ी प्राप्त करने के लिए स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है।

भगवान जगन्नाथ जी का रथ

जगन्नाथ जी का रथ 16 पहियों का बना होता है इसमें लकड़ी के 332 टुकड़ों का प्रयोग किया जाता है और इसकी ऊंचाई 45 फीट होती है भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है रथ का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया के दिन से आरंभ हो जाता है उनका रथ बाकी दो रथों से आकार में बड़ा होता है।

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महाकालेश्वर मंदिर का रहस्य !

इनके रथ पर हनुमान जी और नरसिंह भगवान का प्रतीक अंकित रहता है और यह रथ यात्रा में सबसे पीछे रहता है बलराम जी भगवान जगन्नाथ जी के बड़े भाई हैं और बड़े होने के नाते यह सबका नेतृत्व करते हैं इसलिए यात्रा में इनका रथ सबसे आगे रहता है इनके रथ की ऊंचाई 44 फुट होती है इस रथ में नीले रंग का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है।

बहन सुभद्रा का रथ 

भगवान कृष्ण और बलराम की लाडली बहन सुभद्रा का रथ दोनों भाइयों के सुरक्षा घेरे में रहता है यानी सुभद्रा का रथ दोनों रथों के बीच में चलता है इसकी ऊंचाई 43 फीट होती है और इसको सजाने में मुख्य रूप से काले रंग का प्रयोग किया जाता है।

मूर्तियों में भी अस्थियां!

पुराणों में बताया गया है कि इन मूर्तियों का निर्माण राजा नरेश इंद्र दम ने करवाया था यह भगवान विष्णु के परम भक्त थे मान्यता है कि राजा के सपने में आकर भगवान ने उन्हें मूर्तियों को बनाने का आदेश दिया था सपने में उन्हें बताया गया कि श्री कृष्ण नदी में समा गए हैं और उनके विलाप में बलराम और सुभद्रा भी नदी में समा गए हैं उनके शवों की अस्थियां नदी में पड़ी हुई है भगवान के आदेश को मानकर राजा ने तीनों की अस्थियां नदी से बटोरी और मूर्तियों के निर्माण के वक्त प्रत्येक मूर्ति में थोड़ा-थोड़ा अंश रख दिया।

भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर का निर्माण करीब 1000 साल पहले हुआ था और तब से हर 14 साल में यह प्रतिमाएं बदल दी जाती हैं इस रथ यात्रा के बारे में ऐसी मान्यता है कि जो भी भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचता है उसे फिर जन्म नहीं लेना पड़ता यानी उसे इसी जन्म में मुक्ति मिल जाती है इसीलिए इस रथ को खींचने के लिए भक्तों में गजब का उत्साह होता है।

हवा की दिशा बदल जाती है!

भगवान जगन्नाथ को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी में हुआ था जिसे चार धामों में भी स्थान प्राप्त है ऐसी मान्यता है कि मंदिर की चोटी पर लहराता ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है दरअसल ऐसा कहा जाता है कि यहां दिन के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम में इसके विपरीत दिशा में हवा बहती है मगर मंदिर का ध्वज इसके ठीक विपरीत उल्टे दिशा में लहराता है क्योंकि मंदिर में हवा दिन में समुद्र की ओर और रात में मंदिर की तरफ बहती है।

हर दिन बदला जाता है ध्वज

भारत में किसी भी मंदिर का ध्वज हर दिन नहीं बदला जाता भगवान जगन्नाथ का मंदिर ही एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसका ध्वज हर दिन बदला जाता है हर दिन एक पुजारी को ऊंचे गुंबद पर चढ़कर ध्वज को बदलना होता है।

जगन्नाथ मंदिर की ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी ध्वज को नहीं बदला गया तो यह मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा रहस्यों से भरे इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर के ऊपर कभी भी कोई पक्षी ता हुआ दिखाई नहीं देता यहां तक कि कोई विमान भी इसके ऊपर से नहीं गुजर सकता माना जाता है कि यहां एक विशेष प्रकार की चुंबकीय शक्ति के कारण ऐसा होता है।

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