आखिर कब शुरू हुआ कुम्भ मेले? और क्या है इसके पीछे का इतिहास!

-: Kumbh Mela 2025 :-

भारत वो देश है जो अपने धर्म इतिहास सभ्यता त्यौहार भाषा कला इत्यादि के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है और यह सभी चीजें ही भारत को एक खूबसूरत देश बनाती हैं और इसी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक मेले जो हर वर्ष एक त्यौहार की तरह ही काफी हर्ष उल्लास और धूमधाम के साथ मनाए जाते हैं इन मेलों में कुंभ मेला, सोनपुर मेला, पुष्कर मेला, हेमिस गपा मेला, कोलायत मेला, गंगासागर मेला इत्यादि पॉपुलर हैं।

कुंभ मेला आपने इस मेले का नाम तो जरूर ही सुना होगा और सुनेंगे भी क्यों नहीं आखिर यह मेला है ही इतना खास कि इसे घूमने के लिए करोड़ों देसी और विदेशी टूरिस्ट आते हैं और आपको जानकर हैरानी होगी कि यही कुंभ मेला पूरे विश्व में सबसे बड़े रिलीजियस गैदरिंग के रूप में भी जाना जाता है कुंभ मेले में सभी श्रद्धालु पवित्र नदियों में डुबकी लगाते हैं।

ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से उनके सभी पाप धुल जाते हैं और साथ ही उनके द्वारा किए गए सभी बुरे कामों का प्रायश्चित भी होता है और इस इसमें सच्ची श्रद्धा से नहाने वालों को जीवन और मृत्यु की चक्र से मोक्ष भी प्राप्त होता है और इसीलिए यह मेला हिंदुओं के बीच एक मुख्य तीर्थ स्थल और त्यौहार के रूप में जाना जाता है।

यह मेला प्रयागराज के त्रिवेणी संगम, गंगा के तट पर स्थित हरिद्वार गोदावरी के तट पर स्थित नासिक और शिप्र नदी के तट पर स्थित उज्जैन में 12-12 साल की चक्र में मनाया जाता है पर इनमें से किस जगह कब यह मेला कब लगाना है यह तय होता है एस्ट्रोलॉजिकल कैलकुलेशन के द्वारा जिसके लिए सोलर सिस्टम के जुपिटर की पोजीशन को एनालाइज किया जाता है और इसी अनुसार यह त्यौहार इन चारों जगहों में से किसी एक जगह पर बनाया जाता है

वैसे तो कुंभ मेले का नाम किसी भी अन्सिएंट टेक्स में नहीं मिलता है बल्कि इस मेले का जिक्र इन हिस्टोरिकल किताबों में माघ मेला या प्रयाग स्नान के नाम से होता है पर हमारे वैदिक टेक्स्ट जैसे ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद या अन्य पौराणिक ग्रंथों में माघ मेला या कुंभ मेले के पीछे की कहानी जरूर बताई गई है और आज इसी कहानी के बलबूते माघ मेला कुंभ मेले के नाम से जाना जाता है।

इन पौराणिक किताबों में कुंभ को अमृत से भरे हुए घड़े के रूप में बताया गया है और वहीं दूसरी ओर मेले का वर्णन एक लार्ज रिलीजस गैदरिंग या सेलिब्रेशन के रूप में हुआ है जिससे इस पूरे शब्द यानी कुंभ मेले का अर्थ निकलता है वह त्यौहार जो अमृत से भरे वाटर सोर्स के पास ऑर्गेनाइज किया गया हो अब आप यह सोच रहे होंगे कि आखिर अमृत पानी और सेलिब्रेशन का क्या कनेक्शन है।

यह जानने के लिए हमें हिंदू पौराणिक ग्रंथों के एक ऐसे किस्से को जानना होगा जिसकी वजह से आदि काल से लेकर आज तक कुंभ मेला बड़े ही शानदार तरीके से मनाया जाता है पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि हिंदू ऋषि दुर्वासा ने सभी देवी देवताओं को श्राप दे दिया था जिससे वह सभी शक्तिहीन हो चुके थे और अपने स्वर्ग लोक को छोड़ नीचे धरती पर एक आम इंसान की तरह रहने लगे थे तो वहीं दूसरी ओर उनके स्वर्ग लोक पर राक्षस कब्जा करके पूरी सृष्टि का विनाश कर रहे थे।

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देवता राक्षसों के सामने काफी कमजोर हो चुके थे और वह किसी हाल में उन्हें हरा नहीं सकते थे ऐसा देखते हुए गुरु ब्रह्मा ने देवताओं को एक सुझाव दिया कि अगर वह अमृत का रस पान कर लेते हैं तो उनकी खोई हुई शक्तियां वापस आ जाएंगी और वह राक्षसों को हराकर अपने स्वर्गलोक पर वापस कब्जा कर सकते हैं पर ऐसा करने में एक दुविधा थी क्योंकि वह अमृत स्वर्ग लोक में ही मौजूद था और उसे पाने के लिए देवता को राक्षसों की मदद लेनी पड़ती ब्रह्मा जी के इस सुझाव को मान सभी देवी देवताओं ने राक्षसों से मदद मांगी और उसके बदले में उन्हें आधा अमृत देने का वादा किया।

अमृत का लालच देख सभी राक्षस देवताओं के साथ अमृत की खोज में शामिल हो गए और इसी खोज में स्वर्ग लोक में समुद्र मंथन किया गया जिसके बाद अमृत उत्पन्न हुआ लेकिन जैसे ही अमृत से भरा कलश मिला देवता और राक्षस दोनों ही उसे पूरा का पूरा हड़पना चाहते थे और इसके बाद देवता राक्षसों की आंख में धूल झोंक कर अमृत पर कब्जा पाने में सफल हुए और वह अमृत लेकर दौड़ पड़े इसके बाद राक्षसों ने भी उनका पीछा करना शुरू किया और यह सिलसिला 12 दिनों तक चला जो मानव जाति के लिए 12 वर्ष के बराबर होता है।

देवताओं द्वारा अमृत लेकर भागने के दौरान कलश से अमृत की चार बूंदे स्वर्ग से धरती पर जा गिरी और माना जाता है कि यह अमृत बूंदे हरिद्वार की गंगा नदी, प्रयागराज की त्रिवेणी संगम, उज्जैन की शिप्रा नदी और नासिक की गोदावरी नदी में जागीरी और इसी कारण कुंभ मेला हर 12 वर्ष के अंतराल पर इन चार जगहों पर लगाया जाता है और ऐसा कहा जाता है कि एस्ट्रोलॉजिकल कैलकुलेशंस के बाद जब कुंभ मेले का समय आता है तो यह नदियां वही अमृत का रूप धारण करती हैं जिसमें नहाने से लोगों के सभी पाप हमेशा हमेशा के लिए धुल जाते हैं यह थी कुंभ की के पीछे की पौराणिक गाथा।

एवोल्यूशन ऑफ कुंभ इन इंडियन हिस्ट्री

कुंभ मेले का जिक्र हमारे हिस्टोरिकल रिकॉर्ड्स में नहीं मिलता लेकिन हिंदुओं द्वारा जैसे कुंभ मेले के दौरान नदियों में स्नान किया जाता है ठीक वैसे ही पवित्र नदियों में स्नान करने का इतिहास काफी लंबे समय से हमारे देश भारत में चलता चला आ रहा है इस तरह के नहान पर्व का सबसे पहला उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है जहां प्रयाग में पवित्र नहान पर्व का उल्लेख किया गया है जिसके अलावा इसका वर्णन बुद्धिज्म के पाली टेक्स्ट और महाभारत में भी मिलता है जिसमें जगह-जगह पर इसके महत्व को समझाया गया है।

इन सब के अलावा कई रिलीजस टेक्स्ट में अन्य कुंभ मेलों के स्थल जैसे नासिक हरिद्वार और उज्जैन का भी उल्लेख है लेकिन इतने रिकॉर्ड्स होते हुए भी यह नहान पर्व कब और कैसे शुरू हुआ यह किसी को मालूम नहीं है ऐसे ही एक पर्व का उल्लेख प्राचीन भारत के राजा हर्ष के समय काल में मिलता है जिसका उल्लेख सेवंथ सेंचुरी के बुद्धिस्ट चाइनीज ट्रेवलर और राइटर हन संग ने अपने रिटेन अकाउंट्स में किया है।

इस उल्लेख में उन्होंने प्रयाग को एक प्रसिद्ध हिंदू शहर के रूप में वर्णित किया है और ऐसा कहा है कि यह शहर मंदिरों की नगरी है जहां गंगा यमुना सरस्वती के संगम पर हिंदुओं द्वारा माघ महीने में स्नान किया जाता है सांग का यह उल्लेख किसी भी प्रकार के नहान पर्व का पहला लिखित सबूत माना जाता है इसके अलावा अगर इंडियन रिलीजन के एक स्कॉलर जेम्स लॉटफी रिपोर्ट्स की माने तो प्रयाग में हर वर्ष जनवरी मंथ में मनाए जाने वाले माघ मेले का ही ज्यादातर हिस्टोरिकल रिकॉर्ड्स में जिक्र मिलता है।

उनके अनुसार यही बेदिंग रिचुअल्स हर साल माघ महीने में मनाए जाते हैं लेकिन 12 साल की अवधि पर कुछ ऐसे एस्ट्रोलॉजिकल संयोग बनते हैं जिनसे इन बेदिंग रिचुअल्स का महत्व और भी बढ़ जाता है और इसी वजह से काफी भारी मात्रा में लोग इसे अटेंड करते हैं इसके अलावा दूसरे स्कॉलर जेम्स मलिंसन के अकॉर्डिंग प्राचीन काल से मनाए जाने वाले प्रयाग माग मेले की तरह ही कई पिलग्रिम सेंटर्स जैसे उज्जैन नासिक और हरिद्वार जो पवित्र नदी के किनारे स्थित हैं।

वहां पर भी ऐसे नहान पर्व मिडिवल पीरियड के दौरान शुरू हो चुके थे और यह पर्व हर साल काफी लोगों द्वारा विजिट किए जाने लगे थे प्रया के नहान पर्व का उल्लेख 16th सेंचुरी के रामचरित मानस और एन ए अकबरी में भी मिलता है एन ए अकबरी के अनुसार माघ महीने में प्रयाग संगम के अंतर्गत नहान पर्व ऑर्गेनाइज होता था जिसको अटेंड करने के लिए हर कास्ट और क्लास के हिंदू काफी भारी मात्रा में आते थे और उनकी संख्या इतनी ज्यादा होती थी कि प्रयाग के जंगल्स और प्लेंस भी उनके लिए कम पड़ जाते थे।

इसके अलावा अगर अदर मिडिवल और मुगल टेक्स्ट जैसे खुलसत तवारीख चाहर गुलशन की माने तो धीरे-धीरे हरिद्वार और प्रयाग की ही तरह हर वर्ष यह माघ महीने का नहान पर्व नासिक और उज्जैन में भी लगाया जाने लगा था लेकिन वहां इसे सिंहस्त मेले के नाम से जाना जाता था लेकिन इन सभी दस्तावेजों में से किसी में भी कुंभ मेले का जिक्र नहीं था जिससे ऐसा कहा जा सकता है कि कुंभ मेला उस समय माघ मेला, माघ नहान पर्व या प्रयाग मेले के नाम से जाना जाता था अगर केवल और केवल लिखित रूप में कुंभ मेले के सबसे पहले उल्लेख की बात करें तो वह 19th सेंचुरी तक कहीं भी नहीं मिलता।

19th सेंचुरी के बाद कुंभ मेले के नाम से प्रसिद्ध हुआ और धीरे-धीरे हरिद्वार नासिक, उज्जैन के भी माघ मेले को कुंभ मेले के रूप में जाना जाने लगा जिसके बाद ब्रिटिशर्स ने इन चारों स्थानों को एक नेशनल और इंटरनेशनल रिकग्निशन देकर वहां के पंडितों को खुश कर दिया और उसके बदले उन्होंने इन पिलग्रिम सेंटर्स द्वारा कलेक्ट किए गए लुक्रेटिव टैक्स और ट्रेड रेवेन्यू पर अपना क ल स्थापित कर लिया और ऐसा माना जाता है कि तभी से हरिद्वार प्रयागराज उज्जैन और नासिक के माग मेले को पहचान मिल गई और यही माघ मेला जब 12 साल की अवधि पर कुछ ऐसे ज्योतिष दैविक संयोग बनाता है तब उसे कुंभ मेला कहा जाता है।

प्राचीन काल से ही कुम्भ मेला काफी बड़े स्तर के कमर्शियल इवेंट के रूप में जाना जाता है जहां कई साधु संत अखाड़ा मेंबर्स आते हैं और तरह-तरह के प्रोग्राम्स जैसे कम्युनिटी सिंगिंग, स्पिरिचुअल और एजुकेशनल डिस्कशन और अदर एंटरटेनमेंट एक्टिविटीज ऑर्गेनाइज की जाती हैं इसके साथ ही कुंभ मेले में काफी लार्ज स्केल पर ट्रेडिंग एक्टिविटीज भी ऑर्गेनाइज होती हैं और यह सभी चीजें आज से नहीं हो रही बल्कि प्राचीन समय से ही इनकी परंपरा चलती चली आ रही है अगर इतिहास की बात करें तो यही कुंभ मेला ब्रिटिशर्स के खिलाफ हुए।

1857 रिवोल्ट और इंडिपेंडेंस मूवमेंट का एक सेंटर पॉइंट रहा जिसमें भारत को आजाद कराने के लिए जबरन धर्म परिवर्तन रोकने के लिए और पिलग्रिम टैक्स अबॉलिश करने के लिए प्रयाग वल कम्युनिटी अखाड़ा लोकल लीडर्स और कुंभ मेला पिलग्रिम्स ने काफी अहम भूमिका निभाई थी इसके अलावा प्रयाग कुंभ मेला में ही सनातन धर्म सभा ने मिलकर यह डिसाइड किया था कि वह बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना ना मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में करेंगे और इससे यह कहा जा सकता है कि कुंभ मेले ने कहीं ना कहीं इंडिया के वन ऑफ द टॉप मोस्ट यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी।

इसके अलावा आज कुंभ मेला हिंदुत्व पॉलिटिक्स और हिंदू मूवमेंट का एक मेजर हब बनकर उभरा है इन सबके अलावा कुंभ मेले की अपनी खुद की एक इकोनॉमिक सिग्निफिकेंट भी है जो भारत की आजादी के बाद साफ साफ देखा जा सकता है क्योंकि इसके बाद से ही कुंभ अटेंड करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है जब भारत आजाद हुआ और उसके बाद प्रयागराज में कुंभ मेला ऑर्गेनाइज किया गया तब उसको अटेंड करने वालों की संख्या करीबन 5 मिलियन थी जो 2019 में 200 मिलियन तक जा पहुंची है।

इलाहाबाद के अलावा हरिद्वार उज्जैन और नासिक में भी लोगों की संख्या कुछ इसी प्रकार बढ़ी है लेकिन अलाहाबाद का कुंभ मेला हमेशा सबसे भव्य तरीके से आयोजित किया जाता है और अगर रिसेंटली ऑर्गेनाइज्ड 2019 अलाहाबाद अर्ध कुंभ की बात करें तो उसके प्रिपरेशन में गवर्नमेंट द्वारा कुल 42000 मिलियन रप खर्च किए गए थे

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