रहस्मय बीमारिया जिसने विज्ञानं को भी चौका दिया!

-: Mysterious Mass Illnesses  :-

क्या आप जानते हैं कि इतिहास में ऐसे कई मौके आए जब लोग बिना किसी साफ वजह के अजीब बीमारियों से ग्रसित हो गए कभी किसी शहर में लोग अचानक नाचने लगे तो कहीं एक पूरे स्कूल में बच्चों को रहस्यमय हंसी का दौरा पड़ जाता था इन बीमारियों के लक्षण तो साफ दिखते थे लेकिन इनके पीछे की असली वजह हमेशा एक रहस्य बनी रही इन्हें वैज्ञानिक भाषा में मास सोशियो जनिक इलनेस या मास हिस्टीरिया कहा जाता है तो आज हम आपको बताते हैं इतिहास की सात रहस्यमई कहानियों के बारे में जहां लोगों को अजीब बीमारियों ने अपनी चपेट में ले लिया और यह घटनाएं आज भी विज्ञान के लिए पहेली बनी हुई है।

1518 का डांसिंग प्लेग

यह सब 1518 की गर्मियों में फ्रांस के स्ट्रॉसबर्ग शहर में एक साधारण दिन से शुरू हुआ फ्राउ टॉफिया नाम की एक महिला अचानक सड़कों पर नाचने लगी और बिना रुके लगभग एक हफ्ते तक नाचती रही धीरे-धीरे इस अजीबोगरीब घटना ने विकराल रूप ले लिया और एक महीने के अंदर शहर के 400 से अधिक लोग इस रहस्यमय बीमारी से ग्रसित हो गए।

लोग नाचते-नाचते गिरने लगे स्ट्रोक हार्ट अटैक और थकावट के कारण कई लोगों की मौत हो गई अधिकारियों ने इस अजीब घटना का कारण हॉट ब्लड बताया और समाधान के रूप में लोगों को लगातार नाचते रहने का आदेश दे दिया यहां तक कि एक मंच बनवाया गया संगीतकारों को बुलाया गया और पेशेवर डांसर्स को लोगों के साथ नाचने के लिए नियुक्त किया गया लेकिन इसका परिणाम उल्टा ही निकला।

यह डांसिंग प्लेग और भी उग्र हो गया कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पीड़ितों ने अनजाने में एर्गोट नाम की एक जहरीली फफू खाली थी जिससे मांसपेशियों में ऐठन और अजीब हरकतें होती हैं हालांकि यह थ्योरी इस सवाल का जवाब नहीं देती कि आखिर लोग इतनी अविश्वसनीय सहनशक्ति के साथ लगातार नाचते रहे।

कुछ अन्य विशेषज्ञ इस घटना को उस दौर में फैली बीमारियों अकाल और भुखमरी जैसी गंभीर परिस्थितियों से जोड़ते हैं साथ ही उस समय के अंधविश्वास सेंट विटेस के श्राप पर विश्वास ने इस घटना को और हवा दी डांसिंग प्लेग का रहस्य आज भी इतिहासकारों और वैज्ञानिकों के लिए एक अनसुलझी पहेली बना हुआ है

2001 का काला बंदर या मंकी मैन

मई 2001 की तपती गर्मियों में दिल्ली शहर बिजली की कटौती और उमस भरी रातों से बेहाल था लोग राहत पाने के लिए अपनी छतों पर सोते थे लेकिन इन अंधेरी रातों में एक अजीब और खौफनाक अफवाह ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया यह अफवाह थी काला बंदर या मंकी मैन की जो आधा आदमी और आधा बंदर जैसा दिखता था।

रिपोर्ट्स के अनुसार यह रहस्यमय प्राणी छतों पर कूदता था सोते हुए लोगों पर हमला कर देता और फिर अंधेरे में गायब हो जाता था शुरुआत में कुछ लोगों ने बताया कि उन्होंने एक लंबा काले रंग का प्राणी देखा जो किसी इंसान की तरह खड़ा था लेकिन उसके पंजे और चेहरे बंदर जैसे थे कुछ पीड़ितों का दावा था कि काले बंदर ने उन्हें काटा खरोच दिया या हमला भी किया।

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जल्द ही यह अफवा जंगल की आग की तरह फैल गई और पूरे शहर में दहशत का माहौल बन गया लोग घरों में सोने से डरने लगे छतों पर पहरेदारी शुरू हो गई और हर अंधेरी परछाई में उन्हें काला बंदर नजर आने लगा था इस डर के कारण कई हादसे भी हुए दो लोगों की मौत हो गई एक व्यक्ति डर के मारे अपनी छत से गिर गया जबकि दूसरा सीढ़ियों से गिर कर मारा गया।

अस्पतालों में लोग शरीर पर रोचों और काटने के निशान लेकर पहुंचने लगे लेकिन जब पुलिस और डॉक्टरों ने जांच की तो उन्होंने पाया कि ज्यादातर चोटें सेल्फ इंफ्लेक्टेड थी यानी कि लोगों ने खुद ही अपने आप को चोटें पहुंचाई थी मनोवैज्ञानिकों का मानना था कि यह घटना सामूहिक उन्माद यानी कि मास हिस्टीरिया का परिणाम थी अंधेरे गर्मी बिजली की कमी और तनाव ने लोगों के डर को और गहरा कर दिया मीडिया ने इस अफवाह को और हवा दी जिससे काला बंदर दिल्ली की गली-गली में डर का पर्याय बन गया।

1962 की लाफिंग एपिडेमिक

जब हंसी एक बीमारी बन गई 1961 में ब्रिटेन से आजादी के बाद पूर्वी अफ्रीकी क्षेत्र तांगा निका यानी कि आज का तंजानिया सामाजिक और राजनीतिक बदलावों के दौर से गुजर रहा था आजादी की खुशी के साथ-साथ भविष्य को लेकर अनिश्चितता तनाव और दबाव भी लोगों के मन में गहराई तक घर कर चुका था अब बात करते हैं कि यह महामारी कैसे शुरू हुई सब कुछ 30 जनवरी 1962 को एक गर्ल्स बोर्डिंग स्कूल में शुरू हुआ।

काशा गांव के एक स्कूल में तीन स्कूली लड़कियां अचानक बिना किसी कारण के बेकाबू हंसी हंसने लगी धीरे-धीरे यह एक से दूसरी लड़की में फैलने लगी कुछ ही दिनों में लगभग 95 छात्राएं इस रहस्यमय हंसी की चपेट में आ गई स्कूल को अस्थाई रूप से बंद करना पड़ा यह महामारी धीरे-धीरे आसपास के गांवों और अन्य स्कूलों में भी फैल गई यह महामारी सिर्फ हंसी तक सीमित नहीं थी।

इसके साथ-साथ प्रभावित लोगों में कई अन्य लक्षण भी देखे गए अनियंत्रित हंसी के दौरे बेहोशी स्किन रशेस सांस लेने में दिक्कत भावनात्मक स्थिरता और थकावट इस महामारी ने लगभग 1000 से अधिक लोगों को अपनी चपेट में ले लिया चार स्कूलों को बंद करना पड़ा प्रभावित क्षेत्रों में सामाजिक और आर्थिक गतिविधियां बाधित हुई।

कई परिवारों ने प्रभावित बच्चों को गांव से बाहर तक भेज दिया मनोवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने इस घटना को मास हिस्टीरिया करार दिया आजादी के बाद की सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता स्कूलों में कठोर अनुशासन और पढ़ाई का दबाव सामाजिक तनाव और डर ये इसके कारण माने गए स्कूलों को फिर से खोलने और महामारी पर नियंत्रण पाने में कई महीने लगे

सेलम विज ट्रायल्स

जनवरी 1692 की बात है मैसाचुसेट्स के सेलम विलेज में 9 साल की एलिजाबेथ पेरिस और उनकी 11 साल की कजिन एबिगेल विलियम्स में रहस्यमय दौरे पड़ने शुरू हुए स्थानीय पादरी ने लिखा यह बच्चियां अदृश्य शक्तियों द्वारा काटी और नौची जा रही थी कभी-कभी उनकी जुबान बंद हो जाती गला घुटने लगता और उनके हाथ पैर में ऐठन होने लगती जब एक डॉक्टर ने जांच के बाद उन्हें जादू टोने का शिकार घोषित किया।

तब यह अफवाह पूरे गांव में फैल गई कुछ ही समय में सेलम की अन्य लड़कियों में भी ऐसे ही दौरे पड़ने की घटनाएं सामने आने लगी डर और अंधविश्वास के चलते लोगों ने एक दूसरे पर शक करना शुरू कर दिया सेलम विच ट्रायल्स के दौरान लोग अपने ही पड़ोसियों के खिलाफ हो गए इतिहास एमरसन बेकर्स के अनुसार सेलम गांव पहले से ही धार्मिक विवादों और सामाजिक गुटबाजी का शिकार था।

इस स्थिति को उस समय की कठिनाइयों ने और भी गंभीर बना दिया मैसाचुसेट्स फ्रेंच और नेटिव अमेरिकन सहयोगियों के साथ चल रहे युद्ध में उपनिवेश हार रहा था स्मॉल पॉक्स महामारी अभी खत्म ही हुई थी लिटिल आईज के कारण फसलें नष्ट हो रही थी जिससे भुखमरी और महंगाई बढ़ गई इन समस्याओं का शिकार बनने के बजाय लोगों ने जादू टोने और चुड़ैलों को दोष देना शुरू कर दिया।

इस दौरान गांव की कुछ ऐसी महिलाओं और पुरुषों को निशाना बनाया गया जिन्हें कम पसंद किया जाता था शुरुआत हुई टिटूबा नाम की महिला से जो पेरिस परिवार की एक दासी थी टिटूबा को जादूगरनी घोषित कर दिया गया धीरे-धीरे अन्य ऐसे लोग भी आरोपों के घेरे में आए जिन्हें समाज में अलग थलग या खतरनाक माना जाता था ।

इस डर और अंधविश्वास के चलते 19 लोगों को फांसी दी गई और कई लोगों को कैद में डाल दिया गया आरोप लगाने का सिलसिला महीनों तक जारी रहा यह ट्रायल केवल एक न्यायिक त्रासदी नहीं थी बल्कि यह डर अंधविश्वास और सामाजिक अस्थिरता का भयावह उदाहरण था 329 साल बाद आखिरी चुड़ैल को आधिकारिक तौर पर माफ कर दिया गया सेलम विच ट्रायल आज भी इतिहास में काले अध्याय के रूप में दर्ज है जो यह दिखाते हैं कि कैसे डर और अफवाह इंसानी सोच और न्याय प्रणाली को विकृत कर सकती हैं।

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