7 ऐसे आविष्कार जिन्होंने दुनिया बदल दी

-: 7 Accidental Inventions :-

कभी आपने सोचा है कि कुछ आविष्कार जो आज हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं असल में एक्सीडेंटल थे जी हां एक गलती और एक अनजाने प्रयोग ने वह चीजें बनाई जिन्होंने हमेशा के लिए मानव इतिहास को बदल कर रख दिया आज हम जानेगे ऐसे सात आविष्कारों की जिन्हें बनाने के बारे में उनके आविष्कार कों ने भी कभी नहीं सोचा था लेकिन इन एक्सीडेंटल डिस्कवरीज ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया जानते हैं उन अद्भुत चीजों के बारे में जिनका आविष्कार गलती से हुआ था।

कोका कोला

दवा से सबसे प्रसिद्ध ड्रिंक तक कोका कोला जो आज दुनिया की सबसे लोकप्रिय सॉफ्ट ड्रिंक्स में से एक है उसकी कहानी भी उतनी ही असाधारण है 1866 मै अमेरिकन फार्मेसिस्ट जॉन पेम्बर्टन एक पैन किलर बनाने की कोशिस कर रहे थे सिविल वॉर मै गंभीर रूप से घायल होने के बाद पेम्बर्टन को मॉर्फिन की लत लग गई थी और वे इसका एक नशा मुक्त विकल्प तैयार करना चाहते थे।

उनका पहला प्रोडक्ट पेंप टन फ्रेंच वाइन कोका था जिसमें कुछ ऐसे इंग्रेडिएंट्स थे जो आज की कोका कोला में भी नहीं मिलेंगे इसमें कोका वाइन होता था जिसमें अल्कोहल और कोकेन कंटेनिंग कोका प्लांट्स के पत्तों का मिश्रण था और साथ ही कोला नट्स होते थे जिनमें स्टिमुलेटिंग कैफीन होती है उनका फ्रेंच वाइन काफी लोकप्रिय हो गया था।

लेकिन जब 1886 में जॉर्जिया में टेंपरेंस मूमेंट ने जोर पकड़ा तो पेम्बर्टन को अल्कोहल फ्री अल्टरनेटिव तैयार करना पड़ा उन्होंने वाइन की जगह शुगर सिरप का इस्तेमाल किया और अपने फार्मूला के साथ प्रयोग करते हुए गलती से कार्बोनेटेड वाटर मिला दिया इसका स्वाद उन्हें बहुत ही बेहतरीन लगा जिसके बाद उन्होंने इसे एक फाउंटेन ड्रिंक के रूप में बेचने का फैसला किया ना कि एक दवा के रूप में उन्होंने अपनी इस नई ड्रिंक का नाम कोका कोला रखा।

यह नाम इस ड्रिंक के बेसिक इंग्रेडिएंट्स पर रखा गया था दुर्भाग्यवश पेम्बर्टन का स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता गया और उनकी मॉर्फिन पर निर्भरता भी बढ़ती गई अपने आविष्कार के सिर्फ दो साल बाद वह गरीबी में ही चल बसे तब तक उन्होंने अपने शेर अपने बिजनेस पार्टनर आशा ग्रिग्स कैंडलर को बेच दिए थे जिसने कोका कोला को अमेरिका की सबसे सफल कंपनियों में से एक बना दिया

माचिस का आविष्कार जिसने दुनिया बदल दी

चार्ल्स डार्विन के अनुसार भाषा के बाद मानवता की सबसे बड़ी उपलब्धि आग की खोज थी जब से इंसानों ने आग जलाना सीखा तब से हम इसे जलाने के तरीकों को बेहतर बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं फ्रिक्शन माचिस के आविष्कार से पहले आग जलाने के लिए फ्लिंट स्टील या फायर ड्रिल का इस्तेमाल किया जाता था जो काफी मेहनत भरा काम होता था।

शुरुआती माचिस केमिकल्स पर आधारित होती थी जिसमें सल्फ्यूरिक एसिड से भरी एक शीशी होती थी और उसे कागज में लपेटा जाता था इस माचिस में इस शीशी को तोड़कर आग जलाई जाती थी डार्विन खुद इन माचिस के फैन थे और मजे के लिए इन्हें अपने दांतों से जलाते थे लेकिन जाहिर है कि शुरुआती दौर की यह माचिस काफी असुरक्षित थी।

इसी समय के आसपास ब्रिटिश फार्मासिस्ट जॉन वॉकर ने केमिकल्स के साथ प्रयोग करते हुए गलती से एक कोटेड स्टिक को अपनी आग की जगह पर घिसा व स्टिक अचानक जल उठी यहीं से वॉकर को एक आईडिया आया 1827 में उन्होंने अपनी फार्मेसी में कोन्ग्रेवेस नाम से माचिस बेचना शुरू किया जो पोटेशियम क्लोरेट और एंटीमनी सल्फाइड के मिश्रण से कोटेड कार्ड बो स्टिक्स थी जो कि सैंड पेपर से घिसने पर जल उठती थी।

हालांकि वकर का यह आविष्कार तुरंत लोकप्रिय हो गया था लेकिन उन्होंने इसे पेटेंट कराने का फैसला नहीं किया इसके परिणाम स्वरूप अन्य लोगों ने उनके डिजाइन की नकल की और अपने खुद के वर्जंस बेचना शुरू कर दिया जिससे उनके असली आविष्कारक होने की पहचान छिप गई उनकी मृत्यु के बाद 1879 मै उन्हें पहले फ्रिक्सन माचिस निर्माता के रूप में पहचना गया

वेल्क्रो

स्विस इंजीनियर जॉर्ज द मेस्ट्रेल ने कभी भी नहीं सोचा था कि वो एक दिन एक ऐसी चीज बना देंगे जिसका इस्तेमाल स्पेसक्राफ्ट में किया जाएगा लेकिन 1941 में जब वे अपने कुत्ते के साथ वॉक से लौटे तो उन्होंने देखा कि उनके कपड़े और उनके कुत्ते के बालों से कुछ छोटे-छोटे कांटे चिपक गए थे जो कोकल बर्ड पौधे के थे ध्यान से देखने पर डी मैस्ट्रो ने पाया कि ये बर्ड्स छोटे हुक की तरह थे जो कपड़े के धागों और उनके कुत्तों के बालों से अटक गए थे।

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इसी से प्रेरित होकर उन्होंने अपना ना खुद का हुक एंड लूप फैब्रिक बनाने की कोशिश की लेकिन इस प्रयास में उन्हें 10 साल से ज्यादा का समय लग गया 1955 में उन्होंने वेल क्रो का पेटेंट करवाया जिसका नाम फ्रेंच शब्द वेलर्स जिसका मतलब वेलवेट होता है और कॉरसेट जिसका मतलब हुक है से मिलकर बना था हालांकि वेलक का नाम वेलर्स से आया था।

लेकिन दि मेस्ट्रो की खोज नायलॉन से बनी थी फैशन इंडस्ट्री ने इसे अपनाने में समय लिया लेकिन नासा ने इसे जल्दी ही अपने स्पेस सूट्स और शटल्स में इस्तेमाल करना शुरू किया नासा के इस एक्सटेंसिव यूज़ की वजह से कई लोग सोचते है की वेल्क्रो नासा की ही खाोज है आज वेल्क्रो का इस्तमाल कपड़ो, हेल्थ केयर डिविसेस, करो और हवाई जहाजों के डिजाइंस मै बड़े पैमाने पर किया जाता है

वार्फरिन

1920 के दशक में कनाडा के खेतों में कुछ अजीब हो रहा था गाय और भेड़ें जो मोल्डी स्वीट क्लोवर घास खा रही थी अचानक इंटरनल ब्लीडिंग से पीड़ित होने लगी कई पूरी तरह से स्वस्थ दिखने वाले जानवर साधारण से वेटनरी प्रोसीजर्स के बाद भी खून बहने से मर रहे थे मतलब कि जानवरों की छोटी मोटी सर्जरी के बाद भी उनका खून बहना बंद नहीं हो रहा था।

कनाडाई पशु चिकित्सक फ्रैंक स्कॉफील्ड ने इस अनसुलझी बीमारी की जांच की और पाया कि उस सड़े हुए घांस में एक ऐसा पदार्थ था जो जानवरों के खून को जमने से रोक रहा था 1940 में वास् कनसन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक टीम जिसमें प्रमुख रूप से बायोकेमिस्ट कार्लिंक शामिल थे उन्होंने इस एंटीकोगुलेंट कंपाउंड यानी कि खून के थक्के जमने से रोकने वाले इस पदार्थ को अलग किया।

उन्होंने इस पावरफुल कंपाउंड का एक यौगिक निकाला और उसे वार्फरिन नाम दिया जो विस्कंसिन एलुमनाई रिसर्च फाउंडेशन यानी कि वॉर्फ के नाम पर रखा गया था जिसने इस अनुसंधान को फंड किया था आपको जानकर हैरानी होगी कि वार्फरिन  का पहला उपयोग हार्ट अटैक्स स्ट्रोक्स या ब्लड क्लॉट्स को रोकने के लिए नहीं किया गया था।

बल्कि इसका इस्तेमाल चूहों को मारने वाली दवा के तौर पर किया जाता था वार्फरिन का इस्तेमाल मेडिकल उपचार के लिए साल 1950 के मध्य में शुरू हुआ था इसके शुरुआती मरीजों में से एक थे अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी आइजन होवर जिनको 1955 में हार्ट अटैक हुआ था और इसका इलाज वार्फरिन से किया गया था आज वर फरीन एक प्रमुख ब्लड थिनर है जो हार्ट पेशेंट्स के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है

डायनामाइट द एक्सप्लोसिव इन्वेंशन

1847 में इटालियन केमिस्ट एस्केन सोब्रो ने नाइट्रो न की खोज की जिसमें उन्होंने ग्यासरोल और नेट्रिक को सल्फ्यूरिक एसिड के साथ मिलाया और एक अत्यधिक विस्फोटक पदार्थ बनाया यह पदार्थ गन पाउडर से भी कहीं ज्यादा शक्तिशाली था लेकिन यह अनस्टेबल था हालांकि सोब्रे खुद भी इस खोज से खुश नहीं थे वे इसके इस्तेमाल के खिलाफ थे क्योंकि इसे कंट्रोल करना बेहद खतरनाक था।

लेकिन उनके लैब के साथ ही अल्फ्रेड नोबेल ने इसमें संभावनाएं देखी और इसे कमर्शल करने का सोचा साल 1867 में नोबेल ने सिलिका पाउडर के साथ नाइट्रोग्लिसरीन को स्थिर करके डायनामाइट का आविष्कार किया हालांकि इसके प्रयोग में उनकी फैक्ट्री दो बार उड़ गई थी डायनामाइट ने एक्सप्लोसिव और हथियारों की दुनिया में क्रांति ला दी और नोबेल को अमीर बना दिया।

नोबेल को आज उनके नाम से दिए जाने वाले नोबेल प्राइज के लिए याद किया जाता है जो मानवीय योगदान को सम्मानित करता है लेकिन यह पुरस्कार देने के लिए जो धन नोबेल के पास था वह उन्हीं की बनाई गए युद्ध में इस्तेमाल होने वाली विनाशकारी खोज से आया था सोब्रेरो कभी नहीं चाहते थे कि उनकी खोज का ऐसा उपयोग हो

पेनिसिलिन द एक्सीडेंटल एंटीबायोटिक

1928 में लंदन के बैक्टीरियोलॉजिस्ट एलेक्जेंडर फ्लेमिंग छुट्टी से वापस लौटे और अपनी लैब में देखा कि एक पेट्री डिश में मोल्ड उक चुका था दरअसल यह मोल्ड कई दिनों की सड़न का नतीजा था लेकिन फ्लेमिंग ने ध्यान दिया कि इस मोल्ड के आसपास कोई बैक्टीरिया नहीं पनपे थे फ्लेमिंग ने इस मोल्ड से निकलने वाले बैक्टीरिया मारने वाले जूस का नाम पेनिसिलिन रखा था जो कि एक फंगस पेनिसिलियम नोटा अपम के नाम पर रखा गया था।

1929 में उन्होंने अपनी खोज पर एक पेपर पब्लिश किया लेकिन वे यह सुनिश्चित नहीं कर सके कि इसका कोई प्रैक्टिकल यूज होगा या नहीं क्योंकि इसे शुद्ध करना और स्टेबल करना मुश्किल था एक दशक बाद ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के केमिस्ट ने फ्लेमिंग का पेपर पढ़ा और पेनिसिलिन को एक व्यवहारिक मेडिसिन में बदलने का प्रोजेक्ट शुरू किया 1940 में इसे पहली बार एक मरीज पर टेस्ट किया गया था और 1942 में इसका वाइड स्प्रेड यूज शुरू हुआ आज पेनिसिलिन दुनिया भर में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाली एंटीबायोटिक है और इसके साथ ही यह दवा दुनिया में सबसे ज्यादा जान बचाने वाली दवाओं में से एक है

स्मोक डिटेक्टर्स

1930 के दशक में स्विस फिजिसिस्ट वल्ट जेगर एक पॉइजन गैस डिटेक्टर बनाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन जब उनके सिगरेट के धुएं ने इस डिवाइस पर असर डाला तब उन्होंने जाना कि वे तो कुछ और ही बना रहे थे जो था स्मोक डिटेक्टर 1950 के दशक में स्मोक डिटेक्टर्स को इंडस्ट्री जगहों पर लगाया जाने लगा था।

लेकिन ज्यादा कीमत होने के कारण इनका इस्तेमाल आम घरों में नहीं हो पाया था आगे चलकर 1970 के दशक में तकनीकी प्रगति ने स्मोक डिटेक्टर्स को किफायती बना दिया और 1977 तक 1.2 करोड़ से अधिक स्मोक डिटेक्टर्स बेचे गए आज 90% से ज्यादा घरों में स्मोक डिटेक्टर्स का प्रयोग होता है।

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