सैकड़ों क्रांतिकारियों को तोपो के सामने खड़ा कर उनके चिथड़े उड़ा दिए, तब आजाद हो पाया देश

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-: 15 Augest :-

कर्तव्य राष्ट्र का है यह अतिपावन, अपने शहिद वीरो का वह जय गान करे, सम्मान राष्ट्रों को दिया अपना जीवन दे, राष्ट्र सदा उनकी यादों का सम्मान करे। उज्जैन संभाग पूर्व सैनिक कल्याण संगठन अध्यक्ष सूबेदार कमल सोनी (सेवा निवृत) भारतीय थल सेना ने 78वें स्वतंत्रता दिवस पर उक्त पंक्तियां लिखते हुए कहा कि भारत को अंग्रेजो की 200 सालों की गुलामी से आजादी इतनी आसानी से नहीं प्राप्त हुई थी।

राष्ट्र को आजादी दिलवाने में असंख्य ज्ञात एवं अज्ञात क्रांतिकारियों ने घोर यातनाओं को भुगता था। उन्होंने अपने प्राणों की आहुतियां दी थी, हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे, सैकड़ों क्रांतिकारियों को तोपो के सामने खड़ा कर उनके चिथड़े उड़ा दिए गए थे। तब जाकर 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो पाया था।

पहला युध्द- 1104 भारतीय सैनिक शहीद हुए, पाकिस्तान के 6000 सैनिकों, कबालियो को ढेर किया

सूबेदार कमल सोनी ने बताया कि इस आजादी को 15 अगस्त 1947 से आज तक अक्षूण बनाए रखने में भारतीय सेनाओं का बहुत ही बड़ा अविस्मरणीय योगदान रहा है। आजादी मिलने के तुरंत दो माह बाद ही 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी सेना और कबालियो ने कश्मीर में आक्रमण कर दिया था और कश्मीर के एक बड़े भूभाग पर कब्जा जमा लिया था।

जिसे भारतीय सेनाओं ने अपने पराक्रम से छुड़ा कर कबालियो को खदेड़ दिया था। इस युद्ध में 1104 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुवे थे व 3154 सैनिक घायल हुवे थे। हमारे सैनिकों ने पाकिस्तान के करीब 6000 सैनिकों व कबालियो को ढेर कर दिया था। 14000 पाक सैनिक भी घायल हुवे थे। यह युद्ध 01 जनवरी 1949 को समाप्त हुआ था।

दूसरा युद्ध- भारत के 10 हजार सैनिकों ने चीन के 80 हजार सैनिकों से युद्ध किया

आजाद भारत का दूसरा युद्ध चीन से हुवा था। चीन ने 20 अक्तूबर 1962 को विवादित भूभाग अक्साईचीन व अरुणाचल को लेकर भारत पर आक्रमण कर दिया था। इस युद्ध में भारत के करीब 10 हजार सैनिकों ने चीन के 80 हजार सैनिकों से वीरता पूर्वक युद्ध किया था। इस युद्ध में हमारे 1,383 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुवे थे 1,047 घायल हुवे 1,696 लापता हुवे और 3,968 युद्ध बंदी बना लिए गए थे। चीन के 722 सैनिक मारे गए 1,697 घायल हुवे थे। 21 नवंबर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा की गई थी।

तीसरा युध्द- भारतीय सेना ने 471 पाकिस्तानी टैंक नष्ट किए, 38 पर कब्जा किया

आजाद भारत का तीसरा युद्ध भारत पाकिस्तान के बीच 06 अप्रैल 1965 को शुरू हुवा और 23 सितम्बर 1965 को संयुक्त राष्ट्र के आह्वान पर समाप्त हुवा। यह युद्ध जम्मू कश्मीर से लेकर राजस्थान की सीमाओ तक लड़ा गया था। इस युद्ध में टैंको, वायु सेना और नो सेना का भी बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया था। इस युद्ध में भारत के करीब 3000 हजार सैनिक शहीद हुवे थे व पाकिस्तान के 3800 सैनिक मारे गए थे। इस युद्ध में भारतीय सेना ने 471 पाकिस्तानी टैंक नष्ट किए और 38 टैंक पर कब्जा कर लिया था।

चौथा युध्द- पाकिस्तान के 90,000 सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया

आजाद भारत का चौथा युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच 3 दिसंबर, 1971 को शुरू हुआ था और 16 दिसंबर, 1971 को खत्म हुआ था। यह युद्ध 13 दिनों तक चला था। इस युद्ध की शुरुआत तब हुई थी जब पाकिस्तान ने ऑपरेशन चंगेज खान शुरू किया था। इस ऑपरेशन में उत्तर और पश्चिमी भारत में भारतीय वायु सेना के ठिकानों पर हवाई हमले किए गए थे। इसके बाद, भारत ने पाकिस्तान पर युद्ध की घोषणा की। इस युद्ध में भारत की जीत हुई और पाकिस्तान को घुटने टेकने पड़े।

16 दिसंबर, 1971 को ढाका में पाकिस्तानी लेफ़्टिनेंट जनरल ए. ए. के. नियाज़ी ने करीब 90,000 सैनिकों के साथ भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान का वजूद एक अलग देश के रूप में बना, जिसका नाम आज बांग्लादेश है। इस युद्ध में ज़मीन पर पाकिस्तान को सबसे ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ा था। इस युद्ध में पाकिस्तान के 8,000 सैनिक मारे गए थे और 25,000 सैनिक व सिविल लोग घायल हुए थे। वहीं, भारत के 3,000 सैनिक बलिदान हो गए थे और 12,000 घायल हुए थे।

पांचवा कारगिल युध्द- 4500 पाक सैनिकों व भाड़े के घुसपैठियों को मौत के घाट उतारा

आजाद भारत का पांचवा युद्ध कारगिल युद्ध, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच 03 मई से लेकर 26 जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में हुवा था। यह युद्ध दुनिया का सबसे कठिनतम युद्ध श्रेणी में आता है। जिसमे भारतीय सेनाओं ने अपनी परम देशभक्ति, वीरता, अदम्य साहस व अद्भुत रणकोशल का परिचय देते हुवे करीब 4500 पाक सैनिकों व भाड़े के घुसपैठियों को मौत के घाट उतार कर कारगिल की चोटियों से खदेड़ दिया था। इस युद्ध में हमारे 527 वीर जवान बलिदान हुवे थे व करीब 1363 जवान घायल हुवे थे।

15 अगस्त 1947 के बाद से आजतक अगर राष्ट्र सुरक्षित है तो केवल भारतीय सेनाओं की वजह से कारगिल युद्ध 1999 की समाप्ति के बाद से लेकर आज तक इन 25 वर्षो में विभिन्न आतंकी घुसपैठ की घटनाओं में आए दिन भारत के सैनिक देश की रक्षा करते हुवे अपना बलिदान दे रहे है। कहने का मतलब यह है की 15 अगस्त 1947 के बाद से आजतक अगर राष्ट्र सुरक्षित है तो केवल और केवल भारतीय सेनाओं की वजह से।

राष्ट्र की संप्रभुता की रक्षा कर राष्ट्र को अगर किसी ने अक्षूण बनाए रखा है तो सिर्फ और सिर्फ भारतीय सेनाओं के वीर जवानों ने। राष्ट्र रक्षा के लिए अपने प्राणों का कोई बलिदान दे रहा है तो सिर्फ भारतीय सेनाओं के वीर जवान, और इन बलिदानों की अगर कोई कीमत चुकाता है तो वो सिर्फ इन अमर बलिदानियों के परिवार। क्योंकि देश की सुरक्षा के लिए ये लोग अपना बेटा, भाई, पति को सदा के लिए खो देते है, जीवन भर कष्ट झेलने के लिए।

ये वीर जवान हमारे ही समाज के ऐसे जाबांज युवक व युवतियां होते है जिनके दिल में राष्ट्र के प्रति जज्बा, सेना के प्रति सम्मान और मन में देश के प्रति कुछ कर गुजरने की इच्छाशक्ति होती है। जिनका लक्ष्य ही राष्ट्र भक्ति सर्वोपरि होता है। ऐसे युवक और युवतियां जो सैन्य जीवन को अपने भविष्य के रूप में अपनाते है। वे विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओ के माध्यम से चयनित होते है और सेना के कठोर प्रशिक्षण के उपरांत राष्ट्र रक्षा में एक मिशाल कायम करते है।

हमारे देश में सेना और सैनिक को उत्स्विक दृष्टि से बहुत सम्मान दिया जाता है।  नरेंद्र मोदी जबसे हमारे देश के प्रधानमंत्री बने है तब से हर वर्ष दिवाली का त्योहार सेना के जवानों के साथ ही मनाते है। हमारे रक्षामंत्री सेना की अग्रिम चौकियों का दौरा कर सैनिकों का मनोबल बढ़ाते है। पूर्व सैनिकों के प्रति राष्ट्र की कृतज्ञता व्यक्त करते है। 26 जनवरी और 15 अगस्त को निकलने वाली परेड में सुसज्जित सेना को देख कर गोरांवित महसूस किया जाता है।

केवल युद्ध या संकट में सम्मान, सामान्य दिनों में सैनिकों को कोई महत्व नहीं दिया जाता

सूबेदार कमल सोनी ने कहा कि भारतीय सेनाओं के जवानों एवं पूर्व सैनिकों एवं उनके परिवार को केवल युद्ध या संकट की स्थिति में ही सम्मान मिलता है। सामान्य दिनों में हमारे शासन प्रशासन व जनसामन्य द्वारा सैनिकों एवं पूर्व सैनिकों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। केंद्र सरकार/राज्य सरकारों द्वारा सैनिकों/पूर्व सैनिकों के पुनर्वास एवं कल्याणार्थ बनाई गई योजनाओं का लाभ उनको नही दिया जा रहा है। शासन के राजस्व विभाग एवं गृह विभाग (पुलिस) द्वारा सैनिकों/पूर्व सैनिकों के मामलो में बहुत ही उदासीन रवैया अपनाया जाता है।

सैनिकों /पूर्व सैनिकों के शस्त्र लायसेंस संबंधी, कृषि भूमि संबंधी, पुनर्वास हेतु नोकरियो में आरक्षण संबंधी प्रकरण आदि के निपटान में सैनिकों/पूर्व सैनिकों को नियमानुसार जो प्राथमिकता मिलना चाहिए वो नही मिलती है। शासन प्रशासन के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा सैनिकों/पूर्व सैनिकों एवं उनके परिवार का उत्पीड़न किया जाता है। उनके समस्याओं के निपटान के लिए वर्षो चक्कर कटवाए जाते है।

अब तो पूर्व सैनिकों के विरुद्ध जूठी एफ. आई. आर., पूर्व सैनिकों के माता पिता परिवार के साथ मारपीट और जानलेवा हमले हो रहे है। जिसमें सैनिकों/पूर्व सैनिकों के परिवार को ही प्रताड़ित किया जा रहा है। सैनिकों/पूर्व सैनिकों एवं उनके परिवार से रिश्वत की मांग करने में भी कोई परहेज नहीं किया जा रहा है। ऐसे अनेक उदाहरण देश के हर राज्य के साथ साथ हमारे उज्जैन जिले में भी उपलब्ध है।

अवसरवादी विघटनकारी नेताओ के देश में तुष्टिकरण व अराजकता फैलाने वाले बयान निंदनीय

बंगला देश की घटनाओं को देखते हुवे हमारे देश के कुछ अवसरवादी विघटनकारी नेताओ द्वारा देश में तुष्टिकरण व अराजकता फैलाने के उद्देश्य से दिए जा रहे बयानों का भी हम पूर्व सैनिक घोर निन्दा करते है। हमे इनकी मानसिक स्थिति और राष्ट्रविरोधी सोच पर क्रोध भी आ रहा है। आजादी के बाद से देश की सेनाओं ने पांच बड़े युद्ध लड़े है। हर युद्ध में भारतीय सैनिकों ने राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया है और निरंतर देते आ रहे है।

सीमाओं पर एक दिन भी ऐसा नहीं जाता है जिस दिन हमारे सैनिक प्राणों का बलिदान नही देते हो। क्या ऐसे लोगो की रक्षा के लिए वो अपने जीवन का स्वर्णिम कॉल देश की रक्षा में लगा देता है? क्या ऐसे गद्दार लोगो की रक्षा करने के लिए वो अपने प्राणों का बलिदान दे रहे है? इन देश द्रोही लोगो के द्वारा दिए जा रहे बयान सेना के पराक्रम का अपमान है। देश के बाहरी शत्रुओं से सरहदो की रक्षा करने में हमारे देश की सेनाएं हर तरह से सक्षम है। किंतु देश में एक ऐसे सैन्य दस्ते की भी अतिआवश्यकता है जो देश में ऐसे आराजकता फैलाने वाले विघटनकारी आंतरिक दुश्मनों को भी मुंह तोड़ जवाब दे सके।

बांग्लादेश के हिंदू नागरिकों की बलपूर्वक रक्षा करने की आवश्यकता

हम देश के प्रधानमंत्री से यह भी आहवान करते है की वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के हिंदू मुस्लिम नागरिकों के ऊपर पश्चिमी पाकिस्तान की सेना द्वारा किए जा रहे घोर अत्याचार से उन्हें मुक्ति दिलवाने हेतु भारत ने मुक्तिवाहिनी संगठन का सहयोग किया था। तब यह नहीं देखा गया था की ये अत्याचार हिंदुओ पर हो रहे या मुसलमानो पर। तब जरूरत पड़ने पर 03 दिसंबर से 16 दिसंबर 1971 तक भारत की तीनों सेनाओं ने पाकिस्तानी सेनाओं के ठिकानों को बर्बाद कर 93 हजार से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना कर एक नया राष्ट्र बांग्लादेश का निर्माण कर दिया गया था।

आज फिर वही पाक समर्थित और भारत विरोधी ताकते बांग्लादेश में हिंदुओं और गैर मुस्लिम नागरिकों की नृशंस हत्याएं कर रही है महिलाओं की इज्जत आबरू लूटी जा रही है उनके घर, दुकानें जलाएं जा रहे है। उन्हे अमानवीय यातनाएं दी जारही है। उन्हे देश छोड़ने के लिए या इस्लाम गृहण करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। भारत क्यों मुक दर्शक बना तमाशा देख रहा है। हमे बांग्लादेश के उन हिंदू नागरिकों की बलपूर्वक रक्षा करने की आवश्यकता है। चाहे एक बार पुनः 1971 की पुनरावृति करनी पड़े। यह हमारे राष्ट्र की सुरक्षा के लिए भी अतिसंवेदनशील स्थिति है। ऐसी ताकतों को बांग्लादेश में घुसकर नेस्तानबुद करना अतिआवश्यक है।


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