-: अहोई अष्टमी :-
हिंदू धर्म में विवाहित महिलाएं हर साल अहोई अष्टमी का व्रत बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाती हैं, क्योंकि इस व्रत का बहुत महत्व होता है। यह व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से माताएं अपने बच्चों की लंबी आयु और स्वास्थ्य की कामना के लिए रखती हैं। इस दिन मां अहोई की पूजा की जाती है, जो संतान सुख की दाता मानी जाती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से संतान की रक्षा होती है और वह स्वस्थ रहते हैं। जीवन के सभी रोगों से छुटकारा पाएं।
द्रिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि गुरुवार, 24 अक्टूबर को सुबह 1:18 बजे शुरू होगी और शुक्रवार, 25 अक्टूबर को सुबह 1:58 बजे तक रहेगी। अहोई अष्टमी का व्रत उदय तिथि के अनुसार 24 अक्टूबर, गुरुवार को ही रखा जाएगा।
अहोई अष्टमी के दिन पूजा का शुभ समय शाम 05:42 बजे से शाम 06:58 बजे तक रहेगा यानी महिलाओं को पूजा के लिए केवल 01 घंटा 16 मिनट का समय मिलेगा और शाम को तारा दर्शन के लिए समय 06:06 बजे है. अहोई अष्टमी पर चंद्रोदय का समय रात 11:56 बजे है।
अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त, ऐसे करें पूजा
- अहोई अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- घर के आंगन में मिट्टी का एक कोना बनाकर उसमें माता अहोई का चित्र लगाएं।
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- उस स्थान पर चावल, फल और मिठाइयाँ चढ़ाएँ।
- बांस की टोकरी में खाने-पीने का कुछ सामान रखें और चंद्रमा का ध्यान करते हुए पूजा करें।
- खासतौर पर इस दिन रोटी का भी विशेष महत्व होता है, जो माता अहोई को अर्पित की जाती है।
इन चीजों से करें गुलगुलों का भोग
- गुलगुले अहोई अष्टमी के भोग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे मीठे और मुलायम होते हैं और माता अहोई को वे प्रिय हैं।
- खीर: अहोई अष्टमी पर खीर भी एक लोकप्रिय मिठाई है। यह पौष्टिक और स्वादिष्ट है.
- पूड़ियाँ: अहोई अष्टमी के भोग में पूड़ियाँ भी शामिल होती हैं। इन्हें आमतौर पर आलू या पनीर की सब्जियों के साथ परोसा जाता है।
- फल: भोग में केला, सेब, अंगूर आदि फल भी चढ़ाये जाते हैं.
- दही: भोग में दही भी मिला सकते हैं.
- मिठाई: भोग में आप अपनी पसंद की कोई भी मिठाई चढ़ा सकते हैं.
इन बातों का ध्यान अष्टमी के दिन भोग लगाते समय
भोग को किसी साफ बर्तन में रखें. भोग को ताजा और स्वादिष्ट बनाएं. आनंद लेते समय मन में शुद्ध भाव रखें। भोग लगाने के बाद इसे परिवार के सदस्यों में बांट दें। अहोई अष्टमी का व्रत करने वाली महिलाओं को भोग तैयार करने से पहले अपने हाथ-पैर धोकर साफ कपड़े पहनने चाहिए। भोग को माता अहोई की मूर्ति या तस्वीर के सामने रखा जाता है. भोग लगाने के बाद आरती की जाती है.
अहोई अष्टमी का महत्व
यह माना जाता है कि अहोई अष्टमी के दिन यदि असंख्य तारे देखें और उनकी पूजा करें तो उनकी पूजा करने से परिवार में संतान की प्राप्ति होती है। इस व्रत में महिलाएं पूजा के दौरान माता पार्वती से प्रार्थना करती हैं कि जिस तरह आकाश में तारे हमेशा चमकते रहते हैं, उसी तरह हमारे परिवार में जन्म लेने वाले बच्चे का भविष्य भी चमकता रहे। आकाश के सभी तारे माता अहोई की संतान माने जाते हैं। इसलिए तारों को अर्घ दिए बिना अहोई व्रत पूरा नहीं माना जाता है।
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